MP Art and Culture in Hindi | म.प्र. का सांस्कृतिक परिदृश्य Cultural landscape of Madhya Pradesh }

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म.प्र. का सांस्कृतिक परिदृश्य


साहित्यक एवं ललित कला अकादमियां

  • मध्यपद्रेश कला परिषद मुख्यालय भोपाल स्थापना वर्ष 1952.
  • मध्यप्रदेश सहित्य परिषद मुख्यालय भोपाल स्थापना वर्ष 1954.
  • मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी मुख्यालय भोपाल स्थापना वर्ष 1969.
  • मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी मुख्यालय भोपाल  स्थापना वर्ष 1976.
  • मध्यप्रेदश कालिदास अकादमी मुख्यालय उज्जैन स्थापना वर्ष 1977.
  • उस्ताद अलाउद्दीन खॉ संगीत अकादमी मुख्यालय भोपाल स्थापना वर्ष 1979.
  • मध्यप्रदेश सिंधी अकादमी मुख्यालय भोपाल स्थापना वर्ष 1983.
  • अल्लामा इकबाल अदबी अकादमी मुख्यालय भोपाल स्थापना वर्ष 1984.
  • मध्यप्रदेश संस्कृत अकादमी मुख्यालय भोपाल स्थापना वर्ष 1985.
  • मध्यपद्रेश तुलसी अकादमी मुख्यालय भोपाल स्थापना वर्ष 1987.
  • भारत भवन मुख्यालय भोपाल स्थापना वर्ष 1982.
  • भोजपुरी एवं पंजाबी सहित्य अकादमी मुख्यालय भोपाल स्थापना वर्ष 2013.
  • म.प्र. की प्रमुख बोलियां बुन्देलखंडी, निमाड़ी, बघेलखण्डी, ब्रजभाषा, मालवी, गोंडी, भीली, कोरकू आदि हैं।

अकादमी स्थापना वर्ष
मध्यपद्रेश कला परिषद  1952
मध्यप्रदेश सहित्य परिषद  1954
मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी  1969
मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी 1976
मध्यप्रेदश कालिदास अकादमी मुख्यालय 1977
उस्ताद अलाउद्दीन खॉ संगीत अकादमी 1979
मध्यप्रदेश सिंधी अकादमी मुख्यालय 1983
अल्लामा इकबाल अदबी अकादमी 1984
मध्यप्रदेश संस्कृत अकादमी मुख्यालय 1985
मध्यपद्रेश तुलसी अकादमी मुख्यालय 1987
भारत भवन 1982
भोजपुरी एवं पंजाबी सहित्य अकादमी 2013




    म.प. के प्रमुख जनजातीय लोकनृत्य

    • गरबा डांडिया नृत्य कला दशहरे के अवसर पर निमाड़ बंजारों द्वारा किया जाता है।
    • गुदम बाजा नृत्य कला लोक वाद्य नृत्य है जो दुलिया जनजाति द्वारा किया जाता है।
    • दादर नृत्य का बुंदेलखंड को उत्सव संबंधी नृत्य है।
    • सुअर (बैगा) लावण्य के लिए प्रसिद्ध समूह में महिलाओं द्वाा मैकाल पर्वत क्षेत्र के लोगों द्वारा किया जाता है।
    • करमा वर्षा ऋतु में मंडला क्षेत्र में किया जाता है।
    • गोंडी, गोंचो रीना, गेंडी, गोंड जाति द्वारा किया जाने वाला लोकनृत्य है।
    • रागिनी ग्वालियर का लोकनृत्य है।
    • खम्ब स्वांग कोरकू जनजाति द्वारा किया जाता है।
    • सैला लोकनृृत्य विवाह के अवसर भारिया जनजाति द्वारा किया जाता है।
    • बकमा होली के अवसर बैगा जनजाति द्वारा किया जाता है।

        मध्यप्रदेश की जनजाति Madhya pradesh ki Janjati

        • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366(25) के अनुसार जनजाति से तात्पर्य उन जानजातीय समुदायों से जो संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजातियों के रूप में माने गये हैं। 
        • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 में सूचीबद्ध जातियां अनुसूचित जनजातियां कहलाती हैं। 
        • वर्तमान में मध्यप्रदेश में 47 से अधिक अनुसूचित जनजातियां हैं। 
        • प्रमुख अनुसूचित जनजाति भील, बैगा, गोंड, कोरकू, कोल, भाटिया, पारधी, अगरिया, परधान, खैरवार हैं। 
        • सर्वाधिक आदिवासी जनसंख्या वाला जिला धार है। 
        • गोंड भारती की सबसे बड़ी जनजाति है। गोंड द्रविडियन मूल के तथा पितृसत्तात्मक होते हैं। 
        • बैगा द्रविड़ वर्ग की अत्यंत पिछड़ी जनजाति है। डॉ एल्विन ने बैगाओं को अत्यंत हंसमुख वर्णित किया है। 
        • म.प. में तीन विशेष  पिछड़ी जनजाति हैं- बैगा, सहरिया, भारिया 
        • म.प. की सबसे बड़ी जनजाति भील है। 
        • करमा विलमा बैगाओं का नृत्य है।  बैगा धार्मिक विश्वास  के कारण स्थानांतरित कृषि करते हैं जिसे वेबार कहते हैं। 
        • बैगा ही गोंड के परम्परागरत पुरोहित होते हैं। औषधियों का अच्छा ज्ञान होता है इसलिए बैगा ओझा का कार्य करते हैं। 
        • भील शब्द की उत्पत्ति बील शब्द से हुई है जिसका अर्थ है धनुष से है। 
        • भीलों के गांव को फाल्या कहते हैं। 
        • राज्य की कुल जनसंख्या का 21.1% अनुसूचित जनजाति है। 
        • अलीराजपुर में अनुसूचित जनजाति सर्वाधिक 89% है। 
        • भिण्ड जिले में अनुसूचित जनजाति सबसे कम 0.4% है। 
        • भीलों में तड़वी सामाजिक आर्थिक विवादों का निपटारा करता है। 
        • भगोरिया का आयोजन झाबुआ में होता है। 
        • भीलों का प्रमुख देवता राजापंथ है एवं धर्म आत्मावादी है। 
        • भीलो में गातला मृत्यु होने पर गाया जाता है।  भीलों के मकान को कू कहा जाता है 
        • केरकू का शाब्दिक अर्थ मनुष्यों को वृंद या समूह है। 
        • कोरकू जनजाति में मृतक संस्कार सिडोली प्रथा प्रचलित है। 
        • सहरिया कोलेरियन परिवार की एक अत्यंत पिछड़ी जनजाति है। 
        • भारिया का शाब्दिक अर्थ भार ढोने वाला है। छिंदवाड़ा जिले के पातालकोट क्षेत्र के भारियों को अत्यंत पिछड़ी जनजाति घोषित किया गया है। 
        • भारिया लोग घने जंगल में एकांत में रहना पसंद करे है। भारिया के गांव को ढाना कहते हैं। भारियाओं की बोली भरनोती है। 
        • कोल मुण्डा समूह की एक प्राचीन जनजाति है। 
        • कोलों की पंचायत को गोहिया पंचायत कहा जाता है। 
        • पारधी मराठी भाषा के शब्द पारद से लिया गया है जिसका अर्थ आखेट है। 
        • अगरिया का निवास स्थान धधकती भट्टी माना जाता है। 
        • युवागृह को घोटूल प्रथा कहते हैं- बैगा 
        • सर्वाधिक अनुसूचित जाति इंदौर जिले में है। 
        • सर्वाधिक अनुसूचित जाति प्रतिशत उज्जैन जिले में है।
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