MP Ke Khanij Sansadhan | मध्य प्रदेश के खनिज संसाधन

 मध्य प्रदेश के खनिज संसाधन

मध्य प्रदेश के खनिज संसाधन Madhya Pradesh's Mineral Resources

  • खनिज विशिष्ट प्राकृतिक दशाओं में निर्मित वे पदार्थ हैं, जो प्रकृति में अनेक रूपों में पाये जाते हैं। भौतिक एवं रासायनिक गुणों के आधार पर खनिजों को विभिनन वर्गों में विभाजित किया जाता है। जैसे धात्विक एवं अधात्विक खनिज अथवा लौह एवं अलौह खनिज।
  • किसी भी देश या राज्य की अर्थव्यवस्था एवं औद्योगिक विकास में खनिजों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। खनिज संसाधनों की उपलब्धता की दृष्टि से मध्य प्रदेश का देश में चौथा स्थान है।
  • मध्य प्रदेश 8 प्रमुख खनिज संपन्न राज्यों में से एक है। म.प्र. में वर्तमान में 8  प्रकार के खनिजों का उत्पादन किया जा रहा है।
  • हीरा, तांबा एवं मैंगनीज के उत्पाद में मध्य प्रदेश का देश में प्रथम स्थान है तथा चूना पत्थर एवं रॉक फॉस्फेट के उत्पादन में द्वितीय स्थान है।

खनिज से संबंधित संस्थान स्थापना वर्ष मुख्यालय
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण 1851 नई दिल्ली
भारतीय खान ब्यूरो 1948 नागपुर
राष्ट्रीय खनिज विकास निगम लि 1958 हैदराबाद
खनिज अन्वेषण निगम लि.  1972 नागपुर


मध्यप्रदेश में पाये जाने वाले खनिज संसाधन
mp ke khanij

मध्य प्रदेश के प्रमुख खनिज भंडार 

mp ke khanij bhandar

मैंगनीज
  • मैंगनीज धारवाड़ क्रम की चट्टानों में ऑक्साइड के रूप में पाया जाता है। यह एक कठोर धातु है जिसका रंग काला होता है। इसका उपयोग लौह मिश्रधातु, इस्पात, कीटनाशक, शुष्क बैटरी, रासायनिक उद्योग  एवं टाइल्स बनाने में किया जाता है।
  • मैंगनीज को लोहे के साथ मिश्रित कर इस्पात बनाया जाता है, जिसे फैरोमैंगनीज के नाम से जाना जाता है।
  • एशिया महाद्वीप की सबसे बड़ी मैंगनीज खदान, बालाघाट जिले के भरवेली में स्थित है।
  • प्रदेश में मैंगनीज का सर्वप्रथम उत्खनन वर्ष 1980-90 में कटनी, जबलपुर एवं सिहोरा में प्रारंभ हुआ था।
  • मध्यप्रदेश में प्रमुख मैंगनीज उत्पादक जिले बालाघाट, छिंदवाड़ा, झाबुआ, जबलपुर आदि हैं।

बॉक्साइट
  • बॉक्साइट एल्युमिनियम का प्रमुख अयस्क है। यह टर्शियरी काल की लैटेराइट शैलों में पाया जाता है। मध्यप्रदेश के कटनी जिले में वर्ष 908 में बॉक्साइट का उत्खनन प्रारंभ किया गया था।
  • मध्यप्रदेश में देश के कुल बॉक्साइट का 4 प्रतिशत भंडार तथा 2.6 प्रतिशत उत्पादन में 6वॉ स्थान है। कटनी, शहडोल, जबलपुर, सीधी, सतना तथा रीवा आदि में बॉक्साइट का उत्पादन किया जाता है।
  • मध्य प्रदेश के बॉक्साइट उत्पादक जिलों में कटनी प्रथम, शहड़ोल द्वितीय तथा सतना तृतीय स्थान पर है।
  • हिण्डाल्को एल्युमिनियम सयंत्र उत्तर प्रदेश केक रेणुकूट में स्थित है। इसे बॉक्साइट की आपूर्ति झारखण्ड के लोहरदग्गा तथा मध्यप्रदेश के अनूपुर जिले से की जाती है।

कोरण्डम
  • कोरण्डम एल्युमिनियम का ऑक्साइड है, जो राज्य के सीधी जिले के पिपरी परकोटा में पाया जाता है।

लौह अयस्क
  • लौह अयस्क धारवाड़ क्रम की चट्टानों में पाया जाने वाला प्रमुख खनिज है। लौह अयस्क में लोहे के अंश की मात्रा के आधार पर इसकी गुणवत्ता का निर्धारण किया जाता है।

लौह अयस्क लौह अंश
हेमेटाइट  60-70
मैग्नेटाइट  60-72
लिमोनाइट  35-50
सिडेराइट  10-48
  • मैग्नेटाइट सबसे उत्कृष्ट कोटि का लौह अयस्क है। जबकि सिडेराइट निम्नतम कोटि का अयस्क है। भारत का लगभग 70 प्रतिशत लौह अयस्क हेमेटाइट का प्रकार है।
  • देश में हेमेटाइट लौह अयस्क के कुल 22487 मिलियन टन निक्षेप पाये जाते हैं, जिसका अधिकांश भाग ओडिशा (34 प्रतिशत), झारखण्ड (23 प्रतिशत), छत्तीसगढ़ (22 प्रतिशत) तथा कर्नाटक (11 प्रतिशत) में पाया जाता हैै। मध्य प्रदेश में 1.46 हेमेटाइट के निक्षेप पाये जाते हैं।
  • भारत में कुल लौह अयस्क के मध्य प्रदेश में 0.99 प्रतिशत भंडार पाये जाते हैं। जबकि देश के कुल लौह अयस्क के उत्पादन में इसका योगदान 1.33 प्रतिशत है। ओडिशा भारत के कुल लौह अयसक का 50.85 प्रतिशत का उत्पादन करता है।

चीनी मिट्टी

  • चीनी मिट्टी का निर्माण प्रायः ग्रेनाइट के फेल्सपार नामक खनिज के क्षरण से होता है। यह एक अग्नि प्रतिरोधक खनिज है, जिसमें पोटाश एवं सोड़ा का अभाव पाया जाता है।
  • इसका उपयोग चीनी मिट्टी के बर्तन, सिरैमिक, तापसह उद्योग, उर्वरक, वस्त्र, कागज, पेंट औषधि, सौन्दर्य प्रसाधनों, कीटनाशकों तथा सीमेंट आदि उद्योगों में किया जाता है।
  • मध्य प्रदेश में चीनी मिट्टी के उत्पादन में रीवा प्रथम तथा जबलपुर द्वितीय स्थापन पर है। इसका प्रमुख अयस्क केओलिन है। इससे बर्तन बनाने के कारखाने ग्वालियर,झाबुआ, जबलपुर तथा तथा रीवा में स्थित हैं।
  • इसके अतिरिक्त बैतूल, छतरपुर, सीधी, सतना, उमरिया, रायसेन, छिंदवाड़ा आदि क्षेत्रों में भी चीनी मिट्टी के भंडार पाये जाते हैं।

रॉक फॉस्फेट
  • रॉक फॉस्फेट का उपयोग फॉस्फेट उर्वरक बनाने में किया जाता हैं इसके भंडार झारखड, राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा उत्तरप्रदेश आदि राज्यों में पाये जाते हैं।
  • मध्य प्रदेश में रॉक फॉस्फेट के उत्पादन में अग्रीणी जिले छतरपुर, झाबुआ, सागर का स्थान है। वर्ष 2014 में खरगोन जिले में रॉक फॉस्फेट के नए भंडार प्राप्त हुए हैं।

ऐबेस्टस
  • एबेस्टस एक रेशेदार खजिन है, जो मैग्नीशियम, सिलिका एवं जल के मिश्रण से निर्मित होता है। यह आग्नेय चट्टानों की शिराओं में तथा डोलोमाइट एवं चूना पत्थरों के साथ पाया जाता है। का्रइसाटाइल  (सफेद) और अमोसाइट(भूरा) इसकी प्रमुख किस्में हैं।
  • ऐबेस्टस एक मजबुत, लचीला, विद्युत प्रतिरोधक तथा उच्च ताप सह खनिज है, जिसका उपयोग मोटे कागज, कपड़े तथा अग्निसह चादर आदि बनाने में किया जाता है।
  • एबेस्टस में सीमेंट मिलाकर इससे खपरैल, टिन, व छत ढकरने के तख्ते व चादरों आदि का निर्माण किया जाता है।
  • एबेस्टस मध्य प्रदेश के झाबुआ, नरसिंहपुर, बालाघाट, सीधी, सीहोर व होशंगाबाद आदि जिलों में पाया जाता है। इसका प्रयोग अग्निरोधी पदार्थ व सीमेंट की चादर आदि बनाने में किया जाता हैं

सीसा
  • यह प्री-कैम्ब्रियन और विंध्यन क्रम की चूना पत्थर शैलों में पाया जाता है।
  • सीसा एक अम्ल प्रतिरोधी पदार्थ है। जिसका उपयोग विद्युत केबल, लोहे की चादरों में लेपन, पेंट, बैटरी तथा युद्ध उपकरणों आदि को बनाने में किया जाता हैं इसके भण्डारण में क्रमशः राजस्थान पहला, आंध्रप्रदेश दूसरा तथा मध्यप्रदेश का तीसरा स्थान है।
  • मध्य प्रदेश के दतिया, शिवपुरी, झाबुआ तथा जबलपुर के भेड़ाघाट में सीसे का उत्पादन किया जाता है।

स्लेट
  • भारत में मध्य प्रदेश स्लेट उतपादन की दृष्टि से प्रथम स्थानपर है, जिसका उत्पादन  मंदसौर जिले में होता हैं

डोलोमाइट
  • चूना पत्थर में जब मैग्नीशियम कार्बोनेट की मात्रा 40-45 प्रतिशत होती है तो इसे डोलोमाइट कहते हैं। इसका सबसे अधिक उपयोग इस्पात निर्माण व सीमेंट उद्योग में किया जाता हैं इसके अतिरिक्त इसका उपयोग रबड़, रासायनिक तथा उर्वरक उद्योगों में भी किया जाता हैं
  • डोलोमाइट के भण्डारण में मध्यप्रदेश(27 प्रतिशत) का देश में प्रथम स्थान है। एवं उत्पादन में आंध्रप्रदेश का प्रथम स्थान है।
  • राज्य के झाबुआ जिले में डोलोमाइट का सबसे अधिक उत्पादन किया जाता है। जबकि इसके अन्य उत्पादक जिले अलीराजपुर, इंदौर, सीधी, ग्वालियर, सतना, छिंदवाड़ा, मंडला, कटनी एवं जबलपुर आदि हैं।
  • भिलाई एवं कटनी सीमेंटसंयत्र को झाबुआ जिले से डोलोमाइट की आपुर्ति की जाती है। परन्तु टाइल्स उत्पादक कंपनियों को जबलपुर एवं मण्डला की डोलोमाइट खानों से की जाती है।

गेरू
  • गेरू के उत्पादन की दृष्टि से मध्यप्रदेश का देश में प्रथम स्थान है। इसके उत्पादन में सतना (बेहट खदान) प्रथम तथा जबलपुर (जौली, झलवारा तथा गोगरा) द्वितीय स्थान पर हैं। जबकि अन्य उत्पादक जिले पन्ना, ग्वालियर, बैतूल, होशंगाबाद, रीवा एवं शहडोल आदि हैं।

टिन
  • टिन के भण्डार में हरियाणा (64 प्रतिशत) तथा छत्तीसगढ़ (36 प्रतिशत) का क्रमशः प्रथम एवं द्वितीय स्थान है, जबकि इसके उत्पादन में छत्तीसगढ़ का लगभग एकाधिकार है। मध्य प्रदेश में टिन का सर्वाधिक उत्पादन बैतूल जिले में होता है।

हीरा
  • मध्य प्रदेश हीरा उत्खनन की दृष्टि से अग्रणी राज्य है। वर्तमान मेें देश का अधिकांश हीरा केवल मध्यप्रदेश से ही प्राप्त किया जाता है। पन्ना (मझगांव, हिनोता व उथली) एवं छतरपुर (अंगौर) जिलों में हीरें की प्रमुख खदाने हैं।
  • इसके अतिरिक्त पन्ना जिले में किलकीला नदी के तट पर स्थित रामखोरिया खदान से भी हीरा प्राप्त किया जाता है।
  • पन्ना जिले में स्थित मझगांव खदान देश में हीरे की सबसे बड़ी खदान है।
  • हीरे के उत्खनन का कार्य राष्ट्रीय खजिन विकास निगम द्वारा किया जाता है।
  • भारत में हीरे के भंडार मध्यप्रदेश (90.18 प्रतिशत), आंध्रप्रदेश (5.72), छत्तसीगढ़(4.09) में स्थित हैं। परन्तु भारत में सम्पूर्ण हीरे का उत्पादन मध्य प्रदेश राज्य द्वारा किया जाता है।

टंगस्टन
  • टंगस्टन सर्वाधिक गलनांक वाली धातु हैं, इसका उपयोग स्टील उद्योग, विद्युत बल्ब के फिलामेंट बनाने, घर्षण प्रतिरोधी और लोहे की मोटी चादरों को काटन में किया जाता है। टंगस्टन उत्पादन में मध्यप्रदेश के होशंगाबाद (अमरगांव) जिले का प्रथम स्थान है।

ग्रेफाइट
  • ग्रेफाइट की प्राप्ति कायांतरित तथा नीस चट्टानों से होती है। मध्य प्रदेश् के बैतूल जिले में इसके भंडार पाये जाते हैं। इसका उपयोग स्नेहक, पेंट, बैटरी एवं पेंसिल आदि उद्योगों में किया जाता है।

तॉबा
  • तॉबे की प्राप्ति धारवाड़ शैल समूह की सिस्ट एवं फाइलाइट शैलों से होती है, जो प्रदेश के बालाघाट तथा छिंदवड़ा जिले से प्राप्त होता है। बालाघाट में स्थित मलाजखंड तॉबे के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ पर 170 मीटर लंबी एवं 20 मीटर चौड़ी परत पाई जाती है।
  • भारत के 53.20 प्रतिशत तॉबे का उत्पादन मध्यप्रदेश के मलाजखंण्ड (बालाघाट) से किया जाता है। इसलिए मलाजखण्ड को तॉबा नगरी के नाम से जाना जाता है।
  • हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (वर्ष 1972) की इकाई  मलाजखण्ड की खदानों से तॉबे का खनन कर रही है।
  • मध्य प्रदेश में बालाघाट के अतिरिक्त छिंदवाड़ा(जगंलधेरी), बैतूल (घिसी), टीकमगढ़ (गोतेल), झाबुआ, सीधी (चकरिया), कटनी (इमलिया) आदि जिलों में भी तॉबे के भंडार पाये जाते हैं।

अभ्रक
  • अभ्रक आग्नेय और कायांतरित शैलों में पाया जाने वाला खनिज है। जिसका रंग हरा, काला, गुलाबी तथा सफेद होता है। यह विद्युत रोधी, ताप का कुचालक, पारदर्शी एवं लचीला होता है तथा इसका उपयोग विद्युत उपकरण, रबड़, इलेक्ट्रानिक तथा पेंट आदि के निर्माण में किया जाता है।
  • मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा, बालाघाट, मंदसौर, झाबुआ तथा होशंगाबाद जिलों मेें अभ्रक के प्रमुख भंडार पाये जाते हैं। बालाघाट जिले का अभ्रक उत्पादन में प्रथम स्थान है।

कैल्साइट
  • कैल्साइट के निक्षेप मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में पाये जाते हैं। इसके अन्य क्षेत्र झाबुआ तथा खरगोन आदि जिले हैं।

चूना पत्थर
  • चूना पत्थर अवसादी शैलों में पाया जाता है। इसमें कैल्सियम  कार्बोनेंट की मात्रा सबसे अधिक होती है। इसका उपयोग सीमेंट, लौह इस्पात, उर्वरक, चीनी कागज, रसायन आदि उद्योगों में किया जाता है।
  • चूना उत्पादन में मध्य प्रदेश के क्रमशः सतना, कटनी, दमोह, तथा रीवा जिलों का प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ स्थान है। इसके अतिरिक्त धार, जबलपुर तथा सीधी जिलों में भी चूना पत्थर का उत्पादन किया जाता है।
  • मध्य प्रदेश के कटनी जिले को चूना नगरी के नाम से भी जाना जाता है।

संगमरमर (मार्बल)
  • संगमरमर के उत्पादन की दृष्टि से देश में राजस्थान का प्रथम स्थान तथा मध्य प्रदेश का द्वितीय स्थान है। राज्य के भेड़ाघाट (सफेद), ग्वालियर (धब्बेदार), सिवनी (हरा) बैतूल तथा छिंदवाड़ा जिलों में रंगीन संगमरमर, आर्कियन युक की शैलों में पाये जाते हैं। इसके इन्य उत्पादक जिले कटनी, सीधी, झाबुआ तथा हरदा आदि हैं।

कोयला
  • कोयला एक जीवाश्मीय ईंधन है। इसकी रासायनिक संरचना में मुख्य रूप से कार्बन हाइड्रोजन के तत्व पाये जाते हैं। कोयले का निर्माण मध्य कार्बोनीफेरस काल में भूगर्भिक हलचलों के कारण सघन वनों के मलवे में दब जाने तथा उनके अवसादीकरण के पश्चात् हुआ है। कोयले की गुणवत्ता पर ताप एवं दाब का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है।
  • भारत में 98 प्रतिशत कोयले के भंडार गोंडवाना काल की चट्टानों में एवं शेष टर्शियरी काल की शैलों में पाये जाते हैं। भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार अप्रैल 2018 तक भातर में 319.020 बिलियन टन कोयले के भंडार हैं। जिसमें 45.664 बिलियन टन लिग्नाइट कोयले के भंडार हैं।
  • कोयले को सामान्यत कोकिंग और गैर कोकिंग कोयला में विभाजित किया गया है। कोकिंग कोयले का उपयोग धातुकर्मीय उद्योग में किया जाता है। जबकि गैर कोकिंग कोयले का उपयोग अन्य उद्योगों में किया जाता हैं इसे स्टीम यो गैस कोयला भी कहते हैं।
  • कोयले की गुणवत्ता की निर्धारण उसमें निहित कार्बन की मात्रा के आधार पर किया जाता है।

कोयले का प्रकार कार्बन की मात्रा प्रतिशत
एंथ्रेसाइट कोयला  80-90
बिटुमिनस कोयला  55-80
लिग्नाइट कोयला  40-55
पीट कोयला  40 से कम

  • एंथ्रेसाइट कोयले का निक्षेप जम्मू-कश्मीर में बहुत कम मात्रा में पाया जाता है। भारत का अधिकांश कोयला बिटुमिनस एवं लिग्नाइट प्रकार का है।
  • मध्य प्रदेश में कोयले का विस्तार राज्य के पूर्वी तथा दक्षिणी भागों में पाया जाता है।
  • पूर्वी कोयला क्षेत्र में राज्य के सिंगरौली, सीधी, शहडोल आदि जिलों के कोयले का विसतार है। मध्य प्रदेश का सबसे छोटा कोयला क्षेत्र उमरिया है, जिसका क्षेत्रफल 15.5 वर्ग किमी हैं
  • सिंगरौली मध्य प्रदेश् का दूसरा सबसे बड़ा कोयला क्षेत्र है। जिसका क्षेत्रफल 2337 वर्ग किमी है।
  • उमरिया पाली विरसिंहपुर के निकट जोहिला नदी घाटी में कोरार कोयला क्षेत्र स्थित है, जिसका क्षेत्रफल 39 वर्ग किमी है।
  • मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा कोयला क्षेत्र शहडोल जिले में स्थित सोहागपुर कोयला क्षेत्र हैै

दक्षिणी कोयला क्षेत्र

शाहपुर तवा कोयला  क्षेत्र-  यह सतपुड़ा श्रेणी का सबसे बड़ा कोयला क्षेत्र है। जो तव नदी घाटी के किनारे बैतूल तथा होशंगाबाद जिले के मध्य स्थित है। इस क्षेत्र में स्थित प्रमुख कोयला खदाने पाथरखेड़ा, दुलहरा, मदनिपुर एवं तान्दसी आदि हैं।

पेंच कोयला क्षेत्र- यह पेंच कान्हन क्षेत्र के अंतर्गत शामिल है। यह होशंगाबाद में चांटमेटा के निकट परासिया तथा पेचं तक विस्तृत है।

कान्हन घाटी क्षेत्र- इस क्षेत्र में मुख्यतः नीमखेरा, जिनौर, दातला, जामई तािा घोरावादी से कोयला प्राप्त होता हैं

मोहपानी कोयला क्षेत्र- यहां से साधारण प्रकार का कोयला प्राप्त होता है।

  • भारत में कोयले की कल 476 खदानें अवस्थित हैं। जिसमें से झारखण्ड 132, पश्चिम बंगाल 76, मध्यप्रदेश 67, तथा महाराष्ट्र 57 खदानें स्थित हैं।
  • इस्पात उद्योग में कोकिंग कोयले की मांग अधिक है जिसके कारण गैर कोंकिग कोयले की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए कोयला खदानों के निकट कोयला धोवनशलायें लगायी गई हैं जिसमे मध्यम श्रेणी के कोकिंग कोयले तैयार किये जाते हैं।

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