PLP KYA HOTA HAI | POTENTIAL LINKED PLANS IN HINDI


 plp kya hai

पीएलपी (संभाव्यतायुक्त ऋण योजना) POTENTIAL LINKED PLANS IN HINDI

पीएलपी 2020-2021 की थीम है - ‘‘ हाई टेक कृषि‘‘

संभाव्यतायुक्त ऋण योजना के अंतर्गत जिलेवार भौतिक और वित्तीय दोनों दृष्टि से ग्रामीण और आर्थिक गतिविधियों के लिए संभाव्यताओं का व्यापक दस्तावेजीकरण है। इस दस्तावेज में कार्यान्वित होने योग्य संभाव्यताओं के पूर्ण दोहन के लिए आधारभूत सुविधाओं के रूप में दी जाने वाली सहायता में दिखाई देने वाली कमियों का आंकलन भी किया जाता है।

पीएलपी के उद्देश्य

ग्रामीण विकास की प्रक्रिया में शामिल विभिन्न संगठनों को संभाव्यताओं के अनुसार योजनाबद्ध ढंग से उनके प्रयासों को दिशा देने में सहायोग करना, दुर्लभ वित्तीय संसाधनों विशेषकर बैक ऋण को विकास की संभाव्यता वाले क्षेत्रों की ओर रूख कर उनका अधिकत उपयोग करना, संभाव्यताओं का दोहन करने और इस प्रयोजन से संसाधन आवश्यकताओं की प्राथमिकता निर्धारित करने के लिए अपेक्षित आधारभूत सुविधा सहायता के अंतरालों का आकलन करना है।
पद्धति
नाबार्ड ने 1988-1989 में कृषि और ग्रामीण विकास के लिए पीएलपी तैयार करने की पहल की । पीएलपी तैयार करने के लिए नाबार्ड द्वारा अपनाई जाने वाली व्यापक रणनीति है कृषि और ग्रामीण विकास विभाग दोनों क्षेत्रों में दीर्घावधि संभाव्यता (भौतिक इकाईयों के रूप में ) का आकलन करना। विशेषक प्राकृतिक और मानव संसाधन के संदर्भ में और देश और राज्य की प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए विकास के लिए चरणबऋ वार्षिक कार्यक्रम तैयार करना। नाबार्ड पीएलपी तैयार करने की पद्धति परिष्कृत करने और उसकी विषय-वस्तु में सुधार करने के लिए सतत प्रयासरत है।  ताकि पीएलपी, बैंको की वार्षिक ऋण  योजनाओं के लिए सहायक संदर्भ दस्तावेज बन सके। पीएलपी के लेखक जो देश के सभी जिलों में पदापित नाबार्ड के जिला विकास प्रबंधक हैं , को नाबार्ड के क्षेत्रीय कार्यालयों और प्रधान कार्यालय के तकनीकी विशेषज्ञों के समूह द्वारा सहायता प्रदान की जाती है।
पीएलपी तैयार करने के घटक है-
  1. जिला स्तर से संबंधित विभागों के तकनीकी अधिकारियों की सला से क्षेत्रवार, उपक्षेत्रवार संभाव्यताओं के अनुमान का निर्धारण करना।
  2. संभाव्यता के दोहन में आवश्यक सहायक आधारभूत सुविधाओं की पहचान करना।
  3. वर्तमान में उपलब्ध साथ ही भविष्य में नियोजित आधारभूत सुविधाओं और आधारभूत सुविधाओं में कमियों की पहचान करना।
  4. क्षेत्रवार ऋण प्रवाह में रूझान की जांच करना।
  5. राज्य, केन्द्र सरकार की विभिन्न योजनाएं ब्लाॅकवार भौतिक और वित्तीय संभाव्यता का आकलन करना।

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