Historical archaeological tourist destination of Madhya Pradesh in Hindi |मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक पुरातात्विक पर्यटन स्थल


मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक पुरातात्विक पर्यटन स्थल
मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक पुरातात्विक पर्यटन स्थल
मध्यप्रदेश के पुरातात्विक स्थल

अदमगढ़ होशंगाबाद Aadam Garh Hosangabad
यह होशंगाबाद के निकट नर्मदा नदी के तट पर स्थित है । यहां से उपमहाद्वीप क्षेत्र में पशुपालन के प्राचीनतम प्रमाण मिले हैं । यहां से बड़ी संख्या में पुरापाषाण युगीन औजार, मृदभांड के टुकड़े ,हड्डियों के टुकड़े प्राप्त हुए हैं । तथा बाद के समय के कांच के टुकड़े, चूड़ियां भी प्राप्त हुई हैं। आर.वी. जोशी एवं एम.डी. खरे के मार्गदर्शन में यहां उत्खनन कराया गया था।

आवरा मंदसौर Aavra Mandsaur
मंदसौर जिले में स्थित यह गांव गांव से ताम्र पाषाण युग से लेकर गुप्त काल तक के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां से प्राप्त होते 6 कालों से संबंधित से संबंधित कालों से संबंधित से संबंधित है। प्रथम पाषाण काल द्वितीय ताम्र पाषाण काल (1500 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व),तृतीय (500 ईसा पूर्व से 100 ईसा पूर्व ), चतुर्थ (100 ईसा पूर्व  से 300 ईस्वी),पंचम (300 ई. से 500 ई) और छठवां ( उत्तर मध्यकाल के मुस्लिम मराठा काल तक).
अवरा से पाषाण कालीन  उपकरण , ताम्र पाषाण युग के मकान,पशुओं की हड्डियां ,तांबे की कुल्हाड़ी और मृद्द्भाण्ड मिले हैं । जो नवदाटोली, नागदा के समकालीन है समकालीन हैं।
ईसा पूर्व 500 से 100 तक के जले हुए मकानों के अवशेष, लोहे के उपकरण, बणाग्र, कीलें, हासियां, छीनी,  कुल्हाड़ी ,तांबे की चूड़ियां ,हाथी दांत की वस्तुएं ,आहत सिक्के तथा मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि की मुद्राएं प्राप्त हुई है । संभवतः यह स्थान उस समय अवरा नाम से जाना जाता था।
100 ईसा पूर्व से 300  ईसा पूर्व तक काल के अनेक लोहे के उपकरण प्राप्त हुए हैं । रोमन सभ्यता से संपर्क के प्रमाण भी मिले हैं। 300 से 500  तक उत्तर छत्रप काल से संबंधित अवशेष ,अनेक प्रकार के मृदभांड,मूर्तियां, खिलौने मिले हैं ।इसके बाद सीधे सल्तनत कालीन सिक्के और अवशेष प्राप्त हुए हैं।

डांग वाला उज्जैन Daang wala ujjain
यह उज्जैन के निकट स्थित है यहां से लगभग 2000 ईसा पूर्व से लेकर परमार काल तक अवशेष प्राप्त हुए हैं । यहां से प्राप्त सामग्री ताम्र पाषाण कालीन है। सामग्रियों में विभिन्न प्रकार के चित्रित मृदभांड प्राप्त हुए हैं । मृदभांड के अलावा पक्की मिट्टी की वृषभ मूर्ति तथा तश्तरियां और हिरण ,सांभर, बैल की हड्डियां वह अनाज के अवशेष मिले हैं ।यहां से यज्ञशाला, हवन सामग्री, ब्राह्मी मुद्रा, गुप्त कालीन मुद्रा और मूर्ति मिली हैं।

इंद्रगढ़ Indragarh
राष्ट्रकूट शासक के इंद्रगढ़ शिलालेख में शिव मंदिर निर्माण के उल्लेख के आधार पर इंद्रगढ़ में तीन स्थानों पर उत्खनन कराया गया था । उत्खनन से प्राप्त अवशेष है स्तम्भ तोरण, नंदी ,भैरव, पार्वती विष्णु, लक्ष्मी ,वराह की प्रतिमाएं कांच और मिट्टी की मणि, अनाज, हाथी दांत की चूड़ियां, लौह उपकरण, अस्थि पंजर आदि ।।संभवतः यहां 8- 12 वीं शताब्दी के बीच मंदिर रहा होगा।

मध्यप्रदेश के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक नगर

अजय गढ़ Ajaygarh
चंदेल शासक परमार्दिदेव के बनाए हुए मंदिर और सरोवर यहां आज भी देखे जा सकते हैं ।यह चंदेलों का प्रमुख नगर था ।यह नगर अपने किलों के लिए विख्यात है।

इंदौर Indore
होलकरों की राजधानी था।  रानी अहिल्या की प्रसिद्ध शासिका थीं। होलकरों के  महल दर्शनीय हैं।

ओरछा Oorchaa
राजा रूद्र प्रताप द्वारा ओरछा बसाया गया था। जुझारू देव यहां के उल्लेखनीय शासक थे । हिंदी महाकवि केशव का संबंध यहीं से था।

दशपुर Dashpur
मंदसौर के निकट स्थित दशपुर प्राचीन काल का महत्वपूर्ण नगर था। गुप्त शासक कुमारगुप्त के शासनकाल का एक अभिलेख यहां से मिला है। जिसमें लाट देश (गुजरा के रेशम व्यापारियों दशपुर  में आकर बसने और एक सूर्य मंदिर निर्माण का उल्लेख है।

नागदा Nagda
उज्जैन के निकट नागदा से प्रारंभिक लौह संस्कृति प्रमाण मिले हैं । तथा लोहे के अनेक उपकरण प्राप्त हुए हैं।

बुरहानपुर Burhanpur
यह मध्यकाल का महत्वपूर्ण राजनीतिक और व्यापारिक केंद्र था तथा खानदेश की राजधानी था। बाद में मुगलों द्वारा विलय कर लिया गया सूती कपड़े का प्रमुख केंद्र है।

भरहुत Bharhut
सतना के निकट स्थित भरहुत शुंग कालीन स्तुप के लिए प्रसिद्ध है । आज इसके अवशेष मात्र बचे हैं। भरहत और साँची के शिल्प कला में बहुत साम्य  है।

भूमरा Bhumra
सतना के निकट भूमरा गुप्तकालीन शिव मंदिर के लिए विख्यात है।

भोजपुर Bhojpur
यह राजा भोज द्वारा बताया गया प्राचीन नगर है। यहां का प्राचीन शिव मंदिर अभी भी बचा है ।जिसका शिवलिंग भारत का सबसे ऊंचा है ।यह स्थल भोपाल के निकट स्थित है।

त्रिपुरी Tripuri
जबलपुर के निकट स्थित है जो कलचुरी राजाओं की राजधानी था। कांग्रेस का 1939 का का ऐतिहासिक अधिवेशन यहीं हुआ था।

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