Chhand Paribhasha Udharan Hindi Grammar छंद की परिभाषा, भेद और उदाहरण Metres in Hindi Grammar


छंद की परिभाषा, भेद और उदाहरण

छन्द Chhand

साहित्य में पद्य लयबद्ध रचना है, वर्णों या मात्राओं की गणना, क्रम, गति, लय, तुक आदि में विशेष नियमों से आबद्ध रचना छंद कहलाती  है। कुछ विद्वान संस्कृत छंदों का आदि जन्मदाता महिर्ष बाल्मीकि को मानते हैं, पिंगलाचार्य महर्षि बाल्मीकि के बाद हुए, फिर भी पिंगलाचार्य को छन्दसूत्रमें छंद का सुसंबद्ध वर्णन होने के कारण इसे छंदशास्त्र का आदिग्रंथ माना जाता है, इसलिए पिंगलके नाम पद छंदशास्त्र को पिंगलशास्त्र भी कहते हैं।

छंद क्या है Chhand Kya hai Chhand Ki Paribhasha

  • छंद शब्द छद्धातु से बना है जिसका अर्थ है आह्लादित करना‘ ‘खुश करना।
  • यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्यास से उत्पन्न होता हैं
  • इस प्रकार छंद की परिभाषा होगी वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं।
  • छंद का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेदमें मिलता है।
  • जिस प्रकार गद्य का नियामक व्याकरण है, उसी प्रकार पद्य का छंद शास्त्र है।

छंद  के अंग Chhand Ke Aang

  1. चरण/पद/पाद
  2. वर्ण और मात्रा
  3. संख्या और क्रम
  4. गण
  5. गति
  6. यति/विराम
  7. तुक

1 चरण/पद/पाद- Charan, Pad, Paad


01- छंद के प्रायः चार भाग होते हैं। इनमें से प्रत्येक को चरण कहते हैं। दूसरे शब्दों में, छंद के चतुर्थांश को  चरण कहते हैं।

02- कुछ छंदों में चरण तो चार होते हैं, लेकिन वे लिखे दो ही पंक्तियों  में जाते हैं, जैसे- दोहा, सोरठा आदि। ऐसे छंद की प्रत्येक पंक्ति को दलकहते हैं।
03-हिन्दी मेें कुछ छंद छः छः पंक्तियों (दलों) में लिखे जाते हैं । ऐसे छंद दो छंदों के योग से बनते हैं, जैसे कुण्डलिया ( दोहा+ रोला), छप्पय (रोला+ उल्लाला) आदि।
04- चरण दो प्रकार के होते हैं-सम चरण और विषम चरण  प्रथम और तृतीय चरण को विषम चरण तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण को सम चरण कहते हैं।

2 वर्ण और मात्रा Varn aur Matra

वर्ण/अक्षर- Varn/ Akshar

1- एक स्वर वाली ध्वनि को वर्ण कहते हैं, चाहे वह स्वर हस्व हो या दीर्घ।
2- जिस ध्वनि में स्वर नहीं हो ( जैसे हलन्त शब्द राजन् का न्संयुक्ताक्षर का पहला अक्षर कृष्ण का ष्‘ )उसे वर्ण नहीं माना जाता।
3- वर्ण को ही अक्षर कहते हैं।
वर्ण दो प्रकार के होते हैं-
ह्रस्व स्वर वाले वर्ण ( ह्रस्व वर्ण ): , , , , , कि, कु, कृ
दीर्घ स्वर वाले वर्ण ( दीर्घ वर्ण ): , , , , , , , का, की, कू, के, कै, का, कौ

मात्रा- Matra

1- किसी वर्ण या ध्वनि के उच्चारण काल को मात्रा कहते हैं।
2- ह्रस्व वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे एक मात्रा तथा दीर्घ वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे दो मात्रा माना जाता है।
इस प्रकार मात्रा दो प्रकार के होते हैं-

ह्रस्व - अ, , ,

दीर्घ- आ, , , , , ,

वर्ण और मात्रा की गणना Chhand me Varn aur Matra Ki Gan na Karna

ह्रस्व स्वर वाले वर्ण ( ह्रस्व वर्ण ) एकवर्णिक- अ, , , , , कि, कु, कृ
दीर्घ स्वर वाले वर्ण (दीर्घ वर्ण )- एकवर्णिक- आ, , , , , , , का, कू, के, कै, को , कौ

मात्रा की गणना Matra Ki Gan na

ह्रस्व स्वर- एकमात्रिक- अ, , ,
दीर्घ स्वर- द्विमात्रिक- आ, , , , , ,

नोट- वर्णों और मात्राओं की गणना में मुख्य भेद यही है कि वर्ण सस्वर अक्षरको और मात्रा सिर्फ स्वरको कहते हैं।

गुरू वर्ण के अंतर्गत शामिल किए जाते हैं-

, , , , , ,
का, की, कू, के, कै, को, कौ
इं, बिं, तः, धः ( अनुस्वार व विसर्ग वाले वर्ण)
इंदु, बिंदु, अतः, अधः
अग्र का अ, वक्र, का व ( संयुक्ताक्षर का पूर्ववर्ती वर्ण है।)
राजन् का ज ( हलन्त् वर्ण के पहले वाला वर्ण है।)

छंद में वर्ण एवं मात्रा की गणना उदाहरण-

राजा
रा- आ- 2 मात्रा
जा-आ- 2 मात्रा
इस प्रकार राजा में दो वर्ण और चार मात्राएं   हैं।
दिवस
दि-1
व- 1
स- 1
इस प्रकार दिवस में 3 वर्ण और 3 मात्राएं हैं।    
अवसान
अ- 1
व- 1
सा- 2
न- 1
इस प्रकार अवसान में चार वर्ण और चार मात्राएं हैं।
मात्रा की गणना का एक अन्य उदाहरण
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून ।
पानी गए न ऊबरै, मोती मानुस चून ।।
रहिमन पानी राखिए - 13 मात्राएं
र हि म न 1 1 1 1 - चार मात्राएं
पा नी 2 2 - चार मात्राएं
रा खि ए 2 1 2  - पॉच मात्राएं

बिन पानी सब सून - 11 मात्राएं
बि न 1 1  - 2 मात्राएं
पा नी 2 2 - 4 मात्राएं
स ब 1 1 - 2 मात्राएं
सू न 2 1 - 3 मात्राएं

छंदो में वर्ण एवं मात्रा की गणना से संबंधित स्मरणीय तथ्य

1- , , उ की मात्राएँ लघु (।) मानी गयी हैं ।
2- , , ,,ऐ ओ और औ की मात्राएँ दीर्घ (ऽ) मानी गयी है।
3- क से लेकर ज्ञ तक व्यंजनों को लघु मानते हुए इनकी मात्रा एक (।) मानी गयी है। इ एवं उ की मात्रा लगने पर भी इनकी मात्रा लघु (।) ही रहती है,परन्तु इन व्यंजनों पर आ, , , , , , औ की मात्राएँ लगने पर इनकी मात्रा दीर्घ  (ऽ) हो जाती है।
4- अनुस्वार (.) तथा स्वरहीन व्यंजन अर्थात आधे व्यंजन की आधी मात्रा मानी जाती है।सामान्यतः आधी मात्रा की गणना नहीं की जाती परन्तु यदि अनुस्वार (।) अ, , उ अथवा किसी व्यंजन के ऊपर प्रयोग किया जाता है तो मात्राओं की गिनती करते समय दीर्घ मात्रा मानी जाती है किन्तु स्वरों की मात्रा का प्रयोग होने पर अनुस्वार (.) की मात्रा की कोई गिनती नहीं की जाती।
5- स्वरहीन व्यंजन से पूर्व लघु स्वर या लघुमात्रिक व्यंजन का प्रयोग होने पर स्वरहीन व्यंजन से पूर्ववर्ती अक्षर की दो मात्राएँ गिनी जाती है। उदाहरण के लिए अंश, हंस, वंश, कंस में अं हं, वं, कं सभी की दो मात्राए गिनी जायेंगी। अच्छा, रम्भा, कुत्ता, दिल्ली इत्यादि की मात्राओं की गिनती करते समय अ, , क तथा दि की दो मात्राएँ गिनी जाएँगी, किसी भी स्तिथि में च्छा ,म्भा, त्ता और ल्ली की तीन मात्राये नहीं गिनी जाएँगी। इसी प्रकार त्याग, म्लान, प्राण आदि शब्दों में त्या, म्ला, प्रा में स्वरहीन व्यंजन होने के कारण इनकी मात्राएँ दो ही मानी जायेंगी।
6- अनुनासिक की मात्रा की कोई गिनती नहीं की जाती.
जैसे-  हँस ,विहँस, हँसना , आँख ,पाँखी, चाँदी आदि शब्दों में अनुनासिक का प्रयोग होने के कारण इनकी कोई  मात्रा नहीं मानी जाती .
7- अनुनासिक के लिए सामान्यतः चन्द्र -बिंदु का प्रयोग किया जाता है.जैसे - साँस ,
किन्तु ऊपर की मात्रा वाले शब्दों में केवल बिंदु का प्रयोग किया जाता है, जिसे भ्रमवश कई पाठक अनुस्वार समझ लेते है.जैसे- पिंजरा , नींद , तोंद आदि शब्दों में  अनुस्वार ( . ) नहीं वल्कि अनुनासिक का प्रयोग है.

3 संख्या और क्रम Sankhya aur Kram

  • वर्णों और मात्राओं की गणना को संख्या कहते हैं।
  • लघु-गुरू के स्थान निर्धारण को क्रम कहते हैं।
  • वर्णिक छंदो के सभी चरणों में संख्या (वर्णों की ) और क्रम (लघु-गुरू का) दोनों समान होते हैं। जबकि मात्रिक छंदों के सभी चरणों  में संख्या ( मात्राओं की ) तो समान होती है लेकिन क्रम ( लघु-गुरू) का समान नहीं होता है।

4 गण Gann

  • गण केवल वर्णिक छंदो के मामले में लागू होते हैं।
  • गण का अर्थ है समूह
  • यह समूह तीन वर्णों का होता है। गण में 3 ही वर्ण होते हैं न अधिक न कम।
  • अतः गण की परिभाषा होगी ‘‘ लघु गुरू के नियम क्रम से 3 वर्णों के समूह को गण कहा जाता है।
  • गणों की संख्या 8 है।
यगण मगण तगण रगण जगण भगण नगण सगण
गणों की संख्या याद करने का सूत्र है यमाताराजभानसलगा इसमें पहले आठ वर्ण गणों के सूचक हैं और अंतिम दो वर्ण लघु (ल) व गुरू (गा) के ।

1
यगण
।ऽऽ
2
मगण
ऽऽऽ
3
तगण
ऽऽ।
4
रगण
ऽ।ऽ
5
जगण
।ऽ।
6
भगण
ऽ।।
7
नगण
।।।
8
सगण 
।। ऽ

5 गति Gati

  • छंद को पढने के प्रवाह या लय को गति कहते हैं।
  • गति का महत्व वर्णिक छंदों की अपेक्षा मात्रिक छंदों में अधिक है। बात यह है कि वर्णिक छंदों में तो लघु-गुरू का स्थान निश्चित रहता है किन्तु मात्रिक छंदों में लघु-गुरू का स्थान निश्चित नहीं रहता, पूरे चरण की मात्राओं का निर्देश मात्र रहता है। मात्राओं की संख्या ठीक रहने पर भी चरण की गतिमें बाधा पड़ सकती है।

6 यति / विराम Yati / Viram

  • छंद में नियमित वर्ण या मात्रा पर साँस लेने के लिए रूकना पड़ता है, इसी रूकने के स्थान का यति या विराम कहते हैं।
  • छोटे छंदों में साधारणतः यति चरण के अंत में होती है पर बड़े छंदों में एक ही चरण में एक से अधिक यति या विराम होते हैं।

7. तुक Tuk

  • छंद के चरणान्त की अक्षर-मैत्री  ( समान स्वर-व्यंजन की स्थापना) को तुक कहते हैं।
  • जिस छंद के अंत में तुक हो उसे तुकान्त छंद कहते हैं और जिसके अंत में तुक न हो उसे अतुकान्त छंद कहते हैं।

छंद के प्रकार- Chhand Ke Prakar

वर्ण और मात्रा के आधार पर छंद मुख्यतया दो प्रकार के होते हैं-

  • 1-वर्णिक या वर्णवृत छंद एवं 2- मात्रिक छंद. इन दोनों (वर्णिक और मात्रिक) छंदो के तीन-तीन- उपभेद हैं- सम, अर्द्धसम और विषम
  • सम- जिन छंदो के चारों चरणों की मात्राएं या वर्ण समान हों वे समकहलाते हैं। जैसे- चौपाई, इन्द्रवजा आदि.
  • अर्द्धसम- जिन छंदों में पहले और तीसरे तथा दूसरे और चौथे चरणों की मात्राओं या वर्णों में समानता हो, वे अर्द्धसमकहलाते हैं। जैसे- दोहा, सोरठा आदि.
  • विषम- जिन छंदों में चार से अधिक (छः) चरण हों और वे एक से न हों, ‘विषमकहलाते हैं, जैसे- छप्पय, कुण्डलियां आदि।

वर्णिक या वर्णवृत छंद Varnik ya Matrik Chhand

जिन छंदो की रचना वर्णों की गणना के आधार पर होती है, उन्हें वर्णिकया वर्णवृत्त छंदकहते हैं। वर्णिक छंदों के प्रचलित रूप हैं-
1 समानिका, 2 मल्लिका, 3 स्वागता, 4 इन्दिरा (कनक मंजरी), 5 शालिनी, 6 दीपक, 7 भुजगी, 8 इन्द्रवज्रा, 9. उपेन्द्रवजा्र, 10 उपजाति, 11 मोतियदाम ( मौक्तिकदाम), 12 तोटक नंदिनी, 13 स्त्रग्विणी, 14 वंशस्य, 15 भुजंगप्रयात, 16 तारक, 17 बसंततिलका, 18 मालिनी (मुंजमालिनी), 19 नाराच ( नागराज),  20 चामर (तूण, सोमवल्लरी), 21 चंचला, 22 मंदाक्रंाता, 23 शिखरणी, 24 शार्दुलविक्रीडति, 25 गीतिका, 26 सन्गधरा, 27 सवैया, 28 मदिरा, 29 चकोर, 30 मालती (मत्तयंगद), 31 मल्लिका (सुमुखी, मानिनि), 32 लक्षी (गंगोदक, गंगाधर, खंजन) , 33 वाम ( मकरंद, माधवी, मंजरी), 34 किरीट, 35 मुक्तहरा, 36 अरसात, 37 दुर्मिल (दुर्मिला, चंद्रकला) , 38 अरविंद, 39 सुन्दरी, 40 कुंदकला, 41 मत्तमातंगलीलाकर , 42 कुसमुस्तवक, 43 उदीची, 44 कवित्त (मनहर) , 45 घनाक्षरी, 46 अपीड , 47 सौरभक

प्रमुख वर्णिक छंद
प्रमाणिका
8 वर्ण
शालिनी, इन्द्रवज्रा, दोधक
सभी में 11 वर्ण
वशस्थ, भुजगप्रयात, दु्रतविलम्बित, तोटक
12 वर्ण
बसंततिलका
14 वर्ण
मालिनी
15 वर्ण
पंचचामर, चंचला
16 वर्ण
मन्दाक्रान्ता, शिखरिणी
17 वर्ण
शार्दूल, विग्रीडित
19 वर्ण
सत्रग्धरा
21 वर्ण
सवैया
22 से 26 वर्ण
घनाक्षरी
31 वर्ण
रूपघनाक्षरी
32 वर्ण
देवघनाक्षरी
33 वर्ण
कवित्त, मनहरण
31.-33 वर्ण

महत्वपूर्ण वर्णिक छंद का विवरण इस प्रकार है-

इन्द्रवज्रा छंद- Indravajra Chhand

यह सम वर्णवृत्त छंद है, इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं तथा पॉचवे या छठे वर्ण पर यतिहोती है, इसका सूत्र तात जायोगी शुभ इन्द्रव्रजा अर्थात दो तगण ( ऽ ऽ। , ऽ ऽ। ) एक जगण ( । ऽ । ) तथा दो गुरू ( ऽ ऽ ) होते हैं।
अर्थात-
तगण तगण जगण  दो गुरू
उदाहरण-
विद्येव पुंसो महिमेव राज्ञः
प्रज्ञेव वैद्यस्य दयेव साधोः।
लज्जेव शूरस्य मुजेव यूनो,
सम्भूषणं तस्य नृपस्य सैव ।।
विश्लेषण- प्रत्येक पंक्ति में  प्रथम पंक्ति वाले ही वर्णों का क्रम है।

उपेन्द्रवज्रा छंद- Upendra Vajra chhand

उपेन्द्रवज्रा छंद में 11 वर्ण होते हैं तथा पॉचवें वर्ण पर यतिहोती है. इसमें जगण  ( । ऽ । ), तगण ( ऽ ऽ। ) तथा दो गुरू ( ऽ ऽ ) होते हैं. इसका सूत्र है - जतजगागा उपेन्द्रवज्रा
उदाहरण-
पखारते हैं पद पद्म कोई,
चढ़ा रहे हैं फल -पुष्प कोई।
करा रहे हैं पय-पान कोई
उतारते श्रीधर आरती हैं।।

बसंततिलका- Basant tilka Chhand

बसंततिलका छंद में 14 वर्ण होते हैं वर्णों का क्रम तगण ( तगण  ऽ ऽ। ), भगण ( ऽ ऽ । ), दो जगण ( । ऽ ।, । ऽ । ) तथा दो गुरू (  ऽ ऽ ) होते हैं।  इसका सूत्र है - गाओ बसंततिलका तभजज गागा
उदाहरण-
हे हेमकार पर दुःख-विचार-मूढ
किं माँ मुहुः क्षिपसि वार-शतानि वह्नौ।
सन्दीप्यते मयि तु सुप्रगुणातिरेको-
लाभः परं तव मुखे खलु भस्मपातः ।।

मालिनी (मंजुमालिनी)- Malini Chhand

मालिनी (मंजुमालिनी) छंद में 15 वर्ण होते हैं तथा 8, 7 वर्णों पर यति) होती है। वर्णों का क्रम दो नगण ( ।।।, ।।। ),  मगण ( ऽ ऽ ऽ ), दो यगण ( । ऽ ऽ, । ऽ ऽ ) रहता है।
उदाहरण-
प्रभुदित मथुरा के मानवों को बना के,
सकुशल रह के औ विध्न बाधा बचाके।
निज प्रिय सूत दोनों , साथ ले के सुखी हो,
जिस दिन पलटेंगे, गेह स्वामी हमारे।।

मंदाक्रंाता छंद- Madra Kanta Chhand

मंदाक्रंाता छंद में 17 वर्ण होते हैं. इसमें मगण ( ऽ ऽ ऽ ), भगण भगण ( ऽ ऽ । ), नगण (।।। ), दो तगण ( ऽ ऽ।,  ऽ ऽ। ), तथा दो गुरू ( ऽ ऽ  ), होते है और इसमें चार, छः तथा सातवें वर्णों पर यतिहोती है।
उदाहरण-
कोई क्लांता पथिक ललना चेतना शून्य होके,
तेरे जैसे पवन में , सर्वथा शान्ति पावे।
तो तू हो के सदय मन, जा उसे शान्ति देना,
ले के गोदी सलिल उसका, प्रेम से तू सुखाना।।

शिखरिणी छंद- Shikharini Chhand

शिखरिणी छंद में 17 वर्ण होते हैं तथा छः वर्णो पर यतिहोती है। इसमें यगण ( । ऽ ऽ ), मगण ( ऽ ऽ ऽ ), नगण (।।। ), सगण ( ।। ऽ ), भगण ( ऽ ऽ । ), तथा लघु ( । ) एवं ( ऽ ) होता है।
उदाहरण-
जिसे भाता ना हो, छल कपट देखो जगत में ।
वही धोखा देते, खुद फिर रहे हैं फकत में ।।
कभी तो आयेगा, तल पर परिंदा गगन से ।
उड़े चाहे ऊॅचे, मन भर वही तो मगन से ।।

सुन्दरी छंद- Sundari Chhand

सुन्दरी छंद में आठ सगण ( ।। ऽ, ।। ऽ, ।। ऽ, ।। ऽ, ।। ऽ, ।। ऽ, ।। ऽ, ।। ऽ ) तथा एक गुरू ( ऽ ), इस प्रकार पच्चीस वर्ण होते हैं. इसमें बारह व पच्चीस वर्णों पर यतिहोती है. इसी का नाम सुन्दरि सवैया या द्वुतविलंबित वर्णिक वृत्त भी होताहै।
उदाहरण
बर बुद्धि बिरंचि ने भाल चचा, कुछ ऐसी लकीर खिंची बिरची है ।
कि सदैव विपत्ति बवंडर में, दुख अंधड़ में जनु होड़ मची है ।।
तिहुँ पे नित दानवी दीन दसा, सिर पै चढि़ नङ्ग उलङ्ग नची है ।
फिर कौन कथा पगई जो गई, भगवान भला भगई तो बची है ।।

मतगयंद छंद- Matagyand Chhand

मतगंयद छंद में तेईस वर्ण होते हैं तथा बार और ग्यारह वर्णों यतिहोती है। इसमें सात भगण और दो गुरू होते हैं।
मत्तगयंद सवैया का एक पद (पंक्ति) =  भानस भानस भानस भानस भानस भानस भानस गुरु गुरु
उदाहरण-
सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा।
धोति फटी-सि लटी दुपटी अरु, पाँयउ पानहि की नहिं सामा ।।
द्वार खरो द्विज दुर्बल एक, रह्यौ चकि सौं वसुधा अभिरामा।
पूछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥

कवित्त ( मनहर) छंद- Kavitt ya Manhar Chhand

कवित्त में 31 वर्ण होते हैं तथा इसमें सोलहवें वर्ण पर यतिहोती है और अन्त मेें गुरू होता है. अन्य वर्णों में लघु-गुरू का कोई नियम नहीं है।
उदाहरण-
आते जो यहाँ हैं बज्र भूमि की छटा को देख,
नेक न अघाते होते मोद-मद माते हैं।
जिस ओर जाते उस ओर मन भाये दृश्य,
लोचन लुभाते और चित्त को चुराते हैं।।
पल भर अपने को वे भूल जाते सदा,
सुखद अतीतदृसुधादृसिंधु में समाते हैं।।
जान पड़ता हैं उन्हें आज भी कन्हैया यहाँ,
मैंया मैंयादृटेरते हैं गैंया को चराते हैं।।

मात्रिक छंद- Matrik Chhand

जिन छंदों में रचना मात्राओं की गणना के आधार पर की जाती है उन्हें मात्रिकछंद कहते हैं। इनमें प्रत्येक चरण की मात्राओं की संख्या समान होती है, न तो इसमें वर्ण समान होते है और न गण । मात्रिक छंदों के प्रचलित रूप निम्न प्रकार हैं।

बंदऊं गुर्रू पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।
अमिअ मुरियम चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू।।

सम मात्रिक छंद Sam Matrik Chhand


सम मात्रिक छंद- 1. आमीर, 2. तोमर, 3. उल्लाला (चन्द्रमणि), 4. सखी आँसू , 5. प्रतिभा, 6. चौपाई, 7. पद्धरि, 8. पीयूष वर्ष , 9. अरिल,  10.राधिका, 11. रोला, 12. दिग्पाल, 13. मदन ( रूपमाला),  14. गीतिका, 15. सरसी, 16. ललित पद, 17. हरिगीतिका, 18. चौपैया (चतुष्पदी), 19. ताटंक, 20. आल्हा, 21. त्रिभंगी, 22. सनाई ( समान सवैया), 23. विजया ।

प्रमुख सममात्रिक छंद
अहीर
11 मात्रा
तोमर
12 मात्रा
मानव
14 मात्रा
अरिल्ल, पद्धटिका, चौपाई
सभी में 16 मात्रा
पीयूषवषर्, समुेरू
19 मात्रा
राधिका
22 मात्रा
रोला, दिक्पाल, रूपमाला
24 मात्रा
गीतिका
26 मात्रा
सरसी
27 मात्रा
सार
28 मात्रा
हरिगीतिका
28 मात्रा
ताटंक
30 मात्रा
वीर या आल्हा
31 मात्रा

अर्द्धसम मात्रिक छंद- Ardh Sam Matrik Chhand

अर्द्धसममात्रिक छंद
बरवै
विषम चरण में 12 मात्रा
सम चरण में 7 मात्रा
दोहा
विषम चरण 13 मात्रा
सम चरण 11 मात्रा
सोरठा
विषम चरण 11 मात्रा
सम चरण 13 मात्रा
उल्लाला
विषम चरण 15 मात्रा
सम चरण 13 मात्रा

विषम मात्रिक छंद
कण्डलियां
दोहा + रोला
छप्पय
रोला + उल्लाला

चौपाई मात्रिक छंद- Choupai Matrik Chhand

यह सम मात्रिक छंद है. चौपाई का अर्थ ही- चार चरण है, अतः इसमें चार चरण होते हैं, इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएं होती हैं। इसके अन्त में दो गुरू ( ऽऽ) या दो लघु  ( ।।) रहते हैं. अंत में जगण व तगण का प्रयोग निषेध है।
जैसे

बंदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ।।
अमिय मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवार ।।

रोला (काव्य) मात्रिक छंद- Rola Matrik Chhand

रोला  भी चार चरण वाला मात्रिक छंद है. इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं होती है। तथा 11 और 13 मात्राओं पर यतिहोती है. इसके चारों चरणों की ग्यारहवी मात्रा लघु रहने पर इसका काव्यछंद भी कहते हैं।
उदाहरण
उठो उठो हे वीर, आज तुम निद्रा त्यागो।
करो महा संग्राम, नहीं कायर हो भागो।।
तुम्हें वरेगी विजय, अरे यह निश्चय जानो।
भारत के दिन लौट, आयगे मेरी मानो।। 

हरिगीतिका- Harigitika Chhand

हरिगीतिका भी चार चरण वाला सम मात्रिक छंद है. इसके प्रत्येक चरण में 28 मात्राएं होती हैं । और इसमें प्रत्येक 16 तथा 12 मात्राओं पर यति होती है।
उदाहरण
2   21    21  121  1111 , 111   11  11   212
श्री राम   चंद्र कृपालु भजमन, हरण  भव भय दारुणम्
1121     211   1   11  11,   21   11     2212
नवकंज लोचन कंज मुख कर, कंज पद कन्जारुणम
221  1111  111  11,   11,  21    211   212
कंदर्प अगणित अमित छवि नव, नील नीरज सुन्दरम
1122   211   111 11  11,    21   111   1212
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि, नौमि जनक सुतावरम

चौपैया (चतुष्पदी)- Choupaiya 

चौपैया (चतुष्पदी) में तीस मात्राएं होती है ओर अंत में दो गुरू होते हैं. इसमे दस, आठ, तथा बारह मात्राओं पर यतिहोती है।

बरवै ( ध्रुव, कुरंग )- Barvai Chhand

बरवै अर्द्धसम मात्रिक छंद है. इसके विषम चरण ( प्रथम एवं तृतीय ) में तेरह तथा समचरण ( द्वितीय एवं चतुर्थ ) में सात-सात मात्राएं होती हैं. सम चरणों के अंत में जगण ( । ऽ । ) इसकी सुदंरता को बढ़ाता है।

दोहा अर्द्धसम मात्रिक छंद Doha Ardh Sam Matrik Chhand

दोहा अर्द्धसम मात्रिक छंद है. इसमें चौबीस मात्राएं होती हैं. इसके विषम चरण ( प्रथम एवं तृतीय ) में तेरह तथा समचरण ( द्वितीय एवं चतुर्थ ) में ग्यारह मात्राएं होती है। इसके विषम चरणों के आदि में जगण नहीं होना चाहिए तथा सम चरणों के अंत में गुरू व लघु होते हैं।
उदाहरण
तेरो मुरली मन हरो, घर अँगना न सुहाय।।
श्रीगुरू चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि !
बरनउं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि !!
रात-दिवस, पूनम-अमा, सुख-दुःख, छाया-धूप।
यह जीवन बहुरूपिया, बदले कितने रूप।।

सोरठा अर्द्धसम मात्रिक छंद Sortha Chhand

सोरठा भी एक अर्द्धसम मात्रिक छंद है. यह दोहा का विलोम (उल्टा) होता है. अर्थात् इसके विषम चरण ( प्रथम और तृतीय ) में ग्यारह-ग्यारह और समचरण (द्वितीय एवं चतुर्थ ) में तेरह-तेरह मात्राएं होती हैं। विषम चरण के अंत में गुरू लघु आते हैं। इसके सम चरण में तुकमिलना अनिवार्य नहीं है।
उदाहरण-
जो सुमिरत सिधि होय, गननायक करिबर बदन।
करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन ।।

छप्पय छंद Chhapay Chhand

छप्पय छः चरण वाला विषम मात्रिक छंद है. इसके प्रथम चार चारण रोलाछंद के और अंतिम दो उल्लालछंद के होते हैं।
उदाहरण
 नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य-चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है।
नदिया प्रेम-प्रवाह, फूल -तो मंडन है।
बंदी जन खग-वृन्द, शेषफन सिंहासन है।
करते अभिषेक पयोद है, बलिहारी इस वेश की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही,सगुण मूर्ति सर्वेश की।।

कुण्डलिया- Kundliya Chhand

कुण्डलिया  भी छः चरण वाला विषम मात्रिक छंर है. इसके प्रत्येक चरण में चौबीस मात्राएं होती हैं. कुंडलिया के प्रथम दो चारण दोहाऔर बाद के चार चरण रोलाके होते हैं. ये दोनों छंद कुंडली के रूप में एक दूसरे से गुथे रहते हैं, अतएव इसे कुण्डलियां छंदकहते हैं। प्रायः दोहा का आदि शब्द ही रोलाका अंतिम शब्द होता है।
उदाहरण-
घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध।
बाहर का बक हंस है, हंस घरेलू गिद्ध
हंस घरेलू गिद्ध , उसे पूछे ना कोई।
जो बाहर का होई, समादर ब्याता सोई।
चित्तवृति यह दूर, कभी न किसी की होगी।
बाहर ही धक्के खायेगा , घर का जोगी।।

उल्लाला-  Ullalala Chhand

उल्लाला एक मात्रिक छंद है जिसके प्रत्येक चरण में 15 एवं 13 के क्रम में 28 मात्राएं होती हैं।
उदाहरण
करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेश की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण-मूर्ति सर्वेश की।
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