प्रतिभाशाली, सृजनात्मक तथा विशिष्ट बालकों की पहचान ( Identifying the Talented , Creative and Especially abled Children)


Identifying the Talented , Creative and Expecially abled Children
Child Development and Padagogy
प्रतिभाशाली, सृजनात्मक तथा विशिष्ट बालकों की पहचान
Identifying the Talented , Creative and Especially abled Children

विशिष्ट बालक Especially-abled Child
  • वह बालक, जो मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और संवेगात्मक आदि विशेषताओं में औसत से विशिष्ट हो और यह विशिष्ट हो और यह विशिष्टता इस स्तर की हो कि उसे अपने विकास के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता हो, विशिष्ट बालक कहलाता है।

विशिष्ट बालकों को निम्नलिखित वर्गों में विभजित किया जा सकता हैं
  1. प्रतिभाशाली बालक
  2. सृजनशील बालक
  3. पिछड़े बालक
  4. मन्द-बुद्धि बालक
  5. वंचित बालक
  6. समस्यात्मक या संवेगात्मक या संवेगात्मक दृष्टि से पिछड़े बालक
  7. बाल अपराधी

प्रतिभाशाली बालक Talented Child
  • वैसे बालक जो अपनी श्रेष्ठ क्षमता एवं क्रियात्मक योग्यता के बल पर शैक्षिक उपलब्धियों में विद्यालय स्तर पर उच्च स्थान प्राप्त करते हैं या किसी विशेष क्षेत्र, जैसे- गणित, कला, विज्ञान, सृजनात्मक लेखन इत्यादि में उच्च स्तरीय प्रतिभा रखते हैं, प्रतिभाशाली बालकों की श्रेणी में आते हैं।
  • ऐसे बालकों की पहचान के बाद उनके लिए विशेष कक्षाओं की व्यवस्था द्वारा उनकी प्रतिभा में निखार लाने का प्रयास किया जाता है।

प्रतिभाशाली बालकों की निम्नलिखित विशेषताओं के आधार पर उनकी पहचान आसानी से की जा सकती है
  • कोई भी पाठ आसानी से सीखना
  • बुद्धि एवं व्यावहारिक ज्ञान का उपयोग सामान्य बालकों से अधिक करना
  •  विशाल शब्दकोष
  • मानसिक प्रक्रिया में तीव्रता
  • अपने साथियों की तुलना में अधिक ज्ञान
  • कठिन मानसिक कार्यों को भी आसानी से करने में सक्षम
  • मौलिक चिन्तन की क्षमता
  • सामान्य ज्ञान की श्रेष्ठता
  • किसी प्रश्न का उत्तर शीघ्र देने की कोशिश करना
  • सामान्य अध्ययन में रूचि
  • अत्यन्त जिज्ञासु प्रवृति
  • आश्चर्यजनक अन्तर्दृष्टि का प्रमाण
  • पाठ्यविषयों में अत्यधिक रूचि या रूचि
  • विद्यालय के कार्यों के प्रति बहुधा उदासीनता
  • उच्च बुद्धि-लब्धि (130 से 170 तक)
  • रूचियों का क्षेत्र विस्तृत

प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा Education to Talented Children
  • प्रतिभाशाली बालकों के लिए विशेष शिक्षा की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे बालकों को शिक्षित करने लिए अध्यापकों का भी विशेष रूप से प्रशिक्षित रहना अनिवार्य है।
  • शिक्षकों को चाहिए कि वे प्रतिभाशाली बालकों को उनकी योग्यताओं या प्रतिभाओं को विकसित करने का पूरा-पूरा अवसर उपलब्ध कराएँ।
  • प्रतिभाशाली बालक पाठ्यक्रम को समझने में सामान्य बालकों से कम समय लेते हैं। इस बचे हुए समय में उन्हें किसी और सृजनात्मक कार्य में व्यस्त कर देना चाहिए।
  • आवश्यकता पड़ने पर विशिष्ट बालकों के लिए विशेष स्कूल एवं कक्षाओं की भी व्यवस्था करनी पड़ती है। उनके लिए पुस्तकालय में भी उनकी रूचि के अनुकूल व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • हैविगहस्ट्र के अनुसार, “प्रतिभाशाली बालकों के लिए शिक्षा का सफल कार्यक्रम वही हो सकता है जिसका उद्देश्य उनकी विभिन्न योग्यताओं का विकास करना हो।
  • इस कथन के अनुसार, प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा व्यवस्था इस प्रकार होनी चाहिए
  • सामान्य रूप से कक्षोन्नति - शिक्षक का व्यक्तिगत ध्यान
  • सामान्य बालकों के साथ शिक्षा - पाठ्यक्रम-सहगामी क्रियाओं का आयोजन
  • नेतृत्व का प्रशिक्षण - विशेष व विस्तृत पाठ्यक्रम
  • संस्कृति की शिक्षा - विशेष अध्ययन की सुविधाएँ
  • सामाजिक अनुभवों के अवसर - व्यक्तित्व का पूर्ण विकास

सृजनात्मक बालक Creative Child
  • जेम्स ड्रेवर के अनुसार अनिवार्य रूप से किसी नई वस्तु का सृजन करना ही सृजनात्मकता है।
  • रॉबर्ट फ्रास्ट के अनुसार, “मौलिकता क्या है। यह मुक्त साहचर्य है। जब कविता की पंक्तियाँ या उसके विचार आपको उद्वेलित करते हैं, साधारणीकरण के लिए बाध्य करते हैं। यह दो वस्तुओं का सम्बन्ध होता है, परन्तु साहचर्य को देखने की कामना आप नहीं करते हैं, आप तो उसका आनन्द उठाते हैं।
  • गिलफोर्ड ने सृजनात्मक के तत्व  निम्न प्रकार के बताए हैं
  • तात्कालिक स्थिति से परे जाने की योग्यता जो व्यक्ति वर्तमान परिस्थितियों से हटकर, उससे आगे की सोचता है और अपने चिन्तन को मूर्त रूप देता है, उसमें सृजनात्मक तत्व पाया जाता है।
  • समस्या की पुनर्व्याख्या सृजनात्मकता का एक तत्व समस्या की पुनर्व्याख्या है।
  • सामंजस्य
  • जो बालक तथा व्यक्ति असामान्य किन्तु प्रासंगिक विचार तथा तथ्यों के साथ समन्वय स्थापित करते हैं वे सृजनात्मक कहलाते हैं।
  • अन्य के विचारों में परिवर्तन
  • ऐसे व्यक्तियों में भी सृजनात्मकता विद्यमान रहती है, जों तर्क, चिन्तन तथा प्रमाण द्वारा दूसरे व्यक्तियों के विचारों में परिवर्तन कर देते हैं।
  • मनोविश्लेषणात्मक, साहचर्यवाद, अन्तः दृष्टिवाद एवं अस्तित्ववाद सिद्धान्तों का सम्बन्ध सृजनात्मकता से है।

सृजनात्मकता की पहचान Identifying the Creativity
  • सृजनशील बालकों में मौलिकता के दर्शन होते हैं।
  • सृजनशील बालकों का दृष्टिकोण सामान्य व्यक्तियों से अलग होता है।
  • स्वतन्त्र निर्णय क्षमता सृजनशीलता की पहचान है, जो व्यक्ति किसी समस्या के प्रति निर्णय लेने में स्वतन्त्र होता है तो वह सृजनात्मक समझा जाता है।
  • परिहासप्रियता भी सृजनात्मकता की पहचान है। सृजनात्मक बालकों में हँसी-मजाक की प्रवृत्ति पाई जाती है।
  • उत्सुकता भी सृजनात्मकता का एक आवश्यक तत्व है।
  • सृजनशील बालकों में संवेदनशीलता अधिक पाई जाती हैं।
  • सृजनशील बालकों में स्वायत्तता का भाव पाया जाता है।
  • सृजनात्मकता के परीक्षण Testing Creativity
  • सृजनात्मकता की पहचान के लिए निरन्तरता, लोचनीयता, मौलिकता तथा विस्तार का मापन एवं परीक्षण किया जाता हैं।
  • प्रमुख परीक्षण इस प्रकार हैं
  • चित्रपूर्ति परीक्षण चित्रपूर्ति परीक्षण में अपूर्ण चित्रों को पूरा करना पड़ता है।
  • प्रोडक्ट इम्यू्रवमेन्ट टास्क चूने के खिलौनों द्वारा विचारों को लेखबद्ध करके सृजनात्मकता पर बल दिया जाता है।
  • वृत्त परीक्षण इस परीक्षण में वृत्त में चित्र बनाए जाते हैं।
  • टीन के डिब्बे खाली डिब्बों से नवीन वस्तुओं का सृजन कराया जाता हैं।

सृजनात्मकता का विकास Development of Creativity
  • शिक्षक को चाहिए कि बालकों में सृजनात्मकता का विकास करने के लिए निम्नलिखित उपाय करें
  • तथ्यों का अधिगम समस्या को हल करने में कौन-कौन-से तथ्यों को लिखाया जाए, शिक्षक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए
  • मौलिकता शिक्षक को चाहिए कि वह तथ्यों के आधार पर मौलिकता के दर्शन कराए।
  • मूल्यांकन बालकों में अपन मूल्यांकन स्वयं करने की प्रवृत्ति का विकास करना चाहिए।
  • समस्या के स्तरों की पहचान समस्या के स्तरों को पहचानकर उसे दूर करना चाहिए।
  • जाँच बालकों में जाँच करने की कुशलता का अर्जन कराया जाए।
  • पाठ्य-सहगामी क्रियाएँ विद्यालय में बुलेटिन बोर्ड, मैग्जीन, पुस्तकालय, वाद-विवाद, खेल-कूद, स्काउटिंग, एनसीसी आदि क्रियाओं द्वारा नवीन उद्भावनाओं का विकास करना चाहिए।

पिछड़ा बालक एवं उसकी पहचान
  • वैसे छात्र जो अपनी आयु वर्ग के अन्य छात्रों की अपेक्षा बहुत कम शैक्षिक उपलब्धि प्राप्त करते है, पिछड़े बालक की श्रेणी में आते हैं। बालकों के पिछड़ेपन के कारण शारीरिक, मानसिक या परिवेशजनित हो सकते हैं। ऐसे बालकों की शिक्षा के लिए विशेष व्यवस्था किए जाने की आवश्यकता होती है।
  • बालक के पिछड़ेपन की रोकथाम करने से पहले इसके लिए उत्तरदायी कारणों का पता लगाया जाना आवश्यक है। बुद्धि परीक्षणों, उपलब्धि परीक्षणों, बालक की रूचियों, प्रवृत्तियों, शारीरिक, क्षमताओं और कुशलताओं, बालक के शैक्षणिक इतिहास इत्यादि द्वारा बालक के पिछड़ेपन के कारणों पता लगाया जा सकता हैं
  • पिछड़े बालकों के लिए विशेष स्कूल एवं कक्षाओं की व्यवस्था करनी चाहिए। पाठ्यक्रम के अतिरिक्त उनके लिए पाठ्यक्रम-सहगामी क्रियाओं की भी व्यवस्था करनी चाहिए।
  • पिछड़े बालकों के लिए कभी-कभी विशेष प्रकार के पाठयक्रमों की भी आवश्यकता पड़ती है।
  • मनोवैज्ञानिकों की सहायता से भी बालकों के पिछड़ेपन को दूर करने में सहायता मिलती है।
  • पिछड़े बालकों को हस्तशिल्प जैसे कार्यों की शिक्षा देकर उनका आत्मविश्वास बढ़ाया जाता है। इससे इन्हें भविष्य में आत्मनिर्भर बनने में सहायता मिलती है।
  • पिछड़े बालकों की पहचान सामूहिक परीक्षण, उपलब्धि परीक्षण एवं व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण के जरिए की जा सकती है।

मन्द-बुद्धि बालक  Mentally Re tarted Children
  • मन्द-बुद्धि बालक वे होते हैं जिनके मस्तिष्क और बुद्धि इतने कम विकसित होते हैं कि उनमें मानसिक क्षमताएँ कम विकसित हो पाती हैं और उन्हें पढ़ने-लिखने व समायोजन करने में कठिनाई होती है। ऐसे बालकों की सीखने की  गति भी मन्द होती है।
  • मन्द-बुद्धि अर्थात् मानसिक पिछड़ेपन के कई कारण हो सकते हैं। इसका प्रमुख कारण सामान्यतः आनुवंशिक गुण हो सकता है। इसके अतिरिक्त मस्तिष्क में कमियों के आ जाने से भी मानसिक दोष आ सकता है।
  • कभी-कभी पारिवारिक पिछड़ेपन एवं सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियाँ भी बालक के मानसिक रूप से पिछड़े होने का कारण होती हैं।
  • मन्द बुद्धि बालकों की शिक्षा के लिए अध्यापकों को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। इस कार्य में बालक के माता-पिता की भूमिका भी अहम् होती है। सामान्य स्कूलों में इनकी देख-रेख सम्भव नहीं होती इसलिए ऐसे बालकों के लिए विशेष प्रकार के स्कूलों एवं अस्पतालों की भी व्यवस्था होती है। सामान्य बालकों के पाठ्यक्रम इनकी मानसिक योग्यताओं के अनुकूल नहीं होता, अतः इनके लिए विशेष प्रकार के पाठ्यक्रम की आवश्यकता होती है।

पिछड़े बालकों की विशेषताएँ
  • सीखने की धीमी गति -जीवन में निराशा का अनुभव समाज-विरोधी कार्यों की प्रवृत्ति
  • व्यवहार-सम्बन्धी समस्याओं की अभिव्यक्ति
  • जन्मजात योग्यताओं की तुलना में कम शैक्षिक उपलब्धि
  • सामान्य विद्यालय के पाठ्यक्रम से लाभ उठाने में असमर्थता
  • सामान्य शिक्षण-विधियों द्वारा शिक्षा ग्रहण करने में विफलता
  • मानसिक रूप से अस्वस्थ और असमायोजित व्यवहार
  • बुद्धि-परीक्षाओं में निम्न बुद्धि-लब्धि (90-100तक) अपनी और उससे नीचे की कक्षा का कार्य करने में असमर्थता 

समस्यात्मक बालक Problematic Child
  • समस्यात्मक बालक उस बालक को कहते हैं, किसके व्यवहार में कोई ऐसी असामान्य बात होती है, जिसके कारण वह समस्या उत्पन्न करता है, जैसे-चोरी करना, झूठ बोलना आदि।
  • वेलेन्टाइन के अनुसार, “समस्यात्मक बालक शब्द का प्रयोग साधारणतः उन बालकों का वर्णन करने के लिए किया जाता है, जिनका व्यवहार या व्यक्तित्व किसी बात में गम्भीर रूप से असामान्य होता है।

समस्यात्मक बालकों के प्रकार Types of Problematic children
  • समस्यात्मक बालकों की सूची बहुत लम्बी है।
  • इनमें से कुछ मुख्य प्रकार के बालक हैं
  • चोरी करने वाले, झूठ बोलने वाले, क्रोध करने वाले, एकान्त पसन्द करने वाले, मित्र बनाना पसन्द न करने वाले, आक्रमणकारी व्यवहार करने वाले, विद्यालय से भाग जाने वाले, भयभीत रहने वाले, छोटे बालकों को तंग करने वाले, गृह-कार्य न करने वाले, कक्षा में देर से आने वाले आदि।

चोरी करने वाले बालक  Picker Children
  • चोरी करने वाले बालकों में इस आदत के विकास के कई कारण हो सकते हैं जैसे-अज्ञानता, वांछित वस्तु को अन्य विधि से प्राप्त करने से अपरिचित, उच्च स्थिति की इच्छा, माता-पिता का अवहेलना, साहस दिखाने की भावना, आत्म-नियन्त्रण का अभाव, चारी की लत, आवश्यकताओं की आपूर्ति आदि।
  • चोरी करने वाले बालकों के उपचार हेतु आवश्यक कदम
  • बालक पर चोरी का दोष कभी नहीं लगाना चाहिए।
  • बालक में आत्म-नियन्त्रण की भावना का विकास करना चाहिए।
  • बालक को उचित और अनुचित कार्यों में अन्तर बताना चाहिए।
  • बालक को उसके माता-पिता द्वारा अवहेलना नहीं की जानी चाहिए।
  • बालक की सभी उचित आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिए।
  • बालक विद्यालय में व्यय करने के लिए कुछ धन अवश्य देना चाहिए।
  • बालक को खेल-कूद और अन्य कार्यों में अपनी साहस की भावना को व्यक्त करने का अवसर देना चाहिए।
  • बालक को यह शिक्षा देनी चाहिए कि जो वस्तु जिसकी है, उस पर उसी का अधिकार है। दूसरे शब्दों में, उसको अन्य व्यक्तियों के अधिकारों का सम्मान करने की शिक्षा देनी चाहिए।
  • झूठ बोलने वाले बालक Lying children
  • झूठ बोलने वाले बालकों इसके कई कारण हो सकते हैं, जो निम्नवत् हैं
  • मनोविनोद बालक कभी-कभी मनोविनोद या मजा लेने के लिए झूठ बोलता है।
  • दुविधा  बालक कभी-कभी किसी बात को स्पष्ट रूप से न समझ सकने के कारण दुविधा में पड़ जाता है और अनायास झूठ बोल जाता है।
  • मिध्याभिमान किसी बालक में मिथ्याभिमान की भावना बहुत बलवती होती है। अतः वह उसे व्यक्त और सन्तुष्ट करने लिए झूठ बोलता है। वह अपने साथियों को अपने बारे में ऐसी-ऐसी बातें सुनाता है, जो उसने कभी नहीं की हैं।
  • प्रतिशोध बालक अपने बैरी से बदला लेने के लिए उसके बारे में झूठी बातें फेलाकर उसको बदनाम करने की चेष्टा करता है।
  • स्वार्थ बालक कभी-कभी अपने स्वार्थों के कारण झूठ बोलता है। यदि वह गृहकार्य करके नहीं लाया है, तो वह दण्ड से बचने के लिए कह देता है कि उसे अकस्मात् पेचिश हो गई थी।
  • बफादारी कोई बालक बपने मित्र, समूह आदि के प्रति इतना वफादार होता है कि वह झूठ बोलने में तनिक भी संकोच नहीं करता है। यदि उसके मित्र की तोड़-फोड़ करने की प्रधानाचार्य से शिकायत होती है, तो वह इस बात की झूठी गवाही देता है कि उसका मित्र वहाँ मौजूद नहीं था।
  • भय कठोर दण्ड का भय, समूह में प्रतिष्ठा खोने का भय आदि के कारण भी बालक झूठ बोलता है।
  • झूठ बोलने वाले बालकों हेतु आवश्यक उपाय  Necessary Remedies for Lying Children
  • बालक की झूठ बोलने की आदत को छुड़ाने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं
  • बालकों को यह बताना चाहिए कि झूठ बोलने से कोई लाभ नहीं होता है।
  • बालकों में नैतिक साहस की भावना का अधिकतम विकास करने का प्रयत्न करना चाहिए।
  • बालक में सोच-विचार कर बोलने की आदत का निर्माण करना चाहिए।
  • बालक के बात न करके, उसकी अवहेलना करके और उसके प्रति उदासीन रहकर उसे अप्रत्यक्ष दण्ड किया जा सकता है।
  • बालक पर वातावरण एवं समाज का भी कुप्रभाव पड़ता है, इसलिए उसकी पृष्ठभूमि को जानकर उसे सुधारने के उपाय किए जाने चाहिएँ।
  • सत्य बोलने वाले बालक की निर्भयता और उसके नैतिक साहस की प्रशंसा की जानी चाहिए।

क्रोध करने वाले बालक Angry Children
  • क्रोध आक्रमणकारी व्यवहार द्वारा व्यक्त किया जाता है।
  • कुछ बालक के आक्रमणकारी व्यवहार के कुछ मुख्य स्वरूप हैं मारना, पीटना, काटना, नोंचना, चिल्लाना, खरोंचना, वस्तुओं को इधर-उधर फेंकना, गाली देना, व्यंग्य करना, व्यंग्य करना,स्वयं  अपने शरीर को नुकसान पहुँचाना आदि।
  • क्रोध आने के कई कारण हो सकते हैं
  • उद्देश्य की प्राप्ति में बाधा
  • खेल, कार्य या इच्छा में विध्न पड़ता
  • किसी विशेष स्थान पर जाने से रोका जाना
  • किसी वस्तु का छीन लिया जाना
  • किसी बात से निराश होना
  • अस्वस्थ या रोगग्रस्त होना

बाल-अपराध Child Crime
  • कोई भी व्यक्ति जन्म से अपराधी नहीं होता, परिस्थितियाँ उसे ऐसा करने के लिए विवश कर देता हैं। कभी-कभी बालकों को यह पता भी नहीं होता कि जो वह कर रहे हैं वह गैर-कानूनी कार्य है। ऐसे कार्यों को अपराधों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। बाल-अपराध की श्रेणी में वैसे कार्य आते हैं जो गैर-कानूनी तो होते ही हैं साथ में बच्चों द्वारा जान-बूझकर किए जाते हैं।
  • ध्रूमपान करना, लड़ना-झगड़ना, चोरी करना, माता-पिता की बात न मानना, झूठ बोलना, गन्दी एवं भद्दी भाषा का प्रयोग करना, बुरी संगति में रहना, आवारागर्दी करना, दूसरों को सताना, यौन-सम्बन्धों को लेकर आक्रामक होना, विद्यालय के संसाधनों को क्षति पहुँचाना, दीवारों पर गन्दे शब्दों को लिखना, विद्यालय से भागकर कहीं घूमने या सिनेमा देखने जाना इत्यादि बाल-अपराध के उदाहरण हैं।
बाल-अपराध के कारण Cause of Child Crime
बाल-अपराध के कारण निम्न प्रकार हैं
  • पारिवारिक, सामाजिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक एवं आर्थिक इन पाँच कारणों से सामान्यतः बच्चे आपराधिक प्रवृत्तियों वाले हो जाते हैं।
  • 1. पारिवारिक कारण 2. सामाजिक कारण 3. शारीरिक कारण 4. आर्थिक कारण 5. मनोवैज्ञानिक कारण
बाल-अपराध की रोकथाम एवं उपचार
  • बालकों में बढ़ते अपराध को रोकने के लिए माता-पिता, शिक्षकों एवं मनोचिकित्सकों का सहयोग लिया जाता है।
  • माता-पिता की अपने बच्चे को सुधारने में मुख्य भूमिका होती है। उन्हें अपने बच्चों को सुधारने के लिए उनके साथ सहानुभूतिपूर्ण एवं सकारात्मक व्यवहार करना
  • चाहिए। कुछ माता-पिता अपने बच्चें को कोसते रहते हैं। माता-पिता को ऐसे कार्यों से बचना चाहिए एवं बच्चे के अनुकूल परिवार का वातावरण बनाए रखना चाहिए।
  • बालकों के सुधार के लिए सरकार द्वारा भी प्रयास किए जाते हैं। बालकों के साथ मनोवैज्ञानिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए न्याय करने के लिए किशोर न्यायालय की व्यवस्था है। बाल-अपराधियों की कारागार में नहीं भेजा जाता, बल्कि उन्हें सुधरने का मौका देने के लिए बाल-सुधार गृह में भेजा जाता है।
  • मनोचिकित्सकों द्वारा बाल-अपराधियों को सुधारने में अत्यधिक सहायता मिलती है। इसमें बालकों के व्यवहार एवं उनकी मनोवृत्तियों का अध्ययन कर, उनके द्वारा किए जाने वाले अपराधों के कारणों का पता लगाया जाता है एवं इसके बाद उनका आवश्यक उपचार किया जाता है।
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