बुद्धि निर्माण एवं बहुआयामी बुद्धि { Construct of Intelligence and Multi Dimensional Intelligence }

बुद्धि Intelligence 
  • बुद्धि   शब्द का प्रयोग सामान्यतः प्रज्ञा, प्रतिभा, ज्ञान एवं समझ इत्यादि के अर्थों में किया जाता है। यह वह शक्ति है जो हमें समस्याओं का समाधान करने एवं उद्देशों को प्राप्त करने में सक्षम बनाती है। 
  • एल.एम. टर्मन ने बुद्धि की परिभाषा इस प्रकार दी है, ‘बुद्धि अमूर्त विचारों के सन्दर्भ में सोचने की योग्यता हैं‘। 
  • स्टर्न के अनुसार, बुद्धि व्यक्ति की वह सामान्य योग्यता है जिसके द्वारा वह सचेत रूप से नवीन आवश्यकताओं के अनुसार चिन्तन करता है। इस तरह, जीवन की नई समस्याओं एवं स्थितियों के अनुसार अपने आपको ढालने की सामान्य मानसिक योग्यता ‘बुद्धि‘ कहलाती है। 
  • यद्यपि बुद्धि के सन्दर्भ में मनोवैज्ञानिकों में मतभेद हैं, फिर भी यह निश्चित तौर कहा जाता है कि यह किसी के व्यक्तित्त्व का मुख्य निर्धारक है, क्योंकि इससे व्यक्ति योग्यता का पता चलता है। इसे व्यक्ति की जन्मजात शक्ति की  कहा जाता है, जिसके उचित विकास में उसके परिवेश की भूमिका प्रमुख होती है। मानव विकास की विभिन्न अवस्थाओं में बुद्धि के विकास में भी अन्तर होता है। 
  • बुद्धि के मुख्य तीन पक्ष होते हैं कार्यात्मक, संरचनात्मक एवं क्रियात्मक । 
  • बुद्धि को मुख्यतः तीन श्रेणियों में रखा गया है सामाजिक बुद्धि, स्थूल बुद्धि एवं अमूर्त बुद्धि।
  • वंशानुक्रम एवं वातावरण तथा इन दोनों की अन्तःक्रिया बुद्धि को निर्धारित करने वाले कारक हैं। 


बुद्धि की परिभाषाएँ  Definition of Intelligence 
  1. पिन्टर जीवन की अपेक्षाकृत नवीन परिस्थितियों से अपना सामंजस्य करने की व्यक्ति की योग्यता ही बुद्धि है। 
  2. रायबर्न बुद्धि वह शक्ति है, जो हमें समस्याओं का समाधान करने और उद्देश्यों को प्राप्त करने की क्षमता देती है। 
  3. वैश्लर बुद्धि किसी व्यक्ति के द्वारा उद्देश्यपूर्ण ढंग से कार्य करने, तार्किक चिन्तन करने तथा वातावरण के साथ प्रभावपूर्ण ढंग से क्रिया करने की सामूहिक योग्यता है। 
  4. वुडवर्थ बुद्धि, कार्य करने की एक विधि है। 
  5. वुडरों बुद्धि, ज्ञान अर्जन करने की क्षमता है। 
  6. हेनमॉन बुद्धि में मुख्य तत्व होते हैं ज्ञान की क्षमता एवं निहित ज्ञान। 
  7. थॉर्नडाइक सत्य या तथ्य के दृष्टिकोण से उत्तम प्रतिक्रियाओं की शक्ति ही बुद्धि है। 
  8. कॉलविन यदि व्यक्ति ने अपने वातावरण से सामंजस्य करना सीख लिया है या सीख सकता है, तो उसमें बुद्धि हैं। 

उपरोक्त परिभाषाओं के अनुसार, हम यह कह सकते हैं कि बुद्धि अमूर्त चिन्तन की योग्यता, अनुभव से लाभ उठाने की योग्यता , अपने वातावरण से सामंजस्य करने की योग्यता, सीखने की योग्यता, समस्या समाधान करने की योग्यता तथा सम्बन्धों को समझने की योग्यता है। 

बुद्धि के सिद्धान्त  Theories of Intelligence 


कुछ मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि के स्वरूप से सम्बन्धित विभिन्न सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है, जिनसे बुद्धि के सम्बन्ध में कई प्रकार की महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ मिलती हैं।

एक-कारक सिद्धान्त  One Factor Theory

  • एक-कारक सिद्धान्त का प्रतिपादन बिने () ने किया और इस सिद्धान्त का समर्थन कर इसको आगे बढ़ाने का श्रेय टर्मन और स्टर्न जैसे मनोवैज्ञानिकों को है। इन मनोवैज्ञानिकों मत है बुद्धि एक अविभाज्य इकाई है। 
  • स्पष्ट है कि इस सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि को एक शक्ति या कारक के रूप में माना गया है। 
  • इन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, बुद्धि वह मानसिक शक्ति है, जो शक्ति के समस्त कार्यों का संचलन करती है। तथा व्यक्ति के समस्त व्यवहारों को प्रभावित करती है। 

द्वि-कारक सिद्धान्त  Bi-Factor Theory

  1. इस सिद्धान्त के प्रतिपादक स्पीयरमैन हैं। उनके अनुसार बुद्धि में दो कारक हैं अथवा सभी प्रकार के  मानसिक कार्यों में प्रकार की मानसिक योग्यताओं की आवश्यकता होती है। प्रथम सामान्य मानसिक योग्यता, द्वितीय विशिष्ट मानसिक योग्यता।
  2. प्रत्येक व्यक्ति में सामान्य मानसिक योग्यता के अतिरिक्त कुछ-न-कुछ विशिष्ट योग्यताएँ पाई जाती हैं। 
  3. एक व्यक्ति जितने ही क्षेत्रों अथवा विषयों में कुशल होता है, उसमें उतनी ही विशिष्ट योग्यताएँ पाई जाती हैं। 
  4. यदि एक व्यक्ति में एक से अधिक विशिष्ट योग्यताएँ हैं, तो इन विशिष्ट योगयताओं में कोई विशेष सम्बन्ध नहीं पाया जाता है। 
  5. स्पीयरमैन का यह विचार है कि एक व्यक्ति में सामान्य योग्यता की मात्रा जितनी ही अधिक पाई जाती है, वह उतना ही अधिक बुद्धिमान होता है। 

बहुकारक सिद्धान्त Multi Factor Theory
  • इस सिद्धान्त के मुख्य समर्थन थॉर्नडाइक थे। 
  • इस सिद्धान्त के अनुसार, बुद्धि कई तत्वों का समूह होती है और प्रत्येक तत्व में कोई सूक्ष्म योग्यता निहित होती है। अतः सामान्य बुद्धि नाम की कोई चीज नहीं होती, बल्कि बुद्धि में कोई स्वतन्त्र, विशिष्ट योग्यताएँ निहित रहती हैं, जो विभिन्न कार्यों को सम्पादित करती हैं। 

बुद्धि के सिद्धान्त 

सिद्धान्त        एवं             प्रतिपादक
  1. एक-कारक सिद्धान्त - बिने, टर्मन, स्टर्न 
  2. द्वि-कारक सिद्धान्त - स्पीयरमैन 
  3. बहुकारक सिद्धान्त - थॉर्नडाइक 
  4. समूहकारक सिद्धान्त - थर्सटन 
  5. पदानुक्रमिक सिद्धान्त (त्रि-आयामी)- जे.पी. गिलफोर्ड 
  6. तरल ठोस बुद्धि सिद्धान्त - आर.बी.कैटेल 
  7. बहुबुद्धि सिद्धान्त - हॉवर्ड गार्डनर 

प्रतिदर्श सिद्धान्त  Sample Theory  

  • इस सिद्धान्त का प्रतिपादन थॉमसन ने किया था। उसने अपने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन स्पीयरमैन के द्वि-कारक सिद्धान्त के विरोध में किया था। 
  • थॉमसन ने इस बात का तर्क दिया कि व्यक्ति का बौद्धिक व्यवहार अनेक स्वतन्त्र योग्यताओं पर निर्भर करता है, किन्तु इन स्वतन्त्र योग्यताओं का क्षेत्र सीमित होता है। 
  • प्रतिदर्श सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि कई स्वतन्त्र तत्वों से बनी होती है। कोई विशिष्ट परीक्षण या विद्यालय सम्बन्धी क्रिया में इनमें से कुछ तत्व स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगते हैं। यह भी हो सकता है कि दो या अधिक परीक्षाओं में एक ही प्रकार के तत्व दिखाई दें तब उनमें एक सामान्य तत्व की विद्यमानता मानी जाती है। यह भी सम्भव है कि अन्य परीक्षाओं में विभिन्न तत्व दिखाई दें तब उनमें कोई भी तत्व सामान्य नहीं होगा और प्रत्येक तत्व अपने आप में विशिष्ट होगा। 

ग्रुप-तत्व सिद्धान्त Group Element Theory

  • जो तत्व सभी प्रतिभात्मक योग्यताओं में तो सामान्य नहीं  होते परन्तु कई क्रियाओं में सामान्य होते हैं, उन्हें ग्रुप-तत्व की संज्ञा दी गई है। 
  • इस सिद्धान्त के समर्थकों में थर्सटन का नाम प्रमुख है। प्रारम्भिक मानसिक योग्यताओं का परीक्षण करते हुए वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि कुछ मानसिक क्रियाओं में एक प्रमुख तत्व सामान्य रूप से विद्यमान होता है,जो उन क्रियाओं के कई ग्रुप होते हैं, उनमें अपना एक प्रमुख तत्व होता । 
  • ग्रुप तत्व सिद्धान्त की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि यह सामान्य तत्व की धारण का खण्डन करता है।

गिलफोर्ड का सिद्धान्त  Guilford Theory
  • जे.पी. गिलफोर्ड और उसके सहयोगियों ने बुद्धि परीक्षण से सम्बन्धित कई परीक्षणों पर कारक विश्लेषण तकनीक का प्रयोग करते हुए मानव बुद्धि के विभिन्न तत्वों या कारकों को प्रकाश में लाने वाला प्रतिमान विकसित किया। 
  • उन्होंने अपने अध्ययन प्रयासों के द्वारा यह प्रतिपादित करने की चेष्टा की कि हमारी किसी भी मानसिक प्रक्रिया अथवा बौद्धिक कार्य को तीन आधारभूत आयामों-संक्रिया, सूचना सामग्री या विषय-वस्तु तथा उत्पादन में विभाजित किया जा सकता है। 
  • संक्रिया का अर्थ यहाँ हमारी उस मानसिक चेष्टा, तत्परता और कार्यशीलता से होता है जिसकी मदद से हम किसी भी सूचना सामग्री या विषय-विस्तु को अपने चिन्तन तथा मनन का विषय बनाते हैं या दूसरे शब्दों में इसे चिन्तन तथा मनन का प्रयोग करते हुए अपनी बुद्धि को काम में लाने का प्रयास कहा जा सकता है।

फ्लूइड तथा क्रिस्टलाइज्ड सिद्धान्त Fluid and Crystallised Theory 

  • इस सिद्धान्त के प्रतिपादक कैटिल हैं। फ्लूइड, वंशानुक्रम, कार्य कुशलता अथवा केन्द्रीय नाड़ी संस्थान की दी हुई विशेषता पर आधारित एक सामान्य योग्यता है। यह सामान्य योग्यता संस्कृति से ही प्रभावित नहीं होती बल्कि नवीन एवं विगत परिस्थितियों से भी प्रभावित होती है। 
  • दूसरी ओर क्रिस्टलाइज्ड भी एक प्रकार की सामान्य योग्यता है जो अनुभव, अधिगम तथा वातावरण सम्बन्धी कारकों पर आधारित होती है। 

बहुआयमी बुद्धि Multi dimensional Intelligence
  • केली एवं थर्सटन नामक मनोवैज्ञानिकों ने बताया कि बुद्धि का निर्माण प्राथमिक मानसिक योग्यताओं के द्वारा होता है। 
  • केली के अनुसार, बुद्धि का निर्माण इन योग्यताओं से होता है वाचिक योग्यता, गामक योग्यता, सांख्यिक योग्यता, यान्त्रिक योग्यता, सामाजिक योग्यता, संगीतात्मक योग्यता, स्थानिक सम्बन्धों के साथ उचित ढंग से व्यवहार करने की योग्यता, रूचि और शारीरिक योग्यता। 
  • थर्सटन का मत है कि बुद्धि इन प्राथमिक मानसिक योग्यताओं का समूह होता है प्रत्यक्षीकरण सम्बन्धी योग्यता, तार्किक व वाचिक योग्यता, सांख्यिकी योग्यता, स्थानिक या दृश्य योग्यता, समस्या समाधान की योग्यता, स्मृति सम्बन्धी योग्यता, आगमनात्मक योग्यता, और निगमनात्मक योग्यता। 
  • वैसे तो अधिकार मनोवैज्ञानिकों ने केली एवं थर्सटन के बुद्धि सिद्धान्तों की आलोचना की, किन्तु अधिकतर मनोवैज्ञानिकों ने यह भी माना कि बुद्धि का बहुआयामी होना निश्चित तौर पर सम्भव है। बहुआयामी बुद्धि होने के कारण ही कुछ लोग कई प्रकार के कौशलों में निपुण होते हैं। 

मानसिक आयु एवं बुद्धि-परीक्षण  Mental Age and Intelligence Test
  • बुद्धि-परीक्षण के द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व की विशेषताओं की पता लगया जाता है। 
  • पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि के प्रामाणिक मापन की विधियों की खोज की। इस सन्दर्भ में सर्वप्रथम जर्मन मनोवैज्ञानिकों वुण्ट का नाम आता है, जिसने 1879 में बुद्धि के मापन के लिए मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला की स्थापना की। 
  • फ्रांसीसी मनोवैज्ञानिक अल्फ्रेड बिने एवं उसके साथी साइमन ने बुद्धि के मापन का आधार बच्चों के निर्णय, स्मृति, तर्क एवं आंकिक जैसे मानसिक कार्यों को माना। उन्होंने इन कार्यों से सम्बन्धित अनेक प्रश्न तैयार किए और उन्हें अनेक बच्चों पर आजमाया। इन परीक्षण के अनुसार जो बालक अपनी आयु के निर्धारित सभी प्रश्नों के सही उत्तर देता है वह सामान्य बुद्धि का होता है, जो अपनी आयु से ऊपर की आयु के बच्चों के लिए निर्धारित प्रश्नों के उत्तर भी दे देता है, वह उच्च बुद्धि का होता है, जो अपनी आयु से ऊपर की आयु के बच्चों के लिए निर्धारित सभी प्रश्नों के सही उत्तर देता है वह सर्वोच्च बुद्धि को होता है एवं जो अपनी आयु के बच्चों के लिए निर्धारित प्रश्नों के सही उत्तर नहीं दे पाता वह निम्न बुद्धि का होता 
  • उपरोक्त मनोवैज्ञानिकों के बाद सर्वप्रथम विलियम स्टर्न ने बुद्धि के मापन के लिए बुद्धि-लब्धि  के प्रयोग का सुझाव दिया। 
  • टर्मन ने सर्वप्रथम बुद्धि-लब्धांक ज्ञात करने की विधि बताई। इसके अनुसार बुद्धि-लब्धि को बच्चे की मानसिक आयु को उसकी वास्तविक आयु से भाग करके, 100 से गुणा करने पर प्राप्त की जाती है। इसके अनुसार बुद्धि-लब्धि  का सूत्र है। 

मानसिक आयु X 100 /कालानुक्रमिक आयु 
उदाहरणस्वरूप, यदि किसी बालक की मानसिक आयु 12 वर्ष और वास्तविक आयु 10 वर्ष है, तो उसकी बुद्धि-लब्धि की गणना इस प्रकार होगी
मानसिक आयु/कालानुक्रमिक आयु x100 =12,10x100 = 120

मनोवैज्ञानिक वेश्लर द्वारा निर्मित वितरण
आई क्यू   वितरण 
  • 130 या इससे ऊपर - अति श्रेष्ठ बुद्धि अर्थात् प्रतिभाशाली बुद्धि 
  • 120-129  - श्रेष्ठ बुद्धि 
  • 110-119 - उच्च सामान्य बुद्धि 
  • 90-109 -  सामान्य बुद्धि 
  • 80-89 - मन्द बुद्धि 
  • 70-79 - क्षीण बुद्धि 
  • 69 से नीचे - निश्चित क्षीण बुद्धि 

मनोवैज्ञानिक मैरिल द्वारा निर्मित आई  क्यू तिवरण 


  • 140 या इससे ऊपर - अति श्रेष्ठ अर्थात् प्रतिभाशाली बुद्धि 
  • 120-139 - श्रेष्ठ बुद्धि 
  • 110-119  - उच्च सामान्य बुद्धि 
  • 90-109 - सामान्य बुद्धि 
  • 80-89  - मन्द बुद्धि 
  • 70-79 क्षीण बुद्धि 
  • 69 से नीचे  - निश्चित क्षीण बुद्धि 

बौद्धिक विवृद्धि और विकास  Mental Expand and Development
  • बौद्धिक विवृद्धि और विकास अनेक कारकों पर निर्भर करता है। मस्तिष्क और सम्बन्धित स्नायुओं की परिपक्वता बौद्धिक विवृद्धि को सर्वाधिक प्रभावित करती  है। 
  • जन्म के समय बालक में उसकी बौद्धिक योग्यताएँ अनेक विकास की प्रथमावस्था के निम्नतम स्तर पर होती हैं। बालक की आयु बढ़ने के साथ-साथ उसकी बौद्धिक योग्यताओं में विवृद्धि और विकास होता रहता है। 
  • शैशवावस्था से बाल्यावस्था तक यह विकास तीव्र गति से होता है परन्तु किशोरावस्था के अन्त से और प्रौढ़ावस्था में इस विकास की गति मन्द हो जाती है।  
  • थर्सटन का विचार है कि उसके द्वारा किए गए कारक विश्लेषण अध्ययनों के आधार पर प्राप्त सात प्राथमिक मानसिक योग्यताएँ एकसाथ एकसमान आयु स्तर पर परिपक्य नहीं होती हैं। उसके अनुसार प्रत्यक्षपरक योग्यता बारह वर्ष की अवस्था में अपनी विवृद्धि की पूर्णता की ओर अग्रसर होती है। इसी प्रकार चौदह वर्ष की अवस्था में वस्तु प्रेक्षक तथा तार्किक योग्यता सोलह वर्ष की आयु में स्मृति योग्यता और संख्यात्मक योग्यता परिपक्वावस्था की ओर अग्रसर होती है। बालकों की शाब्दिक योग्यता तथा भाषा बोध आदि योग्यताएँ इस आयु अवस्था के बाद विकसित होती हैं। 
  • वेश्लर का विचार है कि बौद्धिक विवृद्धि कम-से-कम बीस वर्ष की आयु तक होती रहती है। आधुनिक शोधों से यह पता चला है कि साठ वर्ष की आयु तक बुद्धि-लब्धांक में वृद्धि होती रहती है। 

शिक्षा के क्षेत्र में बुद्धि-परीक्षणों का महत्त्व  Importance of Intelligence in the Field of Education
शैक्षणिक मार्गदर्शन  Education Guidance 

  • विज्ञान के साथ-साथ मनोविज्ञान ने मानवीय समस्याओं के सामधान में अपूर्व योगदान दिया है। इसके द्वारा बच्चों के भविष्य निर्धारण की योजनाओं को बनाया जा रहा है। इसी प्रकार से शिक्षा के क्षेत्र में सही दिशा एवं लक्ष्य को प्राप्त करने में बुद्धि परीक्षाएँ समर्थ होती हैं।
  • शिक्षा का विकास के लिए प्राथमिक एवं गौण दोनों ही प्रकार के पाठ्यक्रमों की आवश्यकता होती है। प्राथमिक पाठ्यक्रम बालकों को अच्छा नागरिक बनाने के लिए प्रस्तुत किया जाता है, जबकि गौण पाठ्यक्रम बालकों उनकी आदत के अनुसार निश्चित किया जाता है। 
  • बुद्धि परीक्षणों द्वारा प्रत्येक छात्र की सही उन्नति के मार्ग को प्रशस्त किया जाता है। 

छात्र वर्गीकरण Students's Classification

  • ज्ञान की ग्रहणशीलता छात्रों की मानसिकता पर निर्भर करती है। फलस्वरूप एक ही कक्षा-शिक्षण का निष्पादन भिन्न-भिन्न होता है। 
  • ज्ञान अर्जन बालकों की बुद्धि क्षमता पर सीधा प्रभाव डालता है। अतः छात्र वर्गीकरण में बुद्धि परीक्षाएँ उपयोगी होती हैं। 
  • वर्तमान भारतीय शिक्षा व्यवस्था में एक कक्षा में सामान्य से उच्च एवं सामान्य से नीचे आदि स्तरों के छात्र-छात्राएँ अध्ययनरत रहते हैं। प्रश्न उठता है कि क्या सभी बच्चों का शैक्षिक विकास उत्तम हो सकेगा? ऐसी परिस्थिति में, बुद्धि-परीक्षण के माध्यम से शिक्षक सामान्य, सामान्य से भिन्न एवं उच्च आदि छात्रों का वर्गीकरण करके उपयुक्त निक्षण का प्रबन्ध करेगा ताकि सभी स्तरों के छात्र-छात्राएँ पाठ्यक्रम को धारण करके उत्तम निष्पादन प्रस्तुत कर सकें।
  • इस प्रकार बुद्धि-परीक्षण से अध्यापकीय, छात्र एवं पाठ्यक्रम सम्बन्धी सभी समस्याएँ आसानी से समाप्त हो जाती हैं। 

यौन-भिन्नता में उपयोगी Importance in Sexual Differentiation 
  • शोध कार्यों से स्पष्ट हुआ है कि लड़के एवं लड़कियों में बुद्धि के आधार पर ही कार्यकुशलताओं में अन्तर पाया जाता है। इनके शारीरिक एवं मानसिक विकास का क्रम भिन्न होता है। अतः ज्ञान अर्जन की क्षमताओं में भी भिन्नता पाई जाती है। 
  • स्पीयरमैन के अनुसार, दोनों में सामान्य एवं विशिष्ट योग्यताएँ पाई जाती हैं और इनका निर्धारण बुद्धि-परीक्षणों के आधार पर ही सम्भव है। अतः सामाजिक व्यवस्था को सामान्य बनाए रखने के लिए यौन-भिन्नता के आधार पर विभिन्न अन्तरों की पहचान कर उनके बीच समायोजन स्थापित करने के लिए बुद्धि-परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है। 

स्वयं का ज्ञान  Knowledge of himself
  • शिक्षा का प्रयत्न बच्चों का सामान्य विकास करना होता है। बुद्धि परीक्षण के जरिए बच्चे अपने भीतर की क्षमताओं एवं शक्तियों को पहचानकर अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति आसानी से कर सकते हैं। 
  • बुद्धि परीक्षाएँ बालकों के व्यक्तित्व के स्वरूप को स्पष्ट करती हैं। वह अपने भीतर विघटित तत्वों को निकाल देता है और अविघटित तत्वों को विकसित करता है। 

अधिगम प्रणाली में उपयोगी Useful in Learning System

  • सीखने की प्रक्रिया बुद्धि पर निर्भर करती है। छात्र की लगन, अभ्यास प्रक्रिया, गलतियों का निरसन, धारणा एवं प्रोत्साहन में वृद्धि एवं स्थानान्तरण आदि में बुद्धि का प्रभाव सर्वाधिक होता है। 
  • बुद्धि परीक्षाणों ने स्पष्ट कर दिया है कि प्रतिभाशाली बच्चे कम समय में अधिक अधिगम एवं ज्ञान अर्जित करने में सक्षम होते हैं। 

व्यावसायिक मार्गदर्शन Business Guideline
  • व्यवसाय में मनोविज्ञान ने पर्दापण करके विभिन्न समस्याओं का समाधान निकाला है। विभिन्न व्यवस्थाओं के लिए भिन्न प्रकार के मानसिक स्तर के व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। उपयुक्त मानसिक स्तर का व्यक्ति अपने व्यवसायों को उन्नतिमय बनाने में सहायक होता है। 
  • जब हम गलत व्यवसाय का चुनाव कर लेते हैं तो हमारी अभिरूचि एवं कार्यक्षमता का हृास होने लगता है, फलस्वरूप व्यवसाय और व्यक्ति दोनों का विकास अवरूद्ध हो जाता है। इस तरह व्यावसायिक मार्गदर्शन में भी बुद्धि-परीक्षण की भूमिका अहम होती है। 

अनुसान्धान Research

  • शिक्षा के क्षेत्र में विकास अनुसन्धानों के ऊपर निर्भर करता है। कक्षा के भीतर की समस्याएँ और सामान्य समस्याओं के समाधान के लिए अनुसान्धान का सहारा लेना पड़ता है। पत्येक अनुसान्धान के लिए बुद्धि-परीक्षण आवश्यक होता है। विभिन्न घटकों का चयन करना होता है, तो बुद्धि भी एक आधार होता है ताकि कम-से-कम त्रुटि हो। 

छात्र चयन में उपयोगी  Useful in Student Selection

  • विद्यालय में प्रवेश करने के बाद बालक के विकास का उत्तरदावित्व विद्यालय का होता है। 
  • विद्यालय-प्रशासन एवं प्रबन्धन बुद्धि-परीक्षणों का प्रयोग निम्नलिखित क्षेत्रों में छात्र चयन हेतु करता है। 
  • प्रवेश किसी भी कार्य के लिए छात्र को अनुमति देने से पहले से उसकी शारीरिक एवं मानसिक परिपक्वता का पता लगाना आवश्यक होता है। बुद्धि-परीक्षण की सहायता इस कार्य में ली जाती है। 
छात्रवृत्ति
  • शिक्षा के क्षेत्र में गरीबों और पिछड़े वर्गों के छात्रों का समुचित विकास करना प्रशासन का परम उद्देश्य रहा है। इसके लिए छात्रवृत्ति, निर्धन पुस्तक सहायता योजना और पिछड़े वर्ग कि व्यक्तिगत शिक्षण योजनाएँ वर्तमान सरकार द्वारा चलाई जा रही हैं।  इनमें छात्रवृत्ति का प्रारूप बुद्धि-लब्धि के आधार पर तैयार किया जाता है। 
विशिष्ट योग्यताएँ 

  • प्रौद्योगीकरण के विकास ने योग्यता के क्षेत्र को अत्यन्त विशाल बना दिया है। आज प्रत्येक क्षेत्र में नवीन प्रतिभाओं की खोज हो रही है। प्रतिभा खोज का प्रमुख आधार बुद्धि परीक्षाओं को ही माना जाता है। 

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