बघेलखण्ड के इतिहास के प्रमुख ऐतिहासिक स्रोत |Baghelkhand History Sources

 बघेलखण्ड के इतिहास के प्रमुख ऐतिहासिक स्रोत

बघेलखण्ड के इतिहास के प्रमुख ऐतिहासिक स्रोत |Baghelkhand History Sources


 बघेलखण्ड के इतिहास के प्रमुख ऐतिहासिक स्रोत

  • प्राचीन काल से ही बघेलखण्ड का समस्त भू-भाग पहाड़ों, कन्दराओं, घाटियों और घनघोर जंगलों से आच्छादित रहा है। इसलिए इस क्षेत्र पर शासन करने वाले राजाओं के लिए यहाँ की दुर्गम भौगोलिक संरचना उनकी सुरक्षा कवच का कार्य करती थी; लेकिन दूसरी ओर इसके कारण यहाँ के राजाओं का बाह्य जगत से सम्बंध लगभग न के बराबर था। इससे बघेलखण्ड में जन-जागृति की परिस्थितियाँ भी काफी देर से निर्मित हो सकीं। इसलिए निरक्षरता के कारण यहाँ पर लेखन-कार्य लगभग नगण्य ही रहा। इसके अतिरिक्त बघेलखण्ड के पूर्व शासकों के यहाँ इतिहास लेखन की परम्परा भी न थी।
  • इतिहास-लेखन का कार्य सर्वप्रथम बघेल राजा वीरभानु के शासनकाल (1535-55 ई.) में शुरू हुआ। इनका दरबारी लेखक माधव ऊरव्य ने "वीरभानूदय काव्यम् की रचना पहली बार की। इसके बाद से बघेलखण्ड में इतिहास से सम्बंधित ग्रन्थों की रचना का सिलसिला प्रारम्भ हुआ। वीरभानु के पूर्व बघेलखण्ड के कुछ प्रभावशाली शासकों ने शिलालेखों का निर्माण करवाया था। ऐसे शासकों में तुगलक कालीन उँचेहरा का वीरराजदेव परिहार और बघेल राजा बुल्लार देव (1360 ई.) का नाम विशेष उल्लेखनीय है। शिलालेखों के माध्यम से भी बघेलखण्ड के इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। इनके अलावा फारसी के लेखकों ने भी अपने ग्रन्थों में बघेलखण्ड की उन सभी घटनाओं का उल्लेख किया है, जो दिल्ली सुल्तानों और मुगल शासकों से सम्बंधित होती थीं। 
  • आधुनिक युग आते-आते बघेलखण्ड में भी काफी जागरूकता आ चुकी थी। समस्त बघेलखण्ड अंग्रेजी शासन के प्रभाव में आ चुका था। अतः इस काल में अनेक ग्रन्थ, पत्र-पत्रिकाएँ तथा राजकीय गजट आदि प्रकाशित किये जाने लगे, जिनके माध्यम से बघेलखण्ड के इतिहास का स्पष्ट स्वरूप देखने को मिलता है।

 

बघेलखण्ड के इतिहास पर प्रकाश डालने वाले प्रमुख मूल स्रोतों का विवरण निम्नानुसार है-

 संस्कृत ग्रन्थ 

बघेलखण्ड के इतिहास सम्बन्धी सूचना देने वाले प्रमुख संस्कृत ग्रन्थ इस प्रकार हैं 

(1) वीरभानूदय काव्यम् 

  • यह ग्रन्थ बघेल राजा वीरभानु के शासनकाल (1535-55 ई.) में उनके दरबारी लेखक माधव ऊरव्य द्वारा लिखा गया था। इस ग्रन्थ की समाप्ति पर लेखक ने 'असीत' शब्द का प्रयोग किया है। इससे स्पष्ट है कि उसने 'वीरभानूदय काव्यम्' के लेखन की शुरूआत वीरभानु के शासनकाल में की और इसका समापन वीरभानु की मृत्यु के बाद वीरभानु के पुत्र रामचन्द्र देव के शासनकाल (1555-92 ई.) में किया। रीवा महाराजा गुलाब सिंह द्वारा 1938 ई. में इस ग्रन्थ का प्रकाशन करवाया गया।

 

  • रीवा के बघेल वंश का यह सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में बारह सर्ग और 881 श्लोक हैं। इस ग्रन्थ में बघेलवंश को व्याघ्रदेव के बजाय भीम (भीमलदेव) से शुरू किया गया है. और व्याघ्घ्रदेव को व्याघ्रपाद मुनि के रूप में उल्लिखित किया गया है। भीम के पश्चात् क्रमशः रानिंगदेव, वालनदेव, बुल्लारदेव, सिंहदेव, वीरमदेव, नरहरिदेव, भैदचन्द्र, सालिवाहन, वीरसिंहदेव, वीरभानु और रामचन्द्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला गया है। इसके अंतिम सर्ग में वीरभानु के पौत्र वीरभद्र के जन्मोत्सव का विवरण है। इस अवसर पर मुगल बादशाह हुमायूँ ने वीरभानु को बधाई और उपहार भेजकर पौत्र जन्म को अपने घर का पौत्र जन्म स्वीकार किया। इस ग्रन्थ में रामचन्द्र देव के दरबारी गायक संगीत सम्राट तानसेन को अकबरी दरबार में भेजे जाने का भी उल्लेख मिलता है। 
  • काव्य में बघेल वंश का गोत्र "भारद्वाज-व्याघ्रपाद" लिखा गया है, जो वर्तमान रीवा के बघेलों के गोत्र से मेल करता है।

 

(2) रामचन्द्रयशः प्रबन्ध 

  • इस ग्रन्थ का लेखक गोविन्द भट्ट "अकबरी कालीदास था, जिसने बघेल राजा रामचन्द्रदेव की प्रशस्ति में इस ग्रन्थ को लिखा था। यह ग्रन्थ रामचन्द्रदेव के शासनकाल की उपलब्धियों की जानकारी देता है।

 

(3) कन्दर्पचूणामणि 

  • इस ग्रन्थ की रचना बघेल राजा वीरभद्रदेव (जन्म-1554 ई.) ने 1577 में की थी। इसमें कामशास्त्र की विवेचना की गयी है। इस ग्रन्थ में 63 अध्याय और 6 अधिकरण हैं। इस ग्रन्थ को महाराजा व्यंकट रमण सिंह (1880-1918 ई.) ने प्रकाशित करवाया था।

 

(4) दशकुमार-पूर्वकथा सार 

  • यह ग्रन्थ भी वीरभद्रदेव द्वारा लिखा गया है। इस ग्रन्थ की पाण्डुलिपि 'रायल एशियाटिक सोसायटी आफ बंगाल' के पुस्तकालय में सुरक्षित है। इस ग्रन्थ में 'दशकुमार चरित' की कथा का विवरण मिलता है।

 

(5) वीरभद्रदेव चम्पू 

  • इस ग्रन्थ की रचना 1577 ई. में पं. पद्मनाभ मिश्र ने की है। इसकी पाण्डुलिपि उदयपुर में है। 1952 ई. में इस ग्रन्थ का प्रकाशन प्राच्यवाणी संस्कृत सीरिज़ (कलकत्ता) से किया गया है। इस ग्रन्थ में वीरभद्रदेव के विजय अभियान का प्रसंग सात उच्छ्वासों के अन्तर्गत लिखा गया है। साथ ही इसमें बघेल राज्य की राजधानी और उसकी सीमा आदि का विस्तार से वर्णन मिलता है।

 

(6) बघेलवंशवर्णनम् 

  • इस ग्रन्थ की रचना 1678 ई. में रूपणि शर्मा ने की थी, जो राजा भावसिंह का दरबारी कवि था। इस ग्रन्थ में 100 श्लोक हैं, जिनमें भावसिंह के वंशजों और उनके सभासदों का उल्लेख वर्णित है। इस ग्रन्थ में कवि ने बघेलवंश की शुरूआत कर्णदेव से की है। कर्णदेव के बाद क्रमशः सुहागदेव, सारंगदेव, वीसलदेव, भीममल्ल, रानिंग देव, वलनदेव, दलकेश, मलकेश, वरियार, वोलारदेव, सिंहदेव, वीरमदेव,नरसिंह, भैददेव, सालिवाहन, वीरसिंह, वीरभानु, रामचन्द्र, वीरभद्रः, विक्रमादित्य, अमरेश, अनूपसिंह और अन्त में भावसिंह का नाम अंकित है। इस ग्रन्थ में रूपणि शर्मा ने बघेल वंश के सभी राजाओं की प्रशस्ति में कुछ न कुछ लिखा है। वे सभी वीर और यशस्वी थे। किन्तु इसमें उनके वास्तविक व्यक्तित्व की जानकारी नहीं मिलती है; सिर्फ भावसिंह के चरित्र पर यथार्थ प्रकाश पड़ता है।

 

हिन्दी ग्रन्थ-बघेलखण्ड के इतिहास के प्रमुख ऐतिहासिक स्रोत 

बघेलखण्ड के इतिहास की जानकारी देने वाले हिन्दी ग्रन्थ बघेली बोली और हिन्दी भाषा दोनों में उपलब्ध हैं, जिनका विवरण निम्नानुसार है-

 

(1) एकत्रा-बान्धोगढ़ 

  • यह बघेली बोली में लिखा हुआ बघेल राजाओं का लेखा-पत्र है। एकत्रा का तात्पर्य जमाबन्दी से है। यह बान्धवगढ़ दुर्ग के कार्यालय में पाया गया है। इसलिए इसे स्थानीय इतिहासकारों ने 'एकत्रा-बान्धोगढ़' के नाम से उल्लिखित किया है। इसमें उल्लिखित तिथि भद्र सुदि संवत् 1789 है। अतः 1732 ई. के लगभग यह लेखा-पत्र लिखा गया होगा। इसमें 100 पृष्ठ हैं। इस लेखा पत्र में बघेलवंश के वंश-वृक्ष के साथ-साथ उससे सम्बंधित तिथियाँ एवं कुछ ऐतिहासिक विवरण भी मिलता है। इसमें सर्वप्रथम बघेलों के तीन पूर्वजों- जैसिंह देव (सिद्धराज जयसिंह), वीरध्वज देव और व्याघ्रदेव को दर्शाया गया है, जो गुजरात के निवासी थे। व्याघ्रदेव के बाद इसमें वंशजों का क्रम बघेलवंशवर्णनम् में उल्लिखित क्रमानुसार ही है। भावसिंह के बाद अनिरुद्धसिंह, अवधूतसिंह और अजीतसिंह के नाम के साथ वंश-वृक्ष समाप्त किया गया है।

 

(2) बघेल वंशावली 

  • यह वंशावली भी बघेली बोली में लिखी हुई है। इसका लेखक अजवेसराम महापात्र हैं, जो रीवा राजा विश्वनाथ सिंह (1833-54 ई.) का दरबारी कवि था। 1835 ई. में यह वंशावली लिखी गयी थी। इसमें बघेलों के पूर्वज जैसिंह देव, वीरमदेव और व्याघ्रदेव को अंकित किया गया है। एकत्रा में उल्लिखित वीरध्वज देव के स्थान पर वीरमदेव को इस वंशावली में दर्शाया गया है। इसके अतिरिक्त एकत्रा के ही समान इसमें भी बघेल राजाओं की ऐतिहासिक सूचनाएँ उपलब्ध हैं।

 

(3) अमरेश विलास 

  • इस ग्रन्थ के लेखक नीलकण्ठ हैं, जो राजा अमरसिंह (1624-40 ई.) के दरबारी कवि थे। इस ग्रन्थ से अमरसिंह के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश पड़ता है।

 

(4) अजीत फतेह 

  • यह ग्रन्थ दुर्गा प्रसाद मिश्र द्वारा लिखा गया है। इसमें अजीत सिंह के शासनकाल (1755-1809ई.) में बघेलों और बाँदा के नवाब की सेनाओं के बीच 1796 ई. में हुई नैकहाई की लड़ाई को चौपाई और दोहा में वर्णित किया गया है।

 

(5) प्रताप विनोद 

  • इस ग्रन्थ की रचना प्रताप सिंह ने की है। यह अप्रकाशित ग्रन्थ है। इसमें राजाओं की प्रशस्ति का वर्णन कविता में किया गया है।

 

(6) इटार का रायसा 

  • इसमें ब्रिटिश कालीन बघेलखण्ड की घटनाओं की जानकारी मिलती है, जो कविता के रूप में है।

 

(7) ध्रुवाष्टक 

  • इस ग्रन्थ की रचना राजा विश्वनाथ सिंह (1833-54 ई.) ने की थी। इसमें बघेल राजाओं के सम्बंध में जानकारी दी गयी है। यह ग्रन्थ 2 अक्टूबर 1976 को प्रेमा प्रेस रीवा से प्रकाशित हुआ।

 

(8) भक्तमाल (रामरसिकावली) 

  • इस ग्रन्थ को महाराजा रघुराज सिंह (1854-80 ई.) ने लिखा है। इसमें बघेल वंशावली के विवरण के अतिरिक्त बघेल वंश पर कबीर पंथ के प्रभाव का भी उल्लेख मिलता है।

 

(9) 'भिल्लसांय' को कटक और 'क्षत्रकुलवंशावली' 

  • 'भिल्लसांय को कटक' की रचना अजयगढ़ (जिला-पन्ना) के राजा रनजोर सिंह के निर्देशन में भैरोंलाल द्वारा बुन्देली बोली में की गयी है। 'क्षत्रकुल वंशावली' की रचना स्वयं रनजोर सिंह ने की थी। इन दोनों ग्रन्थों में '1857 के विद्रोह' के समय ठाकुर रणमत सिंह की गतिविधियों का विवरण मिलता है।

 

(10) रीवा राज्य दर्पण 

  • इस ग्रन्थ का लेखन जीतन सिंह ने किया था। 1919 ई. में रीवा-दरबार द्वारा यूनियन प्रेस प्रयाग से इसका प्रकाशन करवाया गया। इसमें बघेल राजाओं के इतिहास की विस्तृत जानकारी मिलती है।

 

(11) बुंदेलखण्ड-बघेलखण्ड 

  • इस पुस्तक को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शिवानन्द श्रीवास्तव (सतना) ने लिखा है। इसमें इन्होंने बुंदेलखण्ड और बघेलखण्ड के स्वतंत्रता आन्दोलन के बारे में लिखा है।

 

उर्दू ग्रन्थ-बघेलखण्ड के इतिहास के प्रमुख ऐतिहासिक स्रोत 

उर्दू भाषा में उपलब्ध ग्रन्थों का ब्यौरा निम्नलिखित है -

 

(1) तवारीख-ए-बघेलखण्ड 

  • इस ग्रन्थ का लेखन मौलवी रहमान अली ने राजा रघुराज सिंह के शासनकाल में किया था। इस ग्रन्थ में राजा अजीत सिंह के पूर्व तक बघेलखण्ड के इतिहास की पर्याप्त जानकारी नहीं मिलती है, लेकिन अजीत सिंह (1755-1809ई.) से लेकर व्यंकटरमण सिंह के शासनकाल (1880-1918 ई.) तक की विस्तृत जानकारी इसमें प्राप्त होती है, क्योंकि रहमान अली के परिवार का रीवा-दरबार से सम्बन्ध 1796 ई. से रहा है। इनके चाचा हकीम असद अली और इनके मामा हकीम गुलाम मीर उर्फ मोटे-हकीम राजा-अजीतसिंह के सेवक थे। इन्हीं लोगों के माध्यम से रहमान अली भी रीवा आ गये थे। रहमान अली स्वयं विश्वनाथ सिंह, रघुराज सिंह और व्यंकटरमण सिंह के समकालीन थे। इसलिए उन्होंने तवारीख-ए-बघेलखण्ड म इन राजाओं के समय का विस्तृत इतिहास लिखा है। यह ग्रन्थ अभी तक प्रकाशित नहीं किया जा सका।

 

(2) यादगार-ए-रोजगार 

  • इस ग्रन्थ में रहमान अली व्यंकटरमण सिंह के शासन काल की प्रत्येक घटना को प्रतिदिन लिखते थे। इस प्रकार इस ग्रन्थ का लेखन 1904 ई. तक रहमान अली करते रहे। 1904 ई. में उन्हें पक्षाघात हुआ और 1907 ई. में उनकी मृत्यु हो गयी। यह भी अप्रकाशित ग्रन्थ है।

 

(3) व्याघ्रवंश संग्रह (तोहफै खान बहादुर) 

  • इस ग्रन्थ को भी रहमान अली ने लिखा है। इसका प्रकाशन रीवा-दरबार द्वारा 6 मई 1891 को करवाया गया था। इस ग्रन्थ में रीवा-राज्य के बघेल इलाकेदारों के वंशवृक्ष और उनके इतिहास का संक्षिप्त ब्यौरा मिलता है।

 

(4) तारीख-ए-अवध (भाग-2) 

  • इस ग्रन्थ का लेखक हकीम मो. नज़मुल गनी खाँ है। इस ग्रन्थ में बघेल राजा अजीत सिंह (1755-1809) के बारे में जानकारी मिलती है।

 

(5) तवारीख-ए-मैहर 

  • इस ग्रन्थ का लेखक मुन्नां लाल बख्शी है। यह अप्रकाशित ग्रन्थ है। इसमें मैहर राज्य के इतिहास का वर्णन किया गया है।

 

फारसी ग्रन्थ-बघेलखण्ड के इतिहास के प्रमुख ऐतिहासिक स्रोत 

निम्नलिखित फारसी के ग्रन्थों में बघेलखण्ड के इतिहास की झलक दिखाई देती है-

 

(1) अफीक कृत तारीख-ए-फिरोजशाही 

  • इस ग्रन्थ में बघेल राजा बुल्लारदेव के बारे में वर्णन मिलता है। 

(2) तारीख-ए-मुहम्मदी 

  • इस ग्रन्थ का लेखक मोहम्मद बिहामद खानी है, जो कालपी के मलिकजादा के यहाँ सेवक था। यह ग्रन्थ 1438 ई. में लिखा गया था। इस ग्रन्थ में जौनपुर के शर्की सुल्तान और कालपी के मलिकजादा के बीच हुए संघर्ष में बघेल राजा वीरमदेव के योगदान का वर्णन मिलता है।

 

(3) मासिर-ए-महमूदशाही 

  • इस ग्रन्थ का लेखक सिहाब हकीम है। सिहाब हकीम मालवा के खिलजी सुल्तान की सेवा में था। इस ग्रन्थ में वीरमदेव और उसके उत्तराधिकारी नरहरिदेव (मृत्यु 1470 ई.) के विषय में जानकारी उपलब्ध होती है।

 

(4) तबकात-ए-अकबरी (भाग-1) 

  • इस ग्रन्थ का लेखक ख्वाजा निजामुद्दीन है। इस ग्रन्थ में लोदी सुल्तानों और शर्की सुल्तानों के बीच हुए संघर्ष में बघेल राजा भैदचन्द्र (1470-95 ई.), सालिवाहन (1495-1500 ई.) और वीरसिंहदेव (1500-35 ई.) की भूमिका का विस्तृत विवरण मिलता है। इसमें वीरभानु, रामचन्द्रदेव और वीरभद्र के समय के इतिहास पर भी प्रकाश पड़ता है।

 

(5) तारीख-ए-दाऊदी 

  • इसका लेखक अब्दुल्ला है। इस ग्रन्थ में भी भैदचन्द्र, सालिवाहन, वीरसिंह देव और वीरभानु के सम्बंध में उल्लेख मिलता है।

 

(6) अफसानये शाहान 

  • इस ग्रन्थ को मो. इस्माईल ने लिखा है। इसमें भी उक्त चारों बघेल राजाओं का ब्यौरा उल्लिखित  है।

 

(7) नियामतुल्ला कृत 'मखजन-ए-अफगानी' और 'तारीख-ए-खानेजहाँ लोदी'

  •  इनमें भी लोदियों और शर्कियों के संर्घष में बघेल राजाओं की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है।

 

(8) तारीख-ए-फरिश्ता

  •  इस ग्रन्थ का लेखक हिन्दूशाह फरिश्ता है। इसने भी अपने ग्रन्थ में लोदियों और शर्कियों के संघर्ष में बघेल राजाओं के सहयोग का बखान किया है।

 

(9) जौनपुरनामा 

  • इस ग्रन्थ को खैरूद्दीन ने लिखा है। इसमें सिकन्दर लोदी के बांधवगढ़ अभियान का विस्तार से वर्णन मिलता है।

 

10) बाबरनामा 

  • बाबर ने अपनी आत्मकथा 'बाबरनामा' में वीरसिंह देव को भारत के तीन शक्तिशाली राजपूतों की श्रेणी में स्वीकार किया है। इसके साथ ही 1527 ई. के खानवा-युद्ध में वीरसिंह देव द्वारा बाबर के विरुद्ध 400 घुड़सवारों के साथ राणा साँगा की सहायता करने का उल्लेख भी बाबरनामा में आया है।

 

(11) गुल बदन बेगम कृत हुमायूँनामा 

  • इस ग्रन्थ में बघेल राजा वीरभानु (1535-55 ई.) द्वारा 1539 ई. के चौसा युद्ध में पराजित असहाय हुमायूँ की सहायतां शेरशाह के विरुद्ध करने का उल्लेख मिलता है। 

(12) अबुल फजल कृत 'अकबरनामा' और 'आईन-ए-अकबरी' 

  • इन दाना ग्रन्थों में बघेल राजा वीरसिंहदेव, वीरभानु, रामचन्द्र देव (1555-92) वीरभद्रदेव तथा विक्रमाजीत के समय ५ तिहास का विस्तृत वर्णन मिलता है।

 

(13) तज़किरात-उल-वाकेआत

  •  इस ग्रन्थ का लेखक जौहर आफताबची है। इसमें भी वीरभानु द्वारा हुमाँयू की सहायता का उल्लेख मिलता है।

 

(14) तारीख-ए-शेरशाही 

  • इस ग्रन्थ को अब्बास खाँ सरवानी ने लिखा है। इसमें शेरशाह सूरी द्वारा वीरभानु से बदला लेने के लिए 1545 ई. में कालिन्जर दुर्ग पर आक्रमण करने का विवरण मिलता है।

 

(15) शाहनवाज कृत मआसिरूल उमरा 

  • शाहनवाज ने अपने इस ग्रन्थ में रामचन्द्रदेव, वीरभद्रदेव, विक्रमाजीत, अमरसिंह और अनूपसिंह (1640-75ई.) के समय की घटनाओं का विस्तृत विवरण दिया है।

 

(16) तुजक-ए-जहाँगीरी 

  • इस ग्रन्थ में विक्रमाजीत के समय (1605-24 ई.) का इतिहास मिलता है।

 (17) लाहौरी कृत 'बादशाहनामा' 

  • इसमें अमरसिंह (1624-40 ई.) के समय का वृतान्त मिलता है।

 

(18) मोहम्मद वारिस कृत 'पादशाहनामा' 

  • इसमें अमरसिंह के पुत्र अनूपसिंह के समय की घटनाओं का विवरण मिलता है। 
  • उक्त फारसी ग्रन्थों में बघेलखण्ड के इतिहास की जानकारी का पता लगाने का प्रथम श्रेय रीवा के वयोवृद्ध इतिहासज्ञ प्रो. अख्तर हुसैन निज़ामी को जाता है, जो स्वयं फारसी भाषा के अच्छे ज्ञाता थे।

 

अंग्रेजी ग्रन्थ- बघेलखण्ड के इतिहास के प्रमुख ऐतिहासिक  

आधुनिक बघेलखण्ड का इतिहास अंग्रेजी ग्रन्थों में पर्याप्त मिलता है, जिनका विवरण नीचे प्रस्तुत

 

(1) ग्लोरीज़ ऑफ बान्धवगढ़ 

  • इसके लेखक अयाज अली खान हैं। इसमें बघेल राजाओं के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। इसका प्रकाशन रीवा-राज्य के आर्कियोलोजिकल डिपार्टमेन्ट से किया गया है।

 

(2) ए कम्पेंडियम ऑफ दि रीवा स्टेट 

  • इस ग्रन्थ का प्रतिपादन तात्कालिक रीवा राज्य के दीवान पं. जानकी प्रसाद ने किया था। इस ग्रन्थ में रीवा-राज्य की पवाईयों और इलाकों से सम्बंधित जानकारी का उल्लेख है। रीवा-राज्य की राजस्व व्यवस्था पर यह ग्रन्थ पर्याप्त प्रकाश डालता है। इस ग्रन्थ का प्रकाशन रीवा-दरबार ने 1934 ई. में करवाया था।

 

(3) रीवा स्टेट गजेटियर 

  • इस गजेटियर का लेखक कैप्टन लुआर्ड है। इस पुस्तक का प्रकाशन 1907 ई. में लखनऊ में करवाया गया था। इसमें रीवा-राज्य के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्वरूप के आँकड़ों को दर्शाया गया है। यह गजेटियर ब्रिटिश कालीन बघेलखण्ड के लिए मूल स्रोत के रूप में प्रयोग किया जाता है।

 

(4) 'कागजात-मोती महल' 

  • बांधवगढ़ के मोती महल से बघेल राजाओं से सम्बन्धित जो कागजात पाये गये हैं, उन्हें 'रीवा-कमिश्नरी' में सुरक्षित रखा गया है। इन कागजातों को 'कागजात मोती महल' के नाम से पुकारा जाता है।

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