उत्तरी भारत के अन्य क्षेत्रीय राज्यों का उदय |Regional states in northern India

उत्तरी भारत के अन्य क्षेत्रीय राज्यों का उदय |Regional states in northern India

उत्तरी भारत के अन्य क्षेत्रीय राज्यों का उदय 

  • दसवीं शताब्दी के मध्य एक प्रतिहार वंश की शक्ति लगभग पूर्ण रूप से क्षीण हो चुकी थी। पश्चिमी भारत एवं मध्य देश के इस शक्तिशाली साम्राज्य के अवशेषों पर एक नहीं अपितु अनेक शक्तियों का उदय हुआ। जो प्रतिहारों की सामन्त रह चुकी थी। परमार चौहान (चाहमान)चंदेलचालुक्य एवं गहड़वाल ऐसी ही शक्तियां थी जब महमूद गजनवी एवं मौहम्मद गौरी के आक्रमण हो रहे थे और भारत में तुर्की राज्य की स्थापना की प्रक्रिया आरम्भ हो चुकी थी। तब उत्तरी भारत में इन्हीं राजनीतिक शक्तियों का बोलबाला था।

 

1 चाहमान या चौहान वंश

 

  • इस वंश का उदय शाकंभरी (साम्भर अजमेर के आस-पास का क्षेत्र) में हुआ। चाहमान वंश के प्रारम्भिक राजाओं में वासुदेव और गूवक के नाम उल्लेखनीय हैं। इस वंश का सर्वप्रथम लेख वि0सं0 1030-973 ई0 का दुर्लभ हर्षलेख हैजिसमें गूवक प्रथम तक वंशावली दी गई है। दूसरा प्रसिद्ध लेख बिजौलिया शिलालेख-पूरी वंशावली देता है।

 

  • चाहमानों की शक्ति का विशेष विकास अर्णोराज के पुत्र चतुर्थ विग्रहराज बीसलदेव (1153-1164 ई0) के समय हुआ। उसने सबसे बड़ा कार्य मध्य देश से मुसलमान आक्रमणकारियों को समाप्त करके किया जो पंजाब को जीतने के बाद धीरे-धीरे मध्य देश में आकर बस गये थे। गहड़वाल भी उसके हाथों पराजित हुए। बीसलदेव के पुत्र अपर गांगेय को बीसल के ही भतीजे पृथ्वीराज द्वितीय ने राज्य का मौका नहीं दिया। पृथ्वीराज का उत्तराधिकारी बीसल का छोटा भाई सोमेश्वर हुआ।

 

  • सोमेश्वर का पुत्र और उत्तराधिकारी चाहमान वंश का सबसे प्रसिद्ध और अंतिम शक्तिमान राजा पृथ्वीराज तृतीय (1179-1193 ई0) था। इसके राजकवि चंद्रबरदाई ने पृथ्वीराज रासो नामक अपभ्रंश महाकाव्य और जयनिक ने पृथ्वीराज वियज नामक संस्कृत काव्य की रचना की। लगभग 1182 ई0 में उसने उत्तर भारत के प्रसिद्ध राजा परमर्दिदेव चंदेल को पराजित किया। बीसलदेव के काल से ही चाहमानों और गहड़वालों की प्रतिद्वंदिता चल रही थी। दुर्भाग्य से यह आंतरिक कलह उस समय चल रही थी जब भारत के द्वार पर मुहम्मद गौरी दस्तक दे रहा था। यद्यपि वह एक बार पृथ्वीराज के हाथों पराजित हो चुका थाकिन्तु 1193 ई0 में तराईन के द्वितीय युद्ध में गौरी बदला लेने में सफल हुआ। अजमेर और दिल्ली दोनों ही तुर्कों के हाथ लगे। चाहमान सत्ता को नष्ट होने में देर नहीं लगी।

 

2 चंदेल वंश 

  • जहाँ वर्तमान बुंदेलखंड पर चंदेलों की राजनीतिक शक्ति का उदय हुआ। खजुराहों उनकी राजधानी थी। इस वंश का सर्वप्रथम राजा नन्नुक हुआ। हर्षदेव (905-925 ई0) के समय से चंदेलों की शक्ति जोरों से बढ़नी शुरू हुई। उसके पुत्र यशोवर्मन ने मालवाचेदि और महाकोसल पर आक्रमण करके अपने राज्य का पर्याप्त विस्तार कर लिया और व्यवहार में वह प्रतिहारों से बिल्कुल स्वतंत्र हो गयायद्यपि वह उनका नाममात्र का आधिपत्य स्वीकार करता था। यशोवर्मन का पुत्र (950-1008 ई०) बड़ा प्रतापी और विजयी सिद्ध हुआ। प्रतिहारों से पूर्ण स्वतंत्रता का वास्तविक श्रेय उसी को दिया जाता है। धंग की विजयों के फलस्वरूप उसका राज्य पश्चिम में ग्वालियरपूर्व में वाराणसी और उत्तर में यमुना तट तक तथा दक्षिण में चेदि और मालवा की सीमा तक फैल गया। शाही राजा जयपाल ने तुर्कों का प्रतिरोध करने के लिए जो संघ बनाया थाउसमें धंग ने सक्रिय भाग लिया। धंग के बाद उसका पुत्र गंड राजा हुआ। उसने भी 1008 ई0 मे महमूद गजनवी का सामना करने के लिए जयपाल के पुत्र आनंदपाल द्वारा बनाए हुए संघ में भाग लिया। दुर्भाग्य से यह दूसरा संघ भी पराजित हुआ। विद्याधर ने भोज परमार और कलचुरि गांगेय की सहायता से तुर्कों को मध्य देश से निकालने का प्रयास किया।

 

  • चंदेल वंश का अंतिम शक्तिशाली राजा परमर्दि अथवा परमल था। इसके समय मे ं अजमेर के चौहान राजा पृथ्वीराज ने आक्रमण किया। 1203 ई0 में गहड़वालों की शक्ति नष्ट हो जाने के बाद जब कुतुबुद्दीन ऐबक ने कालिंजर पर आक्रमण किया तब परमर्दि ने उसका घोर विरोध कियाकिन्तु अंत में उसे हार का समाना करना पड़ा।

 

3 परमार वंश 

  • दसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में जब प्रतिहारों का आधिपत्य मालवा में नष्ट हो गयातब वहाँ पर परमार शक्ति का उदय हुआ। इस वंश का प्रथम स्वतंत्र एवं शक्तिमान राजा सीयक या श्रीहर्ष था। राष्ट्रकूटों से इसका संघर्ष हुआ और खोट्टिग को हराकर सीयक ने विपुल सम्पत्ति लूटी। वास्तव में मालवा में परमारों की शक्ति का उत्कर्ष वाकपति मुंज (972-994 ई0) के समय में प्रारम्भ हुआ। उसकी सबसे प्रसिद्ध विजय कल्याणी के चालुक्य राजा तैलप द्वितीय पर थी। भोज (1000-1055 ई0) इस वंश का सबसे लोकप्रसिद्ध राजा हुआ। उदयपुर प्रशस्ति के अनुसार उसने अनेक भारतीय राजाओंविशेषकर चेदि के इंद्रनाथगुजरात के प्रथम जोग्गल और भीमलाट और कर्णाट के राजाओंगुर्जर और तुरूष्कों से युद्ध किए। अपने चाचा (वाक्पति मुंज) की मृत्यु का बदला लेने के लिए उसने कल्याणी के चालुक्य राजा विक्रमादित्य चतुर्थ को परास्त किया। किन्तु जयसिंह द्वितीय ने उसे शीघ्र हरा दिया और 'मालवा संघतोड़ दिया। 

  • इसके बाद भोज ने कलचुरि राजा गांगेयदेव को हराया। किन्तु चंदेल राजा विद्याधर के साथ युद्ध में मालवा नरेश को मुँह की खानी पड़ी। अंत में भोज के दो पुराने शत्रु-गुजरात के सोलंकियों और त्रिपुरा के कलचुरियों ने परस्पर मैत्री कर एक साथ मालवा पर आक्रमण किया और उन्होंने भोज की राजधानी धारा को खूब लूटा। 

  • इन बड़े राज्यों के अतिरिक्त हर्ष के बाद ही उत्तरी भारत में अनेक छोटे-क्षेत्रीय राज्य थेगहड़वाल (कन्नौज में ही- प्रतिहारों की शक्ति क्षीण होने पर) त्रिपुरी (आधुनिक जबलपुर के निकट) में कलचुरिपंजाबकश्मीरनेपालउड़ीसा आदि के राजवंश।

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