भारत का 39वाँ विश्व धरोहर स्थल: रुद्रेश्वर मंदिर (रामप्पा मंदिर)
भारत का 39वाँ विश्व धरोहर स्थल: रुद्रेश्वर मंदिर (रामप्पा मंदिर)
तेलंगाना के
मुलुगु ज़िले में स्थित रुद्रेश्वर मंदिर (जिसे रामप्पा मंदिर के रूप में भी जाना
जाता है) को यूनेस्को (UNESCO)
की विश्व धरोहर
स्थल की सूची में शामिल किया गया है।
रुद्रेश्वर मंदिर का
निर्माण 1213 ईस्वी में
काकतीय साम्राज्य के शासनकाल में काकतीय राजा गणपति देव के एक सेनापति रेचारला
रुद्र ने कराया था।
यहाँ के स्थापित
देवता रामलिंगेश्वर स्वामी हैं।
40 वर्षों तक मंदिर
निर्माण करने वाले एक मूर्तिकार के नाम पर इसे रामप्पा मंदिर के रूप में भी जाना
जाता है।
मंदिर छह फुट ऊँचे तारे
जैसे मंच पर खड़ा है, जिसमें दीवारों, स्तंभों और छतों
पर जटिल नक्काशी से सजावट की गई है, जो काकतीय मूर्तिकारों के अद्वितीय कौशल को प्रमाणित करती
है।
इसकी नींव
"सैंडबॉक्स तकनीक" से बनाई गई है, जिसमें फर्श ग्रेनाइट पत्थरों से है और स्तंभ बेसाल्ट
चट्टानों से निर्मित हैं।
मंदिर का निचला हिस्सा
लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है जबकि सफेद गोपुरम को हल्की ईंटों से बनाया गया है जो
कथित तौर पर पानी पर तैर सकती हैं।
एक शिलालेख के
अनुसार मंदिर के निर्माण की तिथि माघ माह की अष्टमी (12 जनवरी, 1214) शक-संवत 1135 है।
मंदिर परिसरों से
लेकर प्रवेश द्वारों तक काकतीयों (Kakatiya) की विशिष्ट शैली, जो इस क्षेत्र के लिये अद्वितीय है, दक्षिण भारत में
मंदिर और शहर के प्रवेश द्वारों में सौंदर्यशास्त्र के अत्यधिक विकसित स्वरूप की
पुष्टि करती है।
यूरोपीय व्यापारी
और यात्री मंदिर की सुंदरता से मंत्रमुग्ध थे तथा ऐसे ही एक यात्री ने उल्लेख किया
था की मंदिर “दक्कन के
मध्ययुगीन मंदिरों की आकाशगंगा में सबसे चमकीला तारा” था।
रुद्रेश्वर या रामप्पा
मंदिर के महत्वपूर्ण तथ्य
रुद्रेश्वर मंदिर का
निर्माण 1213 ईस्वी में
काकतीय साम्राज्य के शासनकाल में काकतीय राजा गणपति देव के एक सेनापति रेचारला
रुद्र ने कराया था।
यहाँ के स्थापित देवता
रामलिंगेश्वर स्वामी हैं।
40 वर्षों तक मंदिर निर्माण करने वाले एक मूर्तिकार के नाम पर
इसे रामप्पा मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।
मंदिर छह फुट ऊँचे तारे
जैसे मंच पर खड़ा है, जिसमें दीवारों, स्तंभों और छतों
पर जटिल नक्काशी से सजावट की गई है, जो काकतीय मूर्तिकारों के अद्वितीय कौशल को प्रमाणित करती
है।
इसकी नींव
"सैंडबॉक्स तकनीक" से बनाई गई है, जिसमें फर्श ग्रेनाइट पत्थरों से है और स्तंभ बेसाल्ट
चट्टानों से निर्मित हैं।
मंदिर का निचला हिस्सा
लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है जबकि सफेद गोपुरम को हल्की ईंटों से बनाया गया है जो
कथित तौर पर पानी पर तैर सकती हैं।
एक शिलालेख के अनुसार
मंदिर के निर्माण की तिथि माघ माह की अष्टमी (12 जनवरी, 1214) शक-संवत 1135 है।
मंदिर परिसरों से लेकर
प्रवेश द्वारों तक काकतीयों (Kakatiya) की विशिष्ट शैली, जो इस क्षेत्र के लिये अद्वितीय है, दक्षिण भारत में
मंदिर और शहर के प्रवेश द्वारों में सौंदर्यशास्त्र के अत्यधिक विकसित स्वरूप की
पुष्टि करती है।
यूरोपीय व्यापारी और
यात्री मंदिर की सुंदरता से मंत्रमुग्ध थे तथा ऐसे ही एक यात्री ने उल्लेख किया था
कि मंदिर “दक्कन के
मध्ययुगीन मंदिरों की आकाशगंगा में सबसे चमकीला तारा” था।
सैंडबॉक्स तकनीक क्या होती है
इस तकनीक में इमारतों के
निर्माण से पहले गड्ढे को भरना शामिल है- जिसमे
नींव रखने के लिये खोदे गए गड्ढों को
रेत-चूने, गुड़ (बांधने ले
लिये) और करक्कया ( हरड़ का काला फल) के मिश्रण के साथ भरा जाता है।
भूकंप की स्थिति में सैंडबॉक्स तकनीक से निर्मित
यह नींव एक कुशन (Cushion)के रूप में कार्य
करती है।
भूकंप के कारण होने वाले
अधिकांश कंपन इमारत की वास्तविक नींव तक पहुँचने से पहले हीरेत से गुज़रते समय ही क्षीण हो जाते हैं।
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