प्राणियों में गति (प्रचलन) एवं गतियों के प्रकार | Movement in Animals

 प्राणियों में गति  एवं गतियों के प्रकार

प्राणियों में गति (प्रचलन) एवं गतियों के प्रकार | Movement in Animals


प्राणियों में गति  

  • गति प्राणियों का एक अद्वितीय लक्षण है। पौधे भी गति दर्शाते हैं परन्तु यह गति प्राणियों की भाँति विशिष्ट संकुचनशील प्रोटीनों द्वारा न होकर स्फीति दाब (Turgor pressure) में परिवर्तन अथवा वृद्धि के कारण होती है। कोशिकाद्रव्य के स्पष्ट, ज्ञेय, प्रवाह तथा कोशिका विभाजन के दौरान समसूत्री तर्कु (Mitotic spindle) की गति से लेकर कशेरुकियों की रेखित पेशियों में होने वाली स्पष्ट, बलशाली गतियों तक गति के अनेक रूप जन्तुओं में पाये जाते हैं। पक्ष्माभों, स्पर्शकों, बाह्य कर्णों, पलकों, जीभ, जबड़ों की गतियाँ इसके कुछ उदाहरण हैं। इनके अतिरिक्त प्राणियों को अनेक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु स्थान परिवर्तन की आवश्यकता होती है। स्थान परिवर्तन की प्रक्रिया प्रचलन (Locomotion) कहलाती है। प्रचलन का सीधा सम्बन्ध गति से होता है क्योंकि प्रचलन में कोशिकाद्रव्य, कोशिकाओं, ऊतकों तथा अंगों की गति सम्मिलित होती है। 

  • सभी प्राणि कोशिकाएँ गतिशील संरचनाएँ (Dynamic structures) होती हैं जिनमें विभिन्न अंगक तथा अन्य पदार्थ सतत् गतिशील रहते हैं। गतिशीलता का प्रमुख कारण कोशिकाकंकाल (Cytoskeleton) होता है जो कोशिका को आकृति के साथ गति प्रदान करता है। कोशिका के अन्दर होने वाली इस गति हेतु तीन प्रकार की तन्तुवत् रचनाएँ उत्तरदायी होती हैं। सूक्ष्मनलिकाएँ (Microtubules), सूक्ष्मतन्तुक (Microfilaments) तथा मध्यवर्ती तन्तुक (Intermediate filaments) । सूक्ष्मनलिकाएँ ट्यूबुलिन (Tubulin) प्रोटीन की बहुलक होती हैं तथा ये कोशिकाओं में पक्ष्माभों (Cilia) तथा कशाभों (Flagella) का निर्माण करती हैं। सूक्ष्मतन्तुक भी प्रोटीन की बनी संरचनाएँ होती हैं जो एक्टिन (Actin) प्रोटीन की बनी होती हैं और कभी-कभी अन्य प्रोटीनों जैसे मायोसिन (Myosin) के साथ पायी जाती हैं। मध्यवर्ती तन्तुक कोशिकीय गतियों में कम सक्रिय भूमिका निभाते हैं अपितु कोशिकीय संरचना को दृढ़ता प्रदान करते हैं।

 

प्राणियों में गतियों के प्रकार [TYPES OF MOVEMENTS] 

जन्तुओं में दो प्रकार की गतियाँ होती हैं- अपेशीय गतियाँ (Non-muscular movements) तथा पेशीय गतियाँ (Muscular movements)

 

1. अपेशीय गतियाँ (Non-muscular Movements) 

ये गतियाँ जन्तुओं की कोशिकाओं में होती हैं तथा इनके अन्तर्गत कोशिकाद्रव्यी प्रवाह, अमीबीय, कशाभी तथा पक्ष्माभी गतियाँ सम्मिलित हैं। 

(i) कोशिकाद्रव्यी प्रवाह (Cytoplasmic streaming) -

  • वस्तुत: सभी कोशिकाओं में कोशिकाद्रव्य सतत् गति करता है। इस तथ्य को कोशिकाद्रव्यी प्रवाह कहते हैं। यह गति यादृच्छिक (Random) न होकर निदेशित गति (Directed movement) होती है। तन्त्रिकाक्षी परिवहन (Axonal transport) में होने वाली कोशिकाद्रव्यी गति इसका अच्छा उदाहरण है। तन्त्रिकाक्ष (Axon) में कोशिका काय (Cell body) से लेकर तन्त्रिकाक्ष अन्तस्थ (Axon terminals) तक सम्पूर्ण लम्बाई में सूक्ष्मनलिकाएँ (Microtubules) पायी जाती हैं तथा पदार्थों की गति दोनों दिशाओं में होती है अर्थात् कोशिका काय से लेकर तन्त्रिकाक्ष अन्तस्थ तक तथा तन्त्रिकाक्ष अन्तस्थ से लेकर कोशिका काय तक। कुछ तन्त्रिसंचारी पदार्थों का परिवहन कोशिका काय से तन्त्रिकाक्ष में होता है। इसे अग्रक्रम परिवहन (Anterograde transport) कहते हैं जिसकी गति 40 सेमी /दिन हो सकती है। इसके विपरीत दिशा में होने वाले प्रवाह को पश्चक्रम प्रवाह (Retrograde flow) कहते हैं जिसकी गति अपेक्षाकृत कम, 8 सेमी /दिन होती है।

 

  • इसी प्रकार कुछ अकोशिकीय जन्तुओं जैसे पैरामीशियम (Paramecium) में अन्तर्द्रव्य (Endoplasm) मन्द एवं नियमित गति करता है इसे साइक्लोसिस (Cyclosis) कहते हैं।

 

(ii) अमीबीय गति (Amoeboid movement) - 

  • यह सभी सार्कोडीन (Sarcodine), मैस्टिगोफोर (Mastigophore) तथा स्पोरोजोन (Sporozoan) प्रोटोजोआ प्राणियों (Protozoans) की विशेषता है। इनके अतिरिक्त यह उच्च जन्तुओं की भ्रमणशील कोशिकाओं; जैसे- श्वेत रक्त कोशिकाएँ (White blood cells), भ्रूणीय मीजेन्काइमी कोशिकाओं (Embryonic mesenchymal cells) तथा अन्य कई कोशिकाएँ जो ऊतकीय अन्तरालों (Tissue spaces) में गति करती हैं, में भी पायी जाती है। 
  • अकोशिकीय प्राणियों में गति की दिशा में कोशिकाद्रव्य के धारावाही प्रवाह द्वारा कूटपादाभों (Pseudopodia) के निर्माण से इस प्रकार की गति होती है। केवल किसी सतह पर ही कूटपादाभों द्वारा गति सम्भव होती है। 
  • इस प्रकार की गति की सुनिश्चित क्रियाविधि स्पष्ट ज्ञात नहीं है परन्तु ऐसी समझा जाता है कि कूटपादाभों का निर्माण कोशिकाद्रव्य कारण होता है। कोशिका क तरल तथा कणिकामय Sol) कहते हैं। जबकि वहीन तथा अधिक गाढ़ा नाज्याजेल (Plasmagel) कहते हैं कूटपाद (Pseudopodia) का निर्माण कोशिका कला के किसी विशिष्ट क्षेत्र में प्लाज्माजेल कोशाद्रव्य के फटने से होता है। कोशिका के प्रमुख भाग में सूक्ष्मतन्तुकों (Microfilaments) की अन्योन्यक्रिया के परिणामस्वरूप धनात्मक दाब (Positive pressure) उत्पन्न होता है। कोशिकाद्रव्य में एक्टिन तथा मायोसिन, दो प्रकार के सूक्ष्मतन्तुक पाये जाते हैं जिनके मध्य पेशी संकुचन की तरह अन्योन्यक्रिया होती है। इस अन्योन्यक्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न बल के कारण प्लाज्मासॉल प्लाज्माजेल को तोड़कर आगे बढ़ जाता है जिसके कारण कोशिका कला बाहर की तरफ उभरकर कूटपाद का निर्माण करती है। जैसे ही प्लामासॉल कूटपाद में प्रवेश करता है यह प्लाज्माजेल में परिवर्तित हो जाता है जिससे उस स्थान पर तुरन्त दूसरा कूटपाद नहीं बनता। प्लाज्मासॉल के प्लाज्माजेल में परिवर्तित होने को जेलीकरण (Gelation) कहते हैं।

 

(iii) पक्ष्माभी गति (Ciliary movement) - 

  • पक्ष्माभ (Cilia) अत्यन्त गतिशील, छोटे-छोटे बहिर्द्रव्यीय प्रवर्ध (Ectoplasmic processes) होते हैं जो अनेक जन्तुओं की कोशिकीय सतहों से विस्तारित होते हैं। ये पक्ष्माभ प्रोटोजोन प्राणियों की विशेषता है। बड़े जन्तुओं में ये पक्ष्माभ उपकला सतह पर विभिन्न द्रव एवं पदार्थों को ढकेलने का कार्य करते हैं। अनेक प्राणियों में पक्ष्माभ निस्यन्दी अशन (Filter feeding) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पक्ष्माभ कहीं भी पाये जायें ये असाधारण रूप से एकसमान व्यास (0-1-0-5 µm) के होते हैं। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा ज्ञात होता है कि प्रत्येक पक्ष्माभ में एक बाहरी कलामय आवरण होता है जो कोशिका की बाह्य सतह पर होने वाली प्लाज्मा झिल्ली के साथ सतत् रहता है और तरल मातृद्रव को बन्द रखता है। प्रत्येक पक्ष्माभ की सम्पूर्ण लम्बाई में 9 जोड़ी परिधीय और दो केन्द्रीय तन्तु होते हैं। ये सभी तन्तु एक संरचना विहीन मातृद्रव में धँसे होते हैं। दोनों केन्द्रीय तन्तु एक कोमल झिल्ली में घिरे होते हैं। परिधीय तन्तुओं के प्रत्येक जोड़े के एक तन्तु से दो सूक्ष्म प्रवर्ध निकले रहते हैं जिन्हें भुजाएँ (Arms) कहते हैं। सभी भुजाएँ दक्षिणावर्त (Clockwise) दिशा में होती हैं। इसके अतिरिक्त केन्द्रीय तन्तुओं से परिधीय तन्तुओं के मध्य साइकिल के पहिये की तीली या अरों (Spokes) के समान 9 अरीय पटलिकाएँ (Radial lamellae) होती हैं। पक्ष्माभ के आधार पर एक मोटी संरचना होती है जिसे आधारी कण या ब्लेफैरोप्लास्ट (Basal granule or blepharoplast) कहते हैं। पक्ष्माभ की उत्पत्ति इसी आधारी कण से होती है। ये आधारी कण तारककेन्द्र (Centriole) या उनके व्युत्पन्न होते हैं तथा इनमें 9 परिधीय उपतन्तुत्रिक (Triplet fibrils) होते हैं जो ऐंठन की भाँति व्यवस्थित रहते हैं।

 

  • पक्ष्माभी गति के समय प्रत्येक पक्ष्माभ लोलक (Pendulum) की तरह दोलन (Oscillation) करता है। प्रत्येक दोलन दो चरणों (Strokes) में पूरा होता है जिसमें प्रथम तीव्र प्रभावी चरण (Effective stroke) तथा उसके बाद दूसरा मन्द प्रतिप्राप्त चरण Recovery stroke) होता है। प्रभावी चरण के समय पक्ष्माभ कुछ वक्रित और दृढ़ होकर एक पतवार की भाँति जल से टकराते हैं, परिणामस्वरूप जन्तु का शरीर आघात की दिशा के विपरीत आगे की ओर बढ़ जाता है। प्रभावी चरण के तुरन्त पश्चात् प्रतिप्राप्त चरण पक्ष्माभों को पुनः अगले प्रभावी चरण प्रारम्भ करने की स्थिति में ले आता है।

 

  • समस्त पक्ष्माभों के आधारी कण काइनेटोडेस्मेटा (Kinetodesmata) द्वारा परस्पर जुड़े हैं जिसके कारण पक्ष्माभी गति में सामंजस्य (Coordina- ) बना रहता है। शरीर के पक्ष्माभ एक साथ मुक्त रूप से गति न करके प्रगामी रूप से एक विशिष्ट तरंग के समान गति करते हैं जिसे अनुक्रमिक लय (Metachronal rhythm) कहते हैं। एक अनुदैर्ध्य पंक्ति में स्थित प्रत्येक पक्ष्माभ अपने पीछे वाले पक्ष्माभ से सदैव पहले गति करता है जबकि एक अनुप्रस्थ पंक्ति के सभी पक्ष्माभ तुल्यकालिक (Synchronously) रूप से गति करते हैं। 

(iv) कशाभी गति (Flagellar movement)- 

  • मैस्टिगोफोर प्रोटोजोन; जैसे-यूग्लीना (Euglena), ट्रिपैनोसोमा Animal spermatozoans) में कशाभी गति पायी जाती है। कशाभ (Flagella) कोशिका की सतह से निकली चाबुक की तरह (Whiplike) संरचनाएँ होती हैं। प्राणियों में इनकी संख्या तथा व्यवस्था भिन्न-भिन्न होती है। मुक्तजीवी जातियों में ये प्राय: एक या दो परन्तु परजीवी जातियों में ये एक से अधिक होते हैं। प्रत्येक कशाभ में एक लम्बा, दृढ़ दण्ड (Shaft) होता है जिसे अक्षसूत्र (Axoneme) कहते हैं। यह अक्षसूत्र एक बाह्य आवरण से घिरा होता है। अक्षसूत्र के अन्दर 9 लम्बे तथा युग्मित परिधीय तन्तु होते हैं जो एक लम्बे बेलन की रचना करते हैं। इस बेलन के केन्द्र में एक महीन आवरण से घिरे दो लम्बे केन्द्रीय तन्तु पाये जाते हैं। प्रत्येक परिधीय तन्तु से एक जोड़ी सूक्ष्म प्रवर्ध निकले रहते हैं जिन्हें भुजाएँ कहते हैं। प्रत्येक कशाभ की उत्पत्ति एक छोटी कणिकारूपी रचना से होती है जिसे ब्लेफैरोप्लास्ट (Blepharoplast) या काइनेटोसोम (Kinetosome) कहते हैं। ब्लैफेरोप्लास्ट की व्युत्पत्ति तारककेन्द्र (Centriole) से होती है। परिधीय तन्तुओं तथा केन्द्रीय तन्तुओं के मध्य प्रायः 9 सहायक अथवा द्वितीयक तन्तु भी पाये जाते हैं। कुछ प्राणियों में कशाभ की लम्बाई में रोमों के समान संकुचनशील प्रवर्थों की एक पाश्र्वीय पंक्ति होती है जिन्हें पार्श्वसूत्र (Mastigonemes) कहते हैं। ऐसे कशाभों को पंक्तिसूत्री कशाभ (Stichonematic flagellum) कहते हैं। कशाभ केवल द्रव माध्यम में ही गति करते हैं। द्रव माध्यम में कशाभ प्रभावी (Effective) तथा प्रतिप्राप्त (Recovery) चरणों (Strokes) की सहायता से गति करता है। प्रभावी चरण में कशाभ दृढ़ता से पीछे की ओर जाता है तथा प्रतिप्राप्त चरण में यह वक्रित होकर आगे की ओर आ जाता है। इस प्रकार क्रमिक प्रभावी एवं प्रतिप्राप्त चरणों की क्रिया द्वारा कशाभी गति सम्पन्न होती है। इसे क्षेपणी गति (Paddle movement) कहते हैं।

 

  • कशाभों में क्षेपणी गति के अतिरिक्त तरंगति गति (Undulating movement) भी होती है। तरंगित गति के समय कशाभ में चोटी से आधार की तरफ लहरों की भाँति तरंगें चलती हैं जिससे आगे की तरफ गति होती है। इसके विपरीत जब ये तरंगें आधार से चोटी की ओर चलती हैं तो पीछे की तरफ गति होती है। इन तरंगों के सर्पिल हो जाने पर जन्तु विपरीत दिशा में घूमने लगता है। कशाभी गति कशाभ में उपस्थित परिधीय तन्तुओं के संकुचन के कारण होती है। कशाभी या पक्ष्माभी गति के सर्पण नलिका सिद्धान्त (Sliding tubule theory) के अनुसार परिधीय तन्तुओं के द्विक (Doublets) परस्पर सर्पण (Sliding) करते हैं जिसके फलस्वरूप सम्पूर्ण कशाभ या पक्ष्माभ झुक जाता है। सर्पण के लिए आवश्यक ऊर्जा ATP से प्राप्त होती है जो ब्लेफैरोप्लास्ट में स्थित माइटोकॉण्ड्रिया में बनती है।

 

2. पेशीय गतियाँ (Muscular Movements) 

  • संकुचनशील तत्त्व (Contractile element) का सर्वाधिक विकास पेशी कोशिकाओं (Muscle cells) में होता है जिसे पेशी तन्तु (Muscle fibre) कहते हैं। इन पेशी तन्तुओं में अपने संकुचन एवं शिथिलन गुण के कारण शक्ति आरोपित करने की क्षमता होती है। इस क्षमता का उपयोग मानव सहित अधिकतर कशेरुकियों में होता है। पेशी तन्तुओं को विभिन्न विन्यासों (Configurations) एवं संयोजनों (Combinations) में व्यवस्थित करके किसी भी प्रकार की गति प्राप्त की जा सकती है। अधिकतर बहुकोशिकीय प्राणियों में विभिन्न अंगों की गति तथा चलन के लिए पेशीय तन्तु पाये जाते हैं।


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