अजयगढ़ राज्य (रियासत) | Ajaygarh Riyasat History in Hindi

  अजयगढ़ राज्य  (रियासत) 

अजयगढ़ राज्य  (रियासत) | Ajaygarh Riyasat History in Hindi


अजयगढ़ राज्य : 

  • अजयगढ़ एक भौगोलिक क्षेत्र के रूप में पन्ना के उत्तर में स्थित था तथा 18 वीं सदी के प्रारंभ में यह पन्ना के राजा छत्रसाल के राज्य के अंतर्गत आता था । यहाँ केदार पर्वत पर लगभग 800 फीट की ऊँचाई पर एक मजबूत दुर्ग विद्यमान थाजिसमें स्थित एक शिलालेख के अनुसार इस दुर्ग का नाम जयगढ़ था। इसकी प्राचीर 3 गज चौड़ी है। इस दुर्ग का निर्माण इस क्षेत्र में बुंदेलों के आगमन के पूर्व ही हो चुका था। जैतपुर के राजा जगतराज ने सर्वप्रथम यह क्षेत्र अपने पुत्र पहाड़सिंह को जागीर के रूप में सौंपा था और जब पहाड़ सिंह ने जगतराज की मृत्यु होने पर जैतपुर पर बलात् अधिकार कर लिया थातब उनके विरुद्ध गुमान सिंह एवं खुमान सिंह ने विद्रोह कर दिया। इस असंतोष से बचने के लिये पहाड़ सिंह ने 1765 ई. में अजयगढ़ का क्षेत्र गुमानसिंह को जागीर के रूप में सौंपा था। हालाँकि गुमान सिंह ने अपना ठिकाना अजयगढ़ के स्थान पर बाँदा को ही बनाया था और उनके साथ इस समय उनके सेनापति नौने अर्जुन सिंह थे। गुमान सिंह को भी अपने भतीजे बख्त सिंह के विद्रोह का सामना करना पड़ा और उन्हें बाँदा का इलाका बख्त सिंह को देना पड़ा। इस तरह गुमान सिंह अजयगढ़ से शासन चलाने लगे।

 

  • अजयगढ़ राज्य पर भी बुंदेलखण्ड की अन्य रियासतों की तरह तत्कालीन परिस्थितियों का बड़ाप्रभाव था । यहाँ भी गद्दी के लिये निरंतर संघर्ष हो रहे थे। अभी गुमानसिंह और उसके भतीजे बख्त सिंह के मध्य समझौता हुआ ही था कि गुमान सिंह एवं बख्त सिंह पर उसके छोटे भाई चरखारी के शासक खुमान सिंह ने आक्रमण कर दिया। गुमान सिंह के नौने अर्जुन सिंह जैसा वीर सेनापति होने के कारण पनगेरी के युद्ध में उन्होंने खुमान सिंह को न केवल परास्त कर दिया बल्कि उसे मौत के घाट भी उतार दिया। इससे क्रुद्ध होकर खुमान सिंह के पुत्र विजयबहादुर ने हिम्मत बहादुर की शरण ली । अतः हिम्मत बहादुर एवं अली बहादुर को बाँदा - अजयगढ़ पर आक्रमाण का अवसर प्राप्त हुआ और उन्होंने 1790 ई. में बाँदा पर आक्रमण कर बनगाँव के युद्ध में नौने अर्जुन सिंह को मार डालाबख्त सिंह को दो रूपये गुजारा भत्ता निश्चित कर बाँदा से निष्कासित कर उस पर अपना कब्जा कर लिया | 44 गुमानसिंह के एकमात्र पुत्र मधुकरशाह की मृत्यु होने पर उन्होंने अजयगढ़ गद्दी के उत्तराधिकार के लिये 1791 ई. में बख्तसिंह को गोद ले लिया ।

 

  • राज्य की भीषण परिस्थितियों के मध्य गुमान सिंह 1792 ई. में स्वर्ग सिधार गये और अजयगढ़ गद्दी बख्तसिंह को प्राप्त हुई । बख्त सिंह को अजयगढ़ में अपने ही किलेदार तथा क्षेत्र में लूटपाट कर आतंक मचाने वाले लक्ष्मण दौआ के षडयंत्रों का सामना करना पड़ा। लक्ष्मण दौआ ने नये राजा पर दबाव बनाने के उद्देश्य से हिम्मत बहादर को अजयगढ़ पर आक्रमण के लिए उकसाया। अतः हिम्मतबहादुर ने 1803 ई. अपने डेन सेनापति कर्नल मिसिलबैक के माध्यम से अजयगढ़ पर आक्रमण कर दिया। होकर बख्तसिंह ने लक्ष्मण दौआ को अपने राज्य का कामदार नियुक्त कियाप्रशासन के अधिकार भी उसे सौंपे तथा उसे तीस हजार गौहरशाही रुपये वार्षिक प्रदान किये। बख्त सिंह राज्य इन स्थितियों से उबारना चाहता था। शीघ्र ही उसे यह अवसर प्राप्त हुआजब उसने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सहायता प्राप्त करने के लिये उनके साथ एक इकरारनामा किया। 45 अजयगढ़ के कामदार लक्ष्मण सिंह तथा कंपनी की ओर से जॉन बेली ने 9 जनवरी, 1806 ई. को एक समझौता कियाजिसके अनुसार अजयगढ़ नरेश बख्तसिंह की ओर से निम्नलिखित शर्तें स्वीकार की गईं. 

 

1. वह किसी भी चोरलुटेरेडाकु के साथ कोई संबंध नहीं रखेगा। 

2. वह अपने राज्य किसी चोरडाकु को शरण नहीं देगा। 

3. वह राजारामगोटी जमादारभीम दौआ आदि डाकुओं को शांति से जीवन जीने के लिये सार्वजनिक जीवन में लौटने के लिए जिम्मेदारी लेता है। 

4.वह कंपनी सरकार के भगोड़े अपराधी को पकड़कर कंपनी सरकार को सौंप देगा।  

5. वह अपने राज्यांतर्गत आने वाले मार्गों एवं घाटों की सुरक्षा करेगा। 

6.  वह जगतराज तथा पेशवा वाली हीरे की खदानों पर अधिकार नहीं करेगा। 

7. अपने राज्य में कंपनी सरकार की सेना के प्रविष्ट होने पर उसकी सहायता करेगा। 

8. वह करार के दो वर्ष पश्चात् दुर्ग को खाली कर देगा तथा चार हजार रुपये कर दिया करेगा। 

9. वह अपना एक विश्वस्त व्यक्ति कंपनी सरकार के पास सेवा के लिये रखेगा।

 

  • इस समझौते के आधार पर कंपनी सरकार ने 1807 ई. में बख्त सिंह को 608 गाँवोंजिनमें कोटरा के भी क्षेत्र शामिल थेपर शासन करने के लिये अजयगढ़ राज्य की सनद प्रदान कर दी। लक्ष्मण दौआ ने जब दुर्ग पर अपना अधिकार नहीं छोड़ा तथा उसे खाली नहीं किया और क्षेत्र में लूटपाट की गतिविधियों को जारी रखातब 1808 ई. में कंपनी सरकार ने उसे प्राप्त होने वाले वार्षिक तीस हजार रुपये पर प्रतिबंध लगा दिया। बख्त सिंह स्वयं भी लक्ष्मण दौआ के विरुद्ध कार्यवाही चाहता थाअतः उसने पेंशन बंद करने के फैसले को न्यायोचित नहीं माना। अतः कंपनी सरकार ने कर्नल मार्टिण्डेल के नेतृत्व में 1808 ई. में अजयगढ़ दुर्ग में मौजूद लक्ष्मण दौआ पर आक्रमण कर दिया । " यह एक भीषण संघर्ष थाक्योंकि केदार पर्वतभौंता पहाड़ एवं रिंगोली पहाड़ी के विषय में कंपनी के सैनिकों को पर्याप्त भौगोलिक ज्ञान नहीं था और लक्ष्मण दौआ के साथियों सरदार खासकलमसरदार सिंह तथा अयोध्याप्रसाद यादव आदि अपनी फौज के साथ अत्यन्त सुविधाजनक स्थिति में कंपनी की सेना पर आक्रमण कर सकते थे। फिर भी कंपनी की सेना ने अभियान जारी रखा और अंततः 13 फरवरी, 1809 को अजयगढ़ दुर्ग पर आधिपत्य कर लिया। लक्ष्मण दौआ ने अंग्रेजों के समक्ष संमर्पण कर दिया। इस युद्ध में कंपनी सरकार के कर्नल लेफ्टीनेंट जैमीसन सहित 28 सैनिक मारे गये तथा लक्ष्मण दौआ की ओर से साठ से भी अधिक सैनिकों को मौत के मुँह में जाना पड़ा। हालाँकि लक्ष्मण दौआ न्याय माँगने के लिये कलकत्ता स्थित कंपनी के राजनीतिक प्रतिनिधि जॉन रिचर्डसन से मिलने गया था।

 

अजयगढ़ दुर्ग पर बख्त सिंह का आधिपत्य हो गया तथा कंपनी सरकार ने अब बख्तसिंह के साथ नये सिरे से 1812 ई. में एक इकरारनामा किया, 47 जिसके निम्नलिखित प्रावधान थे -

 

1. वह किसी भी चोरलुटेरेडाकु के साथ कोई संबंध नहीं रखेगा।

2. वह अपने राज्य किसी चोरडाकु को शरण नहीं देगा। 

3. वह राजाराम पिण्डारा डाकु को पकड़कर कंपनी सरकार को सौंपेगा। 

4 वह कंपनी सरकार द्वारा सुझाये जाने पर राजाराम को वही गॉव सौंप देगा। 

 5 वह कोटरा के गोपालसिंह के विद्रोह का दमन करेगा। 

6. वह कंपनी सरकार के भगोड़े अपराधी को पकड़कर कंपनी सरकार को सौंप देगा । 

7. वह अपने राज्यांतर्गत आने वाले मार्गों एवं घाटों की सुरक्षा करेगा । 

8. अपने राज्य में कंपनी सरकार की सेना के प्रविष्ट होने पर उसकी सहायता करेगा। 

9. वह अपना एक विश्वस्त व्यक्ति कंपनी सरकार के पास सेवा के लिये रखेगा। 

10. वह तीस हजार रूपये वार्षिक पेंशन की माँग नहीं करेगा। 

11. वह उस अधिकारी कर्मचारी को सेवा से बर्खास्त कर देगाजो कंपनी सरकार के किसी अधिकारी के साथ अपमानजनक व्यवहार करेगा।

 

इस प्रकार अजयगढ़ राज्य ने अपनी संप्रभुता अंग्रेजों के अधीन कर दीकिंतु बख्त सिंह अंग्रेजों की सहायता एवं सुरक्षा पाकर अपने राज्य पर निष्कंटक राज्य कर सकता था। फिर भी उन्हें संकटों से मुक्ति अभी नहीं मिली थी। बख्त सिंह द्वारा अंग्रेजों से प्राप्त सनद में कोटरा जागीर को भी शामिल करा लिया थाकिंतु वह जागीर जसौ राज्य के प्रशासक एवं मूरत सिंह के संरक्षक गोपाल सिंह की थीं अतः गोपालसिंह ने विद्रोह कर दिया तथा लूटपाट प्रारंभ कर दी। बख्तसिंह के समक्ष गोपाल सिंह को संतुष्ट करने के अलावा कोई विकल्प नहीं थाअतः उन्होंने गोपाल सिंह को छतरपुर के पश्चिम में स्थिति धसान नदी के तट पर गरौंली की जागीर दे दी। इस प्रकार गरौंली राज्य अस्तित्व में आया ।

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