मध्यकालीन बुन्देलखण्ड का सांस्कृतिक- इतिहास | Bunelkhand Cultural History in Hindi

मध्यकालीन बुन्देलखण्ड का सांस्कृतिक- इतिहास

मध्यकालीन बुन्देलखण्ड का सांस्कृतिक- इतिहास | Bunelkhand Cultural History in Hindi


 

मध्यकालीन बुन्देलखण्ड का सांस्कृतिक- इतिहास

सांस्कृतिक इतिहास के अंतर्गत मानवीय क्रियाओंउसकी सृजनशीलताउसकी सम्वेदना का अध्ययन किया जाता है। इस शीर्षक के अंतर्गत संक्षेप में मध्यकालीन बुन्देलखण्ड के राज्यों की साहित्यकलालोकप्रवृत्ति का विवरण दिया जाएगा।

 

मध्यकालीन बुन्देलखण्ड का साहित्य :- 

हिन्दी साहित्य के इतिहास को चार कालों में विभाजित किया गया हैये क्रमशः हैंवीरगाथा कालभक्तिकालरीतिकाल एवं गद्यकाल । मध्यकालीन इतिहास के साहित्य का अध्ययन भक्तिकाल एवं रीतिकाल (1318-1843 ई.) के बीच में पड़ता है। इतिहास के इस काल की साहित्यिक प्रवृत्ति में और श्रृंगार दोनों के दर्शन होते हैं। इस काल में इतिहास के आधार को बीच में रखकर भी काव्य ग्रंथ लिखे गए थे और ऐसे ग्रंथ भी लिखे गये थेजिनमें समन्वयवादी भावना भी देखने को मिलती है।

 

  • बुन्देला शासकों में ओरछा के मधुकरशाहरामशाहबार चंदेरी के देवीसिंहदतिया के - दलपतराव और पन्ना के छत्रसाल बुन्देला स्वयं कवि थे। इनमें देवीसिंह बुन्देला संस्कृत भाषा के विद्वान और जानकार थे। ओरछा राज्य के प्रसिद्ध कवियों में रुद्रप्रताप बुन्देला के काल के खेमराज ब्राह्मण और मंसाराम सिद्ध मधुकरशाह वीरसिंहदेव के समय के भक्तकवि हरिराम व्यासमहाकवि केशव मिश्रबलभद्र मिश्रबलभद्र कायस्थ और प्रवीणराय नाम की नर्तकी आदि थीं। महाकवि केशव के तीस प्रसिद्ध ग्रंथ हैंइनमें वीरचरित्रतन बावनी और जहाँगीर जसचंद्रिका ऐतिहासिक आधार पर लिखे गये ग्रंथ हैं। ओरछा राज्य के अन्य प्रमुख कवियों में बिहारीदास मिश्रसुखदेवमेघराज प्रधानसुदर्शन कायस्थजैतपुर के मंडन मिश्रसंस्कृत काव्य के रचनाकार गोस्वामी शिवानंद भट्टमोहन भट्टरघुराम कायस्थगोविन्द मिश्र आदि थे। 

 

ईश्वर आराधना में लीन रहने वाले और कवित्त रचने वाले निपट बाबा चंदेरी राज्य के रहने वाले थे और वे सन् 1673 ई. में दक्षिण की मुगल राजधानी औरंगाबाद में जाकर बस गए थे। निपट बाबा की सात ज्ञात रचनायें हैंइनमें निपट-निरंजनआलमगीर (औरंगजेब) से संवाद बाबा की प्रसिद्ध रचना है। उदाहरण-

 

काया जाना माया जाना बहन और भैया जाना, 

जाना मरदाना जनाना भी जाना है। 

ऐश जाना तैश जाना दरबार बहस जाना

पुलाव बिरयानी खाना जाना खान खाना है ।। 

शत्रु जाना मित्र जाना पवित्र अपवित्र जाना

अंबारी औ छत्र जाना म्याना और खजाना है। 

कै "निपट निरंजन"सुनो आलमगीर

उसे नहीं जाना कभीजिसके पास जाना है।

 

दतिया राज्य के प्रसिद्ध कवि लेखकों में फारसी में इतिहास का ग्रंथ लिखने वाले "तारीख-इ- दिलकशा" के लेखक भीमसेन सक्सेनाकवि जोगीदास और सेंवढ़ा के जागीरदार पृथ्वीसिंह बुन्देला उपनाम "रसनिधि" तथा महात्मा अक्षर-अनन्य का नाम अग्रगण्य है। रसनिधि के लगभग 12 ग्रंथ उपलब्ध हैंइनमें रसनिधि सागरउनका प्रसिद्ध ग्रंथ है। अक्षर अनन्य को रसनिधि का गुरू माना जाता हैइनके लिखे 28 ग्रंथ उपलब्ध हैं। पन्ना के शासक छत्रसाल बुन्देला से इनका साहित्यिक पत्राचार भी चला था। छत्रसाल ने अक्षर - अनन्य को अपने राज्य में आने के लिए निमंत्रित किया था-

 

हौ अनन्य नहिं अन्य कोउअक्षर छता अनन्य । 

इत रस में रस मानिबीआय कीजिबी धन्य ।। 1.

इसके उत्तर में अक्षर अनन्य ने लिखा था-  

धाम की टेक तुम्हारे बंधी नृपदूसरी बात कहैं दुख पावतु । 

काहू की टेक न राखत हैं हमजैसे को तैसौ प्रमान बताबत। 

मानहि कोउ भलौ कै बुरौनहिं आसरौ काहू को चित्त में ल्यावत 

टेक विवेक सौं बीच बड़ौहमकौं किहि कारन राज बुलाबत। 

पन्ना के छत्रसाल बुन्देला के लिखे कवित्तदोहासवैयाकुण्डलियाँछप्पय आदि मिलते हैं। उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैंरामयश चंद्रिकाहनुमद विनयअक्षर-अनन्य प्रश्न और तिनको उत्तरनीति मंजरीछत्र - विलास महाराज छत्रसाल जू कौ काव्यराज-विनोदगीतों का संग्रह । छत्रसाल के नीति परक दोहे प्रसिद्ध हैं-उदाहरण

 

रैयत सब राजी रहे ताजी रहै सिपाहि । 

छत्रसाल तेहि राज्य कौ बार न बांको जाहि ।। .

 

छत्रसाल के समय के अन्य प्रसिद्ध कवियों में ऐतिहासिक काव्य ग्रंथ छत्रप्रकाश के रचियता गोरेलाल तिवारी उपनाम "लालकविमहाकवि भूषणजिनकी पालकी में छत्रसाल ने स्वयं कंधा लगाया था और धामी सम्प्रदाय के स्वामी प्राणनाथ का नाम अग्रगण्य है। भूषण की कविता "साहू को सराहौं कि सराहौं छत्रसाल कौ" प्रसिद्ध और भावोत्तेजक रचना है। धामी सम्प्रदाय के मुख्य धर्म ग्रन्थ "कुलजम - स्वरूपमें स्वामी प्राणनाथ की वाणियाँ संकलित हैं। स्वामी प्राणनाथ को पन्ना में संरक्षण ओर सम्मान देकर पन्ना के छत्रसाल बुन्देला ने एक कुशल और मँजे हुए राजनेता का उदाहरण प्रस्तुत किया था। वे समन्यवयवादी भावना के पक्षधर और मुगल सत्ता को ललकारने वाले संत थेतत्कालीन समाज पर उनका गहरा प्रभाव था 

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.