मध्यप्रदेश इतिहास :मुगलकाल में प्रशासन, समाज और संस्कृति | Mugal History in MP

मध्यप्रदेश इतिहास :मुगलकाल में प्रशासनसमाज और संस्कृति

मध्यप्रदेश इतिहास :मुगलकाल में प्रशासन, समाज और संस्कृति | Mugal History in MP
 

मध्यप्रदेश इतिहास :मुगलकाल में प्रशासन, समाज और संस्कृति परिचय 

  • पानीपत के प्रथम युद्ध के पश्चात् बाबर ने भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी। स्थापना के पश्चात् ही उसे निरन्तर प्रादेशिक शक्तियों से संघर्ष करना पड़ा। उस विकट राजनीतिक परिस्थिति में उसने बड़ी सावधानी से यहाँ के प्रशासन को चलाना चाहा। अपने अल्प समय में उसने यहाँ की सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था को यथावत् रखना ही उचित समझा। जहाँ तक प्रादेशिक शासन का सवाल हैकुछ ऐसे प्रदेश भी थे जिन पर मुगल सत्ता का अधिकार तो हो गया थापरन्तु उनके प्रशासन का उत्तरदायित्व स्थानीय राजाओं और सरदारों पर रहा। बाबर ने इन स्थानीय सरदारों को असंतुष्ट करना उचित नहीं समझा क्योंकि अपनी जागीरों में वे बहुत ही शक्तिशाली एवं प्रभावशाली थे। उसके निजी अमीर भी उन स्थानों पर जाना नहीं चाहते थे। बाबर ने उन स्थानों को विजय कर पुनः उन राजाओं को वापस कर दिया किन्तु उसने वहाँ मालगुजारी वसूल करने के लिये अपने शिकदार नियुक्त किये। मुगलों की सत्ता मध्यप्रदेश में सबसे पहले चंदेरी पर बाबर के समय स्थापित हुई । चन्देरी को विजित करने के बाद बाबर ने वहाँ की मालगुजारी में से 50 लाख खालसा घोषित कर दी और वहाँ अपना शिकदार नियुक्त किया तथा चन्देरी के शासन संबंधी अधिकार अहमद शाह को प्रदान कर ऐसा करने के पीछे उसका उद्देश्य यह था कि वह मालवा और गुजरात के राज्यों को अपने-अपने झगड़ों में व्यस्त रखना चाहता था। अपने साम्राज्य के पश्चिमी प्रदेशों की रक्षा के लिये बाबर की यह एक प्रशासनिक चाल थी।

 

  • 'सिंहासनारोहण के समय हुमायूँ को विरासत में जो साम्राज्य प्राप्त हुआ था वह उसे व्यवस्थित ही नहीं कर पाया था कि शेरशाह के विद्रोह स्वरूप उसे सब कुछ त्यागना पड़ा। अपनी विरासत को उसने बढ़ाने का प्रयत्न अवश्य किया था। इस तारतम्य में उसने 1536 ई. में मालवा तथा गुजरात पर अधिकार कर लिया था। परन्तु मालवा गुजरात कुछ ही समय में उसके अधिकार से निकल गये । अतः मालवा में प्रशासनिक सुधार करने का उसे अवसर ही नहीं मिला ।

 

  • बाबर एवं हुमायूँ द्वारा समयाभाव के कारण प्रशासनिक व्यवस्था में कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं किये गये । हुमायूँ की मृत्योपरान्त अकबर मुगल सम्राट बना। मालवा की इस अस्थिर राजनीतिक स्थिति ने मुगल बादशाह अकबर को मालवा की ओर आकर्षित किया। बाज बहादुर को 1562 ई. में दूसरी बार पराजित कर अकबर ने मालवा पर स्थायी मुगल आधिपत्य स्थापित किया और मालवा को अपने साम्राज्य का सूबा बना दिया गया। 

 

  • इसके बाद 1564 ई. में गढ़ा कटंगा पर मुगल सैन्याधिकारी आसफखाँ ने आक्रमण किया और गढ़ा राज्य की प्रशासिका दुर्गावती को पराजित करके गढ़ा राज्य पर अधिकार कर लिया। गढ़ा राज्य के अधिकांश क्षेत्र को मालवा सूबे में शामिल कर दिया गया और कुछ हिस्सा बाद में बरार सूबे में मिला दिया गया।

 

मुगलकाल में प्रशासन तंत्र

 

मुगल सूबे 

  • अकबर ने अपनी प्रशासनिक व्यवस्था के तहत प्रान्तीय प्रशासन पर सर्वप्रथम ध्यान दिया। 1580 ई. में उसने सारे मुगल साम्राज्य को 12 भागों में बाँट दिया। इन भागों को सूबों का नाम दिया गया। ये सूबे थे इलाहाबादआगराअवधअजमेरअहमदाबादबिहारबंगालदिल्लीकाबुललाहौरमुल्तान तथा मालवा । दक्षिण में साम्राज्य विस्तार के तहत विजित प्रदेशों में खानदेशबरार और अहमदनगर के तीन सूबे और निर्मित किये गये थे।

 

  • इस प्रकार अकबर द्वारा स्थापित सूबों की संख्या 15 हो गई थी। जहाँगीर के शासनकाल में सूबों की संख्या यही बनी रही। मुगल सम्राट शाहजहाँ द्वारा थट्टा उड़ीसा और कश्मीर इन तीन स्वतंत्र सूबों का निर्माण किया गया। इससे यह संख्या 18 हो गई थी। औरंगजेब द्वारा गोलकुण्डा और बीजापुर विजय के पश्चात यह संख्या बढ़कर 20 हो गई थी। इन सूबों का क्षेत्रफल प्रायः स्थायी नहीं था। साम्राज्य की आवश्यकतानुसार इनमें परिवर्तन होते रहते थे। अकबर द्वारा निर्मित प्रत्येक सूबे में एक सिपहसालारदीवानबख्शीमीर अदलसद्रकोतवालमीर-ए-बहर व एक वाकियानवीस की नियुक्ति की थी।

 

  • मुगल दरबार के इतिहासकार अबुल फजल की कृति आइन-ए-अकबरी में अकबर के समय के सूबोंसरकारों और महालों का विस्तृत विवरण दिया गया है। इसमें से यदि उस इलाके को निकालें जो वर्तमान मध्यप्रदेश में है तो पता चलता है कि अकबर के समय वर्तमान मध्यप्रदेश में पूरा सूबा मालवाआगरा सूबा की ग्वालियर सरकारनरवर सरकार और बयाबां सरकार के इलाकेइलाहाबाद सूबा की कालिंजर सरकार का अजयगढ़ महालअजमेर सूबा की चित्तौड़ सरकार के जीरन और नीमच महालबरार सूबा की खेरला सरकार का ज्यादातर हिस्सा आता था। मालवा सूबा की हंडिया सरकार और बीजागढ़ सरकार को शाहजहाँ के समय खानदेश के सूबे में शामिल कर लिया गया था। अकबर द्वारा मालवा सूबे के अन्तर्गत 12 सरकारें उज्जैनमाण्डूसारंगपुरबीजागढ़चंदेरीनन्दुरबारमन्दसौरहण्डियागढ़ागागरोनरायसेन तथा कोटड़ी पिड़ावा स्थापित की गई थीं। इनमें नन्दुरबार और गागरोन की सरकारों को छोड़कर बाकी 10 सरकारों का इलाका वर्तमान मध्यप्रदेश के अंतर्गत आएगा। इन सूबों को पुनः सरकारों में विभाजित किया गया था । प्रत्येक सरकार परगनों में विभाजित थी व परगने पुनः महाल एवं गाँवों में विभाजित थे जिन्हें मौजा व नरुला भी कहा जाता था।

 

  • उज्जैन सरकार में तब 10 महाल यथा उज्जैनउन्हेलबदनावरपान बिहारदेपालपुररतलामसांवेरकम्पेलखाचरोदनोलाईबड़नगर आदि थे इनमें उज्जैन सरकार मुख्यालय था। इन 10 महालों में 9,25,622 बीघा जमीन 4,38,27,960 दाम राजस्व (10,95,699 रुपये) सयूरगल 3,81,816 दाम, 3,250 घुड़सवार तथा 11,170 पैदल सैनिक तथा विभिन्न जातियाँ थी। 

 

  • माण्डू सरकार में 16 महाल अमझेराबड़ोराबेतमान हासिलपुरधारचोलीमहेश्वरदिकठानधर्मगाँवसागोरसनासीकोतरामनवारानालछा नवाली तथा दो महाल सहित माण्डू था जो सरकार मुख्यालय भी था। इन महालों की कुल मिलाकर 2,29,969 बीघा 15 बिस्वा जमीन थी, 1,37,88,994 दाम (3,44,724,85 रुपये) राजस्वसयूरगल 1,27,732 दाम 1,180 घुड़सवार, 2,526 पैदल सैनिक तथा विभिन्न जातिया थी । "

 

  • सांरगपुर सरकार के तहत 24 महाल जो कि आष्टाअकबरपुरआगराबीजलपुरपपलूनभौंरासाबजोर (पचोर) बेनिआनबीवारतलेनखिलचीपुरजीरापुरशहरआआ हाजीसंदरसी सुसनेरशुजालपुरखराली (करापली) कायथकान्हड़ (खतर) करहारीमुहम्मदपुरनोगाम तथा सारंगपुर दो महालों सहित था जो कि सरकार मुख्यालय भी था। इन परगनों की भूमि 7,06,202 बीघा थी जिसका राजस्व 3,29,94,880 (8,24,872 रुपये) दाम था। 3,125 घुड़सवार सैनिक तथा 21,710 सैनिक पैदल थे। सांरगपुर सरकार मालवा की महत्त्वपूर्ण सरकार थी तथा यह बाजबहादुर के काल में मालवा सूबे की राजधानी भी रही थी ।

 

  • बीजागढ़ सरकार के अन्तर्गत अनजारी (अमजाद)उन सनावदअमलाता (झील) बामन गाँवबलकवाराबड़ोदराभीकनगाँवबलचारबासनियाबदरिया (बेरिया) बंगेला (नजदीक से हाथियों का जंगल) बीरोरटीकरी बड़ाजलालाबाद (सरकार मुख्यालय) चमारी किलादेवला खातियादेलानरहर सियोराना मंदिरसैंधवा ( शिकारगाह हाथियों की) सिलवाड़ासंगोरी (सगवी) कॅसरावेदखरगोन (हरोको)काजीपुरखुदगाँवमुहम्मदपुरलोआरिकोमंदवारा मंदिरमहोई (महोईपुर) मोरानीनिवालीनंगेलवाड़ी आदि 29 महाल थे। इन महालों की कुल जमीन 2,83,278 बीघा, 13 बिस्वा थी जिनकी आय 1,22,49,121 दाम (3,06,228.025 रुपये) थी 1,773 घुड़सवार सैनिक तथा 19,480 पैदल सैनिक थे।

 

  • चन्देरी सरकार में 61 महाल थे जिनकी कुल मिलाकर भूमि 5,54,277 बीघा, 17 बिस्वा थीजिसका राजस्व 3,10,37,783 दाम (7,75,944.572 रुपये) एवं सयूरगल दाम 26931 था। इसमें विभिन्न जातियों के 5,970 घुड़सवार सैनिक एवं 66.085 पैदल सैनिक थे। ये महाल थे - उदयपुरआरोनऐरनइटावाभौरासाबंदरझालाबाराबदरवासा एवं अहकबाझार (पाचार) बिली (बिजली) ताल बड़ौदा ( बड़वा सागर) तुमुनथट्टा बरियार (मनोहर थाना) धानवाड़ाचन्देरी दो महाल सहित (सरकार मुख्यालय)झाझोनजोर सिंगारचिरगाँवजोसाहदेओ हारीडूब जाकारदौराहलरानोदरोधाहीरार्धासरोजसाहजनशाढोरागुनागारजीयाबकोरोईकांगढ़ाकदरोलाकौलकोटकोजान लोआलामुंगावलीमिनाहमहदपुर आदि ।

 

  • गढ़ा (गढ़ा मण्डला) सरकार के अन्तर्गत 57 महाल आमोदगढ़बॉड़ी व बंगर (2 महाल) भटगाँवबारसनार्जमार (2 महाल) बेवार एवं नेजली (2 महाल) बखराबनाकार (2 महाल) बाबईबैरागढ़चांदपुर (2 महाल) जैतगढ़ (2 महाल) जेता दामोधाधमारी (2 महाल) देवगाँवदेवहार (2 महाल) दरकारारतमपुर (2 महाल) रानगढ़रानगढ़ एवं सिंगापुर (2 महाल) रासुलियासीतलपुरशाहपुर (2 महाल) गढ़ा (12 महाल सहित सरकार मुख्यालय) केदारपुरखरोलालांजीमण्डलाहरेरिया आदि थे। इनका राजस्व 1,00,77,080 दाम (2:91, 927 रुपये) था, 15,495 घुड़सवार तथा 2,54,500 पैदल सैनिक थे।

 

  • हण्डिया सरकार के अन्तर्गत 23 महाल थे जिनकी कुल भूमि 89.57,318) बांधा 18 बिस्वा थी जिसका राजस्व 1,16,10,969 दाम (2,90,274.225 रुपये) सयूरगल 1,57,054 था 4,268 घुड़सवार एवं 5,921 पैदल सैनिक थे। ये महाल ऊँचोंदअजल गाँवअमोधाबिजनोलापुनासा, 1. बलिरी (भीलखेड़ी). चाकोदाचाँपीनेरदेवासराजोरासत्वाससमरनी (टमरनी) श्यामगढ़सिवनीसन्दाहांमंडीमर्दानपुरनिमाँवरनौगाँवनिमानहरदाहाण्डिया (सरकार मुख्यालय) आदि थे।"

 

  • कोटड़ी पिड़ावा सरकार में 10 महिल थे- आलोटआवरबड़ोददागदुधलियासौर्यंतकोटरी पड़ावा और पास का महालगंगरार और घोसी इनकी कुल जमीन 1,90,039 बीघाराजस्व, 80,31,920 दार्मघुड़सवार 2,245 और पैदल सेना है, 500 थी। मन्दसौर सरकार के अन्तर्गत सत्रह महाल थे जिनकी कुल आमदनी 68,61,396 दाम (1,71,534. 9 रुपये) थी। 1194 घुड़सवार तथा 4,280 पैदल सैनिक थे। ये महाल थे रिंगनोदउज्जैनवासबसाड़बोधाधड़ोदबड़ायताबड़ोदाभटपुरा (भानपुरा) तालतितरोदजमिया वाड़ासुरखेड़ाग्यारसपुर कयामपुरकोटड़ीमन्दसौर (दो महाल सहित सरकार मुख्यालय) आदि ।

 

  • रायसेन सरकार के तहत निम्न महाल आसापुरी (6 महाल)भिलसाभौरी (बमोरी)भोजपुरबालाघाटथाना मीरखानजजोई (खजूरी) झाटनवीजलोदखिलजीपुरीधमौनीडिगवारदिलौददिवातिया (धानिया) रायसेन (सरकार मुख्यालय) सिवनी सरसिया, (बैरसिया) शाहपुरखिमलासाखैराकेसौरा खामखेराकारगढ़कोराईलहारपुरमहासंमद (धामंद) थे। 

 

  • सूबा आगरा की सरकार आगरा का हतकन्त महाल वर्तमान भिण्ड जिले के समकक्ष था। ग्वालियर का इलाका तब आगरा सूबे की ग्वालियर सरकार में था। ग्वालियर सरकार में 13 महाल थेजिनके नाम थे अनहोनबद्रहट्टाचिनौरझालोड़ाडण्डरोलीरायपुरसिरसेनीसमौलीसरबन्दाअलापुरग्वालियर और खाटोली थे। अबुल फजल 13वें महाल का नाम नहीं देता। इन महालों में 11,46,465 बीघा 6 बिस्वा जमीन थीभू-राजस्व 2,96,83,649 दाम था। घुड़सवार 24,900, पैदल 43,000 |

 

  • शिवपुरी जिला तब सूबा आगरा की नरवर सरकार का भाग था। नरवर सरकार में 5 महाल थेहमीन 3,94,353 बीघा भूराजस्व 42,33,322 दामघुड़सवार 500, पैदल 20,000 महाल इस प्रकार थे- बरोईबाउलीशिपुरीकोलारस और नरवर। 

 

  • मध्यप्रदेश के उत्तरी भाग का कुछ इलाका आगरा सूबा की सरकार में था। इसमें 27 महाल थे और जमीन 7,62,014 बीघाभू-राजस्व 84,59,296 दाम था और घुड़सवार 1,105, पैदल 18,000. महाल ये आंतरीआमवारीअतिवानऔटेलाबयाबानबनवारपरान्चाबदनूनभसान्दाचिनौरजरहालीजगतानदहाइलारुचाडारतनगढ़रोहेड़ा सोहान्दीकनौलाकरहराकहोदखंधाखेरीहाटकझाराकदवाहा और मउ दो महालों के नाम नहीं दिये गये हैं।

 

  • मध्यप्रदेश के पन्ना जिले का इलाका मुगलों के समय सूबा इलाहाबाद की सरकार कालिंजर के अजयगढ़ महाल में था । कालिंजर सरकार में 11 महाल थे और इसकी मापी गयी भूमि 5,08,273 बीघा 12 बिस्वा थी तथा भू-राजस्व 2,38,39,470 दाम था। घुड़सवार 1,210, हाथी 112, पैदल 18,100. कालिंजर के 11 महालों के नाम इस प्रकार हैं- उगुआसीअजयगढ़सेंवढ़ासिमौनीशादीपुररसनकालिंजरखरेलामहोबामौढा अबुल फजल ने 11 वें महाल का नाम नहीं दिया है।

 

  • मन्दसौर और नीमच जिले के इलाके उस समय सूबा अजमेर की चित्तौड़ सरकार के क्रमशः जीरन और नीमच और अन्य 3 महालों के अन्तर्गत थे। जीरन की जमीन 39,218 बीघा और भू-राजस्व 19,85,250 दाम था और नीमच आदि महालों की जमीन 21,416 बीघा तथा भूराजस्व 7,19,202 दाम था।

 

  • बैतूल जिले का मध्य और दक्षिणी हिस्सा और छिंदवाड़ा जिले का कुछ हिस्सा सूबा बरार की खेरला सरकार में आता था। सूबा बरार का गठन 1596 ई. में किया गया और खेरला को उसकी एक सरकार बनाया गया। खेरला सरकार में निम्नलिखित 35 परगने थे- आठनेरआष्टापाटनभैंसदेहीबरोरबासदपवनीलोहारीसातनेरसाईखेड़ाकसबा जजरोरमुण्डावीमुलताईदुर्गानारंगवाड़ीमालाबिलमालोईमांगासेवाजामखेरबेलवालीसिराईचखलीखावरवालदाबारीवैगाँवदेव थानासलोईरामजोकजनाबकजोमर और हबीसापुर। कुल भूराजस्व 1,76,00,000 दाम था। इसमें घुड़सवारों और पैदल सेना की संख्या नहीं दी गयी है।

 

  • आइन-ए-अकबरी के अनुसार खेरला के किले के पूर्व में चाटवा नाम का जमींदार रहता था जिसके पास 2000 घुड़सवार, 50 हजार पैदल और 100 हाथी थे। यह असल में देवगढ़ राज्य का पहला प्रसिद्ध शासक जाटबा था।

 

  • खानदेश सूबे के दो महाल असीर और मुहम्मदाबाद उर्फ मांजरोद मध्यप्रदेश में आते थेजिनकी आय क्रमशः 10,60,221 और 4,70,042 टंका थी।

 

  • इस व्यवस्था के तहत प्रत्येक सूबे में एक सिपहसालारदीवानबख्शीमीर अदलसद्रकोतवाल, मीर-ए-बहर व एक वाकियानवीस की नियुक्ति की जाती थी। इनके अतिरिक्त समय-समय पर आवश्यकतानुसार देसाईअमीन आदि की नियुक्ति भी की जाती थी।

 

सूबेदार :- 

  • सिपहसालार को सामान्य भाषा में सूबेदार कहा जाता था। अकबर के पश्चात्वर्ती शासकों के समय उसे नाजिमया नाजिम-ए-सूबा कहा जाता था। सूबे में सूबेदार की स्थिति सम्राट के प्रतिरूप में होती थी। सूबेदार की नुियक्ति स्वयं सम्राट 'फरमाने साब्ती के द्वारा करता था सामान्यतया सूबेदार उच्च वेतनभोगी मनसबदार हुआ करता था। इस पद पर सामान्यतः योग्य और विश्वासपात्र व्यक्ति ही चुने जाते थे। राजकुमारों एवं अमीरों के पुत्रों को सूबेदार बनाते वक्त उनकी योग्यता कोई मायने नहीं रखती थीऐसी स्थिति में उनकी सहायता के लिये परामर्शदाता की नियुक्ति की जाती थी जिनकी सलाह मानने को वे बाध्य होते थे। कहीं-कहीं परामर्शदात्री समिति भी सूबेदार की सहायता हेतु निर्मित की जाती थी। परामर्शदाता को 'अलालिककहा जाता था । अन्तरिम सूबेदारों की नियुक्ति की व्यवस्था भी उस समय थी ।

 

  • प्रांत का प्रमुख प्रशासक होने के साथ ही सूबेदार प्रान्तीय सेना का प्रधान सेनापति भी होता था अतः सूबे में शांति व्यवस्था के साथ ही उसे आदर्श जीवन जीना होता था। न्यायाधीश के रूप में उसे प्रारम्भिक और अपीलीय दोनों ही अधिकार थे। मृत्युदण्ड का मामला उसे केन्द्र को भेजना होता था परन्तु अपराधी द्वारा विद्रोह की स्थिति में उसे मृत्यु दण्ड का अधिकार था। 

 

  • उमरावों जागीरदारों व सूबे के अन्य अधिकारियों को आदेश थे कि वे सूबेदार की आज्ञा का पालन करें। ऐसा न करने की स्थिति में सूबेदार उन्हें दण्डित करने का अधिकार रखता था । इस प्रकार स्पष्ट है कि सूबेदार का पद मुगलकाल में विशेष महत्त्व का पद था ।

 

फौजदार :- 

  • सरकार में शासन का मुख्य प्रशासक फौजदार कहा जाता था। उसकी नियुक्ति "फरमान - ए - साब्ती" नामक शाही फरमान द्वारा होती थी। वह जिले में सूबेदार का प्रतिनिधि व जिला प्रमुख होता थावह अपना कार्य सूबेदार के निर्देशानुसार करता था। परन्तु उसके द्वारा सम्राट को सीधे पत्रों द्वारा सूचना भेजी जाती थी। इस कारण इस पद की प्रतिष्ठा अधिक थी। फौजदार के 3 प्रमुख कार्य थेजिले की शांति व्यवस्था बनाए रखनासैन्य नियंत्रण रखनामालगुजारी के एकत्रीकरण में अमलगुजार को सहायता देना ।

 

  • इसके अतिरिक्त फौजदार को जिले के देहाती इलाकों की सुरक्षाचोरोंडकैतोंडाकुओंविद्रोहियों का दमनमार्ग सुरक्षायात्रियों व्यापारियों की सुरक्षा कर गाँवों को अमनचैन प्रदान करना । इस कार्य के लिये फौजदार अपने योग्य सहायक अधिकारियों की देहातों में नियुक्ति कर उनके अधीन काफी मात्रा में सैनिक रखता थाताकि कार्यपूर्ति अविलम्ब हो सके।

 

कोतवाल :- 

जिले के मुख्य नगर का प्रशासन कोतवाल के हाथों में रहता था जो फौजदार के अधीन होता थाऔर उसी के निर्देशानुसार कार्य करता था। उसके वही कार्य होते थे जो प्रांतीय कोतवाल के होते थे। कोतवाल नगर की पुलिस का प्रधान और नगर का होता था। इसके कार्यों की जानकारी आइन-ए-अकबरी से भी प्राप्त होती है। इसमें आइन-ए-कोतवाल में उसकी कार्यसबंधी जानकारी है -

 

1. अपने क्षेत्र की निगरानी एवं शांति व्यवस्था बनाये रखना, 

2. बाजार पर नियंत्रण रखना, 

3. लावारिस सम्पत्ति की देखभाल व उसका वैध निपटारा

4.लोगों के आचरण का ध्यान व अपराध नियंत्रण  

5. सामाजिक कुरीतियोंसतीप्रथा आदि की रोकथामशमशानबूचड़खाना आदि की व्यवस्था करना

 

मेण्डलेस्लों का कथन है कि कोतवाल सम्राट की अंतरंग सभा का सदस्य होता थाएवं मनुची के अनुसार वह अपने कार्यों के संपादन हेतु हलालखोरों (भंगियों) से मुखबिरी का काम लेता था । क्योंकि कोतवाल को आदेश था कि वह गुप्तचरों की नियुक्ति करे अपने क्षेत्र को मोहल्लों में वर्गीकृत करे व उनमें एक-एक मुखिया नियुक्त करे। यदि वह अपराधियों को पकड़ पाने में असमर्थ रहता तो उसे स्वयं ही इसकी क्षतिपूर्ति करनी होती थी । थेवेनो ने लिखा है कि इसी कारण उसके सहायक रात्रि में 3 बार मोहल्लों की गश्त लगाते थे ।

 

फिर भी सरकार का मत है कि  समस्त उत्तरदायित्वों के बावजूद भी इसमें संदेह नहीं कि - कोतवाल अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में कोई कठिनाई अनुभव नहीं करते थे।

 

अकबर के शासनकाल में प्रत्येक नगर में एक कोतवाल होता थानियुक्ति केन्द्र मीर-ए-आतिश की संस्तुति व उसकी मोहर लगी सनद के द्वारा होती थी. इसके पास 100 पैदलों के अलावा 50 घुड़सवारों का एक निजी सैन्य दल भी होता था।

 

शिकदार :- 

सरकार के बाद प्रशासनिक इकाई परगना थीजहाँ का प्रमुख प्रशासक शिकदार होता था। शेरशाह के काल में प्रत्येक परगने में एक शिकदार होता थायह मुगलकाल में भी यथावत् रहा। सम्राट अकबर के काल में भी प्रत्येक परगने में शिकदार की नियुक्ति की जाती थी। अकबर ने शिकदार के कार्यादेशों में -

 

1. परगने में शांति स्थापित करना, 

2. लगान वसूली में आमिल को सहायता देना

3. फौजदारी मामलों को देखना, 

4. शासनादेशों को परगने में कार्यान्वित करवाना, 

5. परगने की जनगणना एवं जनजीवन संबंधित सूचनाएँ एकत्र करना, 

6.परगने में आने वाले बाहरी लोगों की जानकारी रखना आदि कार्य थे।

 

यह परगने में फौजदार व कोतवाल दोनों का प्रतिनिधित्व करता था। इससे निचले स्तर पर मुकद्दमकारकुनकानूनगो आदि थेजो सभी प्रकार के कार्य सम्पादित करते थेउनकी भूमिकाएँ मिलीजुली प्रकार की थी। इनके अतिरिक्त भी मुगलकालीन प्रशासन में अन्य कई पदाधिकारियों का विवरण प्राप्त होता है। वास्तव में मुगल प्रशासन में एक ही अधिकारी को कई विभिन्न भूमिकाएँ निभानी होती थी। कार्यानुसार वर्तमान प्रशासनिक वर्गीकरण की तरह कोई स्पष्ट रूपरेखा नहीं थी । उपरोक्त अधिकारियों के अलावा प्रान्तीय मुगल प्रशासन में निम्नलिखित अधिकारी होते थे -

 

खजानादार :- 

खजांची या खजानादार अतिमहत्वपूर्ण पद था। अकबर के काल में इसे फौतदार कहा जाता था। संपूर्ण कोष उसकी निगरानी में रखा जाता था। अबुल फजल के द्वारा फौजदार को खजानादार कहा गया था। यह सूबा सरकार एवं परगना तीनों स्तरों पर होते थे। खजानादार को परगना स्तर पर "दारोगा-ए-खजाना कहा जाता था।

 

आमिल और गुमाश्तेजो लगान किसानों से वसूल करते थेउसे खजानादार के पास जमा कराते थे तथा इसके सबूत के रूप में जमाराशि की रसीद प्राप्त करते थे । कोषालय को सूबेदार (राज्यपाल ) के निवास के निकट तथा ऐसे स्थान पर स्थापित होना चाहिए जहाँ दुर्घटना की कोई संभावना नहीं हो। यह खजानादार की सर्वप्रमुख जिम्मेदारी थी।

 

उसके कार्यो में राजस्व संग्रहणनगद प्राप्तियों की निरापद लेखा अनुरक्षणनगद धन का उचित वितरणकिसानों द्वारा लायी गई सोनेचाँदीताँबा हर मुद्रा को स्वीकार्य करना व किसी मुद्रा विशेष की माँग नहीं करनाकारकून एवं शिकदार को सूचना देकर नकद धन को उपयुक्त स्थान पर जमा करनातथा प्रति शाम उसकी गणना करना एक स्मरण पत्र बनाकर उस पर अमलगुजार के हस्ताक्षर करवानाप्राप्तियों की बही खाता का कारकुन के बहीखाते से तुलना कर अपने हस्ताक्षर से प्रमाणित करना । आमिल द्वारा कोषालय के दरवाजे पर अपनी मुहर लगाने के पश्चात् खजांनादार उसमें अपना ताला लगाता और आमिल व कारकून को विधिवत सूचना देकर ही उसे खोलता था । कोषागार में जमा धन का वितरणखजानेदार दीवान की पूर्वानुमति के बगैर नहीं कर सकता था।

 

अतः खजानादार एक अति महत्त्वपूर्ण पद था जो कि 17वीं 18 वीं सदी तक अपनी प्रकृति में ऐसा ही बना रहा।

 

बख्शी तथा वाकियानवीस :- 

बख्शी भी प्रांतीय प्रशासन का प्रमुख पदाधिकारी था। इसकी नियुक्ति मीर बख्शी की संस्तुति पर सम्राट द्वारा होती थीएवं नियुक्ति पत्र पर मीरबख्शी की मोहर लगी होती थी ।

 

बख्शी का प्रमुख कार्य प्रान्तीय सेना का अनुरक्षण था। सेना की भर्तीउनकी आवश्यकताओं एवं साज सज्जा की पूर्तिघोड़ों के दाग तथा अनुशासन संबंधी नियमों का विनियमन प्रांत के मनसबदारों की सूची रखनाउनके पशुओं का वार्षिक निरीक्षण कर वह उन्हें मनसब की शर्तों के पूरा होने का प्रमाण पत्र देनाइसी प्रमाण-पत्र के आधार पर ही मनसबदारप्रांतीय दीवान से वेतन प्राप्त कर सकते थे। अवकाश हेतु मनसबदारों को बख्शी को प्रार्थना-पत्र देना पड़ता था बगैर प्रार्थना पत्र के अनुपस्थित रहने वाले मनसबदार को बख्शी भगोड़ा घोषित करता था।

 

मनसबदार की मृत्यु होने पर प्रांतीय बख्शी उसकी जागीर पर तब तक अधिकार रखता थाजब तक कि मनसबदार का हिसाब साफ नहीं हो जाये। विद्रोह दमन एवं शांति व्यवस्था की स्थापना में वह सूबेदार की सहायता करता था।

 

बख्शी वाकियानवीस का भी कार्य करता थातथा सम्राट को प्रांत से जुड़ी समस्त सूचनाएँ प्रेषित करता था। एवं शासनाधिकारियों की भी सभी जानकारियाँ केन्द्र में पहुँचाता था तथा मालगुजारी की वसूलीसैनिक अभियानसूबे की शांति सुव्यवस्थाव्यापारियों की सुरक्षा इत्यादि सभी सूचनाएँगुप्तचरों तथा अन्य साधनों से केन्द्र को भेजता था ।

 

इस प्रकार वह अत्यंत महत्त्पूर्ण पदाधिकारी था जो सीधा केन्द्र से संपर्क में रहता था। इसके अतिरिक्त प्रांतीय व स्थानीय प्रशासन में अन्य कई कर्मचारी होते थेमीर बहरसवानेहनवीसहरकारामुहतसिबपुरोहितअध्यापकनहर अधीक्षक इत्यादि विभिन्न पद थे जिनसे सम्मिलित रूप में प्रशासकीय व्यवस्था का संचालन होता था। मुगलकालीन सभी सूबों में एक सी प्रशासनिक व्यवस्था थीअतः स्पष्ट है कि मालवा में भी उपरोक्त सभी विभाग व पदाधिकारी एवं कर्मचारी व्यवस्था संचालन करते थे।

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