बुरहानपुर का इतिहास और कला ईमारत महल मकबरा | Burhanpur History and Architecture

बुरहानपुर का इतिहास और कला ईमारत महल मकबरा

बुरहानपुर का इतिहास और कला ईमारत महल मकबरा | Burhanpur History and Architecture



बुरहानपुर का इतिहास और कला ईमारत महल मकबरा 

बुरहानपुर में मुगलों का आधिपत्य डेढ़ सौ साल तक रहा और इस दौरान एक अरसे तक यह सूबा खानदेश का और बाद में पूरे दक्खिन का सदर मुकाम रहा। मुगल अधिकारी अच्छे भवनों का निर्माण कराने के शौकीन थे इसलिए बुरहानपुर में मुगलों के जमाने में कई इमारतें बनीं। यहाँ उन इमारतों की जानकारी दी जा रही है। 

 

आहूखाना 

बुरहानपुर में ताप्ती नदी के किनारे जहाँ शाही किला बना हैवहाँ ताप्ती के दूसरे तट पर जैनाबाद में बना है आहूखाना याने मृगवन । इसे मुगल राजकुमार दानियाल ने तब बनवाया था जब वह खानदेश के सूबेदार के रूप में बुरहानपुर में था । आहूखाना तीन मीटर ऊँची दीवार से घिरा एक खुबसूरत बगीचा और सैरगाह था। इसे बाग आलमआरा भी कहा जाता था। इस विस्तृत क्षेत्र के भीतर बीच में आमने-सामने दो इमारतें हैं। मुख्य इमारत सत्रहवीं सदी के प्रारंभ की है और इसमें मोटी दीवारों से बने कमरों पर स्तूपाकार छत और इसके आसपास बने चार धारीदार गुम्बद उल्लेखनीय है आहूखाना के पास ही एक हौज है जिसके मध्य में एक चबूतरा और दर्जनों फव्वारे हैं। हौज में पानी लाने के लिये 20 कि.मी. दूर स्थित उतावली नदी महल गुलारा के जलाशय से भूमिगत पक्की नहर बनायी गयी थी।

  

अकबरी सराय 

मोहल्ला किला के अंडा बाजार की ताना गुजरी मस्जिद के पास मुगल सम्राट जहाँगीर के समय बनी अकबरी सराय है। सराय में जाने के लिये एक बड़ा प्रभावशाली दरवाजा है जिसके ऊपर मुगल बादशाह जहाँगीर के समय का एक फारसी शिलालेख है जिसमें कहा गया है कि यह सराय 1618 ई. 1627 ई. में अब्दुल रहीम खानखाना की सूबेदारी के समय बनी थी। दरवाजे से भीतर जाने पर एक लम्बा आयताकार मैदान दिखता है। जिसके चारों ओर कमरे बने है। सराय में कुल पैंसठ कमरे हैं ये कमरे ईट के बने हैं जिन पर प्लास्टर चढ़ा है। कमरों की छत पर उथले गुम्बद बने हैंपाँच कमरों की छत पर कुछ मुड़े हुए लोहे के मोटे पाईप लगे हैं जो शायद खिड़कियों की गैरहाजिरी के कारण हवा के लिये लगाये गये होंगे। इस सराय का जिक इंग्लैण्ड के राजा जेम्स प्रथम के राजदूत सर टॉमस रो ने भी किया है। उसने जहाँगीर के समय खानदेश के सूबेदार शाहजादा परवेज से बुरहानपुर में नवम्बर 1614 में भेंट की थी।

 

राव रतन हाड़ा का महल 

रतनसिंह हाड़ा जहाँगीर के शासनकाल में बुरहानपुर का प्रभारी था और उसने शाहजहाँ के विद्रोह के बुरहानपुर की रक्षा करने में अहम भूमिका अदा की थी। उसका महल बुरहानपुर शहर के बाहर एक ऊँचे स्थान पर है। अनगढ़ पत्थरों की दीवारों पर प्लास्टर किया गया है। इस दो मंजिला छोटे भवन में वास्तुशिल्प के हिसाब से कोई उल्लेखनीय तत्व नहीं है और यह एक प्रभावहीन इमारत है ।

 

जहाँगीरी हमाम 

मुगलकाल में निर्मित यह सार्वजनिक स्नानागर उस काल में प्रचलित सार्वजनिक स्नान व्यवस्था का एक उल्लेखनीय नमूना है। सार्वजनिक हमाम शहर की घनी बस्ती में अकबरी सराय के निकट जकवी मस्जिद के पीछे बना हुआ है। 

इस इमारत में जाने के लिये सीढ़ियो से नीचे उतरना पड़ता है। एक छोटे आंगन को घेरते हुये हमाम के कक्ष बने हुए हैं। पानी के वितरण के लिये स्नानगृहों में पाइप और फर्श में नालियाँ बनायी गयी हैं। स्नानागर में कुल सात कमरे हैं जिनकी छतों पर उल्टे कप की आकृति के उथले गुम्बद बने हुए हैं। इस हमाम का शिलालेख अब नागपुर म्यूजियम में है। इसे अब्दुर्ररहीम खानखाना ने प्रसिद्ध हमाम निर्माता मुहम्मद अली खुरासानी से बनवाया था ।

 

बुरहानपुर जल प्रदाय प्रणाली 

जहाँगीर के शासनकाल में अब्दुर्रहीम खनखाना की सूबेदारी के समय बुरहानुपर की विशाल आबादी के पेयजल की व्यवस्था के लिए एक जल प्रदाय निर्मित की गयी थी। इसके लिए सतपुड़ा की पहाड़ियों से बहने वाले भूमिगत जल को जमीन भीतर तीन स्थानों पर रोका गया। येथे सूखा भण्डार और चिंताहरम भण्डारा। इनमें से पानी सैकड़ों मीटर लम्बी सुरंगों के जरिये बुरहानपुर मूल भंडारशहर के विभिन्न भागों में पहुँचाया जाता था। इस भूमिगत सुरंगों में थोड़े-थोड़े अन्तर से कूपक बनाये गये। जहाँ से सफाई के लिए नीचे जाया जा सकता था। इन्हें कुण्डियां कहते हैं। आज भी इस जल प्रणाली से बुरहानपुर को पानी मिलता है।

 

शाहनवाजखान का मकबरा 

तराशे हुए काले पत्थरों से बना हुआ यह मकबरा बुरहानपुर की मुगल काल की इमारतों में सबसे प्रभावशाली और आकर्षक है। शाहनवाजखानअब्दुल रहीम खानखाना का बेटा था और बुरहानपुर का सैन्याधिकारी था। मकबरे के अहाते में जाने के लिए एक सादा किन्तु प्रभावी दरवाजा जिसके दोनों सिरों पर दो सादे गुलदस्ते है। दरवाजे की पुरी इमारत अनगढ़ पत्थरों से बनी है और प्लास्टर वाली है। इस दरवाजे से घुसते ही सामने शाहनवाज खान का मकबरा दिखता है।

 

करीब पौन मीटर ऊंचे चबूतरे के बीच में बने मकबरे में तराशे गये पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है वर्गाकार इमारत के चारों तरफ पाँच सुंदर मेहराबें बनी हैं जो बरामदे में पहुँचाती हैं। सामने की मेहराबों के ऊपर ब्रेकेटों की सुंदर कतार है जो मकबरे के चारों तरफ है। मकबरे के चारों कोनों पर सही अनुपात वाली अठपहली बुर्जियाँ बनी हैं जिनके ऊपरी हिस्से गुंबददार छतरी से सजे हैं। मकबरे के चारों कोनों पर बनी ये बुर्जियाँ और छतरियाँ मकबरे को खूबसूरत बनाती हैं। मकबरे के गुम्बद को जरूरी ऊँचाई देने के लिये बीच के कमरे के ऊपर चार दीवारें बनाकर उसके ऊपर अष्टकोणी ड्रम पर गुम्बद बनाया गया हैं जिसके चारों ओर छः गुलदस्ते बने हैं। गुम्बद के भीतर जो रंगीन बेलबूटे बनाये गये हैं वे भी सुंदर हैं और कई बेलबूटों के रंग ताजे लगते हैं। बीच के कमरे में शाहनवाज खान की कब्र है और उसके बाजू में उसके पौत्र की कब्र है जिसका नाम जहाँ अफरोज बताया जाता है।

 

शाहजहाँनी हमाम 

बादशाही किले के इलाके में जनाना स्नानागर या हमाम के अवशेष हैं। यह मुगल ईरानी शैली का हमाम कहलाता है। हमाम का फर्श संगमरमर का है जिसके बीच में अठपहला हौज है। हौज के -बीच में एक फव्वारा है। हमाम की पूर्व और पश्चिम की दीवारों पर मछली के छिलकों के समान डिजाइनें काटकर पानी को सुंदर ढंग से गिराने का काम किया गया है। पानी लाने के लिये मिट्टी की पाइपें दीवाल में चिन दी गयी हैं। यह पानी खूनी भंडारा से आता था। इसकी मेहराबदार छत पर कई चित्र बने हैं। इनमें से कुछ को इस सदी की शुरुआत में नया करने की कोशिश की गयी थी पर उसमें लापरवाही बरती जाने से नवीनीकरण का काम संतोषजनक ढंग से नहीं हुआ।

 

दानियाल का मकबरा 

मुगल शाहजादे दानियाल की अकाल मृत्यु बुरहानपुर में ही हुई थी। इसके मकबरे के अवशेष गुरुद्वारा बड़ी संगत के आगे बाएं तरफ अभी भी हैं। मकबरे के अवशेष एक विशाल क्षेत्र में फैले हुए हैं और उन्हें देखने से लगता है कि उसका मकबरा विशाल रहा होगा।

 

परवेज का मकबरा 

मुगल शाहजादे परवेज का मकबरा शनवारा गेट के आगे खण्डवा रोड के दाहिनी ओर की एक गली के किनारे खेतों के बीच गुमनाम सा खड़ा है। मकबरा चौकोर है और ठीक हालत में होने पर भी बिलकुल प्रभावशाली नहीं है।

 

खरबूजा महल 

इतवारा गेट से आगे आजाद नगर के पास दरगाह चुपशाहवली के पूर्व में बना खरबूजा महल एक छोटी लेकिन खुबसूरत इमारत है। कहा जाता है कि यह शाहजहाँ के बेटे शुजा की पत्नी बिलकिस जहाँ का मकबरा है। इस गोल इमारत के चारों ओर फांकें सी बनी होने के कारण इसे खरबूजा महल कहा जाता है। इमारत लगभग सवा मीटर ऊँचे चबूतरे पर बनी है। चबूतरा कमल के फूल की पंखुड़ियों की आकृति का है। इस पंखुड़ीदार छोटे चबूतरे के ऊपर जो मकबरा बना हैवह बाहर से बांसुरीदार ऊपर बरह फांकों का गुम्बद बना है जिसके शिखर पर कलश है। खरबूजा महल के अन्दरूनी हिस्से में रंगीन बेलबूटों की अद्भूत सजावट है। साढ़े तीन सौ सालों के बाद भी इन चित्रों के रंग फीके नहीं हुए हैं।

 

मुमताजमहल की कब्र 

1631 ई. में जब मुगल बादशाह शाहजहाँ की प्रिय पत्नी मुमताज महल की मृत्यु हुई थी तो अस्थायी तौर पर उसे आहूखाना के पीछे दफनाया गया था। उसकी खाली कब्र पर बने मकबरेमस्जिद और परस में गुसलखाना की इमारत के खंडहर मौजूद हैं। 6 माह बाद मुमताज के अवशेष बुरहानपुर से आगरा ले जाये गए थे।

 

महल गुलारा 

बुरहानपुर से लगभग बीस किलोमीटर दूर उतावली नदी पर मुगलों के समय साढ़े तीन मीटर ऊँचा एक बांध बनाया गया। इस मुख्य बांध के आगे कुछ मीटर दूर एक छोटा बांध है। इन दो बांधों के कारण दो स्तरों वाले जलाशय निर्मित हो गये हैं। नदी के दोनों तटों पर विश्राम मण्डप बनाए गए हैं जो एक से हैं और चबूतरे पर सादी इमारत के रूप में हैं। वास्तव में महल गुलारा इमारतों के लिये नहीं बल्कि उस स्थान की खूबसूरती के लिए उल्लेखनीय है ।

 

शाहजहानी ईदगाह 

यह ईदगाह बुरहानपुर से तीन किलोमीटर दूर बहादुरपुर रोड के दक्षिण में है। मुगल बादशाह शाहजहाँ के समय 1640 ई. में इस ईदगाह का निर्माण कराया गया। ईदगाह में पानी की व्यवस्था अब्दुर्रहीम खानखाना निर्मित जल प्रदाय प्रणाली से की गयी थी। तीन मीटर ऊँची चहारदीवारी से घिरी यह ईदगाह पूर्व-पश्चिम में 12 मीटर तथा उत्तर-दक्षिण में 600 फुट है। पश्चिमी दीवार में लगभग 40 सुंदर मेहराबें हैं।

 

दौलतखाँ लोदी का मकबरा 

गुरुद्वारा बड़ी संगत के पहले दिलावरखानी कहे जाने वाले इलाके में एक मकबरा है जिसे दौलतखाँ लोदी का मकबरा कहा जाता है। बादशाह शाहजहाँ के समय दक्खन के सूबेदार खानजहाँ लोदी ने अपने पिता दोलतखाँ लोदी की कब्र पर एक प्रभावशाली मकबरा बनवाया और उसके आसपास उद्यान भी बनवाया। पत्थर का बना यह मकबरा चौकोर है और चौकोर कमरे के ऊपर बना गुम्बद विशाल और प्रभावशाली है। इमारत अभी भी अच्छी हालत में है ।

 

जसवंत सिंह का महल

 

बुरहानपुर शहर से खण्डवा के मार्ग पर जाते समय बाएं तरफ एक कच्चा रास्ता बोरगाँव खुर्द को जाता है। इस बसाहट के आगे उतावली नदी के तट पर जसवंतसिंह के महलों के विस्तृत खण्डहर हैं। महल परिसर में दो विशाल बहुमंजिलें भवन हैं जिनकी दो मंजिलें शेष हैं। भवनों के सामने एक भव्य उद्यान रहा होगा। महल और उद्यान के लिए उतावली नदी से पानी चढ़ाने की अनोखी व्यवस्था है । उतावली से पानी पचास-साठ फुट ऊपर चढ़ाया जाता था फिर करीब सौ मीटर लंबी दीवार पर से होकर नाली द्वारा (एक्वाडक्ट) यह पानी महल तक पहुँचाया जाता था।

 

राजा जयसिंह की छतरी 

मिर्जा राजा जयसिंह की समाधि एक उल्लेखनीय स्मारक है। औरंगजेब के शासनकाल में मिर्जा राजा जयसिंह जब दक्षिण से लौट रहा था तो वह बुरहानपुर में रुका थादुर्भाग्यवश तभी 28 अगस्त 1667 ई. को उसकी मृत्यु हो गयी। यह छत्री बुरहानपुर से 7 कि.मी. दूर मोहना और ताप्ती नदियों के संगम पर है। बत्तीस खम्भों वाली पत्थर की इस सुंदर छतरी पर बने सुंदर गुम्बद के आसपास चार बड़े और चार छोटे गुम्बद है जिनसे छतरी की सुंदरता बढ़ गयी है। छतरी जयसिंह के के निगरानी में बनी थी।

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