प्राचीनकाल में मालवा का जनजीवन | Malwa Culture in History

प्राचीनकाल में  मालवा का जनजीवन

प्राचीनकाल में  मालवा का जनजीवन | Malwa Culture in History
 

प्राचीनकाल में मालवा का जनजीवन

मालवा को प्राचीनकाल से बहुत ही समृद्ध और गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत मिली थी। गुप्त शासकों की साहित्यिक और कलात्मक परम्परा को सभी क्षेत्रों में परमार शासक राजा भोज ने सैनिक गतिविधियों के बाद भी अवरुद्ध नहीं होने दिया। मालवा में साहित्यसंगीत और चित्रकला की परम्परा बहुत ही प्राचीन थी। मालवा के लोग भी इनमें गहरी रुचि रखते थे। यद्यपि अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के बाद कुछ समय तक मालवा के सांस्कृतिक जीवन को ग्रहण लग गया था किन्तु मालवा में स्वतंत्र मुस्लिम सत्ता की स्थापना के बाद यह विरासत पुनर्जीवित होकर सक्रिय हो गई। मालवा के सुल्तानों की उदार और सहिष्णु नीति के फलस्वरूप हिन्दू और मुसलमान दोनों घुल मिल गये तथा मालवा के सांस्कृतिक जीवन को सँवारने लगे ।

 

प्राचीनकाल में  मालवा का सामाजिक जीवन : 

प्राचीन सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप हिन्दू समाज मालवा में भी ब्राह्मणक्षत्रीयवैश्य और निम्न जातियों में विभाजित था। मुसलमानों का अपना अलग धर्म और व्यवस्था थीपर जैसा कि फरिश्ता लिखता है कि मालवा में हिन्दू और मुसलमान प्रेमपूर्वक भाईचारे के बन्धन में रहते थे.  दोनों ही एक दूसरे की धार्मिक और सामाजिक व्यवस्था का सम्मान करते थे। मन्दिरों का तोड़ा जाना और धार्मिक स्थलों को अपवित्र किया जाना जैसी घटनाएँ मालवा में उस युग में नहीं जानी जाती थीं। इसका परिणाम यह हुआ कि मालवा में मुगलों के पूर्व ही सामाजिक समन्वय प्रारंभ हो गया और दोनों जातियों ने एक दूसरे को गहराई तक प्रभावित किया। मालवा के राजपूत पूर्वाग्रह और दुर्भवाना से युक्त संकीर्ण हिन्दू जाति व्यवस्था से मुक्त थे। मुसलमानों के समान राजपूत भी अपने हरम में मुसलमान स्त्रियों को रखते थे और यह एक प्रथा बन गई थी। उस समय इसका विरोध मुसलमान इतिहासकारों ने किया न मालवा के मुसलमानों ने मुसलमानों ने भी बिना किसी संकोच के हिन्दुओं की प्रथाओं को अंगीकार कर लिया था ।

 

मालवा में गुजरात के सुल्तानोंशेरशाह और मुगल आक्रमण के समय अपने सम्मान की रक्षा के लिये हिन्दू और मुसलमान स्त्रियों ने सामूहिक जौहर किया। यद्यपि इस प्रथा का कोई भी समर्थन नहीं करता है फिर भी उस युग में भी इक्नबतूता के समान विद्वान यात्री ने इसे महान मानकर इसकी प्रशंसा की है। मालवा में भी भारत के अन्य भागों में प्रचलित बाल-विवाहबहुविवाह और सतीप्रथा प्रचलित थी । विधवा-विवाह के उदाहरण भी प्राप्त होते हैं। हिन्दू और मुसलमान दोनों जातियों में स्त्रियों का सम्मान किया जाता था।

 

मालवा में उच्च वर्ग शान-ओ-शौकत का जीवन व्यतीत करता था। इनमें सुल्तानअमीरराजपूत सरदार और जागीरदार थे। मध्यम वर्ग का जीवन सादगीपूर्ण और आडम्बर रहित था। ये सादा भोजन करते थे। शाकाहार और माँसाहार दोनों वर्गों में प्रचलित था। मदिरापान की आदत अमीरों और अन्य वर्ग में थी । किन्तु सुल्तान होशंगशाहमहमूद खिलजी प्रथमगयासुद्दीन इसके अपवाद थे। निम्न वर्ग का रहन-सहन बहुत सादा था। इनमें कृषक और मजदूर वर्ग था। इसका मुख्य भोजन रोटी - दाल और खिचड़ी होता था। इनका जीवन अभावों में भी सुखी था ।

 

प्राचीनकाल में मालवा का आर्थिक जीवन: 

मध्ययुग के फारसी इतिहासकारों का यह बहुत ही निराशाजनक पक्ष है कि इन्होंने मालवा के सामाजिक और आर्थिक जीवन पर प्रकाश डालने में बहुत कृपणता दर्शायी है। जहाँ इन्होंने सुल्तानों के दरबारी शान-ओ-शौकत और समारोहों का वर्णन किया हैवहाँ सामान्य वर्ग की दशा की उपेक्षा की है। परन्तु इब्नबतूता के वर्णनों तथा अबुल फजल के वर्णनों की तुलना करने पर ज्ञात होता है कि मालवा में कोई बहुत बड़ा परिवर्तन नहीं दिखाई देता है। यहाँ तक कि सुजानराय भण्डारी की "खुलासत-उत-तवारिख" और चातरमन की 'चाहर गुलशन में जो वर्णन मिलता हैवह अबुल फजल से मिलता-जुलता है। 

 

मालवा की भूमिउपजाऊ और समृद्ध थी। अच्छी वर्षा ने उसे अन्न से भरपूर कर दिया था। यहाँ की दोनों खरीफ और रबी की फसलें भरपूर कृषि पैदावार देती थीं। मालवा में अफीमगेहूँगन्नाआमतरबूज और अंगूर की पैदावार खूब होती थी। मालवा में काली मिट्टी होने के कारण उत्तम श्रेणी का कपास पैदा होता था। मालवा पान की पैदावार के लिए विख्यात थाजिसे दिल्ली तक भेजा जाता था। मालवा के आमों की मिठास ओर सुगंध की प्रशंसा जहाँगीर ने बहुत की है।

 

मालवा की वनोपज का भी उल्लेख मिलता है। यहाँ के वनों की सागौन की लकड़ी बहुत प्रसिद्ध है। वनों में अनेक फल जैसेखिरनीसीताफलइमलीजामुन बहुतायत से प्राप्त होते हैं। वनों से लाखशहद और मोम प्राप्त होता था। मालवा के वनों में अनेक जंगली जानवर हैं। जिनमें हिरनशेरचीतेसांभरजंगली भैंसें आदि हैं। शीहाब हाकिम और बाद में अबुल फजल के वर्णनों से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि मालवा के बीजागढ़ क्षेत्र में हाथी पाये जाते थे ।

 

प्राचीनकाल मालवा के वस्त्र - 

उद्योग बहुत उन्नति पर था। यह उद्योग उच्च वर्ग से लेकर मध्यम व निम्न वर्ग की आवश्यकताओं को पूरा करता था। मालवा की मसलिनरेशमऔर छींट (Printed Cloth) बहुत प्रसिद्ध था। अबुल फजल ने मालवा के हासिलपुर में बनने वाले कपड़े 'अमन और 'खासहका उल्लेख और प्रशंसा की है। "महमूदी" नामक कपड़ा सिरोंज में बनता था। मालवा में इस काल में धातु-उद्योग भी बहुत प्रगति पर था। लोहे और अन्य धातुओं से सैन्य सामग्री और उच्च कोटि के हथियार निर्मित होते थे। नलपुर विदिशा की तलवारें भारत भर में प्रसिद्ध थीं । अबुल फजल ने लिखा है कि शस्त्र बनाने वाले कारीगर मालवा के कई क्षेत्रों में थे विशेषकर धारउज्जैनरामपुरा में थे। रामपुरा में उच्च कोटि की तलवारेंभालेकटारेंचाकू और सरोतों का निर्माण होता था। इस काल में कीमती धातुओं के आभूषण के निर्माण में मालवा के स्वर्णकार और जौहरी बहुत दक्ष थे। ये स्वर्णकार उज्जैनधारविदिशा मन्दसौर और चन्देरी में थे और खूबसूरत आभूषणसोने के शमादानचाँदी के फूलदान (नरगिसदान) आदि का निर्माण करते थे। अबुल फजल ने आभूषणों की सूची आईने-अकबरी में दी है। स्वर्णवर्क का कार्य बहुत ही निपुणता से किया जाता थाइसका उल्लेख शीहाब हाकिम और जहाँगीर ने किया है। ये सोने-चाँदी की जरोनदारी का उल्लेख भी करते हैं। इनका निर्माण महेश्वरचन्देरी में मुख्य रूप से होता था ।

 

इस काल में मालवा ने आर्थिक समृद्धि का उपभोग किया। वहाँ भरपूर अन्न पैदा होता था । मालवा को अकाल व कमी का सामना नहीं करना पड़ा। मध्य में स्थित होने के कारण सभी व्यापारिक मार्ग उत्तर से दक्षिण और पश्चिम से पूर्व के लिए मालवा से होकर गुजरते थे। व्यापार व्यवसाय प्रगति पर था। मालवा की आर्थिक समृद्धि का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि मालवा के अनेक नगरों विशेषकर चन्देरी में सुन्दर और विशाल आवासीय भवन और भव्य बाजार थे। इब्नबतूता भी चन्देरी और धार को सुन्दर और बड़े नगर कहता है। बाबर ने चन्देरी के भव्य भवनों का वर्णन कर उनकी प्रशंसा की है।

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