मालवा में स्वतंत्र मुस्लिम सल्तनत | मालवा स्वतंत्र (1401 ई.) | Independent Muslim Sultanate in Malwa

मालवा में स्वतंत्र मुस्लिम सल्तनत (1401 ई. से 1562 ई. तक )

मालवा में स्वतंत्र मुस्लिम सल्तनत | मालवा स्वतंत्र (1401 ई.) | Independent Muslim Sultanate in Malwa

 

 

परमार शासकों के पतन के बाद दिल्ली सल्तनत के अधीन मालवा के इतिहास को अन्धकारमय युग ही कहा जाना चाहिए। मालवा में गोरी राजवंश की स्थापना के साथ ही मालवा का इतिहास पुनः चमत्कृत हो उठा। मालवा के राजनीतिक, प्रशासनिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों में गतिशीलता आयी और जनजीवन में विश्वास जाग्रत हुआ।

 

दिलावर खाँ गोरी और मालवा का इतिहास  

किसी भी समकालीन इतिहासकार ने मालवा की स्वतंत्र सल्तनत के संस्थापक दिलावर खाँ गोरी की वंश परम्परा और उसके प्रारंभिक जीवन पर प्रकाश नहीं डाला है। दिलावर खाँ का वास्तविक नाम हुसैन था और मातृपक्ष से वह दमिश्क के सुल्तान शिहाबुद्दीन गोरी का वंशज था। फरिश्ता यह भी लिखता है कि दिलावर खाँ का पितामह गोर का निवासी था। वह दिल्ली सुल्तानों की सेवा में आ गया था। दिलावर खाँ का पिता भी एक उच्च अमीर था। फरिश्ता के वर्णन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि दिलावर खाँ विदेशी तुर्क था। उसने गोरी का विरुद्ध इसलिये धारण किया ताकि उसकी प्रतिष्ठा ऊँची रहे। दिलावर खाँ गोरी के प्रारंभिक जीवन के बारे हमें बहुत अधिक जानकारी प्राप्त नहीं है। दिलावर खाँ अमीर बनने से पूर्व मालवा में था और अमीन शाह के नाम से जाना जाता था। अमीन शाह को मालवा के एक प्रतिष्ठित व्यापारी ने दिल्ली में सुल्तान फिरोज तुगलक के समक्ष प्रस्तुत किया था।

 

फीरोज शाह अमीन शाह से बहुत प्रभावित हुआ था और उसे दिलावर खाँ के नाम से विभूषित किया।' इसी समय से दिलावर खाँ दिल्ली सल्तनत का एक प्रमुख अमीर बन गया और मालवा में उसका प्रभाव बढ़ने लगा ।

 

दिलावरखाँ गोरी को सुल्तान फीरोजशाह तुगलक के उत्तराधिकारी सुल्तान मुहम्मद शाह तुगलक ने 1390-91 ई. में मालवा का सूबेदार नियुक्त किया। सूबेदार बनते ही दिलावर खाँ ने धार को अपनी राजनीतिक और प्रशासकीय गतिविधियों का केन्द्र बनाया। फीरोज तुगलक के अन्तिम दिनों में उसके उत्तराधिकारियों में हुए गृहयुद्ध के कारण मालवा में भी अन्य प्रान्तों के समान शासन व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई थी। दिलावर खाँ ने मालवा आकर राजाओं और जागीरदारों से अधीनता स्वीकार करवायी जो स्वतंत्र हो गये थे। मलिक उम्मेद शाह उर्फ दिलावर खाँ ने धार में छत्र धारण किया और पूरे मालवा सूबे में सत्ता कायम की।

 

मालवा स्वतंत्र (1401 ई.) 

सुल्तान मुहम्मद शाह तुगलक के शासन काल में दिलावर खाँ मालवा में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने में लगा रहा। सुल्तान की मृत्यु के बाद पुनः अव्यवस्था फैली, किन्तु दिलावरखाँ चतुर मूक दर्शक की भाँति घटनाओं को देखता रहा।  उसे आभास हो गया था कि सल्तनत का पतन निकट है। इसी बीच ख्वाजा जहान सरवर मलिक के प्रयत्नों से सुल्तान मुहम्मद शाह के छोटे पुत्र नासिरुद्दीन महमूद को गद्दी पर बैठाया गया। उसकी उम्र दस वर्ष थी। उसकी राज्य करने की क्षमता पर सन्देह किया जाने लगा। दिलावर खाँ ने दिल्ली की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं ली। एक स्वामिभक्त सूबेदार के समान वह सल्तनत के प्रति अपनी आस्था प्रकट करता रहा। दिलावर खाँ ने राजनीतिक अव्यवस्था का लाभ उठाकर दिल्ली को राजस्व भेजना बन्द कर दिया। दिलावर खाँ का यह कार्य निश्चय ही मालवा की स्वतंत्रता की भूमिका थी। इस समय उसने मालवा की स्वतंत्रता की घोषणा न कर राजनीतिक बुद्धिमता और दूरदर्शिता का परिचय दिया। 

 

दिल्ली में आपसी मतभेद और गुटबन्दी ने स्थिति को और बिगाड़ दिया। इसी बीच यह समाचार मिला कि अमीर तैमूर विशाल सेना के साथ हिन्दुस्तान की ओर बढ़ा चला आ रहा है।

 

तैमूर से सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद तुगलक और मल्लूइकबाल 18 दिसम्बर 1398 ई. में बुरी तरह पराजित हो गये। उसी रात सुल्तान महमूद सहायता प्राप्त करने के उद्देश्य से गुजरात की ओर चला गया। गुजरात के सूबेदार जफर खाँ ने सुल्तान का उचित सम्मान किया, किन्तु सुल्तान की पुनः "दिल्ली पर आक्रमण की योजना को स्वीकार नहीं किया। इस कारण सुल्तान रुष्ट और निराश होकर मालवा की ओर अग्रसर हुआ।

 

सुल्तान महमूद तुगलक जब मालवा की सीमा पर पहुँचा तो दिलावर खाँ ने उसके पद और गरिमा के अनुकूल सुल्तान का स्वागत किया और उसे ससम्मान मालवा की राजधानी धार ले आया । दिलावर खाँ ने सुल्तान की दिल्ली पुनः प्राप्त करने में मदद नहीं की और धार में उसके निवास हेतु व्यवस्था की । ' दिलावर खाँ के पुत्र अल्प खाँ ने अपने पिता के इस व्यवहार का समर्थन नहीं किया क्योंकि वह सुल्तान को दिये जा रहे सम्मान और सुविधाओं को मालवा की भावी स्वतंत्रता के लिये घातक समझता था। इस कारण वह नाराज होकर माण्डू चला गया। अल्प खाँ ने माण्डू में तब तक रहा जब तक की सुल्तान मालवा छोड़कर नहीं गया। इसी समय अल्पखाँ माण्डू के प्रसिद्ध किले की नींव डाली और नगर की सुरक्षात्मक किले बन्दी की।

 

सुल्तान महमूद लगभग तीन वर्ष तक मालवा में रहा। तैमूर के वापस जाने पर दिल्ली के अमीरों के आमंत्रण पर वह वापस दिल्ली 1401 ई. में चला गया। जैसे ही सुल्तान मालवा से दिल्ली गया, अल्प खाँ तुरन्त अपने पिता दिलावर खाँ के पास धार आ गया। दिलावर खाँ ने मालवा में अपनी स्थिति बहुत सुदृढ़ कर ली थी। वह अवसर की खोज में था । सुल्तान के जाते ही उसने मालवा की स्वतंत्रता की घोषणा 1401 ई. में कर दी जिसकी योजना उसने और उसके पुत्र अल्प खाँ ने बनाई थी।

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