फारुकी सल्तनत का उदय भाग 02 : उत्कर्ष की आधी सदी | मलिक नासिर और खानदेश | MP Faruki Shashan

फारुकी सल्तनत का उदय भाग 02 उत्कर्ष की आधी सदी

फारुकी सल्तनत का उदय भाग 02 : उत्कर्ष की आधी सदी | मलिक नासिर और खानदेश | MP Faruki  Shashan
 

 मलिक नासिर और खानदेश

मलिक नासिर के पास असीरगढ़ का अजेय किला आ जाने से उसकी स्थिति मजबूत हो गई क्योंकि राजधानी बुरहानपुर पर संकट आने पर असीरगढ़ में शरण ली जा सकती थीं। मलिकं नासिर ने जब बुरहानपुर को अपनी राजधानी बनाया तो उसके साथ ही उसने ताप्ती नदी के तट पर एक महल भी बनाया। आगे चलकर आदिलशाह द्वितीय के समय इसका विस्तार किया गया और किलेबंदी बनाकर इसे सुरक्षित भी किया गया। गुजरात में उन दिनों सुल्तान अहमदशाह एक ताकतवर राज्य का स्वामी था। मलिक नासिर ने मालवा की सेना के साथ गुजरात पर आक्रमण किया पर अहमद शाह की सेना के आगे बढ़ने पर मालवा की सेना का सेनापति गजनीखान माण्डू भाग गया और मलिक नासिर को थालनेर में शरण लेनी पड़ी। अन्त में नासिर को गुजरात की अधीनता स्वीकारने और कर भेजने के लिए सहमत होना पड़ा बदले में गुजरात के सुल्तान ने मलिक नासिर को खान की पदवी दी। तब से फारुकी शासक खान कहलाने लगे और उनके द्वारा शासित प्रदेश खानदेश कहा जाने लगा ।

 

गुजरात और मालवा से निराश होकर मलिक नासिर ने दक्खन की ओर नजर डालीं। वहाँ के बहमनी शासक अहमदशाह बहमनी से संबंध मजबूत करने हेतु उसने अपनी बेटी आगा जैनब का विवाह 1429 ई. में बहमनी सुल्तान के बेटे अलाउद्दीन से कर दिया। फिर गुजरात से अपनी पराजय का बदला लेने के लिए उसने बहमनी सेना की सहायता से गुजरात के इलाके पर धावा कर दिया। पर उसे हार का मुँह देखना पड़ा और गुजराती सेना ने पूरे खानदेश के साथ बुरहानपुर को बुरी तरह लूटा। ऐसा लगता है कि मलिक नासिर की तकदीर में पराजय ही लिखी थीं और इसी कारण बुरहानपुर की तकदीर में विध्वंस लिखा था।

 

अगले साल मलिक नासिर को अपनी बेटी याने बहमनी शासक की पुत्रवधू आगा जैनब का पत्र मिला कि उसका पति अलाउद्दीन बहमनी गद्दी पर बैठ गया है और बहमनी राज्य का सुल्तान तो हो गया है पर वह संगमनेश्वर के हिन्दू सरदार की बेटी परीचेहरा पर आसक्त हो गया है और अन्ततः - उसने उस सुन्दर हिन्दू बाला से विवाह कर लिया है। इतना ही नहींअब वह आग जैनब से नफरत करने लगा है। मलिक नासिर को अपनी प्यारी बेटी आगा जैनब की यह पीड़ा बर्दाश्त नहीं हुई और उसने बहमनी शासक अपने दामाद अलाउद्दीन को सबक सिखाने की गरज से बहमनी सल्तनत पर आक्रमण कर दिया। पर मलिक नासिर को उसका यह कदम बहुत मँहगा पड़ा। बहमनी सेनाओं ने नासिर को बुरी तरह हराया और मलिक नासिर को खानदेश के लालिंग के किले में शरण लेनी पड़ी। बहमनी सेनाओं ने बुरहानपुर को खूब लूटाजलाया और नष्ट किया और सारे खानदेश को रौंद डाला। इसके कुछ दिन बाद ही 19 सितम्बर, 1437 को मलिक नासिर की मृत्यु हो गई । उसे उसके पिता मलिक अहमद रजा की कब्र के पास थालनेर में दफना दिया गया । "

 

मलिक नासिर के बाद उसका बेटा मीरन आदिल खान गद्दी पर बैठा। उसकी माँ मालवा के शासक होशंगशाह की बहन थीं और ऐसी उम्मीद थी कि मीरन आदिल खान अपने मामा के सहयोग से अपनी स्थिति मजबूत करेगा पर मीरन आदिलखान अधिक समय जीवित नहीं रह पायाक्योंकि 30 अप्रैल 1441  में बुरहानपुर उसकी हत्या हो गयी। उसे भी थालनेर में उसके पिता के बाजू में  को दफनाया गया। 


मीरन आदिलखान के बाद उसका बेटा मीरन मुबारकखान शासक हुआ। उसने सत्रह वर्ष शासन किया। 1454 ई. में मालवा के सुल्तान और गुजरात के सुल्तान की व्यस्तता का लाभ उठाकर मीरन मुबारकखान फारुकी ने मालवा के अधीनस्थ बगलाना पर आक्रमण किया। पर मालवा की सेना के आ जाने पर मुबारकखान असीरगढ़ लौट गया। 17 मई, 1457 को बुरहानपुर में उसकी मृत्यु हो गई। उसे भी थानेर में दफनाया गया। अगला शासक था मीरन मुबारकख़ान का ज्येष्ठ पुत्र मीरन आदिलखान द्वितीय

 

मीरन आदिलखान द्वितीय

 

मीरन आदिल खान द्वितीय अत्यन्त शक्तिशाली और प्रतिभा सम्पन्न शासक था और उसके शासनकाल में खानदेश में और बुरहानपुर में पहले से अधिक समृद्धि आई। असीरगढ़ के किले के आसपास मालीगढ़ की चहारदीवारी का निर्माण और बुरहानपुर में ताप्ती नदी के किनारे किले का निर्माण उसी ने कराया। इस किले के खंडहर शाही किले के नाम से आज भी मौजूद हैं।

 

मीरन आदिल खान द्वितीय ने खानदेश को गुजरात की अधीनता से स्वतंत्र करने के उद्देश्य से गुजरात को कर भेजना बन्द कर दिया और वहाँ से अपना प्रतिनिधि भी बुला लिया। इस प्रकार 1437 से चली आ रही स्थिति समाप्त हुई। पर गुजरात के शासक महमूद बेगढ़ा ने उसके इस उद्धत व्यवहार को सहन न करते हुए उस पर आक्रमण कर दिया। मीरन आदिल खान परास्त हुआ और बकाया कर चुकाने और गुजरात का प्रभुत्व मानने के लिए बाध्य किया गया। 1461 ई. में मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी ने बहमनी राज्य पर आक्रमण करने के लिए खानदेश से होकर जाने का निश्चय किया और रास्ते में असीरगढ़ पर आक्रमण करने का भी निश्चय किया। पर आदिल खान द्वारा विनम्रता प्रकट किये जाने से खतरा टल गया।

 

मीरन आदिल खान द्वितीय के शासनकाल में खानदेश में कृषि का बहुत विकास हुआ और बुरहानपुर में सोने और चाँदी के तारों की जरी वाले उत्तम वस्त्रों का निर्माण और व्यापार भी बहुत बढ़ा । मलमल के बारीक वस्त्र भी प्रचुरता से बनाये जाने लगे और यह खानदेश का प्रमुख उद्योग बन गया। बुरहानपुर के आसपास के प्रदेश में कृषि का विस्तार होने से बुरहानपुर व्यापार का केन्द्र बन गया । उत्तर और दक्षिण को जोड़ने वाले मार्ग पर होने के कारण इस व्यापार को और भी प्रोत्साहन मिला। उत्तम वस्त्रों की मांग देश और विदेश में बढ़ने से भी बुरहानपुर के व्यापार और समृद्धि में बढ़ोत्तरी हुई।

 

मीरन आदिलखान द्वितीय निस्संतान था। एक बार उसने अहमदाबाद में सुल्तान महमूद बेगढ़ा के दरबार में नासिरखान के भाई इफ्तिखार खान के वंशज आलम खान को देखा और उससे इतना प्रभावित हुआ कि उसने आलमखान को अपना उत्तराधिकारी बनाने का फैसला कर लिया 'बुरहानपुर लौटने पर उसने आलमखान को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया लेकिन आदिलखान द्वितीय की मृत्यु के तुरन्त बाद आलमखान को सिंहासन नहीं मिला। इसके लिए उसे इन्तजार करना पड़ा।

 

करीब छयालीस वर्षों के शासन के उपरांत मीरन आदिल खान द्वितीय की मृत्यु 20 सितम्बर, 1501 ई में हो गई और उसकी इच्छानुसार उसे बुरहानपुर के दौलत-ए-मैदान में दफनाया गया। आदिल खान द्वितीय के दरबार में कुतुबमौलाना शाह बुखारीकुतुबमौलाना -उल-मारिफमौलाना अल शेख शरफुद्दीन अस्तरबादीसैयद कमालुद्दीन और सैयद जलालुद्दीन जैसे प्रखर विद्वान थे ।

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