फारुकी सल्तनत का उदय |निमाड़ में फारुकी शासन भाग 01 | Faruki Saltnat in MP

 निमाड़ में फारुकी शासन

फारुकी सल्तनत का उदय |निमाड़ में फारुकी शासन भाग 01 | Faruki Saltnat in MP
 

 

फारुकी सल्तनत का उदय

पन्द्रहवीं और सोलहवीं सदी में यानी पूरे दो सौ साल तक मध्यप्रदेश का पश्चिमी हिस्सा यानी वर्तमान बुरहानपुर जिले का इलाका खानदेश के फारुकी सुल्तानों के अन्तर्गत रहा। इसमें असीरगढ़ का वह महत्वपूर्ण किला भी शामिल था जो दक्खिन के रास्ते का पहरुआ माना जाता रहा है। खास बात यह थी कि बुरहानपुर खानदेश की सल्तनत की राजधानी थी और असीरगढ़ इस सल्तनत का सबसे महत्वपूर्ण और सुरक्षित किला रहा है। आइन-ए- अकबरी के अनुसार 1601 में जब खानदेश की सल्तनत को मुगल साम्राज्य में शामिल किया गया था तब उस समय सल्तनत में 32 परगने थे जिनमें असीर और मांजरोद के परगने भी थे।' इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि तब मध्यप्रदेश का बुरहानपुर जिला खानदेश की सल्तनत में था। इसी कारण मध्यप्रदेश के इस छोटे से किन्तु महत्वपूर्ण हिस्से पर अलग अध्याय दिया जा रहा है।

 

फारुकी सल्तनत का उदय

 

मलिक अहमद रजा को दिल्ली के सुल्तान फीरोज तुगलक के समय थालनेर और करोंदा के जिले सौंपे गये थे। बाद में उसे खानदेश का सिपहसालार बना दिया गया। फीरोजशाह की मृत्यु दिल्ली सल्तनत कमजोर हाथों में आई। 1398 में जब अमीर तैमूर ने दिल्ली पर आक्रमण किया तब दिल्ली सल्तनत सिर्फ एक छाया के रूप में विद्यमान थी। इस मौके का फायदा उठाकर 1398 में मलिक रजा ने दिल्ली सल्तनत से स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया। मलिक राज ने अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए अपने पड़ोस के इलाके मालवा के प्रशासक दिलावर खाँ गोरी की बेटी से अपने बेटे मलिक नासिर का ब्याह कर दिया और खुद की बेटी का ब्याह दिलावर खाँन के बेटे अल्पखान से कर दिया। 


1399 में अपनी मृत्यु से पहले मलिक अहमद रजा ने अपने एक बेटे मलिक नासिर को अपना उत्तराधिकारी बनाया। खानदेश के थालनेर और उसे आसपास का इलाका दूसरे बेटे इफ्तिखार को दे दिया। महत्वाकांक्षी मलिक नासिर ने अपने राज्य के पूर्वी इलाके में अपनी स्थिति मजबूत की और खान की पदवी धारण करके राजचिन्ह धारण करके थालनेर से संबंध तोड़ लिए। मल्लिक नासिर के पास खानदेश के पश्चिमी क्षेत्र में असीरगढ़ का प्रख्यात किला था जो अत्यंत मजबूत और अजेय था सामरिक महत्व के इस किले पर तब आसा अहीर का अधिकार था। युद्ध करके तो असीरगढ़ जीतना असंभव था अतः उसने 1399 ई. में आसा अहीर से छल करके असीरगढ़ पर कब्जा कर लिया और असीरगढ़ को अपना मुख्यालय बना लिया

 

मध्यकालीन इतिहासकार मुहम्मद कासिम फरिश्ता' लिखता है कि नासिर की सफलता की खबर सुनकर उसके गुरु शेख जैनुद्दीन उसके राज्य में आये। उन्होंने मलिक नासिर से कहा कि जहाँ शेख रुके हैं वहाँ वह एक शहर बसाए और उसका नाम जैनाबाद रखे और दूसरे तट पर भी एक शहर बसाए और उसका नाम उनके गुरु दौलताबाद के संत शेख बुरहानुद्दीन के नाम पर बुरहानपुर रखे। उन्होंने यह भी सलाह दी कि मलिक नासिर बुरहानपुर को अपनी राजधानी बनाए। तब मलिक नासिर ने 1407 ई. में ताप्ती नदी के दायें किनारे हजरत शेख बुरहानुद्दीन के नाम पर बुरहानपुर और ताप्ती के बाएँ किनारे हज़रत शेख जैनुद्दीन के नाम पर जैनाबाद बसाया। 

 

दिल्ली के तुगलक सुल्तानों की कमजोरी का फायदा उठाकर जिस प्रकार खानदेश में फारुकी वंश ने सल्तनत से स्वतंत्र सत्ता स्थापित की, उसी प्रकार गुजरात और मालवा भी दिल्ली सल्तनत से स्वतंत्र हो गये थे। मालवा में दिलावर खां गोरी ने मालवा की सल्तनत कायम कर ली थी। गुजरात और मालवा से खानदेश के फ़ारुकी वंश का निरंतर अनुकूल और प्रतिकूल सार्क बना रहा और यह सम्पर्क आगामी दो शताब्दियों तक चला। खानदेश और मालवा एक दूसरे के पड़ोसी थे। जब खानदेश के सिंहासन पर बुरहानपुर में नासिर खाँ सत्तारुढ़ था तब मालवा में सुल्तान दिलावर खान का पुत्र होशंगशाह सत्तारुढ़ था। होशंगशाह को मलिक नासिर की बहिन ब्याही थी। मलिक नासिर ने 1418 ई. में अपने बहनोई होशंगशाह की सहायता से अपने भाई इपितख़ार पर आक्रमण किया और उससे थालनेर छीन लिया। निराश होकर इफ्तिखार अहमदाबाद चला गया और वहीं रहने लगा ।'

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