वैज्ञानिक प्रबंध का अर्थ परिभाषायें सिद्धांत | Scientific Management Meaning Definition Principle

वैज्ञानिक प्रबंध का अर्थ परिभाषायें सिद्धांत

वैज्ञानिक प्रबंध का अर्थ  परिभाषायें सिद्धांत | Scientific Management Meaning Definition Principle


वैज्ञानिक प्रबंध (Scientific Management): 

20 वीं सदी के आरम्भ में प्रशासन ने एक नया रूप ग्रहण जिया जिसे वैज्ञानिक प्रबंध कहा जाता है । इसके जन्म के पीछे औद्योगिक क्रांति की तत्कालीन परिस्थितियां उत्तरदायी थीं। 19 सदी के अंतिम दशक में कम लागत पर क्षेष्ठ किस्म का माल बनाने की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी थी । फलतः उद्योग में प्रत्येक कार्य के लिये विज्ञान का विकास किये जाने लगा | वैज्ञानिक प्रबंध की आधारभूत मान्यता यह है कि "प्रत्येक कार्य का एक विज्ञान है (There is a science of every work )". वैज्ञानिक प्रबंध की अवधारणा को सार्वभौमिक मान्यता दिलाने में फ्रेडरिक टेलर ( 1856 - 1915) का नाम अग्रगण्य है। टेलर का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका के एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। टेलर ने अपना व्यवसायिक जीवन में अमेरीकन मिडवेल स्टील कंपनी में श्रमिक के रूप में शुरू किया परन्तु आपनी मेहनत और लगन के कारण अल्पावधि में ही उसी कम्पनी के मुख्य अभियंता बन गये इसी दौरान संध्यकालीन स्कूल में अध्ययन करते हुये उन्होंने मास्टर ऑफ़ इंजीनियरिंग की उपाधि प्राप्त की । तत्पश्चात् उन्होंने यूरोप के अनेक देशों का भ्रमण किया तथा अनेक पदों पर कार्य करते हुये श्रमिकों की प्रवृतियों व समस्यों को जानने का अवसर प्राप्त किया। प्रबंध के सम्बन्ध में उनके विचार सबसे पहले "Piece rate system" शीर्षक लेख के रूप में 1895 में प्रकाशित हुये । 1911-1912 में उन्होंने "Principles of scientific management" शीर्षक निबंध प्रकाशित किया जिसमें वैज्ञानिक प्रबंध शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किया गया। टेलर ने अपने अध्ययनों एवं परीक्षणों के आधार पर यह बताया कि श्रमिक अपने कार्य में रूचि नहीं लेते है तथा जी चुराते हैं। उनमें यह धारणा बन गयी थी कि आधिक उत्पादन करने पर कार्य में कमी हो जायेगी और उन्हें कार्य से हटाया जा सकता है। अतः अरुचिपूर्वक एवं धीरे धीरे कार्य करने का ढंग बन गया था (Soldiering was a system)। उन्होंने यह भी पता लगाया कि नियोक्ताओं एवं श्रमिकों की अज्ञानता के कारण ही उत्पादकता में वृद्धि नही हो पा रही है उन्होंने यह सुझाव दिया कि वैज्ञानिक विधियों के प्रयोग करके बिना अतिरिक्त मानवीय उर्जा एवं प्रयासों के उत्पादकता बढ़ायी जा सकती है ताकि श्रमिकों को उच्च वेतन एवं नियोक्ताओं को उच्च लाभ मिल सके।

 

वैज्ञानिक प्रबंध की परिभाषायें 

पीटर ड्रकर: 

वैज्ञानिक प्रबंध का सारभूत तत्व कार्य के व्यवस्थित अध्ययन, कार्य का इसके तत्वों में विश्लेषण तथा श्रमिक के कार्य के प्रत्येक तत्व के निष्पादन में व्यवस्थित सुधार करने में निहित है ।

 

टेलर : 

वैज्ञानिक प्रबंध सही रूप से यह जानने की कला है कि आप लोगों से क्या करवाना चाहते है तथा यह देखना कि वे उसे सर्वोत्तम ढंग तथा अधिकतम मितव्ययिता पूर्वक करते हैं।

 

जीएस सुधा: 

वैज्ञानिक प्रबंध एक ऐसी प्रबंधकीय विचार धारा है जो रुढ़िवादी, परंपरागत एवं अनुमानित धारणाओं के स्थान पर तथ्यों, तर्कों, प्रयोगों एवं विश्लेषण पर आधारित सिद्धांतों को स्वीकार करती है। यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित सुव्यवस्थित प्रबंध है।

 

उपर्युक्त परिभाषाओं के विश्लेषण से वैज्ञानिक प्रबंध के सम्बन्ध में निम्नलिखित विशेषताओं का पता चलता है- 

 

यह एक विचारधारा होने के साथ साथ तकनीकों एवं सिद्धांतों का समूह है। 

यह विज्ञान, तर्क एवं विश्लेषण पर आधारित है। 

यह किसी संगठन में उत्पादकता बढ़ाने पर बल देता है। 

यह मितव्ययिता एवं सर्वोत्तम तरीके की वकालत करता है। 

यह श्रमिक को एक आर्थिक शक्ति के रूप में देखता है तथा वैज्ञानिक तरीके से उसकी कार्य क्षमता में सुधार लाने के पक्ष में है ।

 

वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धांत (Principles of Scientific Management):

 

1) विज्ञान न की अनुभव या अनुमान (Science not rule of thumb): 

टेलर का यह मत है कि प्रत्येक कार्य के लिये वैज्ञानिक विधि का विकास किया जाना चाहिए। कार्य निष्पादन की परंपरागत विधियों -" - "अंगूठे के नियम", अनुमान, परीक्षण एवं भूल विधि, अटकलबाजी का कोई स्थान नही होना चाहिए। अंगूठे के नियम पर आधारित ज्ञान का अर्थ बताते हुये टेलर लिखते हैं कि "यह श्रमिकों के मस्तिष्क, हाथों व शारीर तथा उनके कार्य कौशल, दक्षता व चतुराई पर आधारित होता है तथा जो अभिलिखित नही होता है।" विज्ञान के विकास के लिये सम्बन्धित सूचनायें एकत्रित की जातीं हैं, उनका वर्गीकरण और सारणीयन किया जाता है तथा उसका विश्लेषण करके सामान्य नियमों व सिद्धांतों का निर्माण किया जाता है।

 

II) संघर्ष के स्थान पर मैत्री (Harmony not Discord ): 

टेलर का यह मत है कि किसी भी संगठन में नियोक्ता और श्रमिक दोनों ही महत्वपूर्ण होते है। दोनों के समन्वित प्रयासों से ही संगठन का संचालन हो सकता है। अतः उन दोनों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध एवं हित सामंजस्य होना चाहिए। संघर्ष और असंगति से संगठन को क्षति पहुँचती है।

 

III) सहकारिता न कि व्यक्तिवाद (Cooperation not individualism): 

टेलर का यह मत है कि किसी भी संगठन में नियोक्ता एवं उसके श्रमिक/ सदस्य परस्पर सहयोगी होते हैं। अतः उन्हें एक दूसरे के हितों, लक्ष्यों एवं आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर कार्य करना चाहिये। उनके प्रयास पृथक व एकाकी न होकर सहकारिता पर आधारित होने चाहिये। उन्हें एक दूसरे को अपना पूरक मानना चाहिये

 

IV) सीमित के स्थान अधिकतम उत्पादन (Maximum output in place of restricted output): 

वैज्ञानिक प्रबंध किसी संगठन के प्रबंधक एवं उसके सदस्यों की आर्थिक समृद्धि पर जोर देता है। अतः टेलर ने साधनों की पूर्ण क्षमता का उपयोग करते हुये तथा सदस्यों की कार्यक्षमता में वृद्धि करके उत्पादकता बढ़ने पर बढ़ने पर जोर दिया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि उत्पादकता बढ़ा कर एक ओर जहाँ संसाधनों का उपयोग, लागतों में कमी एवं लाभों में वृद्धि की जा सकती है वहीँ दूसरी ओर सदस्यों को ऊँचा वेतन देना संभव हो पाता है।

 

V) प्रत्येक व्यक्ति का चरम सीमा तक विकास (Development of each man to the fullest extent): 

टेलर के अनुसार वैज्ञानिक प्रबंध में प्रत्येक व्यक्ति को उसकी चरम सीमा तक विकसित होने का अवसर प्रदान किया जाता है। व्यक्ति को अपने विकास के लिये उचित प्रशिक्षण दिया जाता है तथा रूचि के अनुसार कार्य सौंपा जाता है। उनके लिये प्रेरणात्मक मजदूरी पद्धति लागू की जाती है तथा पदोन्नति का अवसर भी प्रदान किया जाता है।

 

VI) कार्य एवं दायित्वों का विभाजन (Division of work and responsibility): 

टेलर ने कार्य के नियोजन एवं क्रियान्वयन पहलू को पृथक-पृथक करने पर जोर दिया था उनके अनुसार किसी संगठन में नियोजन का दायित्व उसके प्रबंधकों पर होना चाहिये जबकि क्रियान्वयन का कार्य उसके सदस्यों द्वारा किया जाना चाहिये। इस प्रकार दोनों वर्गों की क्षमता का सही सही उपयोग हो सकता है।

 

VII) मानसिक क्रांति (Mental revolution): 

मानसिक क्रांति वैज्ञानिक प्रबंध का मूल दर्शन है। इसका तात्पर्य यह है कि संगठन के प्रबंधकों एवं उसके सदस्यों के परस्पर विरोधी दृष्टिकोण में परिवर्तन किया जाना चाहिये। वास्तव में ये दोनों ही संगठन के महत्वपूर्ण आधार स्तम्भ होते हैं। उन्हें नवीन ढंग से सोच कर एक दूसरे के प्रति निश्छल एवं निष्कपट बनना चाहिये

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