शैक्षिक प्रशासन की नूतन प्रवर्तियाँ |प्रणाली परिभाषायें कार्य विधि तत्व प्रकृति| New Trends of Education Administration

शैक्षिक प्रशासन की नूतन प्रवर्तियाँ 

 (New Trends of Education Administration) 

शैक्षिक प्रशासन की नूतन प्रवर्तियाँ |प्रणाली परिभाषायें  कार्य विधि तत्व प्रकृति| New Trends of Education Administration



शैक्षिक प्रशासन का प्रणाली उपागम (System Approach to Administration):

 

आधुनिक युग में प्रशासन के अध्य्यन को अधिक वैज्ञानिक बनाने के लिए प्रणालीबद्ध दृष्टिकोण एक तकनीकी के रूप में अपनाया जाने लगा है । इस दृष्टिकोण की व्याख्या करने से पूर्व "प्रणाली" का अर्थ समझना आवश्यक है। सामान्यतः "प्रणाली" से आशय किसी कार्य को सम्पन्न करने की पद्धति या ढंग से होता है, किन्तु व्यापक दृष्टि से "प्रणाली" से आशय किसी सामान्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिये विभिन्न क्रियाओं के परस्पर संकलन से है । जिस प्रकार मानव शारीर एक सम्पूर्ण प्रणाली है जिसमें अनेक उपप्रणालियाँ समिल्लित हैं जैसे नाड़ी प्रणाली, श्वसन प्रणाली, पाचन प्रणाली आदि उसी प्रकार एक उपक्रम भी अनेक उपप्रणालियों की एक प्रणाली होती है । प्रणाली सम्पूर्णता से संबंधित होती है, खण्डों से नहीं प्रणाली के अंतर्गत सामान्य उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये अमुक कार्य को विभिन्न चरणों में विभाजित करके एक क्रम निर्धारित कर लिया जाता है तथा उसी के अनुरूप कार्य का निष्पादन किया जाता है इस प्रकार प्रणाली दृष्टिकोण से किसी सम्पूर्ण के विश्लेषण एवं अध्ययन से है । प्रणालीबद्ध दृष्टिकोण विशिष्टता के स्थान पर सामान्यता पर अधिक बल देता है। 


प्रणाली की परिभाषायें ( Definitions of System):

 

कूंटज व ओ' डोनेल: प्रणाली को परस्पर क्रियाओं द्वारा उद्देश्यों या कार्यों के एक संकलन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

 

जेए मोर्टन: प्रणाली विभिन्न अंगों का परस्पर संकलन है जो एक सामान्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिये मिलकर कार्य करतें हैं।

 

सेमुर टील्स: प्रणाली परस्पर सम्बद्ध भागों का एक समूह होती है जॉन ए बेकेट प्रणाली परस्पर क्रियाशील प्रणालियों का संकलन है ।

 

उपर्युक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि प्रणाली किसी सामान्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिये रचित अन्तःक्रियाओं का एक समन्वित रूप है।

 

प्रणाली की कार्य विधि (Working Procedure of System):

 

प्रत्येक प्रणाली की एक निश्चित कार्यविधि होती है। यह अपने वातावरण से साधन एवं निवेश प्राप्त करती है । उसके बाद प्रणाली द्वारा उन साधनों का प्रसंस्करण अथवा रूपांतरण करके उत्पादन या निर्माण किया जाता है जिसे समाज या वातावरण को प्रदान किया जाता है। प्रत्येक प्रणाली में पुनः निवेश की व्यवस्था भी होती है। जिसके द्वारा उत्पाद या परिणामों का का मूल्यांकन करके संबंधित सूचना एवं तथ्य सुधार हेतु पुनः निवेश के लिये संप्रेषित किये जाते हैं । प्रणाली निरंतर वातावरण से जुडी होती है। एक प्रणाली की कार्य विधि को आगे दर्शाये गये चित्र से समझा जा सकता है।

 

प्रणाली के घटक या तत्व (Components of System):

 

I) निवेश (Inputs): 

इसके अंतर्गत किसी संगठन में मानव, श्रम, भौतिक साधन, मशीन आदि आते हैं। साथ ही विभिन्न वर्गों के लक्ष्य तथा उनकी अपेक्षायें भी निवेश में शामिल हैं।

 

II) रूपांतरण क्रिया (Transformation Process ) : 

इसमें विभिन्न उपप्रणालियों के माध्यम से वातावरण से प्राप्त निवेशों का रूपांतरण किया जाता है।

 

III) उत्पादन (Output) : 

इसमें निवेश किए गये संशाधनों का रूपांतरण करके संगठन के सदस्यों की कार्यकुशलता एवं योग्यता की वृद्धि की जाती है।

 

IV) पृष्ट पोषण (Feedback): 

इसमें निवेश, विभिन्न उद्देश्यों, अपेक्षाओं, आशाओं आदि का मूल्यांकन करके कमियों तथा त्रुटियों का पता लगाया जाता है और उन्हें दूर किया जाता है।

 

V) संचार व्यवस्था (Communication System): 

सभी विभागों के कुशल संचालन तथा प्रबंधकीय कार्यों के सफल निष्पादन के लिये कुशल संचार की व्यवस्था करनी होती है। बाह्य वातावरण से संपर्क करने तथा विभिन्न वर्गों जैसे सरकार, पेशेवर संस्थानों, अन्संधानकर्ताओं आदि से जुड़ने के लिये यह प्रणाली आवश्यक है।

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प्रणाली की प्रकृति (Nature of System):

 

I) सम्पूर्ण का अध्ययन (Study of Whole) – 

सम्पूर्ण उपक्रम एक इकाई के रूप में कार्य करता है जो विभिन्न विभागों में विभाजित होता है ये विभाग अपने आप में पूर्ण एवं स्वतंत्र होते हुये भी पृथक् रूप में होते हैं जिनको बाँटकर अलग अलग अध्ययन नहीं किया जा सकता है।

 

II) समन्वित प्रयास (Coordinated Effort) -

यह विचारधारा यह मानती है कि एक उपक्रम विभिन्न विभागों, अनुभागों व मनुष्यों का संकलन मात्र नहीं है । अतः प्रशासक इनके प्रयासों को समन्वित करके कुल परिणामों में वृद्धि कर सकता है ।

 

III) अन्तःसंबंधों पर ध्यान (Focus upon Interrelationships) – 

किसी उपक्रम के विभिन्न विभागों की क्रियायें परस्पर रूप से संबंधित होतीं हैं । विभागों के कार्यकारी औपचारिक सम्बन्ध होते हैं। ये एक-दूसरे की क्रियाओं से प्रभावित होते हैं।

 

IV) सामान्य उद्देश्य की पूर्ति (Fulfillment of General Objectives) – 

यद्यपि प्रत्येक विभाग के -- कुछ विशिष्ट लक्ष्य होते हैं जिनकी प्राप्ति के लिये वे प्रयत्नशील होते हैं किन्तु उपक्रम का लक्ष्य सर्वोपरि होता है। प्रत्येक विभाग उपक्रम के उद्देश्य, योजनाओं व नीतियों के अनुरूप ही अपने कार्यों का संचालन करता है।

 

V) प्रतिपुष्टि (Feedback ) – 

किसी प्रशासक का उद्देश्य उपक्रम की क्रियाओं में एक गतिशील साम्य (Dynamic Homeostasis) बनाये रखना होता है। अतः प्रशासक को उपक्रम में प्रतिपुष्टि (Feedback) एवं सम्प्रेषण (communication) की व्यवस्था करनी होती है।

 

VI) सम-अन्तिमता (Equifinality) - 

प्रशासन की कोई एक श्रेष्ठ विधि नहीं हो सकती प्रशासक विभिन्न संसाधनों, प्रक्रियाओं, अथवा विधियों के द्वारा लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकता है। इस प्रकार प्रशासक सम- अन्तिमता पर बल देता है।

 

VII) वातावरण से संबद्ध (Related with Environment) – 

उपक्रम एक सामाजिक प्रणाली है । अतः उसे न केवल आंतरिक वातावरण वरन् बाह्य वातावरण भी प्रभावित करता है।

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