तुगलक शासकों के समय मध्यप्रदेश :मध्यप्रदेश में दिल्ली सल्तनत का प्रसार भाग 03 | MP Me Tuglaq Shashak

तुगलक शासकों के समय मध्यप्रदेश :मध्यप्रदेश में दिल्ली सल्तनत का प्रसार भाग 03

तुगलक शासकों के समय मध्यप्रदेश :मध्यप्रदेश में दिल्ली सल्तनत का प्रसार भाग 03 | MP Me Tuglaq Shashak


 

तुगलक शासकों के समय मध्यप्रदेश

  • दमोह से प्राप्त अभिलेख इस बात की पुष्टि करते हैं कि तुगलक काल मेंविशेषकर गयासुद्दीन और मोहम्मद तुगलक के समय में इस क्षेत्र पर मुस्लिम आधिपत्य मजबूत हो गया था। सन् 1324 ई. के बटिहागढ़ अभिलेख से स्पष्ट होता है कि इस काल में गयासुद्दीन तुगलक का आधिपत्य इस क्षेत्र में था। इस अभिलेख से यह भी स्पष्ट होता है कि गयासुद्दीन ने दमोह के क्षेत्र में एक महल की नींव भी डाली थी। यह अभिलेख फारसी में है। सन 1328 ई. के एक अन्य बटिहागढ़ अभिलेख सेजो संस्कृत में हैयह ज्ञात होता है कि उस काल में इस क्षेत्र में सुल्तान महमूद अर्थात् मोहम्मद तुगलक का राज्य था। यह अभिलेख बरिहागढ़ के तत्कालीन स्थानीय अधिकारी जलाल खोजा का नाम भी प्रदर्शित करता है। दमोह जिले से प्राप्त एक अभिलेख में सुल्तान मोहम्मद तुगलकउसके सेनापति जुलाची और स्थानीय अधिकारी का नाम मिलता है ।" 

  • बुंदेलखंड पर भी मोहम्मद तुगलक के काल में दिल्ली सल्तनत का प्रभुत्व बना रहा। दमोह जिले से प्राप्त अभिलेख इस बात की पुष्टि करते हैं कि बुंदेलखंड में खजुराहोदमोहछतरपुर आदि क्षेत्र दिल्ली सल्तनत के अंग थे। तुगलकों का समकालीन इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी और मोहम्मद तुगलक के काल में भारत आए विदेशी यात्री इब्नबतूता इस बात की पुष्टि करते हैं कि उस काल में ग्वालियरचंदेरीनरवर सल्तनत के अंग बने रहे। 

  • मालवा ऐसा इलाका था जहाँ के तुगलक सुल्तानों की सत्ता मजबूती से बनी रही। सुल्तान गयासुद्दीन द्वारा तुगलक वंश की नींव डाले जाने के पश्चात् मालवा में एनुल्मुल्क को उसी पद पर बरकरार रखा गया था। गयासुद्दीन के समय चंदेरीमालवा दिल्ली सल्तनत के अधीन थे। इसकी पुष्टि फरिश्ता के कथन से भी होती है। फरिश्ता बताता है कि सुल्तान ने इस अवसर पर मुख्य रूप से चंदेरीबदायूँ और मालवा से सेनाएँ प्राप्त की थीं। 
  • गयासुद्दीन तुगलक के उत्तराधिकारी सुल्तान मुहम्मद तुगलक के समय भी मालवा का सूबेदार बना हुआ था । किन्तु कुछ ही समय पश्चात ऐनुल्मुल्क को स्थानांतरित कर अवध का प्रांतपति बना दिया था और कुतलग खाँ को देवगिरी के साथ-साथ मालवा की भी कमान सौपी गई। यह भी उल्लेख मिलता है कि मुहम्मद तुगलक के समय जुलिक खान को चंदेरी का प्रशासक बनाया गया था। उल्लेख मिलता है कि दक्खिन की विजय के लिए जाते समय सुल्तान मुहम्मद तुगलक ने धार मे एक किला बनवाया।

 

  • सन् 1335-1336 ई. में मालवा में भयंकर अकाल पड़ा। मालवा में भुखमरीअराजकता फैल गई और मालवा की रौनक ही खत्म हो गई थी। सुल्तान मोहम्मद उस समय देवगिरी से लौटते समय मालवा में रुका था। उसने दुर्भिक्ष की गंभीरता को देख कृषि की दशा को सुधारने और लोगों को राहत देने के आदेश दिए। मालवा के • सूबेदार ऐनुल्मुल्क मुल्तानी और उसके भाइयों ने अवध से यहाँ के लोगों के लिए धनअन्न और वस्त्र भेजकर अकाल पीड़ित जनता की सहायता की थी.  

  • मालवा के दुर्भिक्ष को देखते हुए और दक्षिण में लगातार हो रहे विद्रोहों के कारण मोहम्मद तुगलक ने कुतलुग खाँ को हटाकर पुनः ऐनुल्मुल्क को मालवा और देवगिरी की कमान सौंपने का निर्णय लिया था किन्तु ऐनुल्मुल्क को यह निर्णय रास नहीं आया। इस कारण उसने सुल्तान के विरुद्ध विद्रोह कर दिया । यद्यपि सुल्तान ने मुल्तानी की सेवाओं को देखते हुए उसे क्षमा कर दियाकिन्तु 1344-45 ई. में कुतलुग खाँ के स्थान पर मालवा में अजीज खम्मार की नियुक्ति की थी। मालवा में अजीज खम्मार की नियुक्ति के साथ-साथ अन्य सभी पुराने अधिकारियों को स्थानांतरित कर दिया।

 

  • अजीज खम्मार द्वारा मालवा में कार्यभार सँभालने के पश्चात् मालवा के अमीर-ए-सदा पर (सौ ग्रामों की राजस्व वसूली के लिए नियुक्त राजस्व अधिकारी) कड़ी निगरानी व नियंत्रण रखने का निर्देश दिया था।

 

  • अजीज खम्मार ने मालवा में नियुक्ति के तुरंत पश्चात् धार पहुँचते ही यहाँ के अमीर-ए-सदा को कैदकर मृत्यु दंड दिया। अजीज खम्मार के इस कृत्य से सुल्तान तो बेहद प्रसन्न हुआ किन्तु पूरे साम्राज्य में इस कारण आतंक की लहर फैल गईदूसरे अधिकारी आत्मरक्षा हेतु विद्रोही हो उठे। इस घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप ही बाद में सन् 1346 ई. मे गुजरात के अमीर-ए-सदाओं ने अजीज खम्मार को युद्ध के लिए ललकारा और मार डाला।

 

  • मुहम्मद तुगलक के समय चम्बल क्षेत्र में कमलसिंह या घाटमदेव तोमर सत्तारूढ़ था। वह चम्बल क्षेत्र का राजा माना गया था लेकिन उसने दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद तुगलक की अधीनता स्वीकार की थी। उसने तोमरों की स्वतंत्र सत्ता स्थापित करने की समय-समय पर कोशिश की थी। इब्नबतूता उसके समय की कुछ घटनाओं का उल्लेख करता है। एक तो कमलसिंह ने अपने पड़ोस के जौरा अलीपुरा के मुस्लिम सैन्याधिकारी बद्र को पराजित किया और फिर रापरी के प्रशासक खत्ताब नाम के अफगान अमीर पर आक्रमण किया लेकिन पराजित हुआ। कमलसिंह ने ग्वालियर के किले पर भी आक्रमण किया। उस समय ग्वालियर का किलेदार अहमद बिन शेर खान था। कमलसिंह युद्धक्षेत्र में मारा गया। यह सन् 1340 की बात है। कमलसिंह तो ग्वालियर पर अधिकार नहीं कर पाया लेकिन बाद में उसके पोते वीरसिंहदेव ने ग्वालियर पर अधिकार करने में सफलता पाई थी।

 

  • सन् 1351 में मुहम्मद तुगलक की मृत्यु के बाद फीरोज शाह तुगलक दिल्ली सुल्तान बना । उसके समय मालवा में निजामुद्दीन को नियुक्त किया गया। उसके समय मालवा में शांति रही मालवा के अलावा तब बुंदेलखंड का इलाका भी फीरोजशाह तुगलक के पास था क्योंकि सन् 1383 के एक फारसी शिलालेख में दमोह में तुगलक शासक की सत्ता का उल्लेख है।

 

  • फीरोजशाह तुगलक का शासन जब शुरू हुआ था तब चम्बल क्षेत्र का शासक देववर्मा था। देववर्मा सुल्तान फीरोजशाह तुगलक पाने के लिए एक सैनिक टुकड़ी के साथ दिल्ली गया और सुल्तान की सेना के साथ सन् 1353 में तिरहुत अभियान में गया। फीरोजशाह तुगलक ने इस अभियान के बाद उसे ईसा की जागीर स्वीकृत की और उसे राय की पदवी दी। देववर्मा का निधन सन् 1375 में हो गया। उसके उत्तराधिकारी वीरसिंहदेव ने ग्वालियर पर कब्जा कर लिया और स्वतंत्र शासक बन बैठा। फीरोज तुगलक के समय चंदेरीएरच और दतिया के आसपास का क्षेत्र दिल्ली सल्तनत के अधीन था। यह इसलिए कहा जा सकता है कि जब सन् 1373-74 में फीरोज तुगलक ने सिंध में थट्टा के किले पर घेरा डाला थातब उसके लिए ओरछाचंदेरी और राठ की सैनिक टुकड़ियों को मलिक मोहम्मद शाह अफगन के अधीन रखा गया था। उसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र को यह कमान सौंपी गई थी। सन् 1388 में फीरोजशाह तुगलक का निधन हो गया और गयासुद्दीन दिल्ली के सिंहासन पर बैठा जिसे अबूबक्र को शाहजादा मुहम्मद ने हटाकर सन् 1390 में सिंहासन पर कब्जा कर लिया। उसने वीरसिंहदेव से भेंट की और उन्हें खिलअत दी। जब सन् 1391-92 में वीरसिंहदेव ने दिल्ली के सुल्तान की अधीनता नकार दी तो मुहम्मदशाह ने उस पर आक्रमण किया और उसे हरा दिया। वीरसिंहदेव को बन्दी बना लिया गया और तब वीरसिंहदेव को सुल्तान की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। मुहम्मदशाह के बाद के तुगलक शासकों ने वीरसिंहदेव को ग्वालियर के किले का किलेदार बना दिया। इसके बाद से ग्वालियर का किला तोमरों के अधिकार में बना रहा।

 

  • यह उल्लेखनीय है कि बुंदेलखण्ड के सागर - दमोह क्षेत्र पर भी मालवा के सुल्तानों ने अधिकार कर लिया और यह इलाका दिल्ली के सुल्तानों के हाथ से निकल गया। होशंगशाह की मृत्यु के बाद सन् 1436 में महमूदशाह मालवा के सिंहासन पर बैठा। महमूदशाह और मालवा के दूसरे सुल्तानों की सत्ता समय-समय पर दमोह जिले के इलाके पर रही। इसके प्रमाण स्वरूप दमोह जिले में एकाधिक शिलालेख मिलते हैं। उसके शासनकाल के दौरान स्थानीय अधिकारी का मुख्यालय बटिहागढ़ से दमोह स्थानान्तरित किया गया। दमोह जिले में ही सन् 1480 का एक फारसी शिलालेख पाया गया हैं जिसमें गयासुद्दीन का उल्लेख है। दमोह में प्राप्त सन् 1480 के एक फारसी शिलालेख से पता चलता है कि उस समय यहाँ गयासुद्दीन का अधिकार था। यह मालवा का गयासुद्दीन खलजी था 1486 के एक शिलालेख में गयासुद्दीन का उल्लेख है। इसी प्रकार 1505 का एक सती लेख दमोह जिले में मिला है जिसमें गयासुद्दीन के पुत्र नासिरुद्दीन का उल्लेख है। दमोह जिले में प्राप्त 1512 के एक अन्य शिलालेख में नासिरुद्दीन के पुत्र महमूदशाह द्वितीय का नाम है। 1531 में महमूद की मृत्यु हो गई और दमोह क्षेत्र से मालवा के सुल्तानों की सत्ता समाप्त हो गई । 


  • 14 वीं सदी की समाप्ति तक मध्यप्रदेश का उत्तरी हिस्सा दिल्ली सल्तनत के अधीन था लेकिन तैमूर के आक्रमण के बाद जो अव्यवस्था फैली उसका लाभ उठाकर तोमर स्वतंत्र हो गये और उन्होंने ग्वालियर क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। इन तोमर शासकों का संघर्ष दिल्ली के सुल्तानों से सवा सौ साल तक चलता रहा।

 

  • तैमूर के आक्रमण के फलस्वरूप दिल्ली के तुगलक सुल्तान महमूदशाह उस मालवा के अपने सूबेदार दिलावर खॉन गोरी से शरण मांगी। दिलावर खान ने अपने सुल्तान का स्वागत किया। तैमूर के वापिस लौट जाने पर सुल्तान महमूद तुगलक 1401 में दिल्ली लौट गया। उसके बाद दिलावर खान ने अपने बेटे अलपखान के कहने पर खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया और मालवा के गोरीवंश की स्थापना की। इस प्रकार मालवा का समृद्ध प्रदेश दिल्ली के सुल्तानों के हाथ से निकल गया । 

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