चंद्रमा तथा ज्वार-भाटा |उच्च ज्वार लघु ज्वार ज्वारीय बोर | Tides and Moon Effect in Hindi

चंद्रमा तथा ज्वार-भाटा , उच्च ज्वार लघु ज्वार ज्वारीय बोर 

चंद्रमा तथा ज्वार-भाटा |उच्च ज्वार लघु ज्वार ज्वारीय बोर | Tides and Moon Effect in Hindi



चंद्रमा तथा ज्वार-भाटा  

  • समुद्र जल के तल का नियमित उठना तथा नीचे उतरना ज्वार-भाटा कहलाता है। पानी का यह उत्थान एवं पतन दिन में दो बार होता है। दो उच्च ज्वारों के बीच का समय लगभग 12.30 घंटे होता है। दो उच्च ज्वारों के बीच दो निम्न स्वार उत्पन्न होते हैं। निम्न ज्वार के समय समुद्र में पानी की सतह नीची होती है। ज्वार भाटा मूलतः चंद्रमा की आकर्षण शक्ति का परिणाम है। यह बल स्थल की अपेक्षा पानी पर अधिक प्रभावशाली होता है जिससे समुद्रों में जल स्तर में परिवर्तन होता रहता है। स्थल पर यह बल स्थल के ठोस होने के कारण कम प्रभावशाली होता है।

 

  • ज्वार उत्पन्न करने वाली शक्तियां और स्वयं ज्वार अपने विस्तार और स्तर के आधार पर परिवर्तनशील होते हैं। ज्वार-भाटा केवल चंद्रमा की आकर्षण शक्ति से ही नहीं बल्कि पृथ्वी तल पर सूर्य की आकर्षण शक्ति का भी परिणाम है। किंतु चंद्रमा के पृथ्वी के अधिक निकट होने के कारण इसकी आकर्षण शक्ति का ज्वारों की उत्पत्ति में मुख्य योगदान होता है। 
  • जब सूर्यचंद्रमा और पृथ्वी तीनों एक सीध में होते हैं तो सूर्य तथा चंद्रमा की आकर्षण शक्तियां सम्मिलित रूप से पृथ्वी को प्रभावित करती हैं जिससे अत्यधिक ऊंचे उच्च ज्वार उत्पन्न होते हैं। इन्हें अति उच्च ज्वार (Spring tides) कहते हैं। 
  • जब सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी के केंद्र पर समकोण बनाते हैं तो सूर्य और चंद्रमा की आकर्षण शक्तियां एक-दूसरे को निष्क्रिय करने के प्रयास में अपेक्षाकृत क्षीण हो जाती हैं जिससे पृथ्वी पर उनके बल का प्रभाव कम हो जाता है और कम ऊंचाई वाले ज्वार उत्पन्न होते हैंजिन्हें न्यून उच्च ज्वार अथवा लघु ज्वार (Neap tides) कहते हैं। 
  • अति उच्च ज्वार (spring tides) सामान्यतः अमावस्या तथा पूर्णमासी को होते हैं। लघु ज्वार (Neap tides) सप्तमी तथा अष्टमी के दिन होते हैं। पृथ्वी तथा चंद्रमा के बीच दूरी में परिवर्तन से भी ज्वार 15 से 20 प्रतिशत कम या अधिक ऊंचे हो सकते हैं। उच्च ज्वार का अपने औसत से कम अथवा अधिक ऊंचा होना पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी पर भी निर्भर करता है। इन्हें Perigean और Apogean tides कहते हैं। 
  • उपभू की स्थिति में चंद्रमा और पृथ्वी के बीच दूरी न्यूनतम होने के कारण इस समय उत्पन्न होने वाले Perigean tides, Apogean tides की अपेक्षा अधिक ऊंचे होते हैं।

 

  • चूंकि ज्वार-भाटा मुख्यत: चंद्रमा के आकर्षण का परिणाम हैं इसलिए किसी भी समय धरातल पर ठीक चंद्रमा के सामने वाले देशांतर पर तथा इसके ठीक विपरीत देशांतर पर उच्च ज्वार होता है। जैसे-जैसे पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती जाती है उच्च ज्वारों स्थिति बदलती रहती है। इस प्रकार उच्च ज्वार से पृथ्वी के चारों और ज्वार की स्थिति बदलती रहती है। चूंकि चंद्रमा के संदर्भ में पृथ्वी अपने अक्ष पर एक बार घूमने में लगभग 24 घंटे 52 मिनट का  समय लगाती है इसलिए दो उच्च ज्वारों के बीच लगभग 12 घंटे 26 मिनट का अंतराल होता है। इस प्रकार प्रतिदिन उच्च ज्वार आने का समय लगभग 52 मिनट की देरी से होता है।

 

  • किसी भी समय धरातल पर उपस्थित दो उच्च ज्वार वाले स्थानों के ठीक बीच में ( 90° देशान्तर के अंतर पर) दो देशांतरों पर निम्न ज्वार पाए जाते हैं। इस प्रकार एक उच्च ज्वार तथा इसके पहले अथवा बाद में होने वाले निम्न ज्वार के बीच लगभग 6 घंटे 13 मिनट का अंतराल होता है।

 

  • संसार के विभिन्न समुद्रों में ज्वारीय अंतराल (उच्च तथा निम्न ज्वारों के बीच जल स्तर में अंतर) भिन्न-भिन्न होता है। इस अंतराल में समयानुसार विभिन्नता भी पाई जाती है। जहां उच्च ज्वार समय पानी की भारी मात्रा संकरे क्षेत्रों की ओर धकेली जाती हैज्वारीय अंतराल अधिक होता है। ऐसा खुले समुद्र में उत्पन्न ज्वारों के समय बड़ी मात्रा में पानी के संकरे क्षेत्रों के प्रवेश के कारण होता है। उदाहरण के लिए बंगाल की खाड़ीफंडी की खाड़ी और कच्छ की खाड़ी में काफी ऊंचे ज्वार अंतराल ज्वार पाए जाते हैं। ऐसे स्थान ज्वारीय ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए उत्तम एवं अनुकूल होते हैं ।

 

  • ज्वार-भाटा नदियों तथा नदियों के एस्च्युरी क्षेत्रों में जल स्तर को भी प्रभावित करता है। कभी-कभी समुद्रों एवं सागरों में उत्पन्न ऊंची ज्वारीय तरंगें पानी की एक लगभग खड़ी दीवार की भांति नदियों के मुहानों में प्रवेश कर जाती हैं। इन ज्वारीय तरंगों को 'ज्वारीय बोर' (Tidal bore) कहते हैं। पश्चिमी बंगाल में हुगली नदी का मुहाना इसके लिए प्रसिद्ध है। यद्यपि ज्वार-भाटा वस्तुतः समुद्र जल का नियमित तथा क्रमिक ऊपर उठना तथा नीचे गिरना हैपरंतु कभी-कभी यह ज्वारीय धाराओं को भी जन्म देता है जो पानी को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाती हैं। जहां खाड़ियां समुद्रों के साथ संकरे मार्गों से जुड़ी होती हैं वहां इन. धाराओं के कारण समुद्र का जल खाड़ियों तथा खाड़ियों का जल समुद्र में आता जाता रहता । इसी प्रकार उत्पन्न धाराएं द्वीपों के किनारों पर भी देखी जाती हैं।

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