15वें वित्त आयोग की सिफारिशें | 15th Finance Commission in Hindi

 15वें वित्त आयोग की सिफारिशें 

15वें वित्त आयोग की सिफारिशें | 15th Finance Commission in Hindi


15वाँ वित्त आयोग

  • वित्त आयोग (FC) एक संवैधानिक निकाय है, जो केंद्र और राज्यों के बीच तथा राज्यों के बीच संवैधानिक व्यवस्था और वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप कर से प्राप्त आय के वितरण के लिये विधि और सूत्र निर्धारित करता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत भारत के राष्ट्रपति के लिये प्रत्येक पाँच वर्ष या उससे पहले एक वित्त आयोग का गठन करना आवश्यक है।
  • 15वें वित्त आयोग का गठन भारत के राष्ट्रपति द्वारा नवंबर, 2017 में एन.के. सिंह की अध्यक्षता में किया गया था। इसकी सिफारिशें वर्ष 2021-22 से वर्ष 2025-26 तक पाँच वर्ष की अवधि के लिये मान्य होंगी।

 

 15वें वित्त आयोग की सिफारिशें (Recommendations)

 

  • एन.के. सिंह की अध्यक्षता में गठित 15वें वित्त आयोग ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में कमोवेश पूर्ववर्ती आयोग (14वें वित्त आयोग) की सिफारिशों को संरक्षित रखा है। आयोग ने विभाजन योग्य राजस्व में वित्त वर्ष 2020-21 हेतु राज्यों के लिये 41 प्रतिशत हिस्सेदारी की सिफारिश की हैंजो कि अब तक 42 प्रतिशत थी। 
  • वित्त आयोग के अनुसारराज्यों की हिस्सेदारी में हो रही कटौती साधारणतया पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के हिस्से के बराबर हैजो कि 0.85 प्रतिशत थी। 
  • केंद्र की हिस्सेदारी में बढ़ोतरी का मुख्य कारण नवगठित केंद्रशासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख ) की सुरक्षा तथा अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करना है। 
  • ज्ञात हो कि 15वें वित्त आयोग के विचारार्थ विषयों में रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये केंद्र द्वारा की गई धन राशि की मांग पर विचार करना भी शामिल था। इस संदर्भ में आयोग विशेषज्ञों की एक समिति के गठन पर विचार कर रहा है। 
  • वित्त आयोग द्वारा यह कार्य विभाजन योग्य हिस्से की गणना से पूर्व सकल कर राजस्व से एक अलग कोष बनाकर किया जा सकता हैकिंतु ऐसा करने से राज्यों के हिस्से के राजस्व में कमी हो सकती है।

 

अन्य सिफारिशें

 

  • आयोग ने कुशल सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली का वैधानिक ढाँचा प्रदान करने के लिये कानून का मसौदा तैयार करने हेतु एक विशेषज्ञ समूह के गठन की सिफारिश की है। आयोग का मानना है कि हमें सरकार के सभी स्तरों पर बजटलेखांकन और अंकेक्षण हेतु मानक प्रदान करने वाले एक वैधानिक राजकोषीय ढाँचे की आवश्यकता है।

 

  • वित्त वर्ष 2018-19 में राज्य सरकारों और केंद्र सरकार द्वारा प्राप्त कुल राजस्व देश की GDP का लगभग 17.5 प्रतिशत था। आयोग का विचार है कि देश का वास्तविक कर राजस्व अनुमानित कर राजस्व स्तर से काफी कम है। इसके अलावा 1990 के दशक की शुरूआत से अब तक भारत की कर क्षमता काफी हद तक अपरिवर्तित रही है। इस संदर्भ में आयोग ने 3 प्रमुख सिफारिशें दी हैं (1) कर आधार को व्यापक बनाना (2) कर की दरों को सरल बनाना (3) सरकार के सभी स्तरों पर कर प्रशासन की क्षमता और विशेषज्ञता को बढ़ाना ।

 

  • वित्त आयोग ने वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये स्थानीय निकायों को अनुदान के रूप में 90,000 करोड़ रुपए देने की सिफारिश की हैजो कि अनुमानित विभाजन योग्य राजस्व का 4.31 प्रतिशत है।

 

  • इसके अतिरिक्त आयोग ने वस्तु एवं सेवा कर (GST) के क्रियान्वयन को लेकर रिफंड में देरी और पूर्वानुमान की अपेक्षा कर संग्रह में कमी जैसी कुछ चुनौतियों का भी उल्लेख किया है।

 

जनसंख्या के रूप में मापदंड की आलोचना

 

  • दक्षिणी राज्यों की सरकारों ने आयोग द्वारा उपयोग किये जाने वाले जनसंख्या मापदंड की आलोचना की है। 14वें वित्त आयोग ने राज्यों के हिस्से की गणना के लिये वर्ष 1971 और वर्ष 2011 के जनगणना आँकड़ों का उपयोग किया था और 2011 की अपेक्षा 1971 के आंकड़ों को अधिक महत्त्व दिया था। 14वें वित्त आयोग के विपरीत 15वें वित्त आयोग ने सिर्फ वर्ष 2011 के जनगणना आँकड़ों का प्रयोग किया है। आयोग ने तर्क दिया है कि मौजूदा राजकोषीय समीकरण को देखते हुए यह आवश्यक था कि नवीन जनगणना आंकडों का प्रयोग किया जाए। आलोचना करने वाले राज्यों का मानना है कि वर्ष 2011 के जनगणना आंकड़ों के उपयोग से उत्तर प्रदेश और बिहार जैसी बड़ी आबादी वाले राज्यों को ज्यादा हिस्सा मिल जाएगाजबकि कम प्रजनन दर वाले छोटे राज्यों के हिस्से में काफी कम राजस्व आएगा। हिंदी भाषी उत्तरी राज्यों (बिहारउत्तर प्रदेशमध्य प्रदेशराजस्थान और झारखंड) की संयुक्त जनसंख्या 47.8 करोड़ हैजो कि देश की कुल आबादी का 39.48 प्रतिशत है। इस क्षेत्र के करदाताओं की कर राजस्व में मात्र 13.89 प्रतिशत का योगदान हैजबकि उन्हें कुल राजस्व में से 45.17 प्रतिशत हिस्सा प्रदान किया जाता है। दूसरी ओर आंध्र प्रदेशकेरलकर्नाटक और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों को कम आबादी के कारण कुल राजस्व में भी काफी कम हिस्सा मिलता हैजबकि देश की कुल राजस्व प्राप्ति में उनका योगदान काफी अधिक रहता है।

 

15वाँ वित्त आयोग अन्य महत्वपूर्ण बातें 

 

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 22 नवंबर2017 को 15वें वित्त आयोग के गठन को मंजूरी प्रदान की थी और 27 नवंबर2017 को एन. के. सिंह को 15वें वित्त आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। एन के सिंह भारत सरकार के पूर्व सचिव एवं वर्ष 2008-14 तक बिहार से राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं। 
  • 15वें वित्त आयोग का कार्यकाल वर्ष 2020-25 तक है।  
  • केंद्र कर राजस्व का अधिकांश हिस्सा एकत्र करता है और कुछ निश्चित करों के संग्रह के माध्यम से बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था में योगदान देता है। 
  • स्थानीय मुद्दों और जरूरतों को निकटता से जानने के कारण राज्यों की यह जिम्मेदारी है कि वे अपने लोकहित का ध्यान रखें। 
  • हालांकि इन सभी कारणों के चलते कभी-कभी राज्य का खर्च उनको प्राप्त होने वाले राजस्व से कहीं अधिक हो जाता है। 
  • इसके अलावा व्यापक क्षेत्रीय असमानताओं के कारण कुछ राज्य दूसरों की तुलना में पर्याप्त संसाधनों का लाभ उठाने में असमर्थ हैं। इन असंतुलनों को दूर करने के लिये वित्त आयोग राज्यों के साथ साझा किये जाने वाले केंद्रीय निधियों की सीमा निर्धारित करने की सिफारिश करता है।


15वें वित्त आयोग की सिफारिशें


वर्टिकल हिस्सेदारी (केंद्र और राज्यों के बीच कर की हिस्सेदारी) 

  • 15वें वित्त आयोग ने राज्यों की वर्टिकल हिस्सेदारी को 41 प्रतिशत बनाए रखने की सिफारिश की है, जो कि आयोग की वर्ष 2020-21 में दी गई अंतरिम रिपोर्ट के समान है।
  • यह राशि वर्तमान वितरण पूल के 42 प्रतिशत के स्तर के समान ही है, जिसकी सिफारिश 14वें वित्त आयोग द्वारा की गई थी।
  • हालाँकि इसमें जम्मू-कश्मीर राज्य की स्थिति में बदलाव के बाद बने नए केंद्रशासित प्रदेशों (लद्दाख और जम्मू-कश्मीर) की स्थिति के मद्देनज़र 1 प्रतिशत का आवश्यक समायोजन भी किया गया है।


हाॅरिजेंटल हिस्सेदारी (राज्यों के बीच कर का विभाजन) 

  • राज्यों के बीच कर राजस्व के विभाजन के लिये आयोग ने जो सूत्र प्रस्तुत किया है, उसके मुताबिक राजस्व हिस्सेदारी का निर्धारण करते समय जनसांख्यिकीय प्रदर्शन को 12.5 प्रतिशत, आय के अंतर को 45 प्रतिशत, जनसंख्या और क्षेत्रफल प्रत्येक के लिये 15 प्रतिशत, वन और पारिस्थितिकी के लिये 10 प्रतिशत तथा कर एवं राजकोषीय प्रयासों के लिये 2.5 प्रतिशत भार दिया जाएगा।


राज्यों के लिये राजस्व घाटा अनुदान

 

  • राजस्व घाटा अनुदानों की संकल्पना राज्यों के राजस्व खातों पर उन राजकोषीय ज़रूरतों को पूरा करने के लिये की गई है, जिसकी पूर्ति उनके स्वयं के कर और गैर-कर राजस्व तथा संघ से उनको प्राप्त होने वाले कर राजस्व के बावजूद नहीं हो पाती है।
  • सामान्य बोलचाल की भाषा में किसी वित्तीय वर्ष में कुल सरकारी आय और कुल सरकारी व्यय का अंतर राजस्व घाटा कहलाता है।
  • आयोग ने वित्तीय वर्ष 2026 तक पाँच वर्ष की अवधि के लिये लगभग 3 ट्रिलियन रुपए राजस्व घाटा अनुदान की सिफारिश की है।
  • राजस्व घाटे के अनुदान के लिये योग्य राज्यों की संख्या वित्त वर्ष 2022 के 17 से घटकर वर्ष 2026 तक 6 रह जाएगी।


राज्यों के लिये प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन एवं अनुदान

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  • ये अनुदान मुख्यतः चार विषयों के इर्द-गिर्द घूमते हैं।
  • पहला विषय सामाजिक क्षेत्र है, जहाँ स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • दूसरा विषय ग्रामीण अर्थव्यवस्था है, जहाँ कृषि और ग्रामीण सड़कों के रखरखाव पर ध्यान केंद्रित किया है।
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था देश के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि इसमें देश की दो-तिहाई आबादी, कुल कार्यबल का 70 प्रतिशत और राष्ट्रीय आय का 46 प्रतिशत हिस्सा शामिल है।
  • तीसरा विषय शासन और प्रशासनिक सुधार है, जिसके तहत आयोग ने न्यायपालिका, सांख्यिकी और आकांक्षी ज़िलों तथा ब्लॉकों के लिये अनुदान की सिफारिश की है।
  • इस श्रेणी में बिजली क्षेत्र के लिये आयोग द्वारा विकसित एक प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन प्रणाली शामिल है, जो अनुदान से संबंधित नहीं है, बल्कि यह राज्यों को अतिरिक्त उधार प्राप्त करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण विंडो प्रदान करती है।


राजस्व में केंद्र की हिस्सेदारी

 

  • 15वें वित्त आयोग द्वारा राज्यों को किया गया कुल हस्तांतरण (कर वितरण + अनुदान) केंद्र सरकार की अनुमानित सकल राजस्व प्राप्तियों का लगभग 34 प्रतिशत है, जिससे केंद्र सरकार के पास अपनी आवश्यकताओं और राष्ट्रीय विकास प्राथमिकताओं के दायित्त्वों को पूरा करने के लिये पर्याप्त राजस्व बचता है।


स्थानीय सरकारों को अनुदान

 

  • आयोग ने अपनी सिफारिशों में नगरपालिकाओं और स्थानीय सरकारी निकायों के लिये अनुदान के साथ-साथ, नए शहरों के इन्क्यूबेशन हेतु प्रदर्शन-आधारित अनुदान तथा स्थानीय सरकारों के लिये स्वास्थ्य अनुदान को भी शामिल किया है।
  • शहरी स्थानीय निकायों के लिये अनुदान की व्यवस्था के तहत मूल अनुदान केवल उन शहरों/कस्बों के लिये प्रस्तावित है, जिनकी आबादी दस लाख है। दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों को 100 प्रतिशत अनुदान मिलियन-प्लस सिटीज़ चैलेंज फंड (MCF) के माध्यम से प्रदर्शन के आधार पर दिया जाएगा।
  • दस लाख से अधिक आबादी के शहरों का प्रदर्शन उनकी वायु गुणवत्ता में सुधार और शहरी पेयजल आपूर्ति, स्वच्छता और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन आदि मापदंडों के आधार पर मापा जाएगा।

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