बृहत वृत्त और न्यून वृत्त |पृथ्वी की गतियां और उनका प्रभाव |पृथ्वी का अपने अक्ष पर झुकाव और उसका प्रभाव | Earth Rotation and Effect

बृहत वृत्त और न्यून वृत्त, पृथ्वी की गतियां पृथ्वी का अपने अक्ष पर झुकाव और उनका प्रभाव 

बृहत वृत्त और न्यून वृत्त  |पृथ्वी की गतियां और उनका प्रभाव |पृथ्वी का अपने अक्ष पर झुकाव और उसका प्रभाव | Earth Rotation and Effect



बृहत वृत्त और न्यून वृत्त 

  • बृहत वृत्त वह वृत्त होते हैं जिनके तल पृथ्वी के बीचों-बीच से गुजरते हुए इसे दो समान भागों में विभक्त करते हैं। इसके विपरीत जो वृत्त पृथ्वी के बीच से नहीं गुजरते और उसे दो असमान भागों में विभक्त करते हैंन्यून वृत्त कहलाते हैं .
  • अक्षांश रेखाओं में केवल भूमध्य रेखा एक बृहत वृत्त है और अन्य सभी रेखाएं न्यून वृत्त हैं। 
  • अक्षांश रेखाओं के विपरीत सभी देशांतर रेखाएं बृहत वृत्त होती हैं। बृहत वृत्तों की चाप पृथ्वी पर दो स्थानों के बीच न्यूनतम दूरी को दर्शाती हैं। इसलिए नाविक अपनी यात्राओं को छोटा रखने के लिए बृहत वृत्त मार्गों का अनुसरण करते हैं धरातल पर अनेक बृहत वृत्त खींचे जा सकते हैंअर्थात इन वृतों की संख्या निश्चित अथवा सीमित नहीं है।

 

पृथ्वी की गतियां और उनका प्रभाव 

  • पृथ्वी की दो गतियां है जिन्हें दैनिक गति व वार्षिक गति कहा जाता है। 
  • पृथ्वी की दैनिक गति के कारण ही पृथ्वी पर कोई स्थान अथवा क्षेत्र सूर्य के सम्मुख आता है अथवा इससे परे चला जाता है। दैनिक गति के अंतर्गत पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करती है जिसमें उसे 24 घंटे लगते हैं। इस गति के कारण ही पृथ्वी पर दिन और रात की परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं। 
  • पृथ्वी अपनी धुरी पर घूर्णन करने के साथ-साथ सूर्य के चारों ओर भी परिक्रमा करती है। सूर्य का एक चक्कर लगाने में उसे लगभग 365.25 दिन का समय लगता है। यह पृथ्वी की वार्षिक गति कहलाती है।
  • वार्षिक गति पृथ्वी पर ऋतु परिवर्तन के लिए उत्तरदायी है। पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक अंडाकार मार्ग पर चक्कर लगाती है जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी तथा सूर्य के बीच की दूरी में परिवर्तन होता रहता है।
  • सूर्य से पृथ्वी की न्यूनतम दूरी (147,000,000 कि.मी.) 3 जनवरी के आस-पास उपसौर की स्थिति में होती है जबकि सूर्य से पृथ्वी की अधिकतम दूरी (152,000,000 कि.मी.) 4 जुलाई के आस-पास अपसौर की स्थिति में होती है। 
  • पृथ्वी और सूर्य के बीच इन परिवर्तित स्थितियों के कारणपृथ्वी सूर्य से जनवरी माह में जुलाई की अपेक्षा अधिक ऊर्जा प्राप्त करती है। 
  • पृथ्वी की वार्षिक गति के परिणाम स्वरूप धरातल पर सूर्य की लंबवत किरणों की स्थिति अथवा किसी स्थान विशेष पर सौर किरणों के कोण में परिवर्तन होता रहता है। इसी कारण पृथ्वी पर ऋतु परिवर्तन होता है।

 

पृथ्वी का अपने अक्ष पर झुकाव और उसका प्रभाव 

  • पृथ्वी का ध्रुवीय अक्ष इसके परिक्रमा तल के साथ 661/2° का कोण बनाता है अर्थात पृथ्वी इस तल पर लंबवत रेखा से 23½° झुकी हुई है। इस तल (पृथ्वी के परिक्रमा तल) को क्षितिज के समानांतर और पृथ्वी के बीच से गुजरता माना जाता है। 
  • पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करती हुई सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है। इस प्रकार घूर्णन करते हुए पृथ्वी पर किसी भी स्थान पर सूर्य की किरणों के कोण में परिवर्तन होता रहता है जिसके कारण किसी भी स्थान पर उपलब्ध सूर्यताप की मात्रा में परिवर्तन होता रहता है। इस प्रकार सूर्य से अधिकतम और न्यूनतम दूरी तथा सूर्यताप की मात्रा में परिवर्तन के कारण ऋतु परिवर्तन होता है। 
  • जब सूर्य की किरणें धरातल पर लंबवत अथवा लगभग लंबवत पड़ती हैं तो गर्मी का अनुभव होता है। इसके विपरीत जब सूर्य की किरणें धरातल पर तिरछी पड़ती हैं तो धरातल पर कम ऊर्जा प्राप्त होने से सर्दी का अनुभव होता है। अतः ऋतु परिवर्तन पृथ्वी के सूर्य के चारों ओर परिक्रमण करने तथा इसके अक्ष के झुकाव का परिणाम है। 
  • सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर वर्ष भर लगभग लंबवत पड़ती हैं। इसलिए यहां तापमान उच्च पाया जाता है तथा दिन तथा रात बराबर होते हैं। सूर्य की किरणें विषुवत रेखा पर लंबवत होने की स्थिति में प्रत्येक स्थान पर रात और दिन समान होते हैं। इस स्थिति को विषुव कहते हैं। सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हुए पृथ्वी सूर्य के संदर्भ में चार महत्वपूर्ण स्थितियों से होकर गुजरती है। इन्हें विषुव और अयनांत कहते हैं।

 

  • 21 जून को पृथ्वी अपनी कक्षा में इस प्रकार स्थित होती है कि पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर अधिकतम झुका होता है तथा उस समय सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर लंबवत पड़ती हैं। यह वह समय होता है जब उत्तरी गोलार्द्ध में दिन की अवधि लंबी होती है तथा रातें छोटी होती हैं। इस स्थिति को ग्रीष्म अयनांत कहते हैं। इस समयावधि में उत्तरी ध्रुव पर लगातार दिन और दक्षिणी ध्रुव पर लगातार रात होती है। किसी भी समय सूर्य का प्रकाश केवल आधी पृथ्वी को ही प्रकाशित कर पाता है तथा इस समय प्रकाश का वृत्त कर्क रेखा पर केंद्रित होता है। अतः इस समय दक्षिणी ध्रुव तक प्रकाश नहीं पहुंचता जबकि उत्तरी ध्रुव पर लगातार प्रकाश बना रहता है। 
  • इसके विपरीत 22 दिसंबर को पृथ्वी अपनी कक्षा में इस प्रकार अवस्थित होती है कि दक्षिणी ध्रुव सूर्य की ओर अधिकतम झुका होता है तथा सूर्य मकर रेखा के सीधे ऊपर होता है तथा इसकी किरणें मकर रेखा पर लंबवत पड़ती हैं। यह उत्तरी गोलार्द्ध में शीत तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में ग्रीष्म ऋतु का समय होता है। इस स्थिति को 'शीत अयनांतकहा जाता है। इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में दिनदक्षिणी गोलार्द्ध की अपेक्षा छोटे होते हैं। इस समय सूर्य से आने वाले प्रकाश वृत्त का केन्द्र मकर रेखा पर होता है। अतः इस समय उत्तरी ध्रुव पर प्रकाश नहीं पहुंचता जबकि दक्षिणी ध्रुव पर लगातार प्रकाश रहता है।

 

  • ग्रीष्म अयनांत तथा शीत अयनांत के बीच वर्ष में कुछ दिन ऐसे भी आते हैं। जब सूर्य विषुवत रेखा के ठीक ऊपर होता है और सूर्य की लंबवत किरणें विषुवत रेखा पर पड़ती हैं। इन स्थितियों को 'विषुवकहते हैं। इस अवधि में संपूर्ण पृथ्वी पर दिन और रात समान होते हैं। बसंत विषुव 21 मार्च और शरद विषुव 23 सितंबर को होता है।

 

  • शीत अयनांत के समय उत्तरी ध्रुव पर सूर्य दिखाई नहीं देता है जबकि ग्रीष्म अयनांत के समय दक्षिणी ध्रुव पर सूर्यअदृश्य हो जाता है। जब सूर्य की किरणें उत्तरी गोलार्द्ध में कर्क रेखा पर लंबवत होती हैं तब दक्षिणी गोलार्द्ध में ये अत्याधिक तिरछी होती हैं। ठीक इसी प्रकार जब दक्षिणी गोलार्द्ध सूर्य की लंबवत किरणें प्राप्त करता है तो उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य की किरणें तिरछी हो जाती हैं। अतः जब उत्तरी गोलार्द्ध में शीतकाल होता है तो दक्षिणी गोलार्द्ध में ग्रीष्मकाल होता है। अर्थात उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में ऋतुएं परस्पर विपरीत होती हैं .

 

  • ग्रीष्म अयनांत के समय उत्तरी ध्रुव पर लगातार दिन होता है जबकि दक्षिणी ध्रुव पर लगातार रात होती है। इसके ठीक विपरीत स्थिति शीत अयनांत के समय होती है जबकि उत्तरी ध्रुव पर लगातार रात तथा दक्षिणी ध्रुव पर लगातार दिन होता है। लगातार 24 घंटे अथवा इससे अधिक लम्बे दिन और रातें केवल आर्कटिक और अंटार्कटिक वृत्तों में ही सम्भव होते हैं। दिन और रात की सर्वाधिक लंबी अवधि ध्रुवों पर होती है जबकि इनकी समान अवधि विषुवत रेखा पर या विषुव के समय संपूर्ण पृथ्वी पर पाई जाती है।

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