लोकतन्त्र की अवधारणा | लोकतन्त्र का अर्थ एवं परिभाषा |Concept and definitions of Democracy

लोकतन्त्र की अवधारणा , लोकतन्त्र का अर्थ एवं परिभाषा

लोकतन्त्र की अवधारणा | लोकतन्त्र का अर्थ एवं परिभाषा |Concept and definitions of Democracy


लोकतन्त्र की अवधारणा 

  • लोकतन्त्र वर्तमान युग की सबसे लोकप्रिय अवधारणा है। सत्ता और जनता के बीच घनिष्ठ एवं आत्यन्तिक सम्बन्ध स्थापित करने वाली एक प्रणाली के रूप में लोकतन्त्र सभी देशों में एक अनिवार्य, अपरिहार्य एवं नितान्त वांछित आवश्यकता के रूप में है। विश्व के सभी राष्ट्र चाहे उनकी शासन पद्धतियां कुछ भी क्यों न हो अपने को लोकतन्त्र की ही संज्ञान देते हैं। प्रायः प्रत्येक राजनीतिक पद्धति लोकतान्त्रिक सिद्धान्तों को अपना रही है। सत्ता में जनसहभागिता सुनिश्चित करने वाली यह व्यवस्था सार्वजनिक संप्रभुता की द्योतक है। आज मानव शक्ति को अन्मुक्त करने के लिए कोई विचारवाद इतना प्रबल नहीं है जितना कि लोकतन्त्र। वास्तव में अब यह विचारवाद न रहकर मानव धर्म बना गया है।

 

  • इतिहास के क्रम में द्वितीय विश्वयुद्ध में इटली तथा जर्मनी (धुरी के राष्ट्रों) के पतन के पश्चात् मित्र राष्ट्रों (अमेरिका, ब्रिटेन एवं फ्रांस) की विजय ने लोकतंत्र को पुनः प्रतिष्ठा दी जो कि 1920 से 1940 तक यूरोप, एशिया तथा अमेरिका के कई देशों में अधिनायकता के फलस्वरूप न ही गई थी। विश्व में आज लोकतंत्र काफी सम्मान का पात्र है। विश्व में चारों ओर लोकतन्त्रात्मक शासन व्यवस्था का ही बोलबाला है। यह बात उल्लेखनीय है कि 1949 में यूनेस्को ने जो अपनी रिपोर्ट प्रकाशित उससे ज्ञात होता है कि विश्व के अधिकांश विद्वान लोकतंत्र को उचित और आदर्श राजनीतिक और सामाजिक संगठन समझते हैं।

 

  • प्लेटो से लेकर वर्तमान तक राजनीति विज्ञान में लोकतंत्र ( जनतंत्र अथवा प्रजातंत्र ) सर्वाधिक चर्चित विषय रहा है। वर्तमान समय को साधरण आदमी का युग माना जाता है, जो लोकतंत्र का एक अत्यन्त उपयोगी अवयव है। लोकतंत्र का एक अत्यनत उपयोगी अवयव है । लोकतंत्र कतिपय शाश्वत वरीयताओं, पर आधारित है, जिनको डॉल, डेविड ईस्टन, हेरॉल्ड लासवेल आदि सभी व्यवहारवादी राजनेताओं ने परम मूल्य के रूप में अपनाया आनुभाविक, सन्दर्भ में इसके लगातार सत्यापन के पक्ष में हैं, किनतु समानताओं के होते हुए भी, पैराक्लीज के एथेन्स तथा टॉमस जकरसन और एण्ड्रयू जैम्सन के प्रजातंत्र से आज का प्रजातंत्र नितानत भिन्न है। इनको एक दूसरे का पर्यायवाची समझना अनुचित है। वर्तमान समय का प्रजातंत्र राज्य प्रधान है। और इसमें अनेक मिश्रित विचारधाराओं काह समावेश है जैसे राष्ट्रीय प्रजातन्त्र, समाजवादी प्रजातन्त्र, जनवादी प्रजातन्त्र, मूलभुत या पचांयत प्रजातन्त्र आदि। प्रजातन्त्र के ऐतिहासिक तथा शास्त्रीय स्वरूप में वर्तमान युग के सन्दर्भ में पर्याप्त परिवर्तन हो जाने से अनेक राजनितिशास्त्रियों ने नये नाम सुझाये है। राबर्ट ए0 डहल उसे लोकप्रिय शासन या बहुतन्त्र कहा है तो लोवेस्टीन ने पोलोक्रेसी कहना उचित समझा है। अन्य विद्वानों ने उसे दलीय तन्त्रं, जनतन्त्र, निर्वाचित बहुमत, लोकतन्त्र आदि नामों से पुकारा है। हिन्दी भाषा मे जनतन्त्र आर्थिक प्रजातन्त्र के लिए तथा लोकतन्त्र राजनितिक प्रजातन्त्र लिए प्रयोग किया जाता है। इन विभिन्न नामों के प्रयोग से प्रजातन्त्र के स्वरूप में अनिश्चयात्मकता अस्पष्टता, श्रान्ति आदि वैचारिक कठिनाइयाँ पैदा हो गयी है। इसके साथ ही पश्चिमी ओर अमेरिकी प्रजातनत्र में यह एक जीवन प्रणाली बनकर राज्यव्यवस्थाओं में समा गया है। सारटोरी ने इस अवसान के कारण वर्तमान अवस्था को प्रजातन्त्रात्मक श्रान्ति का युग कहा है.

 

लोकतन्त्र का अर्थ एवं परिभाषा 

आज लोकतन्त्र शासन का श्रेष्ठतम रूप बन गया है। लोकतन्त्र शब्द अंग्रेजी भाषा के डेमोक्रेसी शब्द का हिन्दी रूपान्तर है, जो दो यूनानी शब्दों से मिलकर बना है- डेमोस और क्रेटोस । डेमोस का अर्थ जनता और क्रेटोस का अर्थ है सरकार या शासन । इस प्रकार शब्द की उत्पत्ति के दृष्टिकोण से प्रजातन्त्रसे अभिप्राय है जनता का शासन कुछ लोग इसे लोकतन्त्र, कुछ प्रजातंत्र से और कुछ जनतंत्र के ना मसे पुकारते हैं। साधारणतया लोकतंत्र से अभिप्राय उस शासन व्यवस्था से है जिसमें जनता शासन करती है, वही सरकार का निर्माण करती हैं, शासन का संचालन करती है तथा सरकार के प्रति उत्तरदायी भी होती है। शासन की सत्ता जनता के हाथों में रहती है, जिसका प्रयोग वह या तो स्वयं करती है या अपने प्रतिनिधियों द्वारा कराती है। महात्मा गाँधी के शब्दों में लोकतंत्र वह कला एवं विज्ञान है। जिसके अन्तर्गत जनसाधारण के विभिन्न वर्गों के भौतिक, आर्थिक एवं आध्यात्मिक संसाधनों को सभी के समान हित की सिद्धि के लिए नियोजित किया जाता है। इसी संदर्भ में जवाहर लाल नेहरू का दृष्टिकोण है कि लोकतंत्र का आशय सहिष्णुता है, न केवल उन लोगों के प्रति सहमति हो वरन् उनके प्रति भी जिनसे असहमति हो ।

 

लोकतंत्र की विद्धानों ने अनेक प्रकार से परिभाषाएं की हैं

 

1. प्राचीन युग में यूनानी लोग लोकतंत्र को बहुरक्षकों का शासन मानते थे। प्रसिद्ध ग्रीक दार्शनिक हिरोडोटस के अनुसार- “लोकतंत्र उस शासन व्यवस्था का नाम है, जिसमें राज्य की सर्वोच्च सत्ता सम्पूर्ण जनता के हाथों में निवास करती है। "

 

2. सीले के शब्दों में "प्रजातंत्र वह शासन है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति का एक भाग होता है। "

 

3. डायसी के अनुसार “ प्रजातंत्र वह शासन का स्वरूप है जिसमें शासन प्रबन्ध करने वाली संस्था समूचे राष्ट्र का एक अप्रेक्षाकृत बड़ा भाग होती है।"

 

4.लेविस का मत है कि-“वस्तुतः प्रजातंत्र वह सरकार में है, जिसमें सम्पूर्ण राष्ट्र की बहुसंख्यक जनता प्रभूशक्ति के प्रयोग में हिस्सा लेती है। "

 

5. हॉल के अनुसार-“ प्रजातंत्र राजनीतिक संगठन का वह स्वरूप है जिसमें जनमत का रहता है।"

 

6. आशीर्वादम के शब्दों में " हमारा विश्वास है कि प्रजातंत्र मानवता के प्रति हमारे उत्साह की व्यावहारिक अभिव्यक्ति है।"

 

7. ऑस्टिन के अनुसार-“ प्रजातंत्र वह शासन है जिसमें शासन की अंतिम शक्ति जनता के अधिकांश भाग को प्राप्त होती है। "

 

8. अब्राहम लिंकन के अनुसार “ लोकतंत्र जनता का जनता के द्वारा और जनता के लिए (स्थापित) शासन प्रणाली है। "

 

उपर्युक्त परिभाषाओं में सर्वाधिक लोकप्रिय व मान्य परिभाषा अब्राहम लिंकन की है, जिसे उन्होने गोटसबर्ग के भाषण में कहा था। लोकतंत्र की विविध परिभाषाओं का मूल अभिप्राय यह है कि लोकतंत्रीय प्रणाली में शासन या सत्ता का अंतिम सूत्र जनसाधारण के हाथों में रहता है सार्वजनिक नीति जनता की इच्छा के अनुसार और जनता के हित साधन के उद्देश्य से बनाई जाए और कार्यान्वित की जाय

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