प्लेटो कौन थे प्लेटो का जीवन-वृत्त (परिचय) |प्लेटो का जीवन-दर्शन रचनायें|Plato Short Biography Details in hindi

प्लेटो कौन थे  प्लेटो का जीवन-वृत्त (परिचय) 

प्लेटो कौन थे  प्लेटो का जीवन-वृत्त (परिचय) |प्लेटो का जीवन-दर्शन रचनायें|Plato Short Biography Details in hindi


प्लेटो कौन थे उनके बारे में जानकारी 

प्लेटो को मानव-जाति के महानतम दार्शनिकों में से एक माना जाता है। उनका लक्ष्य न्याय पर आधारित राज्य की स्थापना है। प्लेटो के आदर्श राज्य के नागरिकों में कौन से गुण होने चाहिए? उन गुणों को कैसे विकसित किया जाये? जैसे प्रश्नों का उत्तर प्लेटो शिक्षा में पाते हैं। प्लेटो इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि शिक्षा के माध्यम से ही न्याय पर आधारित आदर्श राज्य की स्थापना की जा सकती है। इस प्रकार प्लेटो की महानतम कृति 'रिपब्लिक' मूलतः शिक्षा पर लिखी गई प्रथम पुस्तक बन जाती है। प्लेटो विश्व का प्रथम दार्शनिक है जिन्होंने शिक्षा के उद्देश्यों की विस्तृत व्याख्या की एवं शिक्षा की व्यापक योजना प्रस्तुत की। शिक्षा के सिद्धान्त तथा शिक्षित व्यक्ति के वैचारिक जीवन पर प्लेटो के सिद्धान्तों का व्यापक तथा स्थायी प्रभाव पड़ा।


प्लेटो का जीवन-वृत्त (परिचय)

 

  • प्लेटो का जन्म 427 ईसा पूर्व में एथेन्स के एक अत्यन्त ही समृद्ध तथा कुलीन परिवार में हुआ था । उसका पालन-पोषण अमीरों की भाँति हुआ । पर वैभव और ऐश्वर्य का यह वातावरण प्लेटो के व्यक्तित्व के विकास को अवरोधित नहीं कर सका । वह बहुआयामी व्यक्तित्व का स्वामी था । उसने तत्कालीन उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। वह सुन्दर, आकर्षक और स्वस्थ देह-यष्टि का स्वामी था। व्यायाम में उसकी गहरी रूचि थी और कुश्ती में भी वह प्रवीण था । उसने एथेन्स की सेना में भी काम किया। वह एक महान भाव - प्रवण कवि था और सबसे बढ़कर एक महान दार्शनिक था ।

 

  • प्रभावशाली राजनीतिक परिवार के होने के बावजूद प्लेटो को राजनीति से अरूचि थी। एथेन्स की तत्कालीन राजनीतिक पतन ने प्लेटो को राजनीति से पूर्णतः विमुख कर दिया। एथेन्स जहाँ अपना प्रभाव खोता जा रहा था वहीं सैनिक शक्ति में विश्वास रखने वाले स्पार्टा का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा था। मैसेडोनिया भी प्रगति कर रहा था। पेलेपोनेसियन युद्ध के कारण एथेन्स और कमजोर हो गया। प्रजातंत्र के स्थान पर एथेन्स में कुलीन तंत्र का शासन हो गया। यद्यपि प्रजातांत्रिक व्यवस्था फिर वापस आई- पर इसी शासन में प्लेटो के गुरू सुकरात को मृत्यु - दंड दिया गया। इस घटना ने प्लेटो को राजनीति से पूर्णतः विरत कर दिया।

 

  • बीस वर्ष की अवस्था में प्लेटो सुकरात के सम्पर्क में आया तथा की मृत्यु तक, यानि 3990पू0 तक प्लेटो सुकरात का प्रिय शिष्य सुकरात बना रहा। सुकरात के व्यक्तित्व एवं ज्ञान का प्लेटो पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा। के सुकरात के सान्निध्य में प्लेटो की दर्शन में गहरी रूचि हो गई। 399 ई० पू० में जब सुकरात को मृत्युदंड दिया गया, प्लेटो की आयु 28 वर्ष की थी।
  • गुरू की हत्या के कारण उसका एथेन्स से मोह भंग हो गया और उसने अगला दस वर्ष एथेन्स से बाहर मेगारा, मिश्र तथा इटली में बिताया। यह प्लेटो के जीवन का दूसरा भाग माना जा सकता है। मेगारा में प्रसिद्ध गणितज्ञ युक्लिड के सान्निध्य में पार्मेनाइडिस के सिद्धान्त का गहन अध्ययन किया । मिश्र की सभ्यता के विकास ने प्लेटो को बहुत अधिक प्रभावित किया । इटली में पाइथागोरस के सिद्धान्तों का अध्ययन किया तथा इटली में शासन व्यवस्था की बारीकियों को जाना। इस प्रकार दस वर्षो के लम्बे देशाटन और विद्वानों की संगति ने प्लेटो को बौद्धिक तौर पर और परिपक्व बनाया। एथेन्स वापस आकर प्लेटो ने अपनी विश्व-प्रसिद्ध शिक्षण संस्था 'एकेडमी' की स्थापना की। 
  • प्लेटो के जीवन का यह तीसरा और सबसे अधिक रचनात्मक भाग था । अपने जीवन के अगले चालीस वर्षों तक वे इसी संस्था के माध्यम से शिक्षा देते रहे। प्लेटो की मृत्यु 347 ई०पू० हुई, पर एकेडमी इसके उपरांत भी चलती रही। बाद में रोम के शासक की आज्ञा पर इस एकेडमी को बन्द कर देना पड़ा।

 

प्लेटो का जीवन-दर्शन

 

  • प्लेटो अपने गुरू सुकरात की ही तरह यह मानते है कि समय की आवश्यकता जीवन में एक नये नैतिक बन्धन (मोरल बॉन्ड) की है। प्लेटो ने जीवन के लिए एक नए नैतिक आधार को तैयार करने की कोशिश की जिसमें व्यक्ति को पर्याप्त अवसर हो तथा संस्थागत जीवन को भी उचित मान्यता मिले। प्लेटो इस नए नैतिक बन्धन का आधार विचारों तथा सार्वभौमिक एवं शाश्वत सत्य को मानते है। उनके अनुसार अच्छाई ज्ञान या पूर्ण विचारों में समाहित होता है जो कि 'मत' से भिन्न होता है।

 

  • प्लेटो एक आदर्शवादी चिन्तक थे जिन्होंने यथार्थ तथा अस्थायी की उपेक्षा की है तथा सार्वभौम और स्थायी पर बल दिया है। प्लेटो के लिए दृष्टिगोचर होने वाली वस्तुएँ कालसत्तात्मक (ऐहिक) है तथा अदृश्य वस्तुएँ ही नित्य हैं। उसके प्रत्यय दिव्य उपपत्तियां है, तथा इनका अनुभव ही विज्ञान अथवा ज्ञान है। इसके विपरीत वे लोग जो सिद्धान्तों का उनके मूर्त प्रतिमूर्तियों से अलग बोध नहीं रखते, ऐसे संसार में रहते हैं, जिसे प्लेटो स्वापनिक स्थिति कहते हैं। उनका वस्तुओं से परिचय मात्र 'मत' के समान होता है, वे यर्थाथ का बोध तो रखते है, किन्तु सत् के ज्ञान से रहित होते है।

 

  • आदर्शवादी दर्शन भौतिक पदार्थ की तुलना में विचार को स्थायी और श्रेष्ठ मानता है। प्लेटो महानतम आदर्शवादी शिक्षाशास्त्री थे। उनके अनुसार पदार्थ जगत, जिसको हम इन्द्रियों से अनुभव करते हैं, वह विचार जगत का ही परिणाम है। विचार जगत वास्तविक और अपरिवर्तनशील है। इसी से भौतिक संसार का जन्म होता है। भौतिक पदार्थों का अन्त अवश्यम्भावी है।

 

  • विचार जगत का आधार प्रत्यय है। प्लेटो के अनुसार प्रत्यय पूर्ण होता है और इन्द्रियों के सम्पर्क में आने वाले भौतिक वस्तु अपूर्ण। प्लेटो ने फेइडरस में सुकरात से कहलवाया है कि सत्य या वास्तविकता का निवास मानव के मस्तिष्क में होता है न कि बाह्य प्रकृति में। (रॉस: 61) ज्ञानी मानव वह है जो दृष्टि जगत पर ध्यान न देकर प्रत्ययों के ज्ञान की जिज्ञासा रखता है- क्योंकि प्रत्ययों का ज्ञान ही वास्तविक ज्ञान है। ज्ञान तीन तरह के होते है- (i) इन्द्रिय-जन्य ज्ञान (ii) सम्मति जन्य ज्ञान तथा (ii) चिन्तन या विवेक जन्य ज्ञान। इनमें से प्रथम दो अधूरा, अवास्तविक एवं मिथ्या ज्ञान है जबकि चिन्तन या विवेकजन्य ( प्रत्ययों का) ज्ञान इन्द्रियातीत होने के कारण वास्तविक, श्रेष्ठ एवं अपरिवर्तनशील है। व्यक्ति किसी भी पदार्थ को अपनी दृष्टि से देखकर उसकी व्याख्या करता है। दूसरा व्यक्ति उसी पदार्थ की उससे भिन्न अर्थ ग्रहण कर सकता है। इस तरह से सम्मति भिन्न हो सकती है। अतः इसे ज्ञान कहना उचित नहीं है। प्लेटो ने रेखागणित के सिद्धान्तों को बेहतर ज्ञान कहा । जैसे त्रिभुज की दो भुजा मिलकर तीसरी भुजा से बड़ी होती है - यह सभी त्रिभुजों के लिए सही है। इससे भी अधिक श्रेष्ठ ज्ञान प्लेटो ने तत्व ज्ञान को माना ।

 

  • प्लेटो ने संसार को सत् और असत् दोनों का संयोग माना है। प्रत्ययों पर आधारित होने के कारण संसारिक पदार्थ सत् है पर समरूपता का आभाव एवं क्षणभंगुरता उसे असत् बना देता है। प्लेटो ने दृष्टि जगत को द्रष्टा की क्रिया का फल माना है। प्लेटो आत्मा की अमरता को स्वीकार करते हुए इसे परम विवेक का अंश मानता है ।

 

  • नैतिक मूल्यों के सिद्धान्त को प्लेटो के संवाद में उच्च स्थान मिला है। सोफिस्टों ने यह धारणा फैलायी थी कि गलत और सही परिस्थिति विशेष पर निर्भर करता है। जो एक समय और स्थान पर सही है वह दूसरे समय और स्थान पर गलत हो सकता है। प्लेटो सुकरात के माध्यम से इस अवसरवादी विचारधारा का विरोध करते हुए कहते हैं कि नैतिक मूल्य शाश्वत हैं। फेडो में प्लेटो ने सम्पूर्ण सुन्दरता, सम्पूर्ण अच्छाई तथा सम्पूर्ण महानता की बात की है। इस संसार में जो भी सुंदर या अच्छा है वह इसी सम्पूर्ण सुन्दरता या अच्छाई का अंश है। सर्वोच्च सत्य से ही अन्य जीव एवं पदार्थ अपना अस्तित्व प्राप्त करते हैं ।

 

  • यद्यपि प्लेटो ने सर्वोच्च सत्य या सत्ता को ईश्वर या गॉड के नाम से नहीं पुकारा (रॉस, 71 ) पर इसी परम सत्य का अंश मानव की आत्मा को माना । प्लेटो के अनुसार इस संसार और जीवन से परे भी एक संसार और जीवन है जो अधिक सत्य, अधिक सुंदर तथा अधिक वास्तविक है। आदर्श जीवन का उद्देश्य शिवत्व (अच्छाई ) एवं सुन्दरता प्राप्त करना बताता है (रॉस: 128) |

 

प्लेटो की रचनायें

 

  • शिक्षा की दृष्टि से प्लेटो की सर्वाधिक महत्वपूर्ण कृति 'दि रिपब्लिक' है। रूसो ने 'दि रिपब्लिक' का निरपेक्ष मूल्यांकन करते हुए कहा "अगर आप जानना चाहते हैं कि पब्लिक (सार्वजनिक) शिक्षा का क्या अर्थ है तो प्लेटो का रिपब्लिक पढ़िये । जो पुस्तकों के संदर्भ में केवल नाम या शीर्षक से निर्णय लेते हैं वे इसे राजनीति से सम्बन्धित मानते हैं, जबकि शिक्षा पर कभी भी लिखी गई यह सर्वोत्तम कृति है ।" इस तरह से दि रिपब्लिक को शिक्षा शास्त्रियों ने अपने विषय का उत्कृष्टम ग्रंथ माना है। इसके प्रारम्भिक पृष्ठों में सुकरात को अपने मित्रों एवं शिष्यों के साथ न्याय पर आधारित राज्य की कल्पना करते दिखाया गया है। इसके लिए न्याय प्रिय नागरिक होना चाहिए। इस तरह से न्याय की प्रकृति पर विमर्श वस्तृतः शिक्षा पर विमर्श बन जाता है।

 

प्लेटो ने अनेक पुस्तक (संवाद) लिखे। इन संवादों को भाषा और शैली के आधार पर सर डेविड रॉस ने रचनाकाल को तय कर क्रमबद्ध करने का प्रयास किया है।

 

1. प्रथम काल (389 ई०पू० से पहले) - कैरेमिडेस, लैचेज, यूथाइफ्रो, हिपियस मेजर तथा मेनो 

2. द्वितीय काल (3890पू0 से 367 ई०पू० )- क्रेटाइलस, सिम्पोजिसम, फैडो, दि रिपब्लिक, फेयड्रस, परमेन्डिस तथा थियेटिटस। 

3. तृतीय काल ( 366 ई०पू० से 361 ई०पू० ) – सोफिस्टस तथा - पोलिटिक्स 

4. चतुर्थ काल (361 ई०पू० के उपरान्त ) – दि लॉज ।

 

इस सूची में पूर्व में लिखे संवादों जैसे दि एपोलॉजी, क्रीटो, लोइसिस, प्रेटागोरस, यूथिडेमस को नहीं रखा है क्योंकि ये संवाद प्लेटो के विचारों पर बहुत ही कम प्रकाश डालते हैं। सभी रचनायें संवाद या वार्त्तालाप पद्धति में हैं। संवादों में सुकरात को सभी ज्ञान का स्रोत दिखाकर प्लेटो अपने गुरू को अद्वितीय श्रद्धांजलि देता है ।

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