मध्य प्रदेश की डामोर, डामरिया जनजाति | MP Damriya Tribes Details in Hindi

 मध्य प्रदेश की डामोर, डामरिया जनजाति  (MP Damriya Tribes Details  in Hindi)

मध्य प्रदेश की डामोर, डामरिया जनजाति | MP Damriya Tribes Details  in Hindi



मध्य प्रदेश की डामोर, डामरिया जनजाति (MP Damriya Tribes Details  in Hindi)

डामोर, डामरिया जनजाति की कुल जनसंख्या 1815 आंकी गई हैं, जो प्रदेश की कुल जनसंख्या का 0.002 प्रतिशत हैं।

 

डामोर, डामरिया जनजाति निवास क्षेत्र

 

म.प्र. में यह जनजाति मुख्यतः झाबुआ, रतलाम, धार, मन्दसौर  जिलों में पायी जाती है। मध्यप्रदेश में डामोर जनजाति की जनसंख्या जिला ग्वालियर, शिवपुरी, गुना, पन्ना, सागर, सतना, शहडोल, सीधी, नीमच, मन्दसौर, रतलाम, उज्जैन, शाजापुर, देवास, झाबुआ, धार, इन्दौर, पश्चिम निमाड़, पूर्वी निमाड, राजगढ़, विदिशा, भोपाल, सीहोर, रायसेन, कटनी, जबलपुर, मण्डला, छिंदवाडा में पायी जाती है।

 

डामोर, डामरिया जनजाति गोत्र- 

कुछ मुख्य कुल (गोत्र) इस प्रकार से है। उच्च डामोर के कुल डामोर, परमार, सिसोदिया, राठोड़, चौहान, सोलंकी बारिया आदि तथा निम्न डामोर के कुल खार, पागी, पटेला, सरतिया, पथरिया, पुजारा, उजेला, तराल, कटारा, बामरिया, मोघा आदि। प्रत्येक कुल की अलग कुलदेवी होती हैं

 

डामोर, डामरिया जनजाति रहन-सहन

 

इनके अधिकांश घर कच्चे होते हैं। तुवर के खरेड़ा से दीवार बनाते हैं। उसके बाजू लकड़ी लगा देते हैं, और मिट्टी गोबर से छाप देते हैं। ऊपर छत के लिए लकड़ी के खम्बे गाढ़ते है, इन पर बल्ली होती हैं, और फिर बल्लियों पर आडे डंडे बिछाते हैं। इन पर तुवर के खरेड़ा मिट्टी के देशी खपरैल से छाप देते हैं। घर का निर्माण करने के पूर्व एक खंबा गाड़ते है पूजा करते हैं। घर में इनके द्वारा उपयोग में लाये जाने वाले बर्तन जो लकड़ी और मिट्टी के होते हैं। आंटा गूंथनेे के लिए लकड़ी की तावड़ी का उपयोग करते हैं। दाल बनाने के लिए हांडी, हाड़ली, पानी निकालने के लिए तूमड़ी, मिट्टी का तवला, अनाज रखने के लिए बांस की कोठी। वर्तमान में एल्यूमोनियम, पीतल व स्टील के बर्तनों का चलन हो गया है।

 

डामोर, डामरिया जनजाति खान-पान 

इनका मुख्य भोजन मक्का, ज्वार की रोटी, उड़द की दाल, मौसमी सब्जी त्यौहार उत्सव के अवसर पर मुर्गा, बकरा, मछली खाते हैं।

 

डामोर, डामरिया जनजाति वस्त्र-आभूषण

 

डामोर जनजाति की स्त्रियाँ प्रायः चांदी गिलट मेटल आदि के बने आभूषण पहनती हैं। स्त्रियाँ सिर से नख तक शरीर को सजाने के लिए अनेक आभूषण होते हैं। जैसे बोर, (माथे पर) सिकड़ी, झुमका, कांटा, तागली, गलसड़ बोहटा, कड़ले, पायल, बाकला, तुड़ा, बीसुड़ी आदि मुख्य हैं। पुरूष कान में (बाली की तरह) साकल, हाथो ंमें कड़े पहनते हैं। वस्त्र विन्यास में पुरूष सिर पर साफा बांधते हैं। खांस पहनावा ऊची धोती, कुरता और साफा हैं। स्त्रियों  का खास पहनावा चोली, ओढ़नी और घाघरा हैं।

 

डामोर, डामरिया जनजाति गोदना 


डामोर जनजाति में गोदना गुदवाने की प्रथा पायी जाती है।

 

डामोर, डामरिया जनजाति में तीज-त्यौहार

 

डामोर जनजाति के कुछ पर्व (त्यौहार) मेले- दिवासा (जून माह में मनाया जाता हैं) राखी, नोवाई, नवरात्र, दशहरा, दीपावली,  भगोरिया, आदि मुख्य हैं। डामोर जनजाति में माह जून मेे दिवासा पर्व मनाया जाता है। इस दिन सामूहिक रूप से डामोर देवी देवताओं की पूजा करते हैं। पूजा करते समय ग्राम का मुखिया देवता से प्रार्थना करता है। ‘‘हे बाबादेव हमारी रक्षा के लिए शीघ्र आओ इसके बाद सभी ग्रामवासी सारी रात नृत्य करते हैं, गीत गाते हैं। नई फसल पकने पर नोवाई पर्व मनाया जाता है। परिवार के सभी सदस्य खेत पर एकत्रित होते हैं। वहीं पर नए अनाज की खिचड़ी पकाई जाती है। देवों को खिचड़ी का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस पर्व में आस्था यह है कि अच्छी फसल देवी-देवताओं में अनुग्रह के बिना प्राप्त नही की जा सकती। देवी देवताओं की दया से ही संभव है। इसी प्रकार नवरात्र जिसे डामोर जनजाति ज्वारा के नाम से मनाते हैं। नौ दिन तक देवी की पूजा अर्चना की जाती है। पहली रात भजन कीर्तन नाचगाना होता है और ज्वारे बाये जाते हैं। आखिरी दिन ज्वारे को सिर में रख कर स्त्रियाँ ले जाती हैं और नदी में उनका विसर्जन कर देते हैं। दशहरा, दीवाली, गाय गोयरी, भगोरिया आदि पर्व बड़े घूमघाम से मनाये जाते हैं।

 

डामोर, डामरिया जनजाति में नृत्य 

डामोर जनजाति के लोग नवरात्रि में गरबी, होली पर भगोरिया, विवाह में लगन नृत्य करते हैं। गरबा, लगन, फाग, आदि मुख्य लोकगीत हैं। इनके मुख्य बाद्ययंत्र ढोल, मांदल,  मोरली आदि हैं।


डामोर, डामरिया जनजाति व्यवसाय 

डामोर जनजाति मुख्य व्यवसाय खेती, मजदूरी, जंगली उपज संग्रह, पशुपालन पर आधारित है। कृषि में मुख्यतः मक्का, ज्वार, कोदरा, तुवर, मूंगफली आदि बोते हैं। जंगली क्षेत्रों में महुआ, गुल्ली, गोंद, शहद आदि एकत्र करते हैं। वर्तमान में डामोर जनजाति के कुछ लोग विभिन्न प्रकार के व्यवसायों जैसे किराना दुकान, मुर्गी पालन, शासकीय सहायता के अतंर्गत लघु एवं कुटीर उद्योगों से भी जुड़ रहे हैं।

 

डामोर, डामरिया जनजाति में जन्म-संस्कार

 

प्रसव घर पर स्थानीय घर की बुजुर्ग महिलाओं एवं गांव की दायी द्वारा कराया जाता है। प्रसव के बाद नाल को तीर या चाकू से काटकर तथा घर में ही गड्डा खोदकर गाढ़ देते हैं। प्रसूता को पीपल, सोंठ, गुड़, कालीमिर्च, गोंद से बनी औषधि दी जाती हैं। प्रसव के सातवे या नौवे दिन संस्कार होता है। बच्चे व प्रसूता शुध्दिकरण स्नान कराया जाता है। पूरे घर को लीपते  हैं।

 

डामोर, डामरिया जनजाति विवाह-संस्कार

 

डामोर जनजाति में विवाह की उम्र लड़को की 13-16 वर्ष तथा लड़कियो की 12-15 वर्ष मानी जाती हैं। विवाह का प्रस्ताव वर पक्ष की ओर से होता हैं। विवाह में वर पक्ष वधु केा नगद रकम देते हैं। जिसे “दापा” कहा जाता हैं। वर पक्ष के लोग बारात लेकर वधु के घर आते हैं। इनमें विनिमय, सेवाविवाह, सहपलायन, घुसपैठ, नातरा विवाह भी समाज द्वारा मान्यता प्राप्त वैवाहिक विधि है।

 

डामोर, डामरिया जनजाति मृत्यु संस्कार

 

मृत्यु होने पर मृतक का शव जलाते हैं। अस्थियां नर्मदा या नजदीक की नदी में विसर्जित करते हैं। घर की गोबर से लिपाई कर शुध्द करते हैं। 13 वें दिन देवी देवताओं की पूजा कर जाति वालो को भोज देते हैं।

 

डामोर, डामरिया जनजाति देवी-देवता

 

प्रमुख देवी देवता, महादेव, डाकोरजी, केशरियाजी कुवेरजी, कालका माता, पावागढ़ वाली मां, अम्बाजी, शीतलामाता आदि हैं। इसके अतिरिक्त हिन्दू धर्म के सभी देवी देवताओं को भी पूजते हैं।

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