योग सूत्र के अनुसार योग की परिभाषा | Yoga Definiton According Yog Sutra

योग सूत्र के अनुसार योग की परिभाषा

योग सूत्र के अनुसार योग की परिभाषा | Yoga Definiton According Yog Sutra


 

योग सूत्र के अनुसार योग की परिभाषा

प्रिय शिक्षार्थियोंअभी तक आप योग सूत्र के ऐतिहासिक पक्ष एवं बाहरी स्वरूप को जान चुके हैं। योग सूत्र के अनुसारयोग की परिभाषा जानने से पहले हम विभिन्न मतों में दी गई योग की परिभाषाओं पर विचार करेंगे ताकि योग सूत्र में दी गई परिभाषा पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाल सकें ।

 

1 विभिन्न मतों में योग की परिभाषा

 

श्रीमद्भगवतद्गीता में योगेश्वर श्रीकृष्णअपने योग संदेश में जब योग का वर्णन करते हैं तो मानव को योगमय होनेकर्म करने और जीवन जीने पर प्रकाश डालते हैं। इसमें हम योग की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाओं में से सबसे महत्वपूर्ण दो प्रमुख परिभाषाओं पर विचार करेंगे-

 

1) योगः कर्मसु कौशलम्अर्थात कुशलता पूर्वक कर्म करना योग है। 

कहने का तात्पर्य यह है किआसक्ति को त्याग करमनुष्य को कुशलता पूर्वककर्म करने चाहिए। आसक्ति रहितनिष्काम भाव के कर्म इसी श्रेणी में आते हैं ।

 

2) समत्वं योग उच्यतेअर्थात सर्वत्र स्थितियों में सम बने रहना है।

अर्थात् लाभ-हानिसुख-दुखसम्मान-अपमानयश- अपयश आदि जीवन की सभी स्थितियों में मनुष्य का समभाव में बने रहना योग कहलाता है।

 

ये दोनों परिभाषाएं योग के क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध हैं और योग की अभिव्यक्ति श्रीमद्भगवद् गीता के संदर्भ में प्रस्तुत करती हैं।

 

आइये अब अन्य परिभाषाओं पर विचार करें-

 

पाणिनी अष्टाध्यायी में योग शब्द तीन अलग-अलग रूपों में व्यक्त किया गया है - 

1. युज- समाधों अर्थात् योग समाधि है। 

2. युजिर्-योगे अर्थात् योग जोड़ना है। 

3.युज- संयमने अर्थात् योग संयम है। 

 

लगभग सभी शास्त्रों में योग का प्रयोग उपर्युक्त इन्हीं तीन अर्थों में किया गया है।

 

सात्वत संहिता में शाण्डिल्य के अनुसारआत्मा और परमात्मा के स्वरूप को जाननायोग हैं । महर्षि याज्ञवल्क्य जी ने योग को परिभाषित करते हुए बताया है किसंयोग योग इत्युक्तो जीवात्म परमात्मनोअर्थात् जीवात्मापरमात्मा के संयोग की अवस्था का नाम योग है।

 

सिद्ध-सिद्धांत पद्धति में, आत्मा-परमात्मा के मिलन को योग बताया गया है।

 

तंत्र के अनुसार जीव और शिव का एक रूप हो जाना योग है। विभिन्न ग्रंथों की ये परिभाषाएं लगभग एक जैसी और एक ही मत की ओर झुकी हुई प्रतीत होती हैं। जबकि कुछ • विद्वानों के अनुसार योग को इस प्रकार भी परिभाषित किया गया है।

 

श्रीराम शर्मा के अनुसार- 'स्वयं को जानना योग है वही श्री अरविंद जी योग की परिभाषा देते हैं किसम्पूर्ण जीवन योग है।और अरविंद आश्रम की श्री माँ योग को आध्यात्मिक मनोविज्ञान के रूप में परिभाषित करती हैं । 

इस प्रकार विभिन्न मतों में योग की परिभाषाओं को देखने पर यह पता चलता है कि योग इन विभिन्न मतों मेंएक साधन के रूप में विद्यमान है। योग जीवन शैलीयोग साधनायोग दर्शन के बिना विभिन्न दर्शनमत और साधना विज्ञान अपूर्ण है।

 

योग सूत्र में योग की परिभाषा (Yoga Definiton According Yog Sutra)

 

आइये अबयोग सूत्र में दी गई योग पर आधारित परिभाषा को जानें। योग सूत्र में समाधि पाद के अन्तर्गतदूसरे सूत्र में योग को इस प्रकार परिभाषित किया गया है-

 

योगश्चित्तवृत्ति निरोधः ।। (पातांजल योग सूत्र - 1 / 2 )

 

  • अर्थात् चित्त की वृत्तियों का निरोध योग है। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि योग उस विशेष अवस्था का नाम हैजिसमें चित्त में चल रही सभी वृत्तियां रूक जाती हैं। व्यास भाष्य में यह स्पष्ट किया गया है कियोग समाधि है। और समाधि तक पहुंचने के लिए विभिन्न अभ्यास किए जाते हैं । आप पहले ही यह जान चुके हैं कि युज धातु को तीन अर्थों में प्रयोग किया गया है जो योग की परिभाषा के अनुसार बिल्कुल उपयुक्त हैं।

 

यहाँ आप विचार कर रहे होंगे कि यह चित्त क्या हैइस परिभाषा को ठीक से समझने के लिए हमें चित्त और वृत्ति को समझना परम आवश्यक है। आइये चित्तवृत्तियों और इसके सम्बंध को व्यावहारिक रूप से जानें-

 

  • चित्त स्मृतियोंकल्पनाओंसंस्कारों आदि का भण्डार गृह है। आपने देखा होगा कि कुछ बच्चे स्वभाव से बडे चंचल होते हैं और हर समय कुछ न कुछ करते रहना उनके स्वभाव में शामिल होता है। यह चंचलता उनके चंचल चित्त के कारण ही होती है। उनके चित्त में जिस प्रकार की वृत्ति यानि दृश्य कल्पनाएंस्मृतियांवस्तुएं आदि आती रहती हैंउसी प्रकार के कार्य करने को अग्रसर होते हैं। लेकिन एक योगी का चित्त बिल्कुल शान्त होता है। उसमें किसी प्रकार की कोई हलचल नहीं होतीयही स्थिति योग कहलाती है। इसमें बहुत से स्तर आते हैं। इन स्तरों को योग में विभिन्न उपलब्धियों के द्वारा समझा जा सकता है। योग की वह अंतिम उपलब्धिजिसमें चित्त बिल्कुल शान्त होचित्त की समाधिमय स्थिति कहलाती है।

 

  • योग विद्वानों ने चित्त की कल्पना एक सरोवर से की है। सरावर का शान्त जलजिसमें कोई लहरें नहीं उठतीयही समाधि है जोकि एक योगी की स्थिति है।

 

इसके विपरीत एक सामान्य जन का चित्त सरोवर के उस अशान्त जल की तरह है जैसे सरोवर के जल में कोई पत्थर पड़ते हीलहरें उठने लगती हैं।

 

प्रिय शिक्षार्थियोंयहाँ यह समझना परम आवश्यक है कि पातंजल योग मेंयोग को समाधि कहा गया है। अन्य ग्रंथों में योग की परिभाषाउन ग्रन्थों के अनुसार अलग अलग समझाई गई है मगर सभी का लक्ष्य एक ही है- समाधि ।

 

संक्षिप्त सारांश में हम कह सकते हैं कि पातंजल योग सूत्र में चित्त की सम्पूर्ण वृत्तियों का निरोध योग कहा गया है।

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