धार्मिक पत्रकारिता के लेख|एवं फीचर |Religious journalism articles

धार्मिक पत्रकारिता के लेख (Religious journalism articles)

धार्मिक पत्रकारिता के लेख|एवं फीचर |Religious journalism articles



धार्मिक पत्रकारिता के लेख

 

  • संपादकीय पन्ने पर लिखे जाने वाले और लेखों की तरह यह भी हो सकते हैं। यानी विचार और विश्लेषण से भरपूर। लेकिन इस तरह के लेख वहां भी बहुत कम ही छपते हैं। आमतौर पर प्रवचन छाप देने की परिपाटी चल निकली है। हर रोज किसी धर्मगुरु का प्रवचन ही अखबार देना चाहते हैं। इसके अलावा उस पर लिखने वाले छोटे लेखों को प्रमुखता दी जाती है। एक अध्यात्मिक विचार पर छोटा सा लेख हर अखबार छापना चाहता है। कुछ लोग तो दंत कथाओं से ही काम चला लेते हैं। लेकिन धीरे-धीरे एक अध्यात्मिक कोना अखबारों में बनता चला जा रहा है। 'द टाइम्स ऑफ इंडियाका 'स्पीकिंग ट्रीफिलहाल सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। उस कॉलम की लोकप्रियता से प्रेरित होकर रविवार के दिन उन्होंने आठ पन्ने का स्पीकिंग ट्री निकालना शुरू कर दिया है। उसमें लेखफीचर और प्रवचनों पर जोर होता है। उसका भी अच्छा खासा बाजार हो गया है।

 

धार्मिक पत्रकारिता के फीचर

 

  • आमतौर पर अखबार धर्म अध्यात्म पर फीचर छापते रहते हैं। हर त्योहार पर कुछ न कुछ सामग्री का आयोजन हो जाता है। दीवालीहोलीईदक्रिसमसगुरु नानक जयंती वगैरह-वगैरह। समय-समय पर उसमें लेख छपते रहते हैं। सप्ताह में एक पन्ना तो धर्म के लिए निकाल ही लिया जाता है। यह पन्ना धर्म पर फीचर के लिए ही होता है। इसमें अक्सर रिपोर्टिंग नहीं होती। कुल मिलाकर यह पन्ना आने वाले सप्ताह के तीज-त्योहारों पर टिका होता है। उस सप्ताह में पड़ने • वाले खास त्योहार पर उसका जोर होता है।

 

  • मान लीजिए ईद आ रही है। तब उस पन्ने की लीड ईद पर होगी। वहां किसी का लेख भी हो सकता है। या फिर उस पर कोई फीचर भी लिखा जा सकता है। फीचर करने वाला ईद पर कुछ खास लोगों के और कुछ आम लोगों के विचारों को पिरो सकता है। ईद से जुड़ी यादों पर कुछ हो सकता है। तब और अब की ईद पर भी लिखा जा सकता है। यों चंद लोगों से बात करने पर एक बेहतरीन फीचर लिखा जा सकता है।

 

  • एक बार किसी अखबार में हमने ईद पर कुछ अलग करने का विचार किया। ईद के बाजार पर हमने खासा जोर दिया। खान-पान पर तो लिखा ही गया। ईद से एक दिन पहले पूरी रात चलने वाले बाजार का भी जायजा लिया गया। हमारे रिपोर्टर ने जब उस पर फीचर लिखा तो उसकी खूब चर्चा हुई. सीधे जुड़ कर फीचर करने की बात ही कुछ और है। पाठक ऐसे फीचर से सीधा जुड़ जाता है। तीर्थ यात्रा पर फीचर भी काफी पढ़े जाते हैं। दुनियाभर में तीर्थ यात्रा को अलग तरह से देखा जाता है। उसे आम पर्यटन से अलग माना जाता है। तीर्थों से जुड़े फीचर अगर अनुभव से जुड़े होते हैंतो ज्यादा पसंद किए जाते हैं। इतिहास और पुराण का मिश्रण होता है तीर्थों की यात्रा। इतिहास से भी ज्यादा हम पुराण पर निर्भर करते हैं। इतिहास तो यहीं तक कि फलाना मंदिर उस वक्त बना। या बना होगा। हालांकि यह भी जान लेना आसान नहीं होता। दिल्ली में एक भैरव मंदिर है। अब उसे पांडव कालीन कहा जाता है। लेकिन दिक्कत यह है कि पांडवों का काल कैसे निर्धारित किया जाएउस हाल में हम दंत कथाओं का सहारा लेंगे। अपने पाठक को बताएंगे कि पुराण क्या कहते हैं?

 

  • हमारे सभी मंदिर प्राचीन कालीन होते हैं। हों या न हों लेकिन उनकी मंशा तो यही रहती है। प्राचीन कालीन होते ही उस मंदिर सब कुछ बदल जाता है। दंत कथाओं की बात कहने के अलावा हमें यह भी जानने की कोशिश करनी चाहिए कि आखिर यह मंदिर बना कब थाइतिहास का कुछ तो पता चल ही जाता है। यही पता चले कि मंदिर तो पुराना था लेकिन उसका पुनरुद्धार सत्रहवीं सदी में फलाने राजा ने किया। तो इतिहास पुराण जो भी मिल सके उसमें अपना अनुभव जोड़ कर तीर्थों पर फीचर हो सकता है। उस धार्मिक स्थल की मान्यता के भी मायने होते हैं। उसके बारे में भी लोग जानना चाहते हैं।

 

  • फीचर में हम धर्मगुरुओं की बातचीत भी छाप सकते हैं। अलग- अलग विषयों पर अलग-अलग समय पर उनसे बातचीत हो सकती है। बातचीत करने के लिए थोड़ी तैयारी जरूरी है। हम जिससे भी बात करने जा रहे हैंउसके बारे में कुछ जानना ही चाहिए। फिर जिस पर बात करनी हैउसकी भी थोड़ी सी जानकारी अच्छी रहती है। ऐसा नहीं होना चाहिए कि हम शुरू करें कि आप अपने बारे में जरा बताइएकभी-कभी कुछ खास शख्स इसी बात पर बात करने से मना कर देते हैं। उनका भी कहना सही है कि आप कुछ जानते ही नहीं तो आपसे क्या बात की जाए?

 

धार्मिक पत्रकारिता के मामलों में खास पन्ना

 

आमतौर पर अखबारों में साप्ताहिक पन्ना तय रहता है। श्रद्धाआस्थाधर्मक्षेत्रेअनंत जैसे उनके नाम होते हैं। किसी आनेवाले त्योहार या जयंती पर लेख या फीचर । प्रवचनदंत कथाधर्मग्रंथ सेव्रत, , त्योहार या किसी पूजा स्थलआश्रमसंप्रदाय पर फीचर।

 

एक बानगी कुछ अखबारों के खास पन्ने

 

अमर उजाला का 9 जुलाई 2002 का श्रद्धा का पन्ना। -जगन्नाथ रथ यात्रा पर फीचरजगन्नाथ से जुड़ी दंत कथाआचार्य वल्लभ के आखिरी दिन पर लेखप्रार्थना समाज पर फीचरअप्पर के दो पदसप्ताह के व्रत त्योहार

 

हिंदुस्तान का 30 जुलाई 2007 में अनंत का पन्ना -सावन पर फीचरकांवड़ पर फीचरइंद्र पर लेख

 

हिंदुस्तान का 26 नवंबर 2007 में अनंत का पन्ना -ईद पर लेखग्रेट मदर बेंडिस पर लेखतरलोचन दर्शनदास का प्रवचनध्यान की विधि -बोध कथा, , - विवेक चूड़ामणि से अंशव्रत त्योहार स्पीकिंग ट्री का 29 जनवरी 2012 का अंक

 

अतिथि संपादक-

दीपक चोपड़ाईश्वर क्या भ्रम है- फीचरसंक्षिप्त खबरेंबदलाव पर दीपक चोपड़ा का लेखअमर वाणीगुस्से और भावनाओं पर लेखबेन ऑकरी से बातचीतमुल्ला नसीरुद्दीन के किस्सेब्रह्मांड के रहस्यों पर लेखओशो प्रवचनबोध कथाएंविज्ञान और आत्मा पर लेखदादा वासवानी और जया राव का प्रवचनतीर्थ यात्रा पर आलेखदेवदत्त पटनायक का विश्वास पर लेखकिताब की समीक्षायोग 

नवभारत टाइम्स 16 मार्च 2012 में धर्म-अध्यात्म 

भगवान महावीर जयंती समारोह पर एक कॉलम की खबरधर्म कर्म में तीन प्रवचनों पर रिपोर्टधार्मिक गतिविधियों में उस दिन के कार्यक्रम

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