पाई दिवस (पाई (π) डे) : पाई के मान की खोज किसने की |Pi day details in Hindi

पाई दिवस (पाई (π) डे) : पाई के मान की खोज किसने की  (Pi day details in Hindi )

पाई दिवस (पाई (π) डे) : पाई के मान की खोज किसने की |Pi day details in Hindi



पाई दिवस (पाई (π) डे) कब मनाया जाता है ?

  • 14 मार्च को पूरे विश्व में पाई डे (Pi Day) मनाया जाता है।

 

पाई दिवस (पाई (π) डे इतिहास : 

  • पाई के मान की खोज 5वीं सदी में आर्यभट्ट ने की थीजबकि आधुनिक युग में पाई का मान सबसे पहले वर्ष 1706 में गणितज्ञ विलिया जोन्स ने सुझाया था।

  • प्रतिवर्ष पाई दिवस (π) 3/14 अर्थात मार्च 14 को मनाया जाता है। पाई का मान 3.14 है, इसलिए 14 मार्च के दिन पाई दिवस मनाया जाता है। 
  • पाई दिवसका विचार सर्वप्रथम 1989 में लैरी शौ द्वारा प्रतिपादित किया गया।
  • पाई दिवस के समीपवर्ती एक और तिथि है 22 जुलाई या 22/7 जो कि पाई एप्रोक्सिमेशन दिवसके रूप में मनाया जाता है। 
  • अलबर्ट आइंस्टाइन का जन्मदिवस (14 मार्च 1879) भी है।


पाई (π) क्या है इसका मान कितना होता है ? 

  • गणित में किसी वृत्त की परिधि की लंबाई और उसके व्यास की लंबाई के अनुपात को पाई (π) कहा जाता है
  • पाई (π) एक गणितीय स्थिरांक (Mathematical Constants) है जिसका मान 3.14159 (दशमलव के पाँच स्थानों तक) होता है।
  • पाई के मान की खोज 5वीं सदी में आर्यभट्ट ने की थी, जबकि आधुनिक युग में पाई का मान सबसे पहले वर्ष 1706 में गणितज्ञ विलिया जोन्स ने सुझाया था।


आर्यभट्ट के बारे मेन जानकारी (Aryabhatta Details in Hindi)

  • आर्यभट्ट पाँचवीं शताब्दी के गणितज्ञ, खगोलशास्त्री, ज्योतिषी और भौतिक विज्ञानी थे।
  • आर्यभट्ट गुप्त काल (320 ईस्वी से 550 ईस्वी तक) के महान गणितज्ञ थे। उन्होंने आर्यभट्टीयम् (Aryabhattiyam) की रचना की जो उस समय के गणित का सारांश है। इसके चार खंड हैं। पहले खंड में उन्होंने वर्णमाला द्वारा बड़े दशमलव संख्याओं को दर्शाने की विधि का वर्णन किया है।
  • दूसरे खंड में आधुनिक गणित के विषयों जैसे कि संख्या सिद्धांत, ज्यामिति, त्रिकोणमिति और बीजगणित का उल्लेख किया गया है।
  • आर्यभट्ट के अनुसार, शून्य केवल एक अंक नहीं था बल्कि एक प्रतीक और एक अवधारणा भी थी। शून्य की खोज ने भी नकारात्मक अंकों के एक नए आयाम को खोल दिया। उन्होनें पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की सटीक दूरी का पता लगाया।
  • आर्यभट्टीयम् के शेष दो खंड खगोल विज्ञान पर आधारित हैं जिन्हें खगोलशास्त्र भी कहा जाता है। खगोलनालंदा विश्वविद्यालय में प्रसिद्ध खगोलीय वेधशाला थी जहाँ आर्यभट्ट ने अध्ययन किया था।
  • उन्होंने इस दृष्टिकोण की अवहेलना की कि हमारा ग्रह स्थिर है तथा अपने सिद्धांत में बताया कि पृथ्वी गोल है और यह अपनी धुरी पर घूमती है। उन्होंने यह भी कहा कि सौरमंडल में चंद्रमा एवं अन्य ग्रह परावर्तित सूर्य के प्रकाश से चमकते हैं जो आधुनिक समय में सच साबित हुआ।
  • आर्यभट्ट द्वारा रचित अन्य कृतियाँ दशगीतिका सूत्र तथा आर्याष्टशत हैं।

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