मध्यप्रदेश प्राचीन इतिहास : निम्न पुरापाषाण काल।Madhya Pradesh Ancient History : Lower Palaeolithic

 मध्यप्रदेश प्राचीन इतिहास : निम्न पुरापाषाण काल

मध्यप्रदेश प्राचीन इतिहास : निम्न पुरापाषाण काल।Madhya Pradesh Ancient History : Lower Palaeolithic



मध्यप्रदेश में निम्न पुरापाषाण काल

 

  • मानव का उद्भव चतुर्थक काल में होने के पश्चात् मानव द्वारा विभिन्न क्रिया-कलापों के अवशेष प्रातिनूतन काल से प्राप्त होने लगते हैं। ये अवशेष उपकरणों के रूप में हैं जो कि विभिन्न प्रकार के पाषाण पर निर्मित प्राप्त होते हैं। इन पाषाण उपकरणों की खोज-प्राप्ति के उपरान्त इन पाषाणखण्डों का उपकरण के रूप में परिवर्तित करने की प्रक्रिया या क्रमबद्ध विकास की जानकारी हमें इन उपकरणों के प्रातिनूतन कालीन जमाव में प्राप्त होने से मिलती है। ये उपकरण मध्यप्रदेश की नदी घाटियों पर निम्न ग्रेवेल जमाव में प्राप्त होते हैं एवं मानव के प्रथम क्रियाकलाप के अवशेष के रूप में प्रदर्शित होते हैं
  • डे टेरा एवं पैटरसन के नेतृत्व में एल कैम्ब्रिज अभियान दल द्वारा मध्यप्रदेश में नर्मदा घाटी पर सर्वप्रथम कार्य किया गया। यहाँ पर प्रथमतः उपकरण, जीवाश्म, स्तरीकृत जमाव से प्रतिवेदित किये गये। 

 

मध्य प्रदेश में निम्न पुरापाषाण काल के उपकरण

 

  • उपकरण मुख्य रूप से पेबुल उपकरण निर्माण हेतु पाषाण खण्ड को फलकीकृत करके विभिन्न प्रकार के पेबुल उपकरण एवं हैंडेक्स का निर्माण किया। पाषाण खण्ड से बड़े फ्लेक निकालकर क्लीवर एवं स्क्रैपर निर्मित किये गये। अनेक कोर को फ्लेकिंग के उपरान्त उपकरण के रूप में परिवर्तित किया गया। 
  • पेबुल उपकरण समूह जो कि चापर चापिंग उपकरण के रूप में प्राप्त होते हैं, विभिन्न आकार-प्रकार के पेबुल पर एक पार्श्व एवं द्विपार्श्व पर फ्लेकिंग करने के उपरान्त उपकरण के रूप में परिवर्तित किये गये। दूसरे उपकरण समूह हैंडेक्स एवं क्लीवर हैं, इनके साथ-साथ स्क्रेपर, फ्लेक एवं कोर बहुतायत से प्राप्त होते हैं। 
  • पूर्व में पेबुल उपकरण हिमालय में विकसित एवं हैंडेक्स क्लीवर, मद्रास के पास कोर्टलायर घाटी में विकसित माने गये परन्तु बाद में अनुसंधान एवं सर्वेक्षण के उपरान्त क्षेत्रीय प्राथमिकता (Preference) न प्रदर्शित होकर अन्य क्षेत्रों में भी दोनों प्रकार के उपकरण प्राप्त होने लगे थे।  मध्यप्रदेश में दोनों प्रकार के उपकरण समूह ग्रैवेल जमाव से एवं सतही पुरास्थलों से प्राप्त हुए हैं।

 

  • स्तरीकृत रूप में ये उपकरण बोल्डर कांग्लोमिरेट जमाव से प्राप्त होते हैं। ये जमाव मध्यप्रदेश की प्रमुख नदियों पर प्रतिवेदित किये गये हैं। ये ग्रैवेल विभिन्न प्रकार के पाषाण खण्डों के पेबुल द्वारा निर्मित हैं, साथ-साथ अन्य सामग्री जैसे बालू-मिट्टी आदि द्वारा निर्मित हैं। ये ग्रैवेल नदियों पर निम्न स्तरीय ग्रैवेल, बोल्डर कांगलोमिरेट के रूप में हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के उपकरण एवं जीवाश्म प्राप्त होते हैं। 
  • जीवाश्म प्रातिनूतन कालीन जमाव एवं पर्यावरण को प्रदर्शित करते हैं  इस संस्कृति से सम्बन्धित प्रातिनूतन जमाव के परिप्रेक्ष्य में निम्न पुरापाषाण संस्कृतियों की विस्तृत जानकारी उपलब्ध है। 

 

मध्यप्रदेश में निम्न पुरापाषाण काल के स्थल 

 

मध्यप्रदेश के सभी क्षेत्रों से इस संस्कृति के उपकरण प्राप्त हुए हैं। मुख्य पुरास्थल हैं - 

 

  • अकावरी, खूताली, खैरपुर, खैरा, घितोरा, चन्द्रेहा, धबावली, नाकझूर बबोआरी, बरगमा, बरडी, बरहई, बीची, राजघाट, रामपुर, रामनगर लौवार, सिहावल, सोन नदी घाटी
  • हिनौती (जिला सीधी), अनूपपुर चन्दोली, मुर्ना नदी घाटी, रूहानिया, शहडोल, शिकारगंज, सिंगरौली, हरहा, मार्कण्डेय (जिला शहडोल), अमखेरा, पिपल्या लोरका, भीलखेड़ा, मण्डीदीप, मेण्डकी, रामगढ़, रायसेन, लाखाजुवार (बड़ी जामुनखेड़ी), शहद कराड (जिला रायसेन), अमरमऊ, ईसरवाड़ा, उल्दन, कानीखेड़ी, केडलारी, गढ़ाकोटा, गोमतपुर, चन्देरा, छान डुलचीपुर दूहर नाला, देवरी धामोनी, पड़राजपुर, पिरथीपुर, बिलगवाँ, बुरखेड़ा, बुरधाना, भापसोन, मालथोन, मोर रहेली, रेता, शाहगढ़, सागर जिला, सिंघपुर (जिला सागर)
  • अमेरा, कटनी, कस्तरा, कुण्डम, जबलपुर, जमगाँव, डोली, दरागढ़, नेगई, परियट नदी घाटी, पिपरिया, भेड़ाघाट, सलैया (जिला जबलपुर), अम्बाला, कसरौदानाला, गणेश नाला, गारबर्डी, चरेना, चाँदगढ़, जामाधड़, पाटाजन, पूर्व निमाड़ जिला, बड़केश्वर, बड़ाकुण्ड, बीजलपुर, महलखेड़ी, मातुपुर, मोजवाड़ी, सहस्त्रधारा नाला (जिला पूर्व निमाड़), अरहरी, आष्टा (जिला सीहोर), अलवी महादेव, इताली, इन्द्रगढ़, केदारेश्वर, कोहला, कंठार, खोला मोर, चिकला, जलोद, जावद, ढिकोला, नाहरगढ़, नीमच, बतरता, बसई
  • मंदसौर, मुलतानपुरा, मोड़ी, रानीपुर, रामपुरा, शंखुधर, सोनिता, हिंगलाजगढ़ (जिला मंदसौर), आमला (जिला शाजापुर), इन्दौर, खजरया, बरगुण्डा, मऊ, यशवंतनगर, रामपुर, रिंगमोड्या, हसेलपुर (जिला इन्दौर), इन्दरगढ़, रदुवापुर, सेकोंदा (जिला दतिया), कदवाहा, कोटरा नाला, गुना, चन्देरी, पार्वती, बेसरा, महुआ (जिला गुना), किरवई, केथुरी, कोठा, कोरवई, खजुरी, गमाकर, गंज बासोदा, ग्यारसपुर, गोड़वासा, टीला, पगनेसर, बड़ोहपठारी, सोथिया (जिला विदिशा), केरवा जलाशय, भोपाल (जिला भोपाल), कोजीखेड़ी, करियाखेड़ा, दमोह, बनगाँव, सिंग्रामपुर (जिला दमोह)
  • ग्वालियर, सोंघा, घाटीगाँव, बरहा (जिला ग्वालियर), कोटड़ा, पीलूखेड़ी (जिला राजगढ़), खड़ीघाट, नावडाटोली, बुरवाहा, बेड़िया, मण्डलेश्वर, महेश्वर, मोरटक्का, रामगढ़, रावेरखेड़ी (जिला पश्चिम निमाड़), जिला- छतरपुर, जतकारा, मोहार (जिला खरगोन), छिदगाँव, डोंगरवाड़ा, धमासा, भुतरा, रायबोर (जिला होशंगाबाद), देवलोंध, भनवार सेन, लेखनिया पहाड़ी, इतर-पहाड़ (जिला रीवा), बालाघाट (जिला बालाघाट)
  • बाघ गुफाएँ (जिला धार), मण्डला (जिला मण्डला), डिन्डोरी (जिला डिन्डोरी), शिवपुरी, तेरही (जिला शिवपुरी), नरसिंहपुर, महादेव पिपरिया, रतिकरार, सगौनाघाट, देवाकछार, बरमानघाटी (जिला नरसिंहगढ़), नरसिंहगढ़ (जिला नरसिंहगढ़)
  • सिवनी, बन्डोल (जिला सिवनी), बनियाखेड़ी (जिला उज्जैन), बरियारपुर, सधुवा (जिला पन्ना), मुड़वार (जिला कटनी), मैहर (जिला सतना), सोंघा, सैलाना (जिला रतलाम)

 

मध्यप्रदेश में  निम्न पुरापाषाण काल के उपकरण 

स्तरीकरण

 

  • इस काल के उपकरण मध्यप्रदेश के सभी क्षेत्रों में प्राप्त हुए हैं। ये दोनों प्रकार के पुरास्थलों पर मिलते हैं सतही एवं स्तरीकृत । 
  • मध्यप्रदेश में ये उपकरण बहुधा सभी क्षेत्रों एवं नदी घाटियों पर प्रतिवेदित किये गये हैं, जिनमें से सोन घाटी, नर्मदा घाटी, चम्बल घाटी, बेतबा एवं इनकी सहायिकाएँ प्रमुख हैं
  • नर्मदा नदी पर महादेव पिपरिया, डुकडी नाला, समनापुर, देवाकछार एवं सोन घाटी पर बघोर सिहावल, पटपरा आदि पुरास्थलों का उत्खनन किया जा चुका है जहाँ से सांस्कृतिक विकास एवं क्रमबद्धता के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
  • प्रागैतिहासिक दृष्टि से मध्यप्रदेश अत्यन्त समृद्ध है। इस प्रदेश में दो शैलाश्रय क्षेत्रों, भीमबैठका एवं आदमगढ़ का उत्खनन किया जा चुका है जहाँ से इस संस्कृति के समृद्ध अवशेष निचले स्तरों से प्राप्त हुए हैं। 
  • भीमबैठका से पेबुल टूल उपकरण समूह एवं हैण्डैक्स, क्लीवर उपकरण समूह दोनों ही अलग-अलग स्तरों से प्रतिवेदित किये गये हैं।
  •  नर्मदा घाटी पर डे टेरा एवं पैटरसन को बोल्डर कांग्लोमिरेट जमाव के नीचे लेटराइट जमाव प्राप्त हुए थे। कालान्तर में इस क्षेत्र में के. डी. बनर्जी ने शोध कार्य किये परन्तु उन्हें बोल्डर कांग्लोमिरेट के नीचे लेटराइट जमाव नहीं प्राप्त हुए । 
  • ए. पी. खत्री को सन् 1958 में नर्मदा घाटी से अफ्रीका के ओल्डुवाई गार्ज पुरास्थल जैसे विकास क्रम के अवशेष प्राप्त हुए थे जिसे साइट के नाम पर उन्होंने उस संस्कृति को 'महादेवियन' की संज्ञा दी, परन्तु बाद में सुपेकर द्वारा उत्खनन में इस प्रकार के विकास क्रम का अभाव दिखा ।  
  • नर्मदा घाटी पर भूगर्भ सर्वेक्षण के नागपुर शाखा के अरूण सोनकिया को हथनोरा (जिला सीहोर) से मानव खोपड़ी के अवशेष ग्रैवेल जमाव से मिले थे। इस खोपड़ी के स्तर से उपकरण प्राप्त नहीं थे। निम्न पुरापाषाण काल के उपकरण एवं जीवाश्म स्टेगोडान गनेशा एवं एलिफस हाइसूड्रिकस के जीवाश्म प्राप्त हुए हैं। यह अवशेष अभी तक प्राप्त मानव अवशेषों में सबसे प्राचीन है। 
  • नर्मदा घाटी पर भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण के वैज्ञानिकों ने 4 प्रकार के जमाव शोभापुर जमाव, नरसिंहपुर जमाव, देवाकछार जमाव, झलोन जमाव पहचाने हैं। झलोन जमाव से ज्वालामुखी राख के 24-40 से.मी. खोटा जमाव प्रतिवेदित किया गया है। 
  • सोन घाटी में सिहावल, नकझरखुर्द, पटपरा से निम्न पुरापाषाण काल के उपकरण स्तरीकृत प्राप्त हुए हैं। मध्यप्रदेश में चम्बल घाटी की सहायिका पर गुप्तेश्वर के उत्खनन से इस संस्कृति के स्तरीकृत जमा प्राप्त हुए हैं जिनमें हैंडेक्स-क्लीवर, स्क्रैपर आदि उपकरण हैं। 

 

मध्यप्रदेश में निम्न पुरापाषाण काल के जीवाश्म


  • नर्मदा एवं सोन घाटी से निम्न पुरापाषाण कालीन उपकरणों के साथ-साथ अनेक जीवाश्म स्तरीकृत रूप में प्रतिवेदित किये गये हैं, जो कि एक ओर इस संस्कृति के तिथि निर्धारण में एवं दूसरी ओर पर्यावरण की जानकारी हेतु सहायक हैं। इक्वस नमाडिकस् (Equus namadicus) वॉस नमाडिकस (Bos namadicus), हेक्सा-छोटोडान पैलिन्डिकस (Hexaprotodon palaeindicus), एलिफस हाइसूड्रिकस (Elephas hysudricus) प्रजाति के जीवाश्म इस संस्कृति के साथ प्राप्त जीवाश्मों में प्रमुख हैं।
  • अधिकतर निम्न पुरापाषाण कालीन पुरास्थल या तो नदियों के किनारे हैं, या पहाड़ों की ढलान एवं पहाड़ियों की तलहटियों पर स्थित हैं। अनेक पुरास्थल गुफाओं एवं शैलाश्रयों में एवं उनके पास स्थित हैं जो वर्तमान में या तो घने जंगलों के बीच, या जंगलों के किनारे स्थित हैं। नदी तट पर वनस्पतियों के साथ नदी में अनेक जानवर उपलब्ध थे। पानी में रहने वाले जानवर अधिक मात्रा में उपलब्ध थे, जो कि मानव के भोजन हेतु उपयोग में आये होंगे। साथ ही जंगली जानवर एवं कंद मूल फल की प्रचुरता के कारण ये स्थल निम्न पुरापाषाण कालीन मानव के आकर्षण का केन्द्र रहे एवं प्रागैतिहासिक मानव की शरण स्थली बनें।

 

निम्न पुरापाषाण काल तिथि निर्धारण

 

  • इस संस्कृति के पुरास्थल निम्न स्तरीय ग्रैवेल (Boulder conglomerate) से प्राप्त होते हैं। साथ ही उपकरण जंगलों में पहाड़ियों की तलहटी, ढलान आदि से प्रतिवेदित किये गये हैं। इन उपकरणों के साथ मवेशी, हाथी, घोड़ा, सुअर आदि के जीवाश्म भी प्रतिवेदित किये गये हैं। 
  • मध्यप्रदेश में सोन घाटी से प्राप्त ज्वालामुखी राख से परवर्ती तिथि प्राप्त होती है। महाराष्ट्र पुणे जिले में बोरी से ज्वालामुखी राख प्राप्त रेडियो कार्बन तिथि 1.4 मिलियन वर्ष प्राप्त हुई है। यह अवशेष निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति के ऊपरी स्तर से उपलब्ध हैं । 
  • अतः निम्न पुरापाषाण काल की तिथि इस तिथि से पुरानी प्रस्तावित होती है। इन उपकरणों के साथ बड़े पशुओं के जीवाश्म प्राप्त हुये जिनसे विदित होता है कि जंगल घने थे एवं उनमें बड़े जानवर निवास करते थे। पर्यावरण कठिन होने के कारण मानव ऐसे स्थानों पर निवास करता था जहाँ उसकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति होती थी। नदियों के किनारे स्थित जंगल मानव निवास हेतु जीवन यापन के आदर्श स्थल थे । 

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