उपन्यास का स्वरूप अर्थ और परिभाषा व्याख्या। उपन्यास की विशेषताएँ । Upnyas (Novel) Meaning Definition

 उपन्यास का स्वरूप अर्थ और परिभाषा व्याख्या विशेषताएँ

उपन्यास का स्वरूप अर्थ और परिभाषा व्याख्या। उपन्यास की विशेषताएँ । Upnyas (Novel) Meaning Definition


उपन्यास का स्वरूप 

  • उपन्यास का मुख्य स्रोत अति प्राचीन काल से चली आई रही कथा-कहानियाँ हैं। जिसका जन्म मनुष्य की कौतुहल वृत्ति एवं मनोरंजन वृत्ति को शान्त करने के लिए हुआ है।
  • वर्तमान में यद्यपि बौद्धिकता ने मनुष्य की कौतूहल वृत्ति को कम किया है। अतः आज वे ही कथा-कहानियां समाज में प्रचलित है जिनके पीछे बौद्धिक धरातल है।
  • उपन्यास मनुष्य के विकास के साथ-साथ विकसित होने वाली कथा परम्परा का एक सुगठित रूप है। मानव मन की अतल गहराई से लेकर उसकी समस्त सांसारिक दृष्यमान ऊँचाई, विस्तार एवं अन्य क्रिया क्लाप उपन्यास के क्षेत्र में समाहित हैं। 
  • वास्तविकता का प्रतिपादन नाटक और गीत भी करते हैं, परन्तु उपन्यास अधिक विस्तृत, गहन एवं पैना होता है। उपन्यास जीवन के लघुतम और साधारणतम् तथ्यों को भी पूर्ण स्वच्छन्दता तथा स्पटता के साथ प्रस्तुत करता है। 
  • उपन्यास मानव की सर्वतोन्मुखी स्वतन्त्रता की उद्घोषक विधा है। आज का जीवन गायन-नर्तन और सम्मोहन का नहीं है। अब अतीत की गौरव गाथा की अपना महत्त्व खो चुकी है। अतः उनसे अब लिपटे रहना और जीवन की प्रत्येक प्रेरणा उनमें देखना स्वयं को अन्धकार में रखने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। 
  • आज के जीवन के सूत्र है- यथार्थता, स्पष्टता, ध्रुवता, मांसलता, बौद्धिकता और स्तरीय निर्बन्धता। इन तत्वों के सार से ही उपन्यास का स्परूप् गठित हुआ है। 
  • उपन्यास में प्रायः हमारा वह अति समीपी और आन्तरिक जीवन चित्रित होता हैं जो हमारा होते हुए भी प्रायः हमारा नहीं है। 
  • उपन्यास वर्तमान युग की लोकप्रिय साहित्यिक विधा है। आज की युग चेतना इतनी गुफित और असाधारण हो गई हैं, कि इसे साहित्य के किसी अन्य रूप में इतने आकर्षक और सहज रूप में प्रस्तुत करना दुष्कर है। उसे उपन्यास पूरी सम्भावना और सजीवता के साथ उपस्थित करता है। इसलिये अनेक विद्वानों ने उपन्यासों को आधुनिक युग का महाकाव्य कहा है।

 

उपन्यास का अर्थ और परिभाषा

 

उपन्यास का अर्थ व्याख्या

  • उपन्यास शब्द उप-समीप तथा न्यास-थाती के योग से बना है, जिसका अर्थ है (मनुष्य के) निकट रखी वस्तु। अर्थात् वह वस्तु या कृति जिसको पढ़कर ऐसा लगे कि हमारी ही हैं, इसमें हमारे ही जीवन का प्रतिबिम्ब हैं, 'उपन्यास' है। 
  • 'उपन्यास' शब्द का प्रयोग प्राचीन संस्कृत साहित्य में भी मिलता है। संस्कृत लक्षण ग्रन्थों में इस शब्द का प्रयोग नाटक की संधियों के उपभेद के लिए हुआ था। 
  • इसकी दो प्रकार से व्याख्या की गई है "उपन्यासः प्रसादन" - अर्थात प्रसन्न करने को ' उपन्यास' कहते हैं। दूसरी व्याख्या के अनुसार उपपत्तिक्रतोहार्थ उपन्यासः संकीर्तितः”. अर्थात् किसी अर्थ को युक्तियुक्त रूप से उपस्थित करना 'उपन्यास' कहलाता हैं। किन्तु आज जिस अर्थ में ग्रहण किया जाता है, वह मूल 'उपन्यास' शब्द से पूर्णतः भिन्न हैं।

 

हिन्दी साहित्य में 'उपन्यास' नवीनतम् विधाओं में से एक है। अंग्रेजी में जिसे 'नॉवेल' कहते हैं। 'नॉवेल' शब्द नवीन और लघु गद्य कथा दोनों अर्थो में प्रयुक्त होता रहा, किन्तु अठारहवी शताब्दी के पश्चात् साहित्यिक विधा के रूप में प्रतिष्ठित हो गया। 

  • गुजराती में 'नवलकथा मराठी में 'कादम्बरी' और बँगला के सदृश ही हिन्दी में यह विधा 'उपन्यास' नाम से प्रचलित है। इतालवी भाषा में 'नॉवेल' शब्द 'लघुकथा' के लिए प्रयुक्त होता है। जो नवीनतम् का द्योतन तो कराता ही है साथ ही इस तथ्य को भी घोषित करता है कि उसका सम्बन्ध प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वर्तमान जीवन से है।

 

उपन्यास की परिभाषा

  • कहानी की भाँति आधुनिक उपन्यास भी पाश्चात्य साहित्य का कलेवर लेकर आया है। तो यहाँ भारतीय एवं पश्चिमी विद्वानों की कतिपय परिभाषाओं को लिया जा सकता है।

 

भारतीय विचारकों के अनुसार उपन्यास की परिभाषा  - 

  • आधुनिक युग में जिस साहित्य विशेष के लिए इस शब्द का प्रयोग किया जाता है उसकी प्रकृति को स्पष्ट करने यह शब्द सर्वथा समर्थ है।


  • उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द के शब्दों में-मानव-चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्व है।"

 

हजारी प्रसाद द्विवेद्वी जी उपन्यास की परिभाषा देते हुए कहते हैं- 

  • उपन्यास आधुनिक युग की देन है। नये उपन्यास केवल कथामात्र नहीं है यह आधुनिक वैयक्तितावादी दृष्टिकोण का परिणाम है। इसमें लेखक अपना एक निश्चित मत प्रकट करता है और कथा को इस प्रकार सजाता है कि पाठक अनायास ही उसके उद्देश्य को ग्रहण कर सकें और उससे प्रभावित हो सकें।

 

  • डॉ श्याम सुन्दर दास के शब्दों में- उपन्यास मनुष्य के वास्तविक जीवन की काल्पनिक कथा है ।" 

 

डा0 भागीरथ मिश्र के अनुसार उपन्यास की परिभाषा 

  • युग की गतिशील पृष्ठभूमि पर सहज शैली में स्वाभाविक जीवन की पूर्ण व्यापक झाँकी प्रस्तुत करने वाला गद्य मनुष्य के वास्तविक जीवन की काल्पनिक कथा हैं।

 

पाश्चात्य विचारकों के अनुसार उपन्यास की परिभाषा  - 

उपन्यास के सन्दर्भ में किसी निकष में पहुँचने से पूर्ण कतिपय पाश्चात्य विद्वानों की एतत् सम्बन्धी धारणा की प्रस्तुति नितान्त आवश्यक। 

 

  • राल्फ फॉक्स के अनुसार- "उपन्यास केवल काल्पनिक गद्य नहीं है, यह मानव जीवन का गद्य हैं।” 

  • फील्डिंग के अनुसार- " उपन्यास एक मनोरंजन पूर्ण गद्य महाकाव्य है। 
  • बेकर ने कहा है कि उपन्यास वह रचना है जिसमें किसी कल्पित गद्य कथा के द्वारा मानव जीवन की व्याख्या की गयी हो।

 

प्रिस्टले के अनुसार उपन्यास की परिभाषा 

  • "उपन्यास गद्य में लिखी कथा है जिसमें प्रधानतः काल्पनिक पात्र और घटनाएँ रहती है। यह जीवन का अत्यन्त विस्तृत और विशद दपर्ण है और साहित्य की अन्य विधाओं की तुलना में इसका क्षेत्र व्यापक होता है। उपन्यास को हम ऐसे कथानक के रूप में ले सकते हैं जो सरल और शुद्ध अथवा किसी जीवन दर्शन का माध्यम हो ।

 

  • उपर्युक्त विवेचन के आधार पर का जा सकता है कि उपन्यास आधुनिक युग का अति समादृत साहित्य रूप है। उपन्यास की शैली की स्वाभाविकता उसकी रोचकता बनाये रखने में सहायक होती है। उपन्यास में उपन्यासकार का निजी जीवन दर्शन प्रतिबिम्बित होता है। लेखक की जीवन और जगत की अनुभूति जितनी व्यापक और गहरी होगी उसका औपन्यासिक वर्णन भी उतना ही व्यापक और गम्भीर होगा।

 

उपन्यास की विषेशताएँ

 

ऊपर आप उपन्यास के स्वरूप और अर्थ को समझ चुके है। अब हम संक्षेप में 'उपन्यास' की विषेशताओं को जानेंगे। विद्वानों ने उपन्यास में निम्नलिखित तथ्यों को प्रस्तुत किया है -

 

  • उपन्यास यर्थाथ जीवन की कलात्मक अभिव्यक्ति हैं। यर्थाथ से तात्पर्य है कि जीवन जैसा दीखता या अनुभव होता है। इस जाने पहचाने जीवन के अनुभव को कल्पित घटनाओं तथा पात्रों के माध्यम से उपन्यासकार रूपायित करता है। यह रूपायन कल्पित होते हुए भी मूलतः यर्थाथ है।  

  • उपन्यास का मूल तत्व मानव चरित्र हैं। इसमें मनुष्य के चरित्र का बाह्य पक्ष या आचरण पक्ष तो प्रस्तुत होता ही हैं, साथ ही उसके मन की विभिन्न स्थितियों का उद्घाटन भी होता है। 
  • उपन्यासकार जीवन की कथा कहकर पाठकों की उत्सुकता जगाता है। बाद में उसी जिज्ञासा का शमन मानव चरित्र के आन्तरिक उद्घाटन तथा परिस्थितियों को प्रकाश में लाकर करता है। इस प्रकार सरस कथा होते हुए भी वह जीवन का गहन गंभीर विश्लेषण करता हैं। 
  • उपन्यासकार अपने समकालीन जीवन को दृष्टि में रखकर उसके आधार पर उपन्यास में प्रस्तुत जीवन की व्याख्या और विश्लेषण करता है।

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