हिन्दी कहानी का उद्भव और विकास। प्रेमचन्द युग से पूर्व की कहानी। हिन्दी की प्रथम कहानी । Kahani Ki History in Hindi

हिन्दी कहानी का उद्भव और विकास हिन्दी की प्रथम कहानी 

हिन्दी कहानी का उद्भव और विकास। प्रेमचन्द युग से पूर्व की कहानी।  हिन्दी की प्रथम कहानी । Kahani Ki History in Hindi


हिन्दी काहानी का उद्भव 

  • कहानी शब्द हमारे लिए अपरचित शब्द नहीं है, क्योंकि बचपन में हम जिसे कथा कहते थे, कहानी उसी कथा का साहित्यिक रूप है। इस कहानी को हमने कभी दादी-नानी के मुख से लोक कथा के रूप में सुना तो कभी पण्डित जी के मुख से धार्मिक कथा के रूप में, ये सभी राजा रानी की कहानियाँ, पशु पक्षियों की कहानियाँ, देवताओं और राक्षसों की कहानियाँ, चमत्कारों और जादूटोनों की कहानियाँ, भूत प्रेतों की कहानियाँ, मूर्ख और बुद्धिमानों की कहानियाँ वर्तमान की कहानियाँ कर पुरातन स्वरूप थीं, जिन्हें लोग बड़े चाव से सुनते और सुनाते थे। 

  • इनके अतिरिक्त, पुराण, रामायण, महाभारत, पन्चतंत्र, बेताल पच्चीसी, जातक कथाएँ आदि कई प्राचीन ग्रन्थ इन कहानियों का आदि स्रोत रहे हैं। इन कहानियों को पढ़ने-सुनने से जहाँ जन सामान्य से लेकर विद्वानों का मनोरंजन होता था, वहाँ इनके माध्यम से अनके शिक्षाएँ तथा उद्धेश्य प्राप्त होते थे। 
  • इन कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि इन्हें एक ही साथ कई घंटों और दिनों तक सुना जा सकता है। जिन्हें बार-बार सुनने पर नीरसता की अपेक्षा और अधिक सरसता प्राप्त होती है। ये सभी कहानियाँ हमें परम्परा से प्राप्त हुई, इनमें अतिसंख्य कहानियाँ कल्पना पर आधारित होती हैं, लेकिन कहीं-कहीं इन कहानियों में ऐतिहासिक तथ्यों को भी उजागर किया जाता है। ये ही कहानियाँ वर्तमान कहानी का प्राचीन स्वरूप है।

 

  • प्राचीन कहानियाँ घटना प्रधान होती थी, जिस घटना के माध्यम से लेखक या वक्ता अपने उद्धेश्य की पूर्ति करते थे। इसके लिए वे कहानियों की घटनाओं को मनोइच्छित रूप देते थे। कहानी की रचना के लिए वे काल्पनिक, दैवीय, और चमत्कारी घटनाओं का आविष्कार करते थे। लेकिन वर्तमान की कहानी पुरातन कहानी से एकदम भिन्न है। क्योंकि आज का कहानीकार कहानी की घटना को मानव के यथार्थ जीवन से जोड़ता हैकहानी लिखते समय कहानीकार यह ध्यान रखता है कि जिस कहानी की वह रचना कर रहा है वह अस्वाभाविक न लगे। 
  • जिस चरित्र को वह प्रस्तुत कर रहा है, वह समाज के अन्दर क्रियाशील मानव की भाँति ही प्रतीत हो वह उसके द्वारा ऐसे कार्य नहीं करा सकता जो मुनष्य के लिए असम्भव हो। पुरातन कहानियों के चरित्र ऐसे होते हैं जो असम्भव कार्य को कर देते है। लेकिन वर्तमान की कहानियाँ के पात्र अपने समय और परिस्थितियों के अनुकूल क्रियाशील होते हैं।
  • आज समाज में अनेक परिवर्तन हो रहे हैं जिसका प्रभाव साहित्य पर भी पड़ रहा है, इसीलिए इसी साहित्य के गद्य रूप कहानी में भी काफी बदलाव आ रहे हैं। 
  • वर्तमान की हिन्दी कहानी का उद्भव 18 वीं सदी से लेकर 19 वीं शदी के मध्य में हुआ। कुछ विद्वान हिन्दी कहानी के प्रारम्भ के अन्तसूत्र भारत की प्राचीन कथा परम्परा से जोड़ते है तो कुछ कहानी विधा को पाश्चात्य साहित्य की देन मानते हैं। 
  • कुछ साहित्यधर्मी हिन्दी कहानी का उद्भव स्रोत्र गुणाढ्य की वृहद कथा, कथा सरित सागर, पंचतंत्र कथाएँ, हिंतोपदेश जातक कथाओं से जोड़ते हैं तो कुछ विद्वान स्वामी गोकुल नाथ की चौरासी वैष्णवन की वार्ता को हिन्दी का प्रथम कहानी संग्रह मानते हैं, लेकिन ये कहानियाँ नही जीवनियाँ मात्र हैं।

 

हिन्दी कहानी का विकास

 

  • जैसा कि विद्वान स्वीकारते हैं कि खड़ी बोली हिन्दी में कहानी का आरम्भ उस समय हुआ जब अंग्रेजों के प्रभाव से गद्य लिखा गया। 
  • अंग्रेजों ने हिन्दी गद्य के विकास के लिय जिन लेखकों को तैयार किया उनकी आरम्भिक रचनाएँ एक तरह की कहानियाँ हैं। इन गद्य लेखकों में इंशा अल्ला खाँ एक ऐसे गद्यकार थे जिन्होंने रानी केतकी कहानी" जैस कहानी का सृजन किया लेकिन वर्तमान के समालोचक इसे आधुनिक हिन्दी कहानी के स्वरूप और कथ्य से भिन्न मानते हैं। 
  • वर्तमान में कहानी के लिए जिन तत्वों को निर्धारित किया गया है, रानी केतकी की कहानी में वे सभी तत्व नहीं मिलते। 
  • वर्तमान की कहानी लेखन की प्रेरणा पूर्व में अंग्रेजी और बंगला में रची गयी और हिन्दी में अनुदित कहानियों से मिली, क्योंकि 19 वीं शताब्दी में अंग्रेजी, रूसी, फ्रेंच आदि भाषाओं में कहानी का अच्छा विकास हो चुका था।

 

  • 'नासिकेतो पाख्यान' तथा 'रानी केतकी' की कहानी को हिन्दी की प्रथम कहानी न मानने के पीछे उसमें कहानी तत्वों का अभाव है। इसके पश्चात् भारतेन्दु की 'एक अद्भुत अपूर्व स्वप्न' तथा राधाचरण गोस्वामी की 'यमलोक की यात्रा' प्रकाश में आयी लेकिन विद्वानों ने इनमें भी कहानी कला के तत्वों के अभाव के दर्शन किये। 
  • वैसे हिन्दी कहानी का प्रारम्भ सन् 1900 में प्रकाशित होने वाली उस 'सरस्वती' पत्रिका से हुआ जिससे पंडित किशोरी लाल गोस्वामी को 'इन्दुमती’ (19000) को प्रकाशन हुआ था। हिन्दी कहानी के इस विकास पर गहरी दृष्टि डालने के लिए हमें हिन्दी कहानी के महान कहानी कार प्रेमचन्द को केन्द्र में रखकर चर्चा करनी होगी। 

हिन्दी कहानी का उद्भव और विकास, हिन्दी की प्रथम कहानी


प्रेमचन्दोत्तर युग की कहानी (सन् 1936 से वर्तमान तक)

प्रेमचन्दोत्तर युग की कहानी (सन् 1936 से वर्तमान तक) प्रवृत्तियों की दृष्टि से इन चरणों को कई धाराओं में विभाजित किया जाता है जिनका विवेचन हम यहाँ निम्न प्रकार से करते हैं।

 

1. प्रेमचन्द युग से पूर्व की कहानी ( सन् 1901 से सन् 19140)

 हिन्दी की प्रथम कहानी कौन है ?

  • जैसा कि विद्वान प्रेमचन्द पूर्व युग कहानी का समय सन् 1901 सन् 1914 तक मानते हैं। हिन्दी की प्रथम कहानी कौन है ? इस विषय में काफी विवाद हैं। हिन्दी गद्य की प्रारम्भिक आवधि में मुंशी इंशा अल्ला खाँ ने 'उदय भान चरित्र' या रानी केतकी की कहानी की रचना की थी। समय की दृष्टि से यह सबसे पुरानी कहलाती हैं परन्तु आधुनिक कहानी कला की दृष्टि से यह महत्वपूर्ण रचना नही है।

 

  • आचार्य हजारी प्रसार द्विवेदी का विचार है कि- "यह मुस्लिम (फारसी) प्रभाव की अन्तिम कहानी है यद्यपि इसकी भाषा और शैली में आधुनिक कहानी कला का आभास मिल जाता है।" 
  • राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द की कहानी 'राजाभोज का सपना भी ऐसी ही कहानी है, इसमें भी थोड़ा बहुत आधुनिकता का स्पर्श मिलता है। 
  • इन कहानियों के अतिरिक्त किशोरी लाल गोस्वामी की इन्दुमती, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की ग्यारह वर्ष का समय बग महिला की 'दुलाई वाली' आदि कहानियाँ इसी कोटि की कहानियाँ हैं। इन कहानियों को हम प्रयोगशील कहानियाँ कह सकते हैं। जिनमें कहानी लेखकों ने विदेशी और बंगला कहानियों के प्रभाव में आकर हिन्दी भाषा में भी कहानी लिखने का भी प्रयास किया। 
  • कहानी कला को केन्द्र में रखकर वर्तमान के समालोचक अब माधव राव सप्रे की कहानी 'एक टोकरी भर मिट्टी को हिन्दी की प्रथम कहानी मानते हैं जिसका प्रकाशन सन् 1903 में हुआ था।

 

प्रेमचन्द युग से पूर्व की कहानियों की विशेषताऐं

 

1. प्रेमचन्द पूर्व युग की आरम्भिक कहानियाँ पुरान स्वरूप की थी। जिनका कथानक अलौकिक चमत्कारो से युक्त होता था। 

2. प्रेमचन्द पूर्व युग की आरम्भिक कहानियाँ प्रायः आदर्श - वादी होती थी जिनमें भावुकता के साथ किसी भारतीय आदर्श की कथा कही जाती थी।

3. प्रेमचन्द युग की कहानियाँ धीरे-धीरे यथाथ्र की और उन्मुख हुई, लेकिन इस यथार्थ का रूप ऐसा नहीं था जैसा कि प्रेमचन्द की कहानियों में मिलता है। 

4. भाषा की दृष्टि से इस युग की कहानियों की भाषा उतनी प्रौढ़ और परिमार्जित भाषा नहीं है जितनी प्रेमचन्द की कहानियों में है। 

5. इस युग के कहानीकार प्रयोगधर्मी कहानी कार अधिक थे, इसलिए उस युग की प्रयोगधर्मी कहानियाँ अधिक है।

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