गणित शिक्षण मूल्यांकन अर्थ उद्देश्य। गणित मूल्यांकन प्रक्रिया के सोपान । Evaluation Maths Aim and Steps

 

गणित शिक्षण मूल्यांकन अर्थ उद्देश्य। गणित मूल्यांकन प्रक्रिया के सोपान । Evaluation Maths Aim and Steps

मूल्यांकन का अर्थ Meaning of Evaluation

 

  • मूल्यांकन Evaluation एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम यह जानने का प्रयास करते हैं कि कक्षा अध्यापन द्वारा उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक हुई है, अर्थात् अध्यापक यह देखना चाहता है कि उसके विद्यार्थियों ने प्राप्त ज्ञान को किस सीमा तक समझा है, उनकी रुचि तथा व्यवहार में कहाँ तक परिवर्तन हुआ है, उनकी गणित के प्रति अभिरुचि कितनी है, उनकी बुद्धि का स्तर क्या है आदि-आदि। यह सब मिलाकर ही मूल्यांकन की प्रक्रिया पूर्ण समझी जाती है। 
  • इस प्रकार शिक्षा में मूल्यांकन से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसमें अध्यापक एक छात्र की शैक्षिक उपलब्धि (Educational Achievement) का पता लगाता है। 
  • इस प्रकार मूल्यांकन का आशय मापन के साथ-साथ मूल्य निर्धारण से है अर्थात् अधिगम- अनुभवों द्वारा विद्यार्थी में अपेक्षित व्यवहारगत परिवर्तन किस सीमा तक हुए ? इसका मूल्य निर्धारण (मूल्यांकन) करके निर्णय देना है। अतः मापन मूल्यांकन का ही भाग है तथा सदैव उसमें निहित रहता है। 
  • कोठारी आयोग ने अपने प्रतिवेदन में स्पष्ट किया है कि "मूल्यांकन एक सतत प्रक्रिया है तथा शिक्षा की सम्पूर्ण प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। यह शिक्षा के उद्देश्यों से पूर्णरूप से सम्बन्धित है। मूल्यांकन के द्वारा शैक्षिक उपलब्धि की ही जाँच नहीं की जाती बल्कि उसके सुधार में भी सहायता मिलती है।

 

मूल्यांकन से सम्बन्धित प्रमुख परिभाषाएँ Important Definitions Related to Evaluation

 

मूल्यांकन का व्यापक अर्थ होता है फिर भी कुछ मनौवैज्ञानिकों ने इसके अर्थ को कुछ शब्दों में समेटकर बताने का प्रयास किया है। उनकी इससे सम्बन्धित कुछ परिभाषाएँ निम्नवत् हैं-

 

  • क्विलेन व हन्ना के मतानुसार, "विद्यालय द्वारा बालक के व्यवहार में लाए गए परिवर्तनों के सम्बन्ध में प्रमाणों के संकलन और उनकी व्याख्या करने की प्रक्रिया को मूल्यांकन कहते हैं।" 

  • डान्डेकर के मतानुसार, "मूल्यांकन एक ऐसी क्रमबद्ध प्रक्रिया है जो हमें यह बताती है कि बालक ने किस सीमा तक किन उद्देश्यों को प्राप्त किया है।"
  • गुड्स के मतानुसार, "मूल्यांकन एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे सही ढंग से किसी वस्तु का मापन किया जा सकता है। " 
  • मुफ्फात के मतानुसार, "मूल्यांकन एक सतत प्रक्रिया है तथा यह बालकों की औपचारिक शैक्षिक उपलब्धि की उपेक्षा करता है। यह व्यक्ति के विकास में अधिक रुचि रखता है। यह व्यक्ति के विकास को उसकी भावनाओं, विचारों तथा क्रियाओं से सम्बन्धित वांछित व्यवहारगत परिवर्तनों के रूप में व्यक्त करता है।"


गणित शिक्षण मूल्यांकन के उद्देश्य (Objectives of Evaluation in Mathematics Teaching )

गणित शिक्षण में मूल्यांकन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं

 

  • पाठ्यक्रम आवश्यक संशोधन करना। 
  • परीक्षा प्रणाली में सुधार करना। 
  • निर्देशन एवं परामर्श हेतु उचित अवसर प्रदान करना । 
  • अध्यापकों की कार्यकुशलता एवं सफलता का मापन करना ।
  • बालकों के व्यवहार सम्बन्धी परिवर्तनों की जाँच करना। 
  • बालकों की दुर्बलताओं तथा योग्यताओं की जानकारी प्रदान करने में सहायता देना।
  • नवीनतम् एवं प्रभावी शिक्षण विधियों एवं प्रविधियों की खोज करना। 
  • अनुदेशन की प्रभावशीलता का पता लगाना ।
  • प्रचलित शिक्षण विधियों तथा पाठ्य पुस्तकों की जाँच करके उनमें अपेक्षित सुधार करना। 
  • बालकों का विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकरण करना। 
  • बालकों की अधिगम कठिनाइयों का पता लगाना। 
  • बालकों को उत्तम ढंग से सीखने के लिए प्रोत्साहित करना। 
  • बालकों की व्यक्तिगत एवं सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जानकारी प्रदान करना।  
  • शिक्षण-व्यूह रचना में सुधार एवं विकास करना। · 
  • निदानात्मक तथा उपचारात्मक शिक्षण पर बल देना।

 

मूल्यांकन की आधारभूत मान्यताएँ (Basic Assumptions of Evaluation) 

प्रत्येक सिद्धान्त की भाँति मूल्यांकन में भी यदि हम कुछ स्वयं-सिद्धियों (Axioms) को स्वीकार न करें अथवा कुछ को अन्य स्वयं-सिद्धियों द्वारा प्रतिस्थापित न करें, तो मूल्यांकन का सम्पूर्ण स्वरूप ही बदल जाएगा। 

कुछ महत्त्वपूर्ण मान्यताएँ इस प्रकार हैं- 

 

  • शैक्षिक उपलब्धि का एक अस्तित्व है और यह एक बहु-विमीय स्वरूप (Multidimensional entity) है। 
  • शैक्षिक उपलब्धि ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जो व्यक्ति में होती है या नहीं होती है। यह एक अविरल (Continum) है और विभिन्न कोटि में धारण की जा सकती है। 
  • कोई वस्तु जिसका अस्तित्व है, वह मापनीय राशियों में होती है। कोई वस्तु ; जिसका मूल्यांकन होता है वह और अच्छी तरह सीखी जाती है।
  • मूल्यांकन = मापन + मूल्यात्मक निर्णय ।  
  • इसके अतिरिक्त समरफील्ड Roy. E. Summerfield ने मूल्यांकन में निहित  मान्यताएँ आठ प्रकार की बताई हैं। 


मूल्यांकन प्रक्रिया के सोपान Steps in the Evaluation Process

 

मूल्यांकन प्रक्रिया के मुख्य तीन सोपान हैं -

शिक्षण उद्देश्यों का निर्धारण एवं परिभाषीकरण

  • उद्देश्यों को निर्धारित करने से पूर्व बालक, समाज, विषय-वस्तु की प्रकृति तथा शैक्षिक स्तर पर पूर्ण ध्यान दिया जाना चाहिए। जिन उद्देश्यों की जाँच होनी है, उनकी परिभाषा दी जाए। मूल्यांकन में यह आवश्यक है कि जिनका मूल्यांकन होता है, उनको निश्चित करने तथा स्पष्ट करने को मूल्यांकन प्रक्रिया में सदैव प्रधानता दी जाए। जब तक मूल्यांकन का अभिप्राय सावधानीपूर्वक बताया न जाए तब तक कोई भी मूल्यांकन की युक्ति न तो चुनी जाए और न ही विकसित की जाए। मूल्यांकनकर्ता के मस्तिष्क में यह बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिए कि वह किस प्रकार के परिवर्तन किस सीमा तक लाना चाहता है।

 

अधिगम अनुभव की योजना बनाना 

  • अधिगम- अनुभव से तात्पर्य एक ऐसी परिस्थिति के निर्माण से है जिसके अन्तर्गत बालक वांछित क्रिया व्यक्त कर सकता है। अतः अध्यापक को चाहिए कि वह कक्षा के अन्दर ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करे जिससे कक्षा का वातावरण एक उद्दीपक (Stimulus) का कार्य करे। इस बात का ध्यान रखा जाए कि अध्यापन स्थिति तथा सीखने की स्थिति में सामंजस्य हो। कभी-कभी अध्यापक अपनी सुविधा के लिए ऐसी अध्यापन स्थिति का चयन कर लेता है जो विद्यार्थियों के दृष्टिकोण से उपयुक्त सीखने की स्थिति नहीं होती।

 
शिक्षण अनुभवों को उत्पन्न करते समय अध्यापक को निम्न बातों को भी ध्यान में रखना चाहिए-
 

  • क्या अधिगम अनुभव (Learning Experiences) शैक्षणिक लक्ष्यों से प्रत्यक्ष रूप में सम्बन्धित है ? 
  •  क्या ये अनुभव शिक्षार्थी के लिए सार्थक (Meaningful) तथा सन्तोषप्रद हैं? 
  • क्या ये अनुभव विद्यार्थी की परिपक्वता (Maturity) के अनुकूल हैं
  •  क्या ये अनुभव पर्याप्त (Adequate) हैं
  •  क्या ये अनुभव बालक के व्यवहार का अविच्छिन्न अंग (Intergal part) बन सकते हैं?

 

व्यवहार परिवर्तन के आधार पर मूल्यांकन करना

  • शिक्षा का अन्तिम उद्देश्य बालक के व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाना होता है। बालक का व्यवहार उसके अस्तित्व के कई पक्षों से सम्बन्धित होता है। इसके अन्तर्गत बाह्य तथा आन्तरिक दोनों ही प्रकार के व्यवहार आते हैं। विद्यालय में पढ़ाए जाने वाले सभी विषय बालक के ज्ञानात्मक (Cognitive), भावात्मक (Affective) तथा क्रियात्मक (Conative) पक्षों का विकास करते हैं। उसके व्यवहार के ये तीन मुख्य अंग हैं जो बाह्य तथा आन्तरिक दोनों ही रूपों में पाए जाते हैं। 
  • मापन के परिणामों का प्रयोग मापन को साध्य न मानकर किसी साध्य के लिए साधन के रूप में लेना चाहिए। इससे अध्यापक तथा अन्य अधिकारियों के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे छात्रों की शिक्षा में इसके परिणाम का उचित सदुपयोग करें। बालकों से सम्बन्धित आँकड़ों का आँख मूँदकर एकत्रीकरण करने तथा उन्हें इस आशा से संचित करने में कि ये भविष्य में कभी उपयोगी सिद्ध होंगे, समय व प्रयास दोनों का दुरुपयोग होता है। केवल परिणामों के सही प्रयोग द्वारा ही उपलब्धियों में सुधार सम्भव है।

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