विजय दिवस 2023 :क्यों मनाते हैं 16 दिसंबर को विजय दिवस।Vijay Divas 2023 Special in Hindi

 विजय दिवस 2023 :क्यों मनाते हैं 16 दिसंबर को विजय दिवस

विजय दिवस 2021 :क्यों मनाते हैं 16 दिसंबर को विजय दिवस (Vijay Divas 2021 Special in Hindi)
 (Vijay Divas 2023 Special in Hindi)




क्यों मनाते हैं 16 दिसंबर को विजय दिवस ? 

  • वर्ष 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की विजय की स्मृति में प्रतिवर्ष 16 दिसंबर को विजय दिवस (Vijay Diwas) मनाया जाता है।
  • वर्ष 2021 में विजय दिवस के 51 वर्ष पूरे हो गए हैं . 
  • राष्ट्रीय युद्ध स्मारक उन सभी सैनिकों को समर्पित है जिन्होंने आज़ादी के बाद देश की रक्षा के लिये अपना जीवन बलिदान कर दिया। साथ ही यह स्मारक उन सैनिकों को भी याद करता है जिन्होंने शांति अभियानों में बलिदान दिया।


1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश की उत्पत्ति

  • भारत सरकार ने 3 दिसंबर, 1971 को बंगाली मुसलमानों और हिंदुओं की रक्षा के लिये पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़ने का निर्णय लिया।
  • यह युद्ध भारत और पाकिस्तान के मध्य 13 दिनों तक लड़ा गया था।
  • 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तानी सेना के प्रमुख ने 93,000 सैनिकों के साथ  ढाका में भारतीय सेना जिसमें मुक्ति वाहिनी भी शामिल थी, के सामने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया था।
  • मुक्ति वाहिनी उन सशस्त्र संगठनों को संदर्भित करती है जो बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान पाकिस्तान सेना के विरुद्ध लड़े थे। यह एक गुरिल्ला प्रतिरोध आंदोलन था।
  • 16 दिसंबर, 2021 को देशभर में ‘50 वां विजय दिवसमनाया जा रहा है । 
  • इसी दिन बांग्लादेश की उत्पत्ति हुई थी। इसलिये बांग्लादेश प्रत्येक वर्ष 16 दिसंबर को स्वतंत्रता दिवस (विजय दिवस  मनाता है।

 

 

बांग्लादेश मुक्ति युद्ध 1971: का इतिहास 


राजनीतिक असंतुलन: 

  • 1950 के दशक में पाकिस्तान की केंद्रीय सत्ता पर पश्चिमी पाकिस्तान का दबदबा था। पाकिस्तान पर सैन्य-नौकरशाही का राज था जो पूरे देश (पूर्वी एवं पश्चिमी पाकिस्तान) पर बेहद अलोकतांत्रिक ढंग से शासन कर रहे थे।
  • शासन की इस प्रणाली में बंगालवासियों का कोई राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं था किंतु वर्ष 1970 के आम चुनावों के दौरान पश्चिमी पाकिस्तान के इस प्रभुत्व को चुनौती दी गई थी।


अवामी लीग की विजय: 

  • वर्ष 1970 के आम चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान के शेख मुज़ीबुर्र रहमान की अवामी लीग को स्पष्ट बहुमत प्राप्त था, जो प्रधानमंत्री बनने के लिये पर्याप्त था।
  • हालाँकि पश्चिमी पाकिस्तान पूर्वी पाकिस्तान के किसी नेता को देश पर शासन करने देने के लिये तैयार नहीं था।


सांस्कृतिक अंतर:

  • तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) ने याह्या खान के नेतृत्व में पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के लोगों का सांस्कृतिक रूप से दमन करने की कोशिश की। उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान पर भाषा पहनावा-ओढ़ावा इत्यादि को लेकर तानाशाही रवैया अपनाना शुरू किया। ज्ञातव्य है कि पूर्वी पाकिस्तान बंगाल से काटकर बनाया गया था अतः यहाॅं की भाषा मुख्यतः बंगाली थी जबकि, पश्चिमी पाकिस्तान की भाषा मुख्यतः उर्दू थी।
  • भाषा और सांस्कृतिक मतभेदों के कारण पूर्वी पाकिस्तान की जनता स्वतंत्रता की मांग कर रही थी। राजनीतिक वार्ता विफल होने के बाद जनरल याह्या खान के नेतृत्त्व में पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने का फैसला किया।


ऑपरेशन सर्चलाइट: 

  • 26 मार्च, 1971 को पश्चिम पाकिस्तान ने पूरे पूर्वी पाकिस्तान में ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू की।
  • इसके परिणामस्वरूप लाखों बांग्लादेशी भारत भागकर भारत आ गए। मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय और त्रिपुरा जैसे राज्यों में क्योंकि ये राज्य बांग्लादेश के सबसे करीबी राज्य हैं।
  • विशेष रूप से पश्चिम बंगाल पर शरणार्थियों का बोझ बढ़ने लगा और राज्य ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनकी सरकार से भोजन और आश्रय के लिये सहायता की अपील की।

इंडो-बांग्ला सहयोग:

  • बांग्लादेश के स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वाली 'मुक्तिवाहिनी सेना' एवं भारतीय सैनिकों की बहादुरी से पाकिस्तानी सेना को मुॅंह की खानी पड़ी। ज्ञातव्य है कि मुक्तिवाहिनी सेना में बांग्लादेश के सैनिक, अर्द्ध-सैनिक और नागरिक भी शामिल थे। ये मुख्यत: गुरिल्ला पद्धति से युद्ध करते थे।


पाकिस्तानी सेना की हार: 

  • 16 दिसंबर, 1971 को पूर्वी पाकिस्तान के मुख्य मार्शल लॉ प्रशासक और पूर्वी पाकिस्तान में स्थित पाकिस्तानी सेना बलों के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाज़ी ने इंस्ट्रूमेंट ऑफ सरेंडरपर हस्ताक्षर किये।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे अधिक 93,000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना और बांग्लादेश मुक्ति सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। भारत के हस्तक्षेप से मात्र 13 दिनों के इस छोटे से युद्ध से एक नए राष्ट्र का जन्म हुआ।


बांग्लादेश मुक्ति युद्ध 1971: परोपकार या व्यवहारिक राजनीति?

एक साथ दो मोर्चों पर युद्ध का खतरा: 

  • भविष्य में कभी भी पाकिस्तान से युद्ध होने पर भारत को दोनों मोर्चों से युद्ध का खतरा था। पूर्वी पाकिस्तान के विद्रोह से भारत को इस खतरे को समाप्त करने का बहाना मिल गया।
  • हालाॅंकि वर्ष 1965 में पूर्वी मोर्चा काफी हद तक निष्क्रिय रहा, लेकिन इसने पर्याप्त सैन्य संसाधनों को अपने पास रोक लिया था जो पश्चिमी मोर्चे पर अधिक प्रभावशाली हो सकता है।
  • प्रो-इंडिया अवामी लीग को अलग-थलग होने से रोकना: भारत के अनुसार अगर पाकिस्तान के गृहयुद्ध में वो अवामी लीग की सहायता नही करता तो इस आंदोलन का नेतृत्व वाम एवं चीन-समर्थक पार्टियों जैसे- राष्ट्रीय अवामी पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी के हाथ में जा सकता था।


आंतरिक सुरक्षा पर खतरा: 

  • पाकिस्तानी सेना के खिलाफ प्रतिरोध का मुख्य तरीका माओवादी विचारधारा से प्रेरित गुरिल्ला युद्ध था।
  • यदि भारत बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में हस्तक्षेप नहीं करता तो यह भारत के आंतरिक सुरक्षा हितों के लिये हानिकारक हो सकता था विशेष तौर पर नक्सली आंदोलन के संदर्भ में जो तब पूर्वी भारत में अपने उग्र रूप में था।


सांप्रदायिक खतरा:

  • जुलाई-अगस्त 1971 तक 90% मुस्लिम शरणार्थी पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती ज़िलों में केंद्रित थे। अतः यदि भारत उनकी वापसी सुनिश्चित करने के लिये जल्द से जल्द कोई कदम नहीं उठाता तो राज्य में सांप्रदायिक संघर्ष का खतरा उत्पन्न होने की संभावना थी।


गुटनिरपेक्षता पर प्रभाव: 

  • कूटनीति के स्तर पर भारत ने अकेले यह कार्य नहीं किया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दुनिया के नेताओं को इस कार्य के लिये सावधानीपूर्वक तैयार किया एवं पूर्वी पाकिस्तान के उत्पीड़ित लोगों के लिये समर्थन का आधार बनाने में मदद की थी।
  • अगस्त 1971 में भारत-सोवियत संघ का संधि पर हस्ताक्षर करना भारत के लिये एक शूट-इन-द-आर्म के रूप में काम आया। इस जीत ने विदेशी राजनीति में भारत की व्यापक भूमिका को परिभाषित किया।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों ने यह महसूस किया कि दक्षिण एशिया में शक्ति का संतुलन भारत की तरफ झुक गया है।

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