प्लेटो का आदर्श राज्य, उत्पत्ति विकास चरण,आलोचनात्मक मूल्यांकन |Plato aadarsh rajya

 प्लेटो का आदर्श राज्य, उत्पत्ति विकास चरण,आलोचनात्मक मूल्यांकन 

प्लेटो का आदर्श राज्य, उत्पत्ति विकास चरण,आलोचनात्मक मूल्यांकन |Plato aadarsh rajya


प्लेटो का आदर्श राज्य Plato Ka Aadarsh Rajya

 

  • रिपब्लिक में दार्शनिक प्लेटो के समस्त चिन्तन का केन्द्रीय विषय 'आदर्श राज्य' है। अपने 'आदर्श राज्य के भव्य भवन के निर्माण हेतु उसने न्याय सिद्धांत को आधारशिला तथा शिक्षा योजना एवं साम्यवाद के सिद्धांत का आधार स्तम्भ के रूप में प्रयोग किया है। आदर्श राज्य की बागडोर वह ऐसे दार्शनिक शासकों के हाथों में सौंपता है जिनमें सुन्दर आत्मा के सभी गुण होते हैं। अर्थात् वे सर्वज्ञ, विवेकशील, सर्वदृष्टा तथा परममत् के गुणों से युक्त शासक होते हैं।

 

  • प्लेटो एक ऐसे आदर्श राज्य की रचना करना चाहता था जो पूर्णरूपेण 'आदर्श राज्य' हो अर्थात् उसकी रचना, उसकी दृढ़ता, उसके सौन्दर्य एवं उसकी आदर्शवादिता में कहीं भी किसी भी प्रकार की वह त्रुटि नहीं रखना चाहता था। आदर्श की आदर्श के हेतु उपासना ही रिपब्लिक में उसके चिन्तन का एकमात्र लक्ष्य था। उसको इस बात की विशेष चिन्ता नहीं थी कि उसके द्वारा चित्रित आदर्श राज्य व्यावहारिक भी है अथवा नहीं। उसने स्वीकार किया है कि "वह नगर (आदर्श राज्य) शब्दों में निर्मित है, क्योंकि मेरे विचार से पृथ्वी पर यह कहीं भी नहीं है। राजनीतिक जीवन को आदर्श बनाने अथवा राज्य का आदर्श मॉडल निर्मित करने की उसकी इतनी तीव्र लालसा थी कि इसे व्यावहारिक बनाने के लिए इसमें किंचित मात्र भी संशोधन करने को वह तैयार न था। नैटलशिप के शब्दों में, "रिपब्लिक में वह अपने आदर्श को किंचित मात्र भी न्यून नहीं करता, उसे केवल इस बात से सन्तोष है कि वह इसे (राज्य को) एक 'आदर्श' रूप प्रदर्शित कर रहा है।"

 

1 प्लेटो के आदर्श राज्य में व्यक्ति और राज्य का सम्बन्ध

  •  अपने आदर्श राज्य के निर्माण का प्रारम्भ प्लेटो ने व्यक्ति तथा राज्य के पारस्परिक सम्बन्धों की प्रकृति पर विचार करते हुए किया है। उसके अनुसार राज्य तथा व्यक्ति दो पर्यायवाची शब्द है। राज्य व्यक्ति के विराट रूप की अभिव्यक्ति है। प्लेटो का मत था कि राज्य वृक्षों या चट्टानों से पैदा नहीं होते किन्तु उन व्यक्तियों के चरित्र से निर्मित होते हैं, जो उनमें रहते हैं। प्लेटो को राज्य की चेतना में तथा व्यक्ति की चेतना में एकता का आभास हुआ है। 
  • प्रो. बार्कर के शब्दों में, "राज्य की चेतना ठीक उसके सदस्यों की चेतना है, जब वे (राज्य के सदस्य के रूप में विचार कर रहे हों।" राज्य तथा व्यक्ति में उसे एक नैतिक समानता अथवा यों कहना चाहिये नैतिक एकता का भी आभास हुआ है। उसने यह भी स्वीकार किया है कि व्यक्ति और राज्य के ना तो उद्देश्यों में ही अन्तर है और न ही उनके हितों में ही किसी प्रकार का विरोधाभास है। उसके मतानुसार अच्छे जीवन की प्राप्ति ही राज्य तथा व्यक्ति के जीवन का महानतम् उद्देश्य है। 

 

2 प्लेटो के आदर्श राज्य की उत्पत्ति विकास चरण

 

  • प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य का निर्माण के तीन चरण माने है। मानव की आर्थिक आवश्यकताओं को ही राज्य उत्पत्ति का प्रमुख आधार उसने माना है क्योंकि इनकी पूर्ति के लिए ही व्यक्ति किसी न किसी प्रकार का सहयोग करने के लिए बाध्य होता है। बर्कर के शब्दों में, "भोजन, उष्णता तथा प्रश्रय की इच्छाएं सामान्य प्रयास के अभाव में उचित रूप से पूरी नहीं की जा सकती है।" 

 

  • प्लेटो के शब्दों में, "राज्य मानव समाज की आवश्यकताओं से उत्पन्न होता है..... कोई भी आत्मनिर्भर नहीं है। इस प्रकार प्लेटो के अनुसार मानव की आर्थिक आवश्यकताएं ही राज्य को एकता के सूत्र में बांधने वाले प्रारम्भिक बिन्दु हैं। इकाई के रूप में कोई भी व्यक्ति अपने आर्थिक जीवन की समस्त आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता, जबकि पारस्परिक सहयोग एवं विनिमय से सभी अपनी आर्थिक आवश्यकताओं की अधिक से अधिक मात्रा में पूर्ति करने में सफल हो सकते हैं। किसी भी व्यक्ति या समाज के आर्थिक हितों की समुचित रूप से रक्षा तभी हो सकती है जब व्यक्ति अपने द्वारा तैयार की गयी वस्तुएं समष्टि को प्रदान करे तथा अपनी आवश्यकता की अन्य वस्तुएं समष्टि से प्राप्त करे। आर्थिक जीवन की वस्तुओं का इस प्रकार का आदान-प्रदान श्रम विभाजन तथा कार्य विशिष्टीकरण को जन्म देता है। आर्थिक आधार पर प्लेटो ने इस आदान-प्रदान को उचित ठहराया है। इस आर्थिक पहलू का राजनीतिक महत्त्व भी उसे दृष्टिगोचर हुआ है, क्योंकि कार्य विशिष्टीकरण का सिद्धांत उसकी दृष्टि में राज्य की एकता का सृष्टा है। 
  • प्लेटो के शब्दों में, "इरादा यह था कि प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे काम में लगाया जाय जिसके लिए प्रकृति ने उसका चयन किया है। एक व्यक्ति को एक काम दिया जाय और तब प्रत्येक व्यक्ति अपना स्वयं का कार्य करेगा। राज्य की उत्पत्ति के इस प्रथम चरण में राज्य के उस वर्ग का विकास होत है जिसे प्लेटो उत्पादक वर्ग कहकर पुकारता है एवं जिसका प्रमुख गुण सम्पत्ति प्रेम तथा 'लालसा है।

 


  • राज्य की उत्पत्ति का दूसरा चरण तब प्रारम्भ होता है जब प्लेटो उस वर्ग के निर्माण की योजना प्रस्तुत करता है जो राज्य के साहस तथा उत्साह का प्रतिनिधि है। राज्य के अंग के रूप में इस वर्ग का प्रमुख गुण उत्साह है। 

 

  • प्लेटो के अनुसार मनुष्य सिर्फ आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने मात्र से सन्तुष्ट नहीं हो जाता। वह अपनी सांस्कृतिक इच्छाओं को भी तृप्त करना चाहता है। उसे संगीत, साहित्य काव्य, कविता, कला आदि विभिन्न वस्तुओं की तृष्णा होती है। इन विभिन्न वस्तुओं की प्राप्ति हेतु अधिसंख्यक लोगों का होना आवश्यक है। अधिसंख्यक लोगों के निवास और भरण पोषण के लिए विशाल भू-प्रदेश की आवश्यकता होती है। विशाल भू-प्रदेश को अधिकृत करने हेतु युद्ध होता है। युद्ध के हेतु सैनिक वर्ग का उदय होता है। अतः सैनिक वर्ग के कार्यों, दायित्वों और गुणों का विश्लेषण कर प्लेटो ने यही दर्शाने का प्रयास किया है कि किस प्रकार आत्मा का साहस तत्त्व आदर्श राज्य के निर्माण एवं संरक्षण में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

 

  • जिस प्रकार प्लेटो के आदर्श राज्य के निर्माण के प्रथम चरण में उत्पादक वर्ग का उदय होता है उसी प्रकार उसके द्वितीय चरण में सैनिक वर्ग का अभ्युदय होता है। सैनिक वर्ग का मुख्य कार्य बाहरी आक्रमण से राज्य की रक्षा करना एवं आन्तरिक शान्ति सुरक्षा कायम करने में सहयोग देना है। यद्यपि प्लेटो ने सैनिक वर्ग के विकास की व्याख्या राज्य की आक्रमणकारी लिप्सा के संदर्भ में की है, तथापि प्लेटो का आदर्श राज्य स्वयं आक्रामक नहीं होता। अतएव, आदर्श राज्य में सैनिक वर्ग का प्रमुख कार्य रक्षात्मक है, आक्रामक नहीं। प्लेटो ने सैनिकों को प्रहरी की संज्ञा दी है और उनकी तुलना रखवाली करने वाले कुत्तों से की है। चेतना और साहस उनके मुख्य गुण होते हैं।

 

  • आदर्श राज्य के निर्माण का तीसरा चरण तब प्रारम्भ होता है जबकि सैनिक वर्ग में से ही प्लेटो राज्य के विवेक तत्व का प्रतिनिधित्व करने वाले सर्वोच्च वर्ग का निर्माण करता है। उसके अनुसार सैनिक वर्ग के लोगों में सामान्यतया उत्साह तथा विवेक पाया जाता है। किन्तु इनमें कतिपय ऐसे व्यक्ति भी होते है जिनमें उत्साह की अपेक्षा विवेक का अत्यधिक बाहुल्य होता है ऐसे लोगों को प्लेटो ने राज्य के दार्शनिक शासक माना है। विवेक के अन्तर्गत प्लेटो ने दो गुण माने हैं। प्रथम, विवेक से व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त होता है तथा द्वितीय विवेक ही व्यक्ति को प्रेम करना सिखाता है। अतः प्लेटो के अनुसार शासक विवेकशील होना चाहिये एवं उसमें पर्याप्त मात्रा में स्नेहशीलता होनी चाहिये।

 

  • इस प्रकार तीन चरणों में राज्य निर्माण, उन तीन वर्गों के क्रमशः विकास के साथ सम्पन्न होता है, जो राज्य की तीन मूलभूत आवश्यकताओं- 'उत्पादन', 'रक्षा' तथा शासन की पूर्ति अपने तीन गुणों करते हैं। क्षुधा, साहस तथा विवेक के आधार पर करते हैं।

 

3 आदर्श राज्य के निर्माणक तीन वर्ग

 

  • प्लेटो के अनुसार राज्य की उत्पत्ति के विकास चरणों में तीन ऐसे वर्गों का विकास हुआ जिनके कंधों पर आदर्श राज्य का भार डाला जा सकता है। प्लेटो के आदर्श राज्य का निर्माण करने वाले ये तीन वर्ग-उत्पादक वर्ग, सैनिक वर्ग तथा दार्शनिक शासक क्रमशः राज्य की आत्मा के तीन गुणों- क्षुधा, उत्साह तथा विवेक का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें से दो वर्गों-सैनिक तथा दार्शनिक शासक-को प्लेटो ने राज्य का संरक्षक माना है। इसका कारण यह है कि राज्य का विवेक राज्य के उत्साह की सहायता से राज्य के संरक्षक की जिम्मेदारी को समुचित रूप से निभा सकता है। प्लेटो का मानना था कि राज्य के इन तीनों वर्गों के अनुरूप ही कार्यों का संचालन करना चाहिए; इस प्रकार उसके आदर्श राज्य की एक विशेषता कार्य विभाजन के सिद्धांत की क्रियात्मक उपस्थिति थी।

 

4 आदर्श राज्य की आधारशिला- न्याय

 

  • प्लेटो के अनुसार आदर्श राज्य की आधारशिला न्याय के सिद्धांत पर टिकी हुई है। चूँकि आदर्श राज्य में तीन वर्ग होते हैं और कार्य विभाजन एवं विशिष्टीकरण की धारणा के आधार पर इन तीनों वर्गों को अपना-अपना कार्य दूसरे के कार्य में हस्तक्षेप किये बिना करना होता है इसलिए न्याय राज्य का वह गुण है जिसकी उपस्थिति के कारण ही राज्य के विभिन्न वर्ग अपने-अपने कार्य क्षेत्रों तक अपनी कार्यवाहियों को सीमित रखते हुए अपनी प्राकृतिक क्षमता एवं प्रशिक्षण के आधार पर निश्चित हुए कार्य को पूरी तन्मयता एवं लगन से सम्पन्न करते हैं एवं श्रेष्ठता को प्राप्त करते हैं। प्लेटो की दृष्टि में वह राज्य न्याय पर आधारित है जिसमें नागरिक अपने-अपने निर्धारित क्षेत्रों से अपने जिम्मे के कार्य सम्पन्न करते है।

 

5 आदर्श के आधारस्तम्भ- शिक्षा और साम्यवाद

 

  • यदि न्याय का सिद्धांत राज्य की आधारशिला है तो शिक्षा योजना तथा साम्यवादी व्यवस्था आदर्श राज्य के आधारभूत स्तम्भ है। उसने रिपब्लिक में शिक्षा को इतना अधिक महत्त्व दिया है कि रूसो ने इसे राजनीति विषयक ग्रन्थ न मानकर शिक्षा विषयक एक अत्यन्त श्रेष्ठ ग्रन्थ माना है। प्लेटो का दृढ विश्वास था कि शिक्षा व्यक्ति को एक विशेष कार्य का प्रशिक्षण देकर उसे वही कार्य सम्पन्न करते रहने की प्रेरणा देगी। राज्य द्वारा नियोजित शिक्षा प्रणाली को अपनाकर एक बहुत बड़ी सीमा तक व्यक्ति के दृष्टिकोण को सही दिशा में बदला जा सकता है। आदर्श राज्य द्वारा प्रदत्त शिक्षा योजना की निम्नलिखित विशेषताओं पर प्लेटो जोर देता है।

 

  • साम्यवाद प्लेटो के आदर्श राज्य का दूसरा आधारस्तम्भ है। यह शिक्षा द्वारा प्रजनित भावनाओं को दृढ़ करने एवं उन्हें क्रियाशील बनाने का कार्य करता है। प्लेटो का दृढ़ विश्वास था कि शिक्षा के द्वारा नैतिक विकासस कर लेने मात्र से ही आदर्श राज्य का निर्माण नहीं हो जायेगा क्योंकि अनेक बाह्य परिस्थितियां ऐसी होती हैं जिनका अनिष्टकारी प्रभाव मानव के हृदय पटल पर पड़ता है। अतः साम्यवाद के द्वारा अपने आदर्श राज्य में वह उन बाह्य परिस्थितियों को जड़ मूल से नष्ट कर देना चाहता था जो मानव समाज के नैतिक विकास का मार्ग अवरुद्ध करने वाली दुर्गम चट्टानें दृष्टिगोचर हुई जिन पर प्रहार करके उसने अपने आदर्श राज्य के प्रासाद की नींव सुदृढ़ करने का प्रयास किया है।

 

  • प्लेटो ने अपने साम्यवाद को आदर्श राज्य के दो वर्गों- शासकों तथा सैनिकों तक ही सीमित रखा है। उसका साम्यवाद राज्य के अल्पसंख्यकों के लिए था। अपनी निजी सम्पत्ति तथा अपने पारिवारिक जीवन की आहुति राज्य के दार्शनिक शासक वर्ग तथा सैनिक वर्ग को ही देनी थी और उन्हें भी इसलिए देनी थी कि प्लेटो के आदर्श राज्य का सफल निर्माण उनकी कार्यकुशलता, क्षमता, स्वार्थहीनता तथा राज्य के प्रति उनकी आस्था पर ही आधारित था । प्लेटो की योजना में संरक्षक वर्ग के पास न तो सम्पत्ति होती है और न ही परिवार उनकी सेवाओं के बदले राज्य उनकी आर्थिक आवश्यकताओं- भोजन, वस्त्र, निवास आदि का सामूहिक रूप से प्रबन्ध करता है। संक्षेप में, आदर्श राज्य में प्लेटो राज्य की राजनीतिक शक्ति तथा आर्थिक शक्ति का एक हाथों में आ जाना किसी भी प्रकार से वांछनीय नहीं समझता है। 

 

6 आदर्श राज्य की बागडोर- दार्शनिक शासक के हाथों में

 

  • प्लेटो अपने आदर्श राज्य की बागडोर दार्शनिक वर्ग को प्रदान करता है। दार्शनिक शासक सर्वाधिक शिक्षित, सुसंस्कृत, साहसी, आत्मसंयमी, ज्ञानी और निर्लोभी होते हैं। प्लेटो की यह धारणा है कि आदर्श राज्य में शासक कार्य परम बुद्धिमान व्यक्तियों के हाथों में रखना चाहिए जो कंचन और कामिनी से दूर रहते हुए शासन का संचालन करें। राज्य के कल्याण के साथ वह अपना कल्याण एवं राज्य के अहित के साथ वह अपना कल्याण एवं राज्य के अहित के साथ अपना अहित जुड़ा हुआ मानता है। प्लेटो उसे "विवेक का प्रेमी.... और नगर का सच्चा तथा अच्छा संरक्षक मानता है। दार्शनिक शासक उसे समस्त गुणों का आगार प्रतीता होता है। उसके अनुसार दार्शनिक सर्वकाल तथा सर्वसत्ता का दृष्टा है।

 

  • इस प्रकार के सर्वज्ञाता, सर्वदृष्टा, विवेकशील तथा ममत्वशील दार्शनिक शासक को प्लेटो आदर्श राज्य की बागडोर निर्बाध रूप में सौंप देना चाहता है। इस श्रेष्ठ मल्लाह के नेतृत्व में आदर्श राज्य की नौका आंधी ओर तूफान के झंझावतों से बचती हुई अपनी मंजिल तक अवश्य ही पहुंच जायेगी। प्लेटो को यह बिल्कुल स्वीकार नहीं था कि इस दार्शनिक शासक के कार्य में किंचित मात्र भी व्यवधान उपस्थित किया जाय। इसलिए इस महाशक्तिमान द्वारा शासित आदर्श राज्य में प्लेटो ने कानून को भी कोई स्थान नहीं दिया है। बर्कर ने आदर्श राज्य के दार्शनिक शासक विषयक प्लेटो के विचारों पर टिप्पणी करते हुए कहा है, "दार्शनिक शासक केवल अनुबन्ध मात्र या योग मात्र नहीं। जिस सम्पूर्ण विधि के अनुसार आदर्श राज्य के निर्माण की ओर बढ़ा गया है, उसका वह (दार्शनिक शासक) एक तर्कसंगत परिणाम है।"

 

7 आदर्श राज्य की अवधारणा: आलोचनात्मक मूल्यांकन 

  • प्लेटो के आदर्श राज्य की अवधारणा की डनिंग, पॉपर, रसेल आदि विद्वानों ने कटु आलोचना की है। डनिंग के अनुसार आदर्श राज्य की अवधारणा अव्यावहारिक है। पॉपर के अनुसार प्लेटो ने आदर्श राज्य का निर्माण इस प्रकार किया है कि उसकी वेदी पर उसने व्यक्तिा को राज्य के परिप्रेक्ष्य में एक साधन मान लिया है। रसेल ने आदर्श राज्य को रोमांसवाद की संज्ञा दी है। मोटे रूप से प्लेटो के आदर्श राज्य की अवधारणा की निम्नलिखित आलोचनाएं की जाती हैं

 

1. आदर्श राज्य एक काल्पनिक धारणा 

  • प्लेटो के आदर्श राज्य की अव्यावहारिकता को देखते हुए उसे एक स्वप्निल संसार कह कर पुकारा है। उसे बादलों में स्थित नगर की संज्ञा दी गई है, ऐसा संध्याकालीन तन्तु कहा गया है जो क्षण भर के एि दृष्टिगोचर होकर रात्रि की नीरवता में विलुप्त हो जाता है। आदर्श राज्य निरी कल्पना तथा मृगतृष्णा है।  

 

2. स्वतन्त्रता का विरोध

  • प्लेटो का आदर्श राज्य व्यक्तियों को आवश्यक स्वतन्त्रता प्रदान नहीं करता है। वह इतना नियन्त्रणकारी है कि इसमें व्यक्तियों की सभी प्रवृत्तियों का विकास सम्भव नहीं है। प्लेटो का आदर्श राज्य एक सर्वाधिकारवादी राज्य है और वह अपने स्वभाव से ही मानवीय स्वतन्त्रता के हित में नहीं हो सकता है।

 

3. उत्पादक वर्ग की अवहेलना- 

  • प्लेटोवादी आदर्श राज्य की आलोचना का एक प्रमुख आधार यह है कि इसमें उत्पादक वर्ग की नितान्त उपेक्षा की गयी है। वह अन्य दोनों के समान इनके लिए न तो विशेष शिक्षा की व्यवस्था करता है और न ही सामाजिक ढाँचे में उनको महत्वपूर्ण स्थिति प्रदान करता है। उत्पादक वर्ग की यह शोचनीय उपेक्षा राज्य के अस्तित्व को ही नष्ट करने वाली है।

 

  • प्लेटो इस बात को स्वीकार करता है कि निम्न वर्ग में उत्पन्न व्यक्तियों को अपनी योग्यता के आधार पर उच्च वर्ग में सम्मिलित होने का अधिकार मिलना चाहिए, लेकिन प्लेटो इस कार्य को सम्भव बनाने हेतु उत्पादक वर्ग के लिए समुचित शिक्षा सुविधाओं की व्यवस्था नहीं करता।

 

4. शासक वर्ग की निरकुंश सत्ता

  • प्लेटो के आदर्श राज्य में कानूनों और नियमों का पूर्ण अभाव है और इसमें दार्शनिकों को निरकुंश सत्ता सौंप दी गई है, जिसे किसी भी प्रकार उचित नहीं कहा जा सकता। इन व्यक्तियों को शिक्षा द्वारा चाहे कितना ही विवेकशील और वीतरागी क्यों न बना दिया गया हो, अनियन्त्रित शक्ति पा जाने पर मानवीय स्वभाव के अनुसार इसमें दोष आ जाना नितान्त स्वाभाविक है। इसी आधार पर बार्कर ने प्लेटो के आदर्श राज्य को 'प्रबुद्ध निरंकुशवाद' की संज्ञा दी है।

 

5. कार्यात्मक विशेषीकरण की पद्धति अव्यवहारिक 

  • प्लेटो के आदर्श राज्य का एक मुख्य आधार कार्यात्मक विशेषीकरण की पद्धति या न्याय है। कार्यात्मक विशेषीकरण की पद्धति या न्याय के आधार पर मानवीय व्यक्तित्व का एक विशेष पक्ष ही विकसित हो पाता है और शेष व्यक्तित्व अप्रभावित रहता है। अतः हम यह कह सकते हैं कि प्लेटोवादी आदर्श राज्य में मानवीय व्यक्तित्व के सभी पक्षों के विकास की सम्भावना नहीं है।

 

6. कानून की उपेक्षा 

  • आदर्श राज्य में कानून को कोई स्थान न देकर भी प्लेटो ने बड़ी भूल की है। आगे चलकर 'लॉज' में कानून की अनिवार्यता को उसने स्वयं स्वीकार किया है। कानून की सम्पूर्ण उपेक्षा के कारण ही प्लेटो के 'आदर्श राज्य की अत्यन्त कठोर आलोचना उसके काल से लेकर अब तक होती चली आयी है। उसके शिष्य अरस्तू ने घोषणा की है कि 'कानून इच्छाओं से अप्रभावित विवेक है तथा महानतम विवेक सम्पन्न शासक भी कानून की अवहेलना नहीं कर सकता।

 

7. व्यक्ति और राज्य की समानता को अत्यधिक महत्त्व

  •  अपने आदर्श राज्य मंस प्लेटो ने व्यक्ति एवं राज्य में जिस बड़ी मात्रा में समानता के दर्शन किये हैं, उस मात्रा में व्यक्ति एवं राज्य में समानता वास्तव में होती नहीं है। इसी समानता को तथ्य मानकर, प्लेटो ने मानव प्रकृति के तीन तत्वों- विवेक, उत्साह तथा क्षुधा के आधार पर राजनीतिक समुदाय का निर्माण करने वाले लोगों को बड़ी कठोरता के साथ तीन भागों में बांट दिया है।

 

8. शासन के लिए आवश्यक तत्वों की उपेक्षा

  • प्लेटो ने आदर्श राज्य में शासन के लिए आवश्यक अनेक तत्वों की घोर उपेक्षा की है। उनके द्वारा कानूनों, सरकारी पदाधिकारियों को दण्ड देने की व्यवस्था का कोई वर्णन नहीं किया गया है। इन तत्वों की उचित व्यवस्था के बिना एक आदर्श राज्य का कार्य संचालन कठिन ही प्रतीत होता है। 

 

अरस्तू द्वारा प्लेटो के आदर्श राज्य आलोचना

अरस्तू द्वारा अवलोकन- अरस्तू ने अपने ग्रन्थ पॉलिटिक्स में प्लेटो के आदर्श राज्य की धारणा की निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की है

 

  • प्लेटो की साम्यवादी योजना मानवीय प्रकृति के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है। \
  •  प्लेटो का राज्य में पूर्ण एकता का विचार राज्य के लिए विनाशकारक है क्योंकि राज्य की प्रकृति का मूल तत्व ही विविधता है।
  • प्लेटो अपने आदर्श राज्य के उत्पादक वर्ग की बिल्कुल उपेक्षा करता है जो कि राज्य की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग है। प्लेटो की यह उपेक्षा समाज को दो परस्पर विरोधी वर्गों में विभाजित कर सकती है।
  • प्लेटो ने पुरुषों में पायी जाने वाली ईर्ष्या की भावना का बहुत ही कम अनुमान लगया था कि जबकि उसने यह सोचा कि पुरुष पत्नी को अन्य व्यक्तियों के साथ बांटकर सन्तुष्ट हो जायेगा। 
  • यह मानकर कि माताएं अपनी सन्तान को अपने से अलग करने करने और उनका हृदयहीन तथा अज्ञात लोगों द्वारा पालन कराने पर राजी हो जाएंगी, उसने मातृत्व की भावना की उपेक्षा की थी।
  • परिवार को समाप्त कर वह अपने विचारों को अमनोवैज्ञानिक बना देता है।


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