अभिप्रेरणा और अधिगम | अभिप्रेरणा का अर्थ संकल्पना प्रकार पदानुक्रम सिद्धान्त | सीखने में प्रेरणा का स्थान |Motivation in Learning


अभिप्रेरणा का अर्थ संकल्पना प्रकार पदानुक्रम सिद्धान्त

अभिप्रेरणा और अधिगम | अभिप्रेरणा का अर्थ संकल्पना प्रकार पदानुक्रम सिद्धान्त | सीखने में प्रेरणा का स्थान |Motivation in Learning

 

अभिप्रेरणा Motivation

 अभिप्रेरणा का सामान्य अर्थ

  • अभिप्रेरणा का सामान्य अर्थ है- किसी कार्यों को करने के लिए प्रोत्साहित करना ।
  • अभिप्रेरणा एक प्रक्रिया है जिसमें सीखने वाले की आन्तरिक ऊर्जाएँ अथवा आवश्यकताएँ उसके पर्यावरण में उपस्थित विभिन्न आदर्शोन्मुख लक्ष्यों की ओर निर्देशित होती हैं।
  • अभिप्रेरणा को उत्पन्न करने वाले कारकों को अभिप्रेरक कहते हैं। 
  • अभिप्रेरक व्यक्ति की वे आन्तरिक एवं बाह्य दशाएँ हैं, जो उसे कार्य विशेष के सम्पादन के लिए अभिप्रेरित करती हैं एवं उद्देश्य की प्राप्ति तक क्रियाशील रखती हैं। इस तरह अभिप्रेरक दो प्रकार के होते हैं 
  • बाह्य अभिप्रेरक एवं आन्तरिक अभिप्रेरक । 
  • आत्मसम्मान, सामाजिक प्रतिष्ठा एवं विशेष उपलब्धि प्राप्त करने की इच्छा बाह्य अभिप्रेरक तथा आत्मरक्षा, भूख, प्यार एवं काम आन्तरिक अभिप्रेरक के अन्तर्गत आते हैं।
  • मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अभिप्रेरणा किसी आवश्यकता से प्रारम्भ होती है और उद्देश्य प्राप्ति के बाद समाप्त हो जाती है। 
  • अभिप्रेरणा सीखने के लिए शिक्षार्थी में उत्सुकता पैदा कर उसे निरन्तर क्रियाशील रखती है। इसलिए स्किनर ने अभिप्रेरणा को सीखने का राजमार्ग बताया है।

 

अभिप्रेरणा की संकल्पना Concepts of Motivation

 

  • मानव व्यवहार को निर्देशित करने में अभिप्रेरणा का महत्त्वपूर्ण हाथ है। 
  • अभिप्रेरणा की अनेक विशेषताएँ है। सर्वप्रथम यह हमें अपने निर्धारित उद्देश्यों तक पहुँचने को प्रेरित करती है तथा अपने उद्देश्यों तक पहुँचने के लिए हमे अभिप्रेरित और क्रियाशील रखती है। 
  • अभिप्रेरणा की कमी हमें शिथिल और ढ़ीला अनुभव कराएगी और अधिक अभिप्रेरणा हमें अपने उद्देश्य से भटका देगी। इस प्रकार हमें एक सन्तुलित प्रेरणा या संयमित स्तर पर उत्तेजना की आवश्यकता होती है। दूसरी ओर हम कुछ बाह्य उद्दीपनों जैसे पैसा, अच्छे अंक, भोजन आदि को प्राप्त करने वाली उत्तेजनाएँ मानकर एक विशिष्ट प्रकार का व्यवहार करने के लिए प्रेरित होते हैं; क्योंकि ये उत्तेजनाएँ व्यक्ति को उद्देश्यपूर्ण या केन्द्र भूत रूप से कार्य करवाती हैं। 
  • अभिप्रेरणा व्यक्ति के विचारों और आकांक्षाओं का परिणाम है। यह दो प्रकार का हो सकता है- स्वाभाविक अभिप्रेरणा जो व्यक्ति में अन्दर से आती है, और यह किसी कार्य को करने से प्राप्त हुई प्रसन्नता पर निर्भर करता है तथा बाह्य अभिप्रेरणा जोकि बाहरी पुरस्कारों जैसे रुपए, वेतन और प्राप्ताकों आदि पर निर्भर है। 
  • जब हम मेहनत से कार्य करते हैं और उच्च श्रेणी का परिणाम पाते हैं। तब प्रेरणा आन्तरिक होती है बाह्य नहीं। 
  • हम बाह्य पुरस्कारों से भी प्रभावित होते हैं। जीवन में दोनों प्रकार की अभिप्रेरणाएँ महत्त्वपूर्ण हैं। 
  • आवश्यक अभिप्रेरणाओं को इस प्रकार क्रमबद्ध किया जा सकता है। अन्ततः अभिप्रेरक आवश्यकताओं को क्रमबद्ध करते हैं जैसे - मूल प्रेरक, भूख और प्यास जिन्हें सबसे पहले सन्तुष्ट करना आवश्यक है। तत्पश्चात् उच्चकोटि की आवश्यकताएँ जैसे- उपलब्धि, सन्तुष्टि, शक्ति आदि का क्रम आता है।

 

आवश्यकता - पदानुक्रम सिद्धान्त Exigency Hierarchy Theory

 

  • मनोवैज्ञानिक अब्राहम मास्लों के अनुसार, आवश्यकताओं के कई स्तर होते हैं जिन्हें व्यक्तिगत पूर्णता के उच्चतम स्तर तक पहुँचने के लिए एक व्यक्ति को पूरा करने का प्रत्यन्त करना पड़ता है। इस प्रकार एक व्यक्ति को सबसे निचले स्तर पर अपनी प्राथमिक ( शारीरिक) आवश्यकताओं को पूरा करने योग्य होना चाहिए। जब एक बार ये आवश्यकताएँ पूरी हो जाती हैं तब सुरक्षा महत्त्वपूर्ण हो जाती है। तत्पश्चात् किसी से जुड़े होने की आवश्यकता और स्नेह करने और स्नेह करवाने की आवश्यकता आती है।


  • किसी समूह से जुड़े होने की इच्छा जैसे परिवार, मित्र और धार्मिक संगठन, हमें स्नेह किए जाने का और दूसरों द्वारा स्वीकार किए जाने का अनुभव कराते हैं। जब हम ऊपर दी गई आवश्यकताओं को सफलता से सन्तुष्ट होते हैं तब हम आत्म-सम्मान, आत्मविश्वास और आत्म-मूल्य जैसी आवश्यकताओं को पूरा करना चाहते हैं। अगली आवश्यकता ज्ञान और अनुभव सम्बन्धी आवश्यकताएँ हैं, जो अपने ज्ञान और समझ को समाहित करती हैं; तत्पश्चात् आज्ञा और सुन्दरता की आवश्यकता आती है। अन्ततः एक व्यक्ति अपनी पूरी क्षमता तक पहुँच जाता है जिसे हम आत्मसिद्धि कहते हैं। इस प्रकार के व्यक्ति में आत्मज्ञान की विशेषताएँ होती हैं, ऐसा व्यक्ति समाज के प्रति जिम्मेदार होता है और जीवन की सभी चुनौतियों के लिए तैयार होता है। 

 

मास्लो द्वारा प्रतिपादित आवश्यकताओं का पदानुक्रम

 


  • आत्म सिद्धि की आवश्यकताएँ 
  • सम्मान की आवश्यकता
  • आत्म-सम्मान, पहचान प्रस्थिति सामाजिक आवश्यकता- जुड़े रहने की भावना प्यार, स्नेह
  • रक्षा की आवश्यकता सुरक्षा शारीरिक आवश्यकताएँ भूख, प्यास, सेक्स

 

 आवश्यकताओं की उपरोक्त सूची को पदानुक्रम या शृंखलाओं की पंक्ति कहते हैं।


मास्लो द्वारा प्रतिपादित आवश्यकताओं का पदानुक्रम 

  • मास्लो द्वारा प्रतिपादित आवश्यकताओं का पदानुक्रम जैसे-जैसे जीवन बीतता है व्यक्ति समझदारी और ज्ञान प्राप्त करता जाता है और वह सीखता है कि कैसे परिस्थितियों का सामना करें। इस प्रकार वह पदानुक्रम या सीढ़ी पर ऊपर की ओर चढ़ता जाता है। व्यक्ति किस परिस्थिति का सामना कर रहा है? यह प्रश्न इस बात का निर्धारण करता है कि व्यक्ति पदानुक्रम पर ऊपर चढ़ता है या नीचे आता है।

 

  • यह पदानुक्रम बहुत-सी संस्कृतियों के लिए सत्य नहीं है। यह पाया गया है कि कुछ देशों जैसे- स्वीडन और नार्वे में उच्च जीवन शैली बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं और आत्मसिद्धि से ज्यादा सामाजिक आवश्यकताएँ महत्त्वपूर्ण हैं।

 

  •  कुछ संस्कृतियों में आत्मसिद्धि की आवश्यकता से सुरक्षा की आवश्यकता ज्यादा से प्रबल है इसी तरह काम की सन्तुष्टि से ज्यादा नौकरी की सुरक्षा का महत्त्व है।

 

मूल आवश्यकताओं पर संस्कृति एवं पर्यावरण का प्रभाव 

Effect of Culture and Environment on Basic Needs

 

  • हमारी शारीरिक आवश्यकताएँ जैसे भूख, प्यास आदि पर्यावरण के कारकों से प्रभावित हैं। हमारे रक्त में शर्करा की मात्रा होने के कारण अपेक्षा हमें भूख अन्य विभिन्न कारणों से भी लगती है। पर्यावरण के निम्नलिखित कारकों का प्रभाव भूख और खाने की प्रकृति पर पड़ता है

 

  • एक व्यक्ति जिसको पिज्जा खाना अच्छा लगता है भूख न भी लगी हो फिर भी वह और पिज्जा खाना चाहेगा, यह हमारी सीखी हुई आदतों या उस चीज के लिए उसकी चाहत के कारण होता है।
  • तनाव हमको खाने की तरफ ले जाता है जैसे कि परीक्षा के तनाव में कुछ विद्यार्थी 
  • अधिक भोजन कर लेते हैं। 
  • बाहरी संकेत जैसे कि रात के भोजन के लिए जब हमारी माता हमें आमन्त्रित करती हैं, तब हमकों भूख लग जाती है। भोजन की खुशबू या उसको देखकर हम उसक तरफ आकर्षित होते हैं जिससे हमें भूख लगती है। 
  • खान-पान पर काबू, अगर एक चिकित्सक एक बीमार व्यक्ति को मीठे व्यजंनों के लिए मना करता है, तो उस व्यक्ति को उन मीठे व्यंजनों को खाने के लिए औ अधिक इच्छा होती है। 


गौण आवश्यकताएँ Secondary Requirement

 

  • मनोवैज्ञानिक व सामाजिक अभिप्रेरक हमें गौण आवश्यकताओं की ओर अग्रस करते हैं। यह सामाजिक अभिप्रेरक इसलिए हैं, क्योंकि यह एक सामाजिक समूह सीखे जाते हैं खासकर एक परिवार में जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं और वे दूसरों क साथ संवाद करते हैं तब वे कुछ विशिष्ट आवश्यकताएँ ग्रहण करते हैं जोकि ए सामूहिक परिवेश में पूरी होती हैं। जैसे कि उपलब्धि की अभिप्रेरणा को बच्चे अपने माता-पिता, या आदर्शों से मिलती है एवं बालक सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव के द्वारा भी उपलब्धि ग्रहण करते हैं।

 

कुछ सामान्य सामाजिक उद्देश्य हैं

 

  • उपलब्धि 
  • सम्बन्ध 
  • शक्ति 
  • पालन-पोषण
  • आक्रामकता  
  • जिज्ञासा

 


  • सामाजिक अभिप्रेरकों के प्रकार और उनकी शक्ति हर व्यक्ति के लिए भिन्न-भिन्न होते हैं। उदाहरण के लिए आपको सम्बन्धन और उपलब्धि की अधिक आवश्यकता है; जबकि आपके मित्र को उपलब्धि की सामान्य और सम्बन्धन की निम्न स्तर की आवश्यकता है। या आपको सम्बन्धन की अधिक आवश्यकता है और जिज्ञासा अधिक महत्त्वपूर्ण अभिप्रेरक है।

 

  • हम आवश्यकताओं को तीन प्राथमिक प्रकारों में बाँट सकते हैं। अस्तित्व सम्बन्धी आवश्यकता जिसमें जीवित रहने के लिए सभी जरूरी प्राथमिक आवश्यकताएँ शामिल होती हैं। सम्बन्धों से सम्बन्धी आवश्यकताओं में सुरक्षा, जुड़ाव, सम्मान दूसरे सामाजिक सम्बन्धों सम्बन्धी आवश्यकताएँ सम्मिलित होती हैं और प्रगति की आवश्यकताओं में उन तथ्यों को शामिल किया जाता है जिसमें व्यक्तियों को उनके पूरे सामर्थ्य के अनुसार विकसित होने में सहायता करता है।

 

प्रेरणा /अभिप्रेरणा के प्रकार

 

  • प्रेरणा दो प्रकार की होती है सकारात्मक और नकारात्मक सकारात्मक प्रेरणा इस प्ररेणा में बालक किसी कार्य को अपनी स्वयं की इच्छा से करता है। इस कार्य को करने से उसे सुख और सन्तोष प्राप्त होता है। इस प्रेरणा को आन्तरिक प्रेरणा भी कहते हैं।

 

  • नकारात्मक प्रेरणा इस प्रेरणा में बालक किसी कार्य को अपनी स्वयं की इच्छा से न करके, किसी दूसरे की इच्छा या बाह्य प्रभाव के कारण करता है। इस प्रकार को करने से उसे किसी वांछनीय या निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति होती है। इस प्रेरणा को बाह्य प्रेरणा भी कहते हैं।

 

प्रेरणा देने वाले घटक Inspiration Factor

 

उत्तेजना 

  • डोनाल्ड हैब के अनुसार, उत्तेजना अथवा जागरूकता शक्ति प्रदान करती है, लेकिन दिशा-निर्देश प्रदान नहीं करती। यह एक इंजन के समान है लेकिन उसका मार्ग परिवर्तित करने वाला साधन नहीं।" 


  • उत्तेजना के तीन स्तर है उच्च, मध्य एवं निम्न

 

आकांक्षा 

  • आकांक्षा का उत्तेजना स्तर से सीधा सम्बन्ध है। हम उस स्थिति में उत्तेजित हो उठते हैं जब हम देखते कुछ हैं और देखना कुछ और चाहते हैं।

 

प्रोत्साहन

  • प्रोत्साहन लक्ष्य तक पहुँचने के साधन होते हैं। इनका स्वरूप पुरस्कार के रूप में भी हो सकता है और संकेत के रूप में भी। स्किनर के अनुसार, "पुनर्बलन ही प्रोत्साहन पुनर्बलन ही प्रोत्साहन का काम करते हैं। " अर्थात् धनात्मक तथा ऋणात्मक

 

दण्ड

  • दण्ड एक उद्दीपन के समान है, जिससे व्यक्ति बचने का प्रयास करता है अथवा उससे दूर भागना चाहता है। बोम्पस स्मिथ के अनुसार, “विद्यालयी दण्ड प्रतिशोध नहीं होता है। इसका उद्देश्य प्रशिक्षण है सर्वप्रथम अपराधी का प्रशिक्षण। दूसरे, उसके अवलोकन से अन्य बालकों का प्रशिक्षण। साथ ही, उसे तथा दूसरों को पुनः अपराध करने से बचाना है।


सीखने में प्रेरणा का स्थान 

Place of Inspiration in Learning

 

बाल व्यवहार में परिवर्तन

  • शिक्षक प्रशंसा, निन्दा, पुरस्कार भर्त्सना आदि कृत्रिम प्रेरकों का बुद्धिमानी से प्रयोग करके बालकों के व्यवहार को निर्देशित और परिवर्तित कर सकता है।

 

चरित्र निर्माण में सहायता

  • शिक्षक, बालकों को उत्तम गुणों और आदर्शों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित कर सकता है। इस प्रकार, वह उनके चरित्र निर्माण में सहायता दे सकता है।

 

ध्यान केन्द्रित करने में सहायता 

  • क्रो एवं क्रो के अनुसार, “शिक्षक, बालकों को प्रेरित करके उन्हें अपने ध्यान को पाठ्य विषय पर केन्द्रित करने में सहायता दे सकता है।"


  • मानसिक विकास क्रो एवं क्रो के अनुसार, “प्रेरक, छात्रक को अपनी सीखने की क्रियाओं में प्रोत्साहन देते हैं।" अतः शिक्षक, प्रेरकों का प्रयोग करके छात्रों को ज्ञान का अर्जन करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। इस प्रकार, वह उनके मानसिक विकास में अपूर्व योगदान दे सकता है।

 

रुचि का विकास 

  • थॉमसन के अनुसार, प्रेरणा, छात्र में रूचि उत्पन्न करने की कला है।अतः शिक्षक, प्रेरणा का प्रयोग करके बालकों में कार्य या अध्ययन के प्रति रुचि का विकास कर सकता है। इस प्रकार, वह उनके लिए ज्ञान प्राप्त करने का कार्य सरल बना सकता है।

 

अनुशासन की भावना का विकास

  • शिक्षक, बालकों को अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित कर सकता है। इस प्रकार, वह उनमें अनुशासन की भावना का विकास करके अनुशासनहीनता की समस्या का समाधान कर सकता है।

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