आर्थिक विकास में कृषि का महत्व और कृषि उद्योग संबंध |Importance of agriculture in economic

 आर्थिक विकास में कृषि का महत्व और कृषि उद्योग संबंध 

आर्थिक विकास में कृषि का महत्व और कृषि उद्योग संबंध |Importance of agriculture in economic



आर्थिक विकास में कृषि किस प्रकार सहायक होता है

 

किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास में कृषि का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ होती है। कृषि से केवल कच्चे माल की प्राप्ति नहीं होती, बल्कि जनसंख्या के एक बड़े भाग को रोजगार भी उपलब्ध भी कराता है। निम्न तथ्यों को पढ़ने के बाद आप समझ जायेगे कि आर्थिक विकास में कृषि का क्या महत्व है या आर्थिक विकास में कृषि किस प्रकार सहायक होता है।

 

1. भोजन आवश्यकता की पूर्ति 

  • सभी देश अपनी भोजन सम्बन्धी आवश्यकता को पूरा करने को पहली प्राथमिकता देते है। कोई भी देश अपनी सभी खाद्य आवश्यकताओं को दूसरे देश से आयात करके पूरा नहीं कर सकता है। अगर कोई देश अपनी खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है तो उसे बहुत अधिक मात्रा में आय को खर्च करना पड़ेगा और खाद्य वस्तुओं पर ज्यादा ब्यय से सभी योजनाएँ बिगड़ सकती है। इसलिए सरकार को खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए।

 

2. कच्चे माल की उपलब्धता

  • आर्थिक विकास की प्रारम्भिक अवस्था में कृषि सम्बन्धित उद्योगों का विकास होता है। जैसे चीनी, सूती वस्त्र, जूट उद्योग इत्यादि केवल तभी सफल हो सकते है जब उन्हें कच्चे माल की पर्याप्त उपलब्धता हो अतः इन उद्योगों के तीव्र विकास के लिए पर्याप्त मात्रा में कच्चे माल की उपलब्धता होनी चाहिए।

 

3. क्रय शक्ति

  • यदि किसी देश की कृषि की स्थिति ठीक नहीं है तो कृषकों की आय भी कम होगी। कृषकों की आय कम होने से औद्योगिक वस्तुओं को नहीं खरीद पायेगें तथा औद्योगिक विकास रूक जायेगा । कृषि क्षेत्र की सम्पन्नता से ही औद्योगिक विकास होता है। किसी उद्योग का प्रमुख उद्देश्य अधिक से अधिक वस्तुओं का विक्रय करना होता है और यह तभी सम्भव है जब कृषि क्षेत्र विकसित हो ।

 

4. बचत तथा पूंजी निर्माण

  • कृषि क्षेत्र के समृद्ध होने से कृषकों की आय में वृद्धि होती है। आय में वृद्धि होने से कृषकों की बचत में वृद्धि होती है और बचत कृषकों द्वारा बैकों व अन्य बचत संस्थाओं में जमा होता है। इन बचतों का प्रयोग पूँजी निर्माण के लिए किया जाता है, जिससे आर्थिक विकास होता है। अगर कृषकों की आय कम होगी तो बचत भी कम होगी तथा पूंजी निर्माण भी कम होगा। आर्थिक विकास की प्रारम्भिक अवस्था मे जनसंख्या का अधिकत्तर भाग कृषि में कार्यरत होता है, अतः औद्योगिक क्षेत्र के तीव्र विकास के लिए कृषि क्षेत्र की सम्पन्नता ज्यादा जरूरी है।

 

5. श्रम शक्ति की पूर्ति 

  • कृषि क्षेत्र में जनसंख्या का दबाव बहुत अधिक है। कृषि पर जनसंख्या का दबाव अधिक होने से कृषि उत्पादन भी विपरीत रूप से प्रभावित होता है। इसलिए जनसंख्या के कुछ हिस्से को हटाकर औद्योगिक क्षेत्र में लगाया जा सकता है, इससे औद्योगिक क्षेत्र का भी तेजी से विकास होगा। अधिक विकसित कृषि में श्रम की आवश्यकता कम होती है।

 

6. विदेशी मुद्रा की प्राप्ति 

  • कृषि प्रधान देशों में औद्योगिक वस्तुएँ अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतियोगिता नहीं कर पाती है, क्योंकि औद्योगिक वस्तुएँ घटिया किस्म की होती है। अतः कृषि वस्तुएँ ही ऐसी है जो कि अर्न्तराष्ट्रीय बाजार में प्रतियोगिता का सामना कर सकती है तथा विदेशी मुद्रा प्राप्त कर सकती है।

 

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व

 

पिछले कई दशकों से भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान बना हुआ है।

 

1. राष्ट्रीय आय में कृषि का हिस्सा

  • भारत की राष्ट्रीय आय में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। 1950-51 में सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में कृषि का हिस्सा 56.5 प्रतिशत था । जैसे-जैसे विकास की प्रक्रिया तेज हुई, द्वितीयक तथा तृतीयक क्षेत्रों के विकास के कारण कृषि का हिस्सा लगातार कम होता गया और यह 2011-12 में 13.3 प्रतिशत निम्न स्तर पर पहुँच गया। अगर हम विकसित देशों को देखे तो राष्ट्रीय आय में हिस्सा बहुत ही कम है। जैसे अमेरिका तथा इंग्लैण्ड में राष्ट्रीय आय में कृषि का हिस्सा केवल 2 प्रतिशत है। फ्रांस में यह अनुपात 7 प्रतिशत तथा आस्ट्रेलिया में 6 प्रतिशत है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि जैसे जैसे कोई देश विकास करता है, राष्ट्रीय आय में कृषि का हिस्सा कम होता जाता

 

2. रोजगार की दृष्टि से कृषि का महत्व

  • अल्प विकसित या विकासशील देशों में कृषि की इतनी अधिक प्रधानता होती है कि कार्यकारी जनसंख्या का बहुत अधिक भाग रोजगार के लिए इस पर आश्रित होता है। उदाहरणार्थ यह मिश्र में 42 प्रतिशत, बांग्लादेश में 50 प्रतिशत, इण्डोनेशिया में 52 प्रतिशत व चीन में 68 प्रतिशत है।

 

  • 1951 में कार्यकारी जनसंख्या का लगभग 70 प्रतिशत कृषि एवं सम्बद्ध क्रियाओं में कार्यरत था, वही 2001 में यह हिस्सा गिरकर 59 प्रतिशत हो गया। अर्थात् 2001 में कृषि में 23.5 करोड़ व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त है। 2005-06 में कृषि में श्रमशक्ति का 57 प्रतिशत रोजगार प्राप्त करता है तथा सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का हिस्सा 2005-06 में 21. 7 प्रतिशत थी इसका अर्थ हुआ कि कृषि का प्रति व्यक्ति सकल घेरलू उत्पाद गैर कृषि व्यवसाय में काम करने वाले श्रमिकों की तुलना में केवल पांचवा भाग है और इसमें लगातार गिरावट होती जा रही है। कृषि तथा गैर कृषि व्यवसाय में काम करने वाले श्रमिकों की औसत आय में अन्तर बढ़ता चला जा रहा है।


3. बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्यान्नों की पूर्ति

  • भारत जैसे विकासशील देशों में जनसंख्या का दबाव बहुत अधिक है। जनसंख्या में तेज वृद्धि के साथ-साथ खाद्यान्नों की मॉग में भी वृद्धि होती है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ खाद्यान्नों की उत्पादन तथा उत्पादकता भी बढ़ती रहें।

 

  • भारत में खाद्यान्नों की मॉग 2004-05 में 207 मिलियन टन तथा ग्यारहवीं योजना के अंतिम वर्ष 2011-12 में 235.4 मिलियन टन से बढ़कर 2020-21 में 280.6 मिलियन टन हो जाने की सम्भावना है। इस मांग को पूरा करने के लिए खाद्यान्नों के उत्पादन को प्रतिशत वृद्धि होना आवश्यक है। भारत के सामने चुनौती का अन्दाज इस बात से लगा सकते है कि हाल के दस वर्षो में (1997-98-2006-07 के बीच) खाद्यान्नों के उत्पादन में मात्र 0.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

4. औद्योगिक विकास के लिए कृषि का महत्व

  • भारत में औद्योगिक विकास के लिए कृषि का बहुत अधिक महत्व है, क्योंकि हमारे कुछ उद्योगों को कच्चा माल कृषि से ही प्राप्त होता है। इन उद्योगों में सूती वस्त्र, चीनी, वनस्पति तथा बागान उद्योग तथा जूट उद्योग प्रमुख है। औद्योगिक क्षेत्र में लगे हुए लोगों को खाद्यान्न भी कृषि क्षेत्र से ही प्राप्त होता है । ग्रामीण क्षेत्र औद्योगिक क्षेत्र द्वारा निर्मित वस्तुओं का बाजार होता है।
  • अतः कृषि क्षेत्र का विकास होने पर औद्योगिक क्षेत्र का भी विकास होता है। लेकिन कुछ वर्षों से उद्योगों के लिए कृषि के महत्व में कमी आयी है, क्योंकि अनेक ऐसे उद्योग विकसित हो गये है जो कृषि पर निर्भर नहीं है जैसे इस्पात उद्योग, लौह उद्योग, रसायन उद्योग, मशीनी औजार तथा अन्य इन्जीनियरिंग उद्योग विभाग निर्माण, सूचना तकनालाजी इत्यादि ।
  • इसके बावजूद कृषि द्वारा चीनी, चाय, सूती वस्त्र और पटसन वनस्पति तेल, खाद्य पदार्थों, साबुन तथा अन्य कृषि पर आधारित उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराया जाता है।


5. अर्न्तराष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में कृषि का महत्व

  • अर्न्तराष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में भी कृषि का बहुत अधिक महत्व है। बहुत अधिक समय तक तीन कृषि वस्तुओं (चाय, पटसन तथा सूती वस्त्र) का निर्यात आय में हिस्सा 50 प्रतिशत से अधिक रहा। यदि हम अन्य कृषि वस्तुओं जैसे काफी, तम्बाकू, काजू, वनस्पति तेल, चीनी इत्यादि को भी शामिल कर लिया जाय तो यह 70 से 75 प्रतिशत तक पहुँच जाता है। कृषि पर इतनी अधिक निर्भरता भारत के अल्पविकास को दर्शाती है।

 

  • पिछले दो दशकों के दौरान निर्यात के विविधीकरण के कारण कुल निर्यात में कृषि का हिस्सा कम हुआ है और यह 2010-11 में कम होकर 9.9 प्रतिशत हो गया है। 1991 में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के पश्चात् कृषि आयात में वृद्धि हुई है और इसमें खाद्य तेलों का विशेष योगदान है।

 

6. पूंजी निर्माण में सहयोग 

  • जैसा कि आप जानते है कि आर्थिक विकास के लिए पूंजी निर्माण बहुत अधिक आवश्यक है। भारत में कृषि क्षेत्र अर्थव्यवस्था का एक बड़ा क्षेत्र है। अतः पूंजी निर्माण में इसका सहयोग आवश्यक है। यदि यह क्षेत्र ऐसा कर पाने में असफल होगा तो इससे आर्थिक विकास की प्रक्रिया अवरुद्ध होगी।

 

7. गरीबी निवारण में भूमिका

  • भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का हिस्सा अब सकल घरेलू उत्पाद का 15 प्रतिशत से भी कम है। तथा अभी भी आधे से अधिक श्रमशक्ति कृषि क्षेत्र में कार्यरत है इसके अलावा एक आम आदमी अपनी आय का एक बड़ा भाग भोजन पर खर्च करता है। क्योंकि कृषि कम आय वाले व निर्धन व्यक्तियों का जीवन आधार है तथा खाद्य सुरक्षा का मुख्य अस्त्र है, इसलिए गरीबी निवारण में इसकी भूमिका स्वतः सिद्ध है।

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