भारतीय समाज की प्रमुख विशेषताएं
Features of Indian Society in Hindi
भारतीय समाज की विशेषताएं सामान्य परिचय
- भारत इतना विशाल देश है, जिसमे अनेकों विभिन्नताएं पाई जाती
हैं। प्रकृति के विविध रूप जैसे ऊचें- ऊचें- पहाड महासागर वन मरुस्थल व पठार आदि औ
है। इस प्रादेशिक व भोगोलिक विविधता वाले विशाल भूखंड पर निवास करने वाला भारतीय
समाज, विश्व के अति प्राचीन समाजो में से एक
है।
- सैकड़ों भाषाओं और बोलियों का यह देश अनेक आदिवासीयो के सामाजिक जीवन की
विचित्रताओ से युक्त है।
- भारतीय समाज के अध्ययन करने वाले विद्वानों ने भारतीय
समाज की प्रमुख संरचनात्मक विशेषताऐ खोजने का प्रयास किया है।
- एम एन श्रीनिवास ने
भारतीय सामाजिक संरचना कि प्रमुख विशेषता, इसकी सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता को बताया है।
- दयूमो ने श्रेणी को
भारतीय समाज का प्रमुख लक्षण माना है।
- योगेन्द्र सिंह ने भारतीय समाज के प्रमुख
संरचनात्मक व परम्परागत चार लक्षण बताये है: श्रेणी बेद्रथा सम्रगवाद (Holism), निरन्तरता (Continuity) तथा लोकातीत्व (transcendence ) ।
भारतीय समाज की
विभिन्न विशेषताएं
A विविधता में एकता
- भारतीय समाज की एक महत्वपूर्ण विशेषता है, विविधता में एकता जैसा कि हम जानते हैं
कि, भारतीय समाज की विभिन्नता को कई
क्षेत्रों में देखा जा सकता है। हमारा देश भूमध्य गोलार्द्ध में स्थित है। उत्तर
से दक्षिण तक भारतीय भूमि की लम्बाई 3,214 किलोमीटर और पूरब से पश्चिम तक यह 2,933 किलोमीटर है। इस प्रकार भारत का कुल क्षेत्र 32,87,263 वर्ग किलोमीटर है।
- भारतीय समाज और संस्कृति में हमें अनेक प्रकार की विविधताओं
के दर्शन होते हैं, जिन्हें धर्म, जाति, भाषा, प्रजाति आदि में व्याप्त विभिन्नताओं
के द्वारा सरलता से समझा जा सकता है।
भारतीय समाज में विविधता में एकता का अध्ययन निम्न बिन्दुओं के अंतर्गत करेंगे -
1 क्षेत्रीय या भौगोलिक विविधता
- उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में
कन्याकुमारी तक और पूर्व में अरूणाचल प्रदेश से लेकर पश्चिम में राजस्थान तक अनेक
भौगोलिक विविधतायें हैं। कश्मीर में बहुत ठंड है तो दक्षिण भारतीय क्षेत्र बहुत
गर्म है। गंगा का मैदान है जो बहुत उपजाऊ है तथा इसी के किनारे कई प्रमुख राज्य, शहर, सभ्यता और उद्योग विकसित हुए। हिमालयी क्षेत्र में अनेक प्रसिद्ध
धार्मिक स्थल जैसे बद्रीनाथ, केदारनाथ
तथा गंगा, यमुना, सरयू, ब्रह्मपुत्र आदि नदियों का उद्गम स्थल
है। देश के पश्चिम में हिमालय से भी पुरानी अरावली पर्वतमाला है। कहीं रेगिस्तानी
भूमि है तो वहीं दक्षिण में पूर्वी और पश्चिमी घाट, नीलगिरी की पहाड़ियाँ भी हैं। यह भौगोलिक विविधता भारत को प्राकृतिक
रूप से मिला उपहार है।
2 भाषायी विविधता
- भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है, प्राचीन काल से ही भारत में अनेक
भाषाओं व बोलियों का प्रचलन रहा है। वर्तमान में भारत में 18 राष्ट्रीय भाषाएँ तथा 1,652 के लगभग बोलियाँ पाई जाती हैं। भारत
में रहने वाले लोग इतनी भाषाएँ व बोलियाँ इसलिए बोलते हैं। क्योंकि, यह उपमहाद्वीप एक लम्बे समय से विविध
प्रजातीय समूहों की मंजिल रहा है। भारत में बोली जाने वाली भाषाओं को मुख्य रूप से
चार भाषा परिवारों में बाँटा जा सकता है।
- ऑस्ट्रिक परिवार इसके अर्न्तगत मध्य भारत की
जनजातीय-पट्टी की भाषाएँ आती हैं जैसे-संथाल, मुण्डा, हो आदि।
- द्रावीड़ियन परिवार तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, गोंडी, आदि।
- साइनो तिब्बतन परिवार आमतौर पर उत्तर-पूर्वी भारत की जनजातियाँ।
- इंडो-यूरोपियन परिवार भारत में सबसे अधिक संख्या में बोली जाने वाली
भाषाएँ व बोलियाँ इण्डो आर्य भाषा परिवार की हैं। जहाँ एक ओर पंजाबी, सिंधी भाषाएँ व बोलियाँ बोली जाती हैं
वहीं दूसरी ओर मराठी, कोंकणी, राजस्थानी, गुजराती, मारवाड़ी, हिन्दी, उर्दू, छीसगढ़ी, बंगाली, मैथिली, कुमाउंनी, गढ़वाली जैसी भाषाएँ व बोलियाँ बोली जाती
हैं।
- भारतीय संविधान की 8 वीं अनुसूची में केवल 22 भाषाएँ ही सूचीबद्ध हैं। यह भाषाएँ
असमिया, उड़िया, उर्दू, कन्नड़, कश्मीरी, गुजराती, तमिल, तेलुगु, पंजाबी, बंगला, मराठी, मलयालम, संस्कृत, सिंधी, हिन्दी, नेपाली, कोंकणी और मणिपुरी हैं। इसके अतिरिक्त संविधान के अनुच्छेद 343(2) के रूप में हिन्दी के साथ अंग्रेजी
भाषा को भी सरकारी काम-काज की भाषा माना गया।
संविधान की आठवीं अनुसूची में निम्नलिखित 22 भाषाएँ शामिल हैं:
- असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी।
3 प्रजातीय विविधता
- प्रजाति ऐसे व्यक्ति का समूह है जिनमें त्वचा
का रंग, नाक का आकार, बालों के रंग के प्रकार आदि कुछ स्थायी
शारीरिक विशेषताएं मौजूद होती हैं। भारत को प्रजातियों का अजायबघर इसीलिए कहा गया
है क्योंकि, यहाँ समय-समय पर अनेक बाहरी प्रजातियाँ
किसी-न-किसी रूप में आती रहीं और उनका एक-दूसरे में मिश्रण होता रहा। भारतीय
मानवशास्त्री सर्वेक्षण के अनुसार देश की प्रजातीय स्थिति को सही तरह से समझ पाना
कठिन है। प्रजाति व्यक्तियों का ऐसा बड़ा समूह है जिसकी शारीरिक विशेषताओं में बहुत
अधिक बदलाव न आकर यह आगे की पीढ़ियों में चलती रहती हैं।
- संसार में मुख्यतः 3 प्रजातियाँ काकेशायड, मंगोलॉयड, नीग्रॉयड पाई जाती हैं। सरल शब्दों में
इन्हें हम ऐसे मानव-समूह के नाम से सम्बोधित करते हैं जिनके शरीर का रंग सफेद, पीला तथा काला हो । भारतीय समाज में
शुरू से ही द्रविड़ तथा आर्य, प्रजातीय
रूप से एक-दूसरे से अलग थे। द्रविड़ों में से नीग्रॉयड तथा आर्यों में कॉकेशायड
प्रजाति की विशेषताएं अधिक मिलती थीं। बाद में शक, हूण, कुषाण व मंगोलां के आने पर मंगोलॉयड
प्रजाति भी यहाँ बढ़ने लगी व धीरे-धीरे यह सभी आपस में इतना घुल-मिल गई कि, आज हमें भारत में सभी प्रमुख
प्रजातियों के लोग मिल जाते हैं।
4 धार्मिक विविधता
- भारत में अनेक धर्मों को मानने वाले लोग रहते
हैं। एक समय तक भारत में एक साथ विश्व के कई धर्म फले-फूले हैं जैसे- हिन्दू धर्म, इस्लाम धर्म, सिख धर्म, बौद्ध धर्म, इसाई धर्म, पारसी धर्म, यहूदी धर्म | यहाँ हिन्दू धर्म के अनेक रूपों तथा सम्प्रदायों
के रूप में वैदिक धर्म, पौराणिक धर्म, सनातन धर्म, शैव धर्म, वैष्णव धर्म, शाक्त धर्म, नानक पन्थी, आर्यसमाजी आदि अनेक मतों के मानने वाले
अनुयायी मिलते हैं। इस्लाम धर्म में भी शिया और सुन्नी दो मुख्य सम्प्रदाय मिलते
हैं।
- इसी प्रकार सिक्ख धर्म भी नामधारी और निरंकारी में, जैन धर्म दिगम्बर व श्वेतांबर में और
बौद्ध धर्म हीनयान व महायान में विभक्त है। भारतीय समाज विभिन्न
धर्मों तथा मत-मतान्तरों का संगम स्थल रहा है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, जहाँ सभी को अपने-अपने धर्म का आचरण व
पालन करने की छूट मिली है।
5 जातिगत विविधता
- ‘प्यूपिल ऑफ इण्डिया' के
अनुसार भारत में लगभग 4,635 समुदाय हैं। यह भारतीय संस्कृति की
मौलिक विशेषता है, जो और कहीं नहीं पायी जाती। यह व्यक्ति
को जन्म के आधार पर एक समूह का सदस्य मान लेता है, जिसके अन्तर्गत समूह अपने सदस्यों के खान-पान, विवाह और व्यवसाय, सामाजिक सम्बन्धों हेतु कुछ
प्रतिबन्धों को लागू करता है। आज बाहरी प्रजातियाँ भी हमारी जातियों में ही समाहित
हो गई हैं, यह इस व्यवस्था की व्यापकता को ही
दर्शाता है। यद्यपि कई विचारकों जैसे के. एम. पणिक्कर और ईरावती कर्वे ने माना है
कि जाति-व्यवस्था ने हिन्दू समाज को खण्ड-खण्ड में बाँट दिया है।
6 सांस्कृतिक विविधता
- भारतीय संस्कृति में हम प्रथाओं, वेश-भूषा, रहन-सहन, परम्पराओं, कलाओं, व्यवहार के ढंग, नैतिक-मूल्यों, धर्म, जातियों आदि के रूप में भिन्नताओं को साफ तौर से देख सकते हैं।
उत्तर-भारत की वेशभूषा, भाषा, रहन-सहन आदि अन्य प्रान्तों यथा दक्षिण, पूर्व व पश्चिम से भिन्न हैं। नगर और
गांवों की संस्कृति अलग है,
विभिन्न जातियों
के व्यवहार के ढंग, विश्वास अलग हैं। हिन्दुओं में एक
विवाह तो मुस्लिमों में बहुपत्नी-प्रथा का चलन है, देवी-देवता भी सबके अलग-अलग हैं। भारतीय मानवशास्त्रीय सर्वेक्षण के
अनुसार भारत में 91 संस्कृति क्षेत्र हैं। गांवों में
संयुक्त परिवार प्रथा तथा श्रमपूर्ण जीवन है तो शहरों में एकांकी परिवार है। अतः
स्पष्ट है कि भारत सांस्कृतिक दृष्टि से अनेक विविधताएँ लिए हैं।
B भारत में संयुक्त परिवार व्यवस्था
- वे परिवार जिनमें अनेक पीढ़ियों के रक्त संबंधी
साथ-साथ रहते है, एक साथ भोजन ग्रहण करते है व सभी सदस्य
द्वारा अर्जित आए आपस में सामन्य रूप से विभाजित करते है व सदस्यों की आवश्यकताओ
को पूर्ण करते है उसे सयुंक्त परिवार या विस्तुत परिवार कहा जाता है।
- प्रारम्भ से
ही संयुक्त परिवार व्यवस्था, भारतीय
समाज की एक विशिष्ट विशेषता रही है लेकिन समय के साथ साथ ये व्यवस्था भी धूमिल
होती जा रही है भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है और कृषि एक ऐसा व्यवसाय है जिसमे
अधिक से अधिक व्यक्तियों की आवश्यकता होती है इसी आवश्यकता के कारण भारतीय समाज में संयुक्त परिवार व्यवस्था
विकसित हुई और आज भारतीय समाज की एक प्रमुख विशेषता कही जा सकती है।
C- भारत में जाति व्यवस्था
- भारतीय समाज कठोर श्रेणीब्रता मैं बधा है। समाज
चाहे किसी भी श्रेणी, काल खण्ड या युग का हो, उसके स्वरूप में असमानता एवम्
विभेदीकरण का किसी-न-किसी रूप में पाया जाना एक अनिवार्यता है।
- सामाजिक विभेदीकरण
के अन्तर्गत व्यक्तियों को अनेक वर्गों, भाषा, आयु, सगे सम्बन्धियों, नातेदारों, लिंग, धर्म, स्थान विशेष इत्यादि का आधार लेकर अलग
किया जाता है। समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो सामाजिक स्तरीकरण वह
प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज के प्रत्येक व्यक्ति और वर्ग का जन्म, शिक्षा, व्यवसाय और आय के आधार पर विभाजन किया जाता है।
- जाति व्यवस्था की स्थापना हमारी भारतीय समाज की
आधारभूत विशेषता है। भारत में सामाजिक स्तरीकरण की प्रक्रिया का मूल आधार जहाँ
जाति और वर्ग रहे हैं तो वहीं पश्चिमी देशों में केवल वर्ग।
- भारत में हिन्दू-समाज
प्राचीन समय से ही जाति के आधार पर अनेक श्रेणियों में बँटा रहा है। जाति-व्यवस्था
के आने के कारण हमारा समाज समस्तरीय और विषमस्तरीय रूप से अनेक भागों में बँटता
चला गया। तुलनात्मक रूप से देखें तो जाति-व्यवस्था के अंतर्गत अनेक श्रेणियों में
बँधे समूह वर्ग-व्यवस्था में श्रेणीबद्ध समूहों से कहीं अधिक संख्या में हैं।
- भारत
की वर्तमान सामाजिक संरचना को देखें तो पता चलता है कि, वर्तमान में समाज न केवल जातीय आधार पर
बल्कि वर्गीय आधार पर भी स्तरीकृत हो रहा है।
D- भारत में आध्यात्मिकता
- भारतीय समाज की अन्य मुख्य विशेषता धर्म एवं
नैतिकता की प्रधानता है धर्म व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक पहलु को नियन्त्रित करता
है विश्व के सभी प्रमुख धर्म विधमान है भारत में अनेक धर्मों को मानने वाले लोग
रहते हैं।
- एक समय तक भारत में एक साथ विश्व के कई धर्म फले-फूले हैं जैसे हिन्दू
धर्म, इस्लाम धर्म, सिख धर्म, बौद्ध धर्म, इसाई धर्म, पारसी धर्म, यहूदी धर्म।
- यहाँ हिन्दू धर्म के अनेक
रूपों तथा सम्प्रदायों के रूप में वैदिक धर्म, पौराणिक धर्म,
सनातन धर्म, शैव धर्म, वैष्णव धर्म, शाक्त धर्म, नानक पन्थी, आर्यसमाजी आदि अनेक मतों के मानने वाले
अनुयायी मिलते हैं।
- इस्लाम धर्म में भी शिया और सुन्नी दो
मुख्य सम्प्रदाय मिलते हैं। इसी प्रकार सिक्ख धर्म भी नामधारी और निरंकारी में, जैन धर्म दिगम्बर व श्वेतांबर में और
बौद्ध धर्म हीनयान व महायान में विभक्त है।
- भारतीय समाज विभिन्न धर्मों तथा
मत-मतान्तरों का संगम स्थल रहा है सभी जीवो के कल्याण एवं दया में विश्वास, परोपकार, सहानुभूति व सहनशीलता आदि विचारों की प्रधानता भारतीय समाज की एक
अन्य विशेषता है।
- भारतीय समाज की एक महत्यपूर्ण विशेषता है भारतीय समाज आध्यात्मिक
विचारों में विश्वास रखता है जैसे की पुनर्जन्म, आत्मा, पाप, पुण्य, कर्म, धर्म और मोक्ष भारतीय समाज पर धर्म का बहुत गहरा प्रभाव है चाहे कोई
भी समुदाय जैसे हिंदू, मुस्लिम, सिख, किसी भी समुदाय को लिया जाये सभी की
प्रमुख सामाजिक संस्थाएं धर्म द्वारा प्रभावित होती है।
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