निर्धनता (गरीबी) का अर्थ | भारत में निर्धनता के कारण |भारत में निर्धनता, भारत में गरीबी |Reason of Poverty in India in Hindi

भारत में निर्धनता, भारत में गरीबी

निर्धनता (गरीबी) का अर्थ  | भारत में निर्धनता के कारण |भारत में निर्धनता, भारत में गरीबी |Reason of Poverty in India in Hindi


 

 निर्धनता (गरीबी) का अर्थ 

  • सामान्य रूप से निर्धनता को एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता हैजिसमें लोग अपनी मौलिक आवश्यकताओं को भी संतुष्ट करने में असमर्थ होते हैं। निर्धनता की परिभाषा और मापने की विधियों में विभिन्न देशों में अंतर होता है। भारत में निर्धनता की मात्रा कोनिर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या के आधार पर मापा जाता है।

 

निर्धनता (गरीबी) रेखा का अर्थ एवं परिभाषा  

  • निर्धनता रेखा परिवार की आय को परिभाषित करती है। जिन परिवारों की आय इससे कम होती हैउन्हें निर्धन माना जाता है। विभिन्न देशों में एक परिवार की आय को परिभाषित करने के लिए विभिन्न विधियां अपनाई जाती हैं। यह स्थानीय सामाजिक आर्थिक आवश्यकताओं पर निर्भर करता है। भारत में निर्धनता के अनुमान योजना आयोग द्वारा लगाए जाते हैं।

 

  • निर्धनताराष्ट्रीय निदर्श सर्वेक्षण संगठन के सर्वेक्षणों द्वारा उपभोक्ता व्यय के आधार पर मापी जाती है। एक निर्धन परिवार वह हैजिसका व्यय एक विशेष निर्धनता रेखा के स्तर से कम होता है।

 

  • भारत में पहले गरीबी रेखा को, 1979 में नियत कार्य शक्ति की विधि के आधार पर परिभाषित किया जताता है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी का भोजन खरीदने पर व्यय तथा शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी का भोजन खरीदने पर किए गए व्यय पर आधारित था। 2009 में सुरेश तेंदुलकर कमेटी ने निर्धनता रेखा को भोजनशिक्षास्वास्थ्यबिजलीपरिवहन पर व्यय के आधार पर परिभाषित किया ।

 

  • योजना आयोग ने तेंदुलकर कमेटी की सिफारिश के अनुसारनिर्धनता रेखा तथा निर्धनता अनुपात को वर्ष 2009-10 के लिए परिष्कृत कर दिया है। इसने निर्धनता रेखा का अनुमान संपूर्ण भारत के स्तर पर लगाया हैजिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय 673 रु. तथा शहरी क्षेत्रों में 860 रु. है। इसलिए कोई व्यक्तिजो ग्रामीण क्षेत्रों में 673 रु. तथा शहरी क्षेत्रों में 860 रु. प्रति माह व्यय करता हैउसे निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाला परिभाषित किया जाता है।


भारत में निर्धनता के कारण Reason of Poverty in India in Hindi

 

1 गरीबी का दुष्चक्र

 

  • यह कहा जाता है कि 'एक देश निर्धन हैक्योंकि वह निर्धन है। यह विचार रैगनर नर्सकी द्वारा दिया गया हैजिसने गरीबी के दुष्चक्र की समस्या को उजागर किया। बचत का नीचा स्तर निवेश की सीमा को घटाता है। निवेश का नीचा स्तर कम आय पैदा करता है । इस प्रकार निर्धनता का चक्र अनिश्चित काल तक चलता रहता है।

 

2 नीची प्राकृतिक संसाधन क्षमता

 

  • एक परिवार निर्धन होता हैयदि उसके अधिकार में आय कमाने वाली परिसंपत्तियों का योगजिसमें भूमिपूँजी तथा विभिन्न स्तरों के कौशल का श्रम निर्धनता रेखा से अधिक आय उपलब्ध नहीं करा सकता। गरीब के पास मुख्य रूप से अकुशल श्रम होता हैजिसे मजदूरी आय का उच्च स्तर नहीं प्राप्त होता ।

 

3 आय और परिसंपत्तियों के वितरण में असमानता

 

  • आय और परिसंपत्तियों का वितरण भी आय के स्तर को निर्धारित करता है। आर्थिक असमानताएंभारत में निर्धनता के प्रमुख कारण हैं। इसका अर्थ है कि संवृद्धि के लाभों का केन्द्रीयकरण हो गया है और निम्न आय वर्ग के उपभोग में सुधार नहीं हो पाया परिणामस्वरूप वह विकास के लाभ से वंचित रहा है।

 

4 सामाजिक सेवाओं तक पहुंच का अभाव

 

  • सामाजिक सेवाएं जैसे स्वास्थ्यशिक्षा तक जन साधारण की पहुंच का अभावभौतिक और मानवीय परिसंपत्तियों के स्वामित्व में असमानतासमस्याओं को बढ़ा देते हैं। ये सेवाएं परिवारों के कल्याण को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं। निर्धन व्यक्ति इन सेवाओं का उचित लाभ बहुत कम प्राप्त कर पाता है। यह आंशिक रूप से इसलिए हैक्योंकि सरकारें इस सेवाओं की पर्याप्त पूर्ति के लिए काफी निवेश नहीं करती और सीमित पूर्ति का लाभ मुख्य रूप से गैर-गरीब परिवारों द्वारा प्राप्त कर लिया जाता है। इसके अतिरिक्त निर्धनबहुत से अन्य कारणों से भीइनकी काफी पहुंच नहीं रखतेजैसे इन सेवाओं के उपलब्ध होने की सूचना का अभावज्ञान का अभाव तथा सार्वजनिक कार्यालयों में भ्रष्टाचार ।

 

5 संस्थागत साख तक पहुंच का अभाव

 

  • बैंक तथा अन्य वित्तीय संस्थाएं निर्धन लोगों को ऋण देने में पक्षपात करती हैंक्योंकि उन्हें ऋण का भुगतान प्राप्त न होने का डर होता है। इसके अतिरिक्त जमानत के विषय में नियमदस्तावेज की गवाही आदि निर्धन लोगों के लिए बैंक से ऋण लेने में रुकावट डालते हैं। संस्थागत ऋण पहुंच के बाहर होने के कारण निर्धन लोगों को भू-स्वामी तथा अन्य अनियमित स्रोतों से बहुत ऊंची ब्याज की दर पर ऋण लेने के लिए दबाव डालते हैंजिससे उनकी दशा अन्य क्षेत्रों में कमजोर हो जाती है। उदाहरण के लिएउन्हें भूमि के लिए लगान का ऊंचा भाग देना पड़ता है तथा बहुत प्रकार के बंधक मजदूरी के रूप में बहुत कम मजदूरी स्वीकार करनी पड़ती है अथवा उन्हें अपनी फसल बहुत नीची कीमत पर बेचनी पड़ती है। कुछ मामलों में निर्धन व्यक्ति अपने आपको इन ऋणदाताओं के पंजों से मुक्त नहीं करा पाते। ऋणग्रस्तता के कारण उनकी निर्धनता और अधिक बढ़ जाती है। ऐसे ऋणी परिवार पीढ़ियों तक निर्धनता रेखा से नीचे रहते हैंक्योंकि वे ऋण के जाल में फंस जाते हैं।

 

6 कीमत वृद्धि

 

  • बढ़ती हुई कीमतों से मुद्रा की क्रय शक्ति कम हो गई है और इस प्रकार मुद्रा आय का वास्तविक मूल्य घट गया है। निम्न आय वर्ग के लोगों को विवश होकर अपना उपभोग कम करना पड़ता है और इस प्रकार वे निर्धनता रेखा से नीचे चले जाते हैं।

 

7 उत्पादक रोजगार का अभाव

 

  • निर्धनता की अधिक मात्रा का बेरोजगारी की दशा से सीधा संबंध है। वर्तमान रोजगार की दशाएंनिर्धनता के कारण एवं उचित रहन-सहन के स्तर की अनुमति नहीं देतीं । उत्पादन रोजगार का अभाव मुख्य रूप से आधारिक संरचनाआगतसाखतकनीकीबाजार की सहायता की समस्याओं के कारण हैं। प्रणाली में लाभदायक रोजगार के अवसरों का अभाव है।

 

8 तीव्र जनसंख्या वृद्धि

 

जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि का अर्थ है- सकल घरेलू उत्पाद में धीमी वृद्धि और इसलिए रहन-सहन के औसत स्तर में धीमा सुधार होता है। इसके अतिरिक्त जनसंख्या में बढ़ती हुई वृद्धि से उपभोग बढ़ता है तथा राष्ट्रीय बचत कम होती हैजिससे पूँजी निर्माण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि सीमित हो जाती है।


9 कृषि में नीची उत्पादकता

 

  • खेतों के छोटे-छोटे और बिखरे हुए होनेपूँजी का अभावकृषि की परंपरागत विधियों का प्रयोगअशिक्षा आदि के कारणकृषि में उत्पादन का स्तर नीचा है। ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता का यह मुख्य कारण है।

 

10  भारत में गरीबी के सामाजिक कारण

 

(क) शिक्षा : 

  • शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का एक एजेंट है। निर्धनता शिक्षा के स्तर से भी घनिष्ट रूप से संबंधित है और इन दोनों में चक्रीय संबंध है। कमाने की शक्ति व्यक्ति की शिक्षा और प्रतिशत में निवेश से प्रभावित होती है। किंतु निर्धन लोगों के पास मानव पूँजी निवेश के लिए निधि नहीं होती और इस प्रकार इससे उनकी आय सीमित होती है।

 

ख ) जाति प्रथा :

 

  • भारत मेंजाति प्रथाग्रामीण निर्धनता के लिए सर्वदा उत्तरदायी रही है। नीची जाति के लोगों में ऊंची जाति के लोगों का वर्चस्व पहले की निर्धनता का कारण रही है। जाति प्रथा की दृढ़ता के कारणनीची जाति के लोग बहुत-सी आर्थिक गतिविधियों में भाग नहीं ले सके और वे निर्धन रहे।

 

(ग) सामाजिक प्रथाएं :

 

  • ग्रामीण लोग प्रायः अपनी कमाई का अधिक प्रतिशत सामाजिक प्रथाओंजैसे- शादीमृत्यु भोज आदि पर व्यय करते हैं और इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अधिक ऋण लेते हैं। परिणामस्वरूप वे ऋण तथा निर्धनता में रहते हैं ।

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