योजक चिह्न क्या हैं | योजक चिन्ह उपयोग के नियम | Yojak Chinh Upyog Niyam

  योजक चिह्न क्या हैं, योजक चिन्ह उपयोग के नियम 

योजक चिह्न क्या हैं | योजक चिन्ह उपयोग के नियम | Yojak Chinh Upyog Niyam



योजक चिह्न (-) Hyphen Explanation in Hindi

  • हिन्दी में अल्पविराम के बाद योजक चिह्न (-) का अत्यधिक प्रयोग होता है।
  • भाषाविज्ञान की दृष्टि से हिन्दी भाषा की प्रकृति विश्लेषणात्मक हैसंस्कृत की तरह संश्लेषणात्मक नहीं। 
  • अतएवहिन्दी में सामासिक पदों या शब्दों का अधिक प्रयोग नहीं होता। 
  • संस्कृत में योजक चिह्न का प्रयोग नहीं होता। 


हिन्दी में इसका उपयोग इस प्रकार होगा- पृथ्वी पर जो सदा राम-नाम गाते हैंमैं उन्हें बार-बार प्रणाम करता हूँ।


योजक चिह्न लगाने की आवश्यकता क्या है

  • प्रश्न उठता है कि योजक चिह्न लगाने की आवश्यकता क्या है। ऐसा करना क्यों जरूरी हैइसका उत्तर यह है कि वाक्य में प्रयुक्त शब्द और उनके अर्थ को योजक चिह्न चमका देता है। यह किसी शब्द के उच्चारण अथवा वर्तनी को भी स्पष्ट करता है। 


  • श्रीयुत रामचन्द्र वर्मा का ठीक ही कहना है कि यदि योजक चिह्न का ठीक-ठीक ध्यान न रखा जायेतो अर्थ और उच्चारण से सम्बद्ध अनेक प्रकार के भ्रम हो सकते हैं। 


योजक चिह्न के प्रयोग के नियम  

योजक चिह्न के प्रयोग का नियम 01 

योजक चिह्न सामान्यतः दो शब्दों को जोड़ता है और दोनों को मिलाकर एक समस्त पद बनाता हैलेकिन दोनों का स्वतन्त्र अस्तित्व बना रहता है। 

जैसे- माता पितालड़का लड़कीधर्म-अधर्मपाप-पुण्य इत्यादि । 

इन उदाहरणों से यह नियम इस प्रकार बनाया जा सकता है कि जिन पदों के दोनों खण्ड प्रधान हों और जिनमें 'औरअनुक्त या लुप्त होवहाँ योजक चिह्न लगाया जाता है। 


जैसे- 

घर-द्वार = घर और द्वारदाल रोटी = दाल और रोटीदही बड़ा = दही और बड़ासीता राम सीता और राम, = फल-फूल = फूल और फूल।

 

योजक चिह्न के प्रयोग का नियम 02

  • दो विपरीतार्थक शब्दों के बीच योजक चिह्न लगाया जाता है।

जैसे

ऊपर नीचेलेन-देनमाता-पितारात-दिनआकाश पातालपाप-पुण्यस्त्री-पुरुषभाई-बहनदेर-सवेरबेटा बेटीऊँच-नीचगरीब-अमीरशुभ-अशुभलघु-गुरुस्वर्ग नरकजय-पराजयदेश-विदेशझूठ-सचजन्म-मरणजड़ चेतनहानि-लाभमानव-दानव।

 

योजक चिह्न के प्रयोग का नियम 03

  • द्वन्द्व समास में कभी-कभी ऐसे पदों का भी प्रयोग होता हैजिनके अर्थ प्रायः समान होते हैं। ये पद बोलचाल में प्रयुक्त होते हैं। ऐसे पदों के बीच योजक चिह्न लगाया जाता है। ये 'एकार्थबोधक सहचर शब्दकहलाते हैं।


 जैसे-

हाट बाजारदीन-दुखीमणि-माणिक्यसेठ-साहूकारसड़ा-गलाभूल-चूकरुपया-पैसासमझ-बूझभोग-विलासहिसाब किताबभूत-प्रेतचमक-दमकजी-जानबाल बच्चामार-पीटशोर-गुलधूम-धामहँसी-खुशीचाल-चलनकपड़ा लत्ताजीव-जन्तुकूड़ा-कचरानौकर-चाकरसजा-धजानपा- तुला ।


योजक चिह्न के प्रयोग का नियम 04

  • जब दो विशेषण पदों का संज्ञा के अर्थ में प्रयोग होवहाँ योजक चिह्न लगता है। 

जैसे- लूला-लँगड़ाभूखा-प्यासाअन्धा बहरा।


योजक चिह्न के प्रयोग का नियम 05

  • जब दो शब्दों में एक सार्थक और दूसरा निरर्थक होतब वहाँ भी योजक चिह्न लगाया जाता है। 


जैसे -

परमात्मा- अरमात्माउलटा-पुलटाअनाप-शनापरोटी वोटीखाना-वानापानी वानीझूठ-मूठ ।


योजक चिह्न के प्रयोग का नियम 06

  •  जब दो शुद्ध संयुक्त क्रियाएँ एक साथ प्रयुक्त होंतब 'दोनों के बीच योजक चिह्न लगता है। 


जैसे -

पढ़ना-लिखनाउठना-बैठनामिलना-जुलनामारना पीटनाखाना-पीनाआना-जानाकरना धरनादौड़ना- धूपनामरना जीनाकहना सुननासमझना- बूझनाउठाना - गिरनारहना सहनासोना-जागना।

 

योजक चिह्न के प्रयोग का नियम 07

  • क्रिया की मूलधातु के साथ आयी प्रेरणार्थक क्रियाओं के बीच भी योजक चिह्न का प्रयोग होता है। 

जैसे 

उड़ना-उड़ानाचलना चलानागिरना- गिरानाफैलना फैलानापीना - पिलानाओढ़ना-उढ़ानासोना-सुलानासीखना - सिखाना।

 

योजक चिह्न के प्रयोग का नियम 08

  • दो प्रेरणार्थक क्रियाओं के बीच भी योजना चिह्न लगाया जाता है। 


जैसे- डराना-डरवानाभिंगाना-भिंगवानाजिताना जितवानाचलाना- चलवानाकटाना-कटवानाकराना करवाना।


योजक चिह्न के प्रयोग का नियम 09 

  • जब एक ही संज्ञा दो बार प्रयुक्त होतब संज्ञाओं बीच योजक चिह्न लगता है। इसे 'द्विरुचि कहते हैं।

जैसे- 

गली-गलीनगर-नगरद्वार द्वारगाँव-गाँवशहर-शहरघर घरकोना-कोनाचप्पा-चप्पाकण-कणबूँद-बूँदराम रामवन-वनबात-बातबच्चा बच्चा।

 

योजक चिह्न के प्रयोग का नियम 10

  • परिमाणवाचक और रीतिवाचक क्रियाविशेषण में प्रयुक्त दो अव्ययों तथा 'ही', 'से', 'का', 'आदि के बीच योजक चिह्न का व्यवहार होता है।


जैसे- 

  • बहुत-बहुतथोड़ा-थोड़ाथोड़ा-बहुत कम-कमकम बेशधीरे-धीरेजैसे-तैसेआप-ही-आपबाहर भीतरआगे पीछे, यहाँ-वहाँ, अभी-अभी, जहाँ-तहाँ, आप-से-आप, ज्यों का-त्यों, कुछ-न-कुछ ऐसा वैसा, जब तब, तब-तब, किसी न किसी, साथ-साथ ।

 

योजक चिह्न के प्रयोग का नियम 11

  • निश्चित संख्यावाचक विशेषण के जब दो पद एक साथ प्रयुक्त हों, तब दोनों के बीच योजक चिह्न लगता है। 


जैसे- दो-चार, एक एक, एक-दो, चार-चार, नौ-छह, दस बारह, दस-बीस, पहला दूसरा, चौथा पाँचवाँ।

 

योजक चिह्न के प्रयोग का नियम 11

  • अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण में जब 'सा', 'सें' आदि जोड़े जायें, तब दोनों के बीच योजना चिह्न लगाया जाता है।

जैसे- 

बहुत सी बातें, कम-से-कम, बहुत से लोग, रुपया, अधिक से अधिक, थोड़ा-सा काम। 


योजक चिह्न के प्रयोग का नियम 12

  • गुणवाचक विशेषण में भी 'सा' जोड़कर योजक चिह्न लगाया जाता है। 

जैसे

 बड़ा-सा पेड़, बड़े-से-बड़े लोग, ठिंगना-सा आदमी। 


योजक चिह्न के प्रयोग का नियम 13

  • जब किसी पद का विशेषण नहीं बनता, तब उस पद के साथ 'सम्बन्धी' पद जोड़कर दोनों के बीच योजक चिह्न लगाया जाता है। 


जैसे- भाषा सम्बन्धी चर्चा, पृथ्वी सम्बन्धी तत्त्व, सम्बन्धी, बातें, सीता सम्बन्धी वार्ता ।

 

योजक चिह्न के प्रयोग का नियम 14

  • जब दो शब्दों के बीच सम्बन्धकारक के चिह्न - का, के और की लुप्त या अनुक्त हों, तब दोनों के बीच योजक चिह्न लगाया जाता है। ऐसे शब्दों को हम सन्धि या समास के नियमों से अनुशासित नहीं कर सकते। इनके दोनों पद स्वतन्त्र होते हैं |

जैसे- 

  • शब्द-सागर, लेखन-कला, शब्द-भेद, सन्त-मत, मानव-जीवन, मानव-शरीर, कृष्ण-लीला, विचार-श्रृंखला, रावण-वध, राम-नाम, प्रकाश-स्तम्भ।

 

योजक चिह्न के प्रयोग का नियम 15

  • लिखते समय यदि कोई शब्द पंक्ति के अन्त में पूरा न लिखा जा सके, तो उसके पहले आधे खण्ड को पंक्ति में अन्त में रखकर उसके बाद योजक चिह्न लगाया जाता है। ऐसी हालत में शब्द को 'शब्दखण्ड' या 'सिलेबुल' या पूरे 'पद' पर तोड़ना चाहिए। जिन शब्दों के योग में योजक चिह्न आवश्यक है, उन शब्दों को पंक्ति में तोड़ना हो तो शब्द के प्रथम वंश के बाद योजक चिह्न देकर दूसरी पंक्ति दूसरे अंश के पहले योजक देकर जारी करनी चाहिए।


योजक चिह्न का प्रयोग कहाँ नहीं होना चाहिए 

 भारत की स्वतन्त्रता के पहले हिन्दी में निम्नलिखित शब्दों के बीच योजक चिह्न लगता थाकिन्तु अब इसे हटा दिया गया है। खासकर पत्र-पत्रिकाओं में ये अधिक देखने को मिलते हैं। ये शब्द इस प्रकार हैं- 

  • रजतपटकार्यक्रमजनरुचिलोकमतजनपथयोगदानचित्रकलापटकथामध्यवर्गआसपासअन्धविश्वासगतिविधिआत्मविश्वाससीमारेखावर्षगाँठजन्मदिनआसपासगतिविधिआत्मसमर्पणरक्तदानपरचिह्नआत्मनिर्भरमानपत्रप्रशंसापत्रआवेदनपत्रअभिनन्दनपत्रपरीक्षाफलहिन्दी परिषद्हिन्दी संसारहिन्दी विभागराष्ट्रभाषा |

 

  • सन्धि और समास के नियमों से अनुशासित ऐसे हजारों शब्द हिन्दी में चलते हैंजिनमें योजक चिह्न का प्रयोग नहीं होता। वे अपने आपमें समस्त पद बन गये हैं। 

जैसे 

तत्पुरुष समास-

राजमन्त्रीगंगाजल,  शोकाकुलशरणागतपाकिटमारआकाशवाणीकर्मपटुदेशान्तरजन्मान्तरदेवालयलखपतिपंकजरेलकुली ।

 

कर्मधारय समास से बने शब्दों के प्रयोग में भी असावधानी पाई जाती है।

कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं

 

अशुद्ध शुद्ध

कमल-नयन कमलनयन

चन्द्र-मुख चन्द्रमुख

चरण-कमल चरणकमल

गोबर-गणेश गोबरगणेश

विद्या-धन विद्याधन

डाक-गाड़ी डाक गाड़ी

भव-सागर →भवसागर


अव्ययीभाव समास- .

अव्ययीभावसमास में भी योजक चिह्न के दुष्प्रयोग हुए हैं।

 

जैसे  

शुद्ध अशुद्ध 

दिन-रात →दिन-रात 

रात-भर  रातभर

यथा-स्थान  यथास्थान

 

द्विगु समास- 

  • द्विगुसमास से बने सामाजिक पदों में योजक चिह्न का प्रयोग नहीं होता। 

जैसे- 

  • सप्तलोकत्रिभुवनपंचवटीनवग्रहसतसईचवन्नीचौमासा । 

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