प्रबन्ध का अर्थ परिभाषा एवं विशेषताएँ | Prabandh Ka Arth Evam Paribhasha

 प्रबन्ध का अर्थ परिभाषा एवं विशेषताएँ 

प्रबन्ध का अर्थ परिभाषा एवं विशेषताएँ | Prabandh Ka Arth Evam Paribhasha


प्रबन्ध क्या होता है 

 

  • प्रबन्ध एक एैसी रणनीति है, जिसके सुव्यवस्थित क्रियान्यवयन से विकासशील होने की अवधारणा को विकसित अवधारणा में परिवर्तित किया जा सकता है। भारत में प्रबन्ध को कला एवं विज्ञान दोनो ही दृष्टिकोणों से मान्यता दी जाती है। ऐसी मान्यता है कि प्रबन्ध प्रशासन के पूर्व निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये आवश्यक कारकों में अनुकूल समन्वय स्थापित करता है, जिससे कार्य निष्पादन उचित परिणाम दे सकें। प्रस्तुत इकाई प्रबन्ध की इस आवधारणा को विस्तार से प्रस्तुत करेगी, साथ ही सहभागी प्रबन्ध एवं सुव्यवस्थित प्रबन्ध की विभिन्न कसौटियों को भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेगी।

 

प्रबन्ध का अर्थ और परिभाषा

 

  • प्रबंधन एक नया विषय है। विकसित और विकासशील राष्ट्रों को प्रबन्धन एक नया आयाम दिया है । औद्योगिक क्रान्ति के बाद प्रबन्धकीय महत्व बहुत बढा है। किन्तु औपचारिक अध्ययन की दृष्टि से प्रबन्धन का क्षेत्र नया ही है। संकीण अर्थ में प्रबन्धन का आशय अन्य लोंगों से कार्य करवाने की कला से है। 


  • विस्तृत अर्थों में प्रबन्धन, निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए मानवीय व्यवहार एवं क्रियाओं का निर्देशन करने से है। दुसरे अर्थों में किसी संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सामूहिक प्रयासों के नियोजन, संगठन, समन्वय, निर्देशन एवं नियंत्रण की प्रक्रिया को प्रबन्धन कहा जाता है।

 

प्रबन्ध की परिभाषायेँ


पीटर एफ0 ड्रकर के अनुसार प्रबन्ध की परिभाषा 

  • प्रबन्ध प्रत्येक व्यवसाय का गत्यात्मक तथा जीवन प्रदायिनी अवयव है। इसके नेतृत्व के अभाव में उत्पत्ति के साधन केवल साधन मात्र रह जाते हैं, कभी भी उत्पादन नहीं बन पाते हैं।"

 

अमरीकी प्रबन्ध समिति के अनुसार प्रबन्ध की परिभाषा 

  • प्रबन्ध मानवीय तथा भौतिक साधनों को क्रियाशील संगठनों की इकाइयों में लगाता है, जिसका उद्देश्य व्यक्तियों को संतोष प्रदान करना तथा सेवकों में नैतिक स्तर तथा कार्य पूरा करने का उत्तरदायित्व उत्पन्न करना है।

 


प्रोफेसर एडविन एम0 रोबिन्सन के अनुसार प्रबन्ध की परिभाषा 


  • कोई भी व्यवसाय स्वयं नहीं चल सकता, चाहे वह की स्थिति में ही क्यों न हो। उसके लिए इसे नियमित उद्दीपन की आवश्यकता पड़ती है । "

 

टेलर के अनुसार प्रबन्ध की परिभाषा 

  • प्रबन्ध के मूल सिद्धान्त समस्त मानवीय क्रियाओं पर सरल व्यक्तिगत कार्यों से लेकर महान नियमों के कार्यों तक लागू होते हैं।"

 

हेनरी फेयोल के अनुसार प्रबन्ध की परिभाषा 

  • प्रबन्ध एक सार्वभौमिक किया है, जो प्रत्येक संस्था में, चाहे वह आर्थिक हो या सामाजिक, धार्मिक हो या राजनीतिक, पारिवारिक हो या व्यावसायिक, समान रूप से सम्पन्न की जाती है । "

 

एफ0 डब्ल्यू0 टेलर के अनुसार प्रबन्ध की परिभाषा 

  • प्रबन्ध यह जानने की कला है कि आप क्या करना चाहते हैं, तत्पश्चात यह देखना कि वह सर्वोत्तम एवं मितव्ययितापूर्ण सम्पन्न किया जाता है।''

 

किम्बाल एवं किम्बाल के अनुसार के प्रबन्ध की परिभाषा 

  • प्रबन्ध कार्य निष्पादन की सर्वोत्तम एवं मितव्ययितापूर्ण विधि की खोज करता है। इसके अनुसार प्रबन्ध का प्रमुख कार्य उत्पादन के साधनों का कुशलतम उपयोग करते हुए न्यूनतम लागत पर अधिकाधिक कार्य कराना है।

 

विलियम एफके अनुसार प्रबन्ध की परिभाषा 

  • उपक्रम के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मानवीय एवं भौतिक साधनों का प्रभावी उपयोग ही प्रबन्ध है । "

 

प्रो0 जॉन एफ0 मी के शब्दों में प्रबन्ध की परिभाषा 

  • प्रबन्ध न्यूनतम प्रयास द्वारा अधिकतम परिणाम प्राप्त करने की कला है जिससे नियोक्ता एवं कर्मचारी दोनों के लिए अधिकतम समृद्धि एवं खुशहाली प्राप्त की जा सके तथा जनता को सर्वश्रेष्ठ सम्भव सेवा प्रदान की जा सके ।

 

प्रबंध की परिभाषाओं की विवेचना का परिणाम 

  • उपरोक्त परिभाषाओं की विवेचना करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रबन्ध एक कलात्मक एवं वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जो संस्था के निर्धारित लक्ष्यों एवं उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मानवीय सामूहिक प्रयासों का नियोजन, संगठन, निर्देशन एवं नियंत्रण वातावरण की अपेक्षाओं के अनुरूप दक्षतापूर्वक एवं प्रभावी ढंग से करती है।

 

  • इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यवसाय के कुशल संचालन तथा उत्पत्ति के भौतिक एवं मानवीय साधनों के सर्वोत्तम उपयोग के लिए स्वस्थ प्रबन्ध अति आवश्यक है। यह एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु नियोजन, संगठन, नेतृत्व, भर्ती एवं नियंत्रण के द्वारा संस्था के मानवीय एवं भौतिक साधनों के मध्य समन्वय स्थापित किया जाता है। वास्तव में यह प्रशासन का हृदय होता है।

 

प्रबंध की विशेषतायें 

विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रबन्ध के सम्बन्ध में दी गई उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने से इसकी निम्नलिखित विशेषताओं का निरूपण किया जा सकता है। आइये इन्हें क्रमबद्ध ढंग से समझने का प्रयास करें

 

1. प्रबन्ध एक ऐसी क्रिया है जो कि मनुष्य द्वारा सम्पन्न की जाती है एक य चलने वाली प्रक्रिया है। 

2. प्रबन्ध एक सामाजिक प्रक्रिया है, जो आम आदमी से सम्बन्धित होती है। 

3. प्रबन्ध के अन्तर्गत एक व्यक्ति विशेष को महत्व न देकर समूह को महत्व दिया जाता है,  अतः प्रबन्ध एक समूहिक प्रक्रिया है। 

4. प्रबन्ध में कला तथा विज्ञान दोनों की विशेषताएँ पायी जाती हैं। 

5. प्रबन्ध एक पेशा है क्योंकि इसका का भी अपना एक शास्त्र है, जिसके सिद्धान्त, नीतियाँ एवं नियम है इनका ज्ञान शिक्षण एवं पूर्व प्रशिक्षण द्वारा प्राप्त किया जाता है तथा प्रबन्धक इस उस ज्ञान का प्रयोग अपने उपक्रम के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए करते है। 

6. समूह के प्रयासो से संस्था द्वारा पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए निर्देशित किया जाता है। 

7. प्रबन्ध का अस्तित्व अलग होता है क्योंकि इसके अन्तर्गत स्वयं कार्य नहीं किया जाता, अपितु दूसरों से कार्य कराया जाता है। 

8. प्रबन्ध की आवश्यकता सभी स्तरों पर होती है, यथा उच्चस्तरीय, मध्यस्तरीय व निम्नस्तरीय।  

9. प्रबन्धकीय सिद्धान्त तथा कार्य सभी प्रकार के संगठनों में समान रूप से लागू होते हैं।

10. प्रबन्ध को सार्वभौमिक प्रक्रिया इसलिए भी कहा जाता है कि प्रबन्धकीय ज्ञान के सीखने तथा सिखाने की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है ।

11. प्रबन्धक का स्वामी होना अनिवार्य है पेशेवर प्रबन्ध की स्थिति में प्रबन्धक प्रायः स्वामी नहीं होते। 

12. प्रबन्ध की उपस्थिति को उपक्रम के प्रयासों के परिणाम, व्यवस्था, अनुशासन उत्पादन के रूप में अनुभव किया जा सकता है। अतः यह एक अदृश्य पक्रिया है। 

13. 'समन्वय प्रबन्ध का सार है' अतः प्रबन्ध को समन्वयकारी क्रिया कहा जा सकता है। 

14. यह एक साधारण कला नहीं है। इसके लिए अनुभव, ज्ञान एवं चातुर्य की आवश्यकता होती है, प्रबन्ध का पृथक एवं भिन्न अस्तित्व है। 

15. प्रबन्ध क्रिया को सम्पन्न करने के लिए विशेष योग्यता की आवश्यकता होती है।तकनीकी दृष्टि से निपुण एवं अनुभवी व्यक्ति ही किसी संस्था की व्यवस्था का संचालन कर सकते हैं। 

16. प्रबन्ध पारिस्थितिक होता है। यह आन्तरिक तथा बाहय दोनों ही वातावरण से निरन्तर प्रभावित होता हैं।  

17. प्रबन्ध सृजनात्मक कार्य है जो अपेक्षित परिणामों को प्राप्त करने के लिए साधन जुटाता है। 

18. प्रबन्ध केवल किसी विशिष्ट कार्य, उपक्रम अथवा देश तक सीमित न रहकर सभी कार्य, उपक्रमो एवं सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त है। जिसके कारण यह सार्वभौमिक पद्वति है।


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