लोक प्रशासन का विकास: प्राचीन काल | Development of Public Administration: Ancient

लोक प्रशासन का विकास 

लोक प्रशासन का विकास: प्राचीन काल | Development of Public Administration: Ancient



लोक प्रशासन का विकास के अध्ययन दो भागों में करेंगे - 

  1. लोक प्रशासन का विकास: प्राचीन काल
  2.  लोक प्रशासन का विकास: आधुनिक काल


सामान्य परिचय 

किसी भी विषय के वर्तमान स्वरूप को समझने के लिए उसके अतीत को समझना आवश्यक होता है। सैद्धान्तिक दृष्टि से यह अध्ययन के विषय को व्यापक सन्दर्भ में स्थापित करने में सहायक होता है तथा व्यावहारिक दृष्टि से भूतकाल के ज्ञान का उपयोग वर्तमान में विषय के विकास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में सहायक होता है। प्रबन्ध की क्रिया के रूप में लोक प्रशासन उतना ही प्राचीन है जितना कि मनुष्य का सामाजिक जीवन । परन्तु अध्ययन की एक शाखा या विधा के रूप में इसका विधिवत विकास आधुनिक काल में ही संभव हो सका है। इस इकाई में लोक प्रशासन विषय के विकास के विभिन्न चरणों पर प्रकाश डाला गया है। 


लोक प्रशासन का विकास: प्राचीन काल

 

  • एक क्रियाकलाप के रूप में लोक प्रशासन प्राचीन काल से ही अस्तित्व में रहा है। इसके विभिन्न सिद्धान्त हमें प्राचीन भारत के ग्रन्थ रामायण, महाभारत तथा विभिन्न स्मृतियों के साथ-साथ मुख्यतः कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलते हैं। 


  • कौटिल्य का अर्थशास्त्र राज्य के उद्देश्यों तथा उन उद्देश्यों की प्राप्ति के व्यावहारिक साधनों पर एक विशिष्ट तथा कुशल शोध प्रबन्ध माना जाता है। प्राचीन भारत में लोक प्रशासन पर यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है।


  • कौटिल्य ने प्रशासन की समस्याओं को समझने के लिए 'राजनैतिक अर्थनीति' का मार्ग अपनाया है। प्रशासन के सिद्धान्त मुख्यतः राजा, मंत्रियों आदि के कार्यों द्वारा इंगित किये गये हैं। अधिकार आज्ञापालन तथा अनुशासन के सिद्धान्तों को राज्य के प्रशासन का केन्द्र माना गया है। इस बात पर बल दिया गया है कि कार्य विभाजन, श्रेणीबद्ध पदानुक्रम तथा समन्वय जैसे सिद्धान्तों को आंतरिक संगठन की कार्यविधि में अपनाया जाना चाहिए। 


  • इसके अतिरिक्त संभवतः कौटिल्य ही ऐसे जाने-माने विचारक थे जिन्होंने प्रशासन में सांख्यिकी के महत्व को मान्यता दी। उनके चिंतन में जिस प्रकार राज्य के व्यापक दायित्वों, जैसे- अनाथ बच्चों, महिलाओं, वृद्धों कमजोर वर्गों इत्यादि का भरण-पोषण करना तथा जनसामान्य के हितों के लिए कल्याणकारी योजनाएं चलाना इत्यादि पर बल दिया गया है, इससे एक कल्याणकारी राज्य की झलक मिलती है जो बहुत कुछ आधुनिक लोक कल्याणकारी राज्य की तरह ही है।

 

  • यद्यपि कौटिल्य द्वारा वर्णित प्रशासकीयव्यवस्था राजतंत्रीय शासन के सन्दर्भ में थी, जो कि आधुनिक लोकतांत्रिक समाजों की प्रशासनिक व्यवस्था से भिन्न है, फिर भी उसके द्वारा स्थापित लोक प्रशासन ही परम्पराएँ महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये लोक प्रशासन विज्ञान तथा शासन कला के व्यवस्थित विश्लेषण पर जोर देते हैं।

 

  • इसी प्रकार के विवेचन में चीन में कन्फ्यूसियस द्वारा दिये गये उपदेशों, अरस्तू की महान रचना 'पॉलिटिक्स' हॉब्स की रचना 'लेवियाथन' और मैकियावली की रचना 'द प्रिन्स' में देखने को मिलते हैं।

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