वैष्णव धर्म के सिद्धान्त | विष्णु के दस अवतारों का विवरण | Vaishnav Dharm Ke Sidhant
वैष्णव धर्म के सिद्धान्त | Vaishnav Dharm Ke Sidhantविष्णु के दस अवतारों का विवरण | Vishnu Ke Avtar
वैष्णव धर्म के सिद्धान्त
- वैष्णव धर्मं में ईश्वरभक्ति के द्वारा मोक्ष प्राप्त करने पर बल दिया गया है। भक्ति के द्वारा ईश्वर प्रसन्न होता है तथा वह भक्त को अपनी शरण में ले लेता है। वैष्णव सिद्धान्तों का गीता में सर्वोत्तम विवेचन मिलता है। इसमें ज्ञान, कर्म तथा भक्ति का समन्वय स्थापित करते हुए भक्ति द्वारा मुक्ति प्राप्त करने का प्रतिपादन मिलता है।
- स्वयं भगवान कृष्ण कहते है कि “सभी धर्मों को छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त करूँगा।" वैष्णव धर्म में अवतारवाद का सिद्धान्त अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
- तद्नुसार ईश्वर समय-समय पर अपने भक्तों के उद्धार के लिये पृथ्वी पर अवतरित होता है।
- गीता में कृष्ण कहते हैं- 'जब-जब धर्म की हानि तथा अधर्म की वृद्धि होती है तब तब मैं अवतरित होता हूँ। साधुओं की रक्षा तथा दुर्जनों के विनाश एवं धर्म की स्थापना के लिये युग-युग में मैं उत्पन्न होता हूँ।'
- अन्यत्र वर्णित है कि मेरे में मन को एकाग्र करके निरन्तर मेरे में लगे हुए जो भक्त जन अतिशय श्रद्धापूर्वक मुझे भजते हैं वे योगियों में अत्युत्तम योगी है। जो सम्पूर्ण कर्मों को मेरे में अर्पण करके मुझे ही अनन्य भाव से भजते हैं उनको मैं शीघ्र ही मृत्युरुपी संसार सागर से उद्धार देता हूँ।
विष्णु के दस अवतारों का विवरण Vishnu Ke avtar kaun hai
पुराणों में विष्णु के दस अवतारों का विवरण प्राप्त होता है जो इस प्रकार है
1. मत्स्य अवतार
- कथा के अनुसार जब पृथ्वी महान् जल-प्लावन से भयभीत हो गयी तब विष्णु ने मत्स्य के रूप में अवतार लेकर मनु, उनके परिवार तथा सात ऋषियों को एक जलपोत में बैठाकर, जिसकी रस्सी मत्स्य की सींग से बंधी हुई थी, रक्षा की। उन्होंने प्रलय से वेदों की भी रक्षा की थी।
2. कूर्म अथवा कच्छप अवतार
- जल प्लावन के समय अमृत तथा रत्न आदि समस्त बहुमूल्य पदार्थ समुद्र में विलीन हो गये। विष्णु ने अपने को एक बड़े कूर्म (कच्छप) के रूप में अवतरित किया तथा समुद्रतल में प्रवेश कर गये। देवताओं ने उनकी पीठ पर मन्दराचल पर्वत रखा तथा नागवासुकि को डोरी बनाकर समुद्र मन्थन किया। परिणामस्वरूप अमृत तथा लक्ष्मी समेत चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई।
3. वराह अवतार
- हिरण्याक्ष नामक राक्षस ने एक बार पृथ्वी को विश्व सिन्धु के तल में ले जाकर छिपा दिया। पृथ्वी की रक्षा के लिये विष्णु ने एक विशाल वराह (सूकर) का रूप धारण किया। उन्होंने राक्षस का वध किया तथा पृथ्वी को अपने दांतों से उठाकर यथास्थान स्थापित कर दिया ।
4. नृसिंह अवतार
- प्राचीन समय में हिरण्यकश्यप नामक महान् असुर हुआ। ब्रह्मा से उसने यह वरदान प्राप्त किया कि वह न तो दिन में मरे न रात में, न उसे देवता मार सकें न मनुष्य अब उसने देवताओं तथा मनुष्यों पर अत्याचार करना प्रारम्भ किया। यहाँ तक कि उसने अपने पुत्र प्रहलाद को भी अनेक प्रकार से प्रताड़ित किया। प्रहलाद की पुकार पर विष्णु ने नृसिंह (आधा मनुष्य तथा आधा सिंह) अवतार लिया। हिरण्यकश्यप को गोधूलि के समय मार डाला तथा प्रहलाद को राजा बनाया।
5. वामन अवतार
- बलि नामक राक्षस हुआ जिसने संसार पर अधिकार करने के बाद तपस्या करना प्रारम्भ किया। उसकी शक्ति इतनी बढ़ी कि देवता घबड़ा गये तथा विष्णु से प्रार्थना की। फलस्वरूप वे एक बौने का रूप धारण कर राक्षस के सम्मुख उपस्थित हुए। उन्होंने दान में तीन पग भूमि मांगी। बलि ने यह स्वीकार कर लिया। तत्पश्चात् उनका आकार अत्यन्त विशाल हो गया तथा दो ही पग में पृथ्वी, आकाश तथा अन्तरिक्ष को नाप दिया। तीसरा पग नहीं उठाया तथा बलि के लिये पाताल छोड़ दिया। अतः वह पृथ्वी छोड़कर पाताल लोक चला गया।
6. परशुराम अवतार
- यमदग्नि नामक ब्राह्मण के पुत्र के रूप में विष्णु ने परशुरामावतार लिया। एक बार यमदग्नि को कीर्त्तवीर्य नामक राजा ने लूटा। परशुराम ने उसे मार डाला। कीर्त्तवीर्य के पुत्रों ने यमदग्नि को मार डाला। परशुराम अत्यन्त क्रुद्ध हुये और उन्होंने समस्त क्षत्रिय राजाओं का विनाश कर डाला। ऐसा इक्कीस बार किया गया। अन्ततः रामावतार में उनका गर्व चूर्ण हुआ और वे वन में तपस्या हेतु चले गये।
7. रामावतार अवतार
- अयोध्या में राजा दशरथ के पुत्र के रूप में विष्णु ने अवतार लिया तथा 'राम' नाम से विख्यात हुए। उन्होंने रावण सहित कई राक्षसों का संहार किया। विष्णु का यह अवतार उत्तर भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय है।
8. कृष्ण अवतार
- मथुरा के राजा कंस के अत्याचारों से प्रजा की रक्षा करने लिये वसुदेव तथा देवकी के पुत्र रूप में विष्णु का कृष्णावतार हुआ। कृष्ण भी राम के ही समान लोकप्रिय हैं। उन्होंने अनेक अलौकिक चमत्कार दिखाये, लीलायें कीं तथा कंस, जरासंध, शिशुपाल आदि का वध किया। महाभारत के युद्ध में पाण्डवों का साथ देकर दुर्योधन का वध करवाया तथा पृथ्वी पर सत्य, न्याय एवं धर्म को प्रतिष्ठित किया।
- राम तथा कृष्ण आज भी करोड़ों हिन्दुओं के आराध्य देव हैं। विदेशों में भी उनकी पूजा की जाती है।
9 बुद्ध अवतार
- इन्हें विष्णु का अन्तिम अवतार माना गया है। जयदेव कृत 'गीतगोविन्द' से सूचित होता है कि पशुओं के प्रति दया दिखाने तथा रक्तरंजित पशुबलि जैसी प्रथाओं को रोकने के उद्देश्य से विष्णु ने बुद्ध के रूप में अवतार ग्रहण किया। कालान्तर में हिन्दुओं ने अपनी उपासना पद्धति में बुद्ध को देवता के रूप में मान्यता प्रदान कर दी। विष्णु का यह अवतार अभी वर्तमान है।
10. कल्कि ( कलि) अवतार
- यह भविष्य में होने वाला है। कल्पना की गयी है कि कलियुग के अन्त में विष्णु हाथ में तलवार लेकर श्वेत अश्व पर सवार हो पृथ्वी पर अवतरित होंगे। वे दृष्टों का संहार करेंगे तथा पृथ्वी पर पुनः स्वर्ग युग स्थापित होगा।
वैष्णव धर्म में मूर्ति पूजा तथा मन्दिरों आदि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। मूर्ति को ईश्वर का प्रत्यक्ष रूप माना जाता है। भक्त मन्दिर में जाकर उसकी पूजा करते हैं। दशहरा, जन्माष्टमी जैसे पर्व वासुदेव विष्णु के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के प्रतीक हैं। वैष्णव उपासक भगवान का कीर्तन करते हैं तथा पवित्र तीर्थों पर एकत्रित होकर स्थान ध्यान करते हैं। वैष्णव धर्म के प्रमुख आचार्यों में रामानुज, मध्व, बल्लभ, चैतन्य आदि के नाम उल्लेखनीय हैं जिन्होंने इस धर्म का अधिकाधिक प्रचार किया। बाद में चलकर विष्णु का रामावतार सबसे अधिक व्यापक तथा लोकप्रिय हो गया। मध्यकाल में रामकथा का खूब विकास हुआ। गोस्वामी तुलसीदास ने 'रामचरितमानस' की रचना कर समाज में रामभक्ति की महत्ता को प्रतिष्ठित कर दिया। आज भी करोड़ों हिन्दू राम की सगुणोपासना करते हैं।
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