अंतरात्मा का आशय | नैतिक मार्गदर्शक के रूप में अंतरात्मा | अंतरात्मा का वर्गीकरण |Meaning of conscience.

 नैतिक मार्गदर्शक के रूप में अंतरात्मा

अंतरात्मा का  आशय | नैतिक मार्गदर्शक के रूप में अंतरात्मा | अंतरात्मा का वर्गीकरण |Meaning of


 अंतरात्मा का अर्थ या आशय

  • अंतरात्मा से सामान्य आशय मस्तिष्क की उस विशेष क्रिया से हैंजिसमें वह बुद्धि के प्रयोग द्वारा सही और गलत के संदर्भ में निर्णय देता है। इस तरह यह एक बौद्धिक निर्णय है। यह भावनाओं और विचारों से इस संदर्भ में अलग है कि भावना प्रधान निर्णयों में बुद्धि प्रयोग में नहीं आती है। यह अंतरात्मा एक व्यावहारिक अभ्यास है जिसका विकास बचपन में मिले पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों के अनुसार होता हैं। यूँ तो कानून भी व्यक्ति को नैतिक पथ पर बनाए रखने का कार्य करते हैंलेकिन कानून बाहरी तत्व है जबकि अंतरात्मा आंतरिक पहलू है।

 

सिगमंड फ्रायड के अनुसार अंतरात्मा 

  • अंतरात्मा को सिगमंड फ्रायड के मनोविश्लेषक सिद्धांत के द्वारा भी समझा जा सकता है। फ्रायड के अनुसार किसी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व तीन चीजों का समुच्चय है और इसे उन्होंने Id. ego and super ego में वर्गीकृत किया है। 


  • इसमें ID की प्रवृत्ति सिर्फ सुख प्राप्त करने की होती है और इस अवस्था में वह किसी भी तार्किकता पर ध्यान नहीं देता है जबकि ego उस सुख प्राप्ति के तार्किक साधन बताता है लेकिन यहाँ पर नैतिकता के पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया जाता है।


  • व्यक्ति को नैतिकता और सामाजिक मूल्यों पर रखने का कार्य सुपर ईगो करता है और यह सुपर ईगो दो तंत्रों से मिलकर बना होता है जिसमें पहला तंत्र है

 

सुपर ईगो के भाग 

1. अंतरात्मा- 

  • जो किसी कार्य के नैतिक रूप से सही या गलत होने का निर्देश देती है और जब इस निर्देश की अवहेलना की जाती है तब उस व्यक्ति के अंदर ग्लानि महसूस होती है।

 

II. आदर्श स्वः है- 

  • जो कि मस्तिष्क में आदर्श और काल्पनिक चित्र प्रस्तुत करता है कि व्यक्ति को क्या करना चाहिएइन आदशों को पाने की जो लोग चेष्टा करते हैं वे समाज में नये मानक स्थापित करते हैं लेकिन एक सामान्य मानव आदर्श से कम और अंतरात्मा से ज्यादा संचालित होता है।

 

  • मानव व्यवहार में व्याप्त अंतरात्मा परिस्थिति और व्यक्तित्व के अनुसार बदलती रहती है। कुल अंतरात्मा की स्थितियों को हम निम्न प्रकार से वर्गीकृत कर सकते हैं

 

अंतरात्मा का वर्गीकरण 

  • सत्य अंतरात्मा 
  • गलत अंतरात्मा 
  • संदिग्ध अंतरात्मा 
  • संभावित अंतरात्मा  
  • निश्चित अंतरात्मा 

 

1. सही या सत्य अंतरात्मा

  • जब व्यक्ति नैतिक पहलुओं के साथ तथ्यात्मक जानकारी और कानूनी सीमाओं का पालन करते हुए अंपनी अंतरात्मा से किसी निर्णय पर पहुँचता है तो इस तरह की अंतरात्मा वाली स्थिति को सत्य और सही अंतरात्मा कहा जाता है क्योंकि यहाँ नैतिक जिम्मेदारियों के दौरान कानूनी पक्षों की उपेक्षा नहीं की गई है ।

 

2. गलत अंतरात्मा

  • जब अंतरात्मा सिर्फ नैतिक पहलुओं पर विचार करें और तथ्यात्मक जानकारी और कानूनी सीमाओं की अवहेलना करें तो यह स्थिति गलत अंतरात्मा की होती है। इस अंतरात्मा पर आधारित निर्णय कानून के उल्लंघन के कारण आचार संहिता का उल्लंघन माना जाएगा और इस दशा में एक लोक सेवक के लिए कानूनी जवाबदेयता की चुनौती उत्पन्न हो जाती है इसीलिए हमेशा इस अवस्था से बचा जाना चाहिए।

 

3. निश्चित अंतरात्मा

  • ऐसी स्थितियाँ जब अंतरात्मा के सामने कोई दुविधा न हो तथा पालन किये जाने वाले नैतिक मूल्य भी स्पष्ट होंउसे निश्चित अंतरात्मा की स्थिति कहते हैं जैसे उदा. के लिए यदि सत्य बोलने से किसी व्यक्ति की जान जाती हो तथा उस स्थिति में असत्य बोलना निश्चित अंतरात्मा की स्थिति है जबकि कार्यालयी जिम्मेदारियों में हमेशा सत्य बोलना निश्चित अंतरात्मा माना जाएगा।

 

4. संदिग्ध अंतरात्मा

  • जब अंतरात्मा के सामने दो निर्णयों के चयन में दुविधा हो साथ ही उन दोनों निर्णयों के गलत होने की आशंका हो तब यह स्थिति अंतरात्मा की होती है। इस स्थिति का समाधान अतिरिक्त सूचना और तथ्यों को जुटाकर किया जा सकता है लेकिन हमेशा ही अतिरिक्त सूचना और तथ्य उपलब्ध नहीं होते हैं। इसीलिये कोई ऐसे भी अवसर आते हैंजब संदिग्ध अंतरात्मा पर निर्णय लिये जाते है वह सही है या गलत वह परिणामों पर निर्भर करेगा।

 

5. संभावित अंतरात्मा

  • जब अंतरात्मा के सामने किन्हीं दो निर्णयों में दुविधा भी हैं और उनमें किसी के भी गलत होने का भय भी है लेकिन फिर भी अंतरात्मा गलती के भय को अलग रखकर किसी एक निर्णय के प्रति झुकाव प्रदर्शित करती है तब यह संभावित अंतरात्मा की स्थिति कहलाती है तथा व्यक्ति विशेष का झुकाव भावनाओं या किसी विशेष जुड़ाव के कारण हो सकता है।

 

अंतरात्मा को शासित करने वाले कारक

 

अंतरात्मा का विकास यूँ तो बचपन से ही हो जाता है। साथ ही जो पारिवारिक और सामाजिक मूल्य व्यक्ति बचपन से ग्रहण करता है वही उसकी अंतरात्मा का निर्माण करते हैं। लेकिन उपयुक्त अभ्यास के द्वारा अंतरात्मा की आवाज को नैतिकता के पहलुओं पर रखा जा सकता है। उसके लिए निम्न कारक सहायक हैं-

 

  • सामान्यतः सभी व्यक्तियों को तथा विशेषकर लोक सेवकों को अपनी अंतरात्मा के सामने स्पष्ट विकल्प और परिणाम रखने चाहिए और यह स्पष्टता लाई जा सकती है समस्या या स्थिति के तार्किक विश्लेषण के द्वारा। अतः दुविधाओं की स्थितियों में नैतिक तार्किकता ज्यादा सहायक हो सकती है।

 

  • हमेशा प्रयास यह किया जाना चाहिए कि अंतरात्मा की आवाज पर लिये जाने 'वाले निर्णयों का आधार निश्चित अंतरात्मा होना चाहिए चाहे अंतरात्मा की कोई भी स्थिति हो उसे निश्चित अंतरात्मा के क्षेत्र में लाने का प्रयास करना चाहिए।

 

  • अंतरात्मा नैतिक रूप से व्यक्ति को नैतिक पथ पर रख सकती है लेकिन उसके लिए आवश्यक है अंतरात्मा की आवाज सुनने का अभ्यास करना और यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि किसी भी स्थिति में नैतिक मूल्यों पर ध्यान दिया जाए। साथ ही कानूनी बाध्यताओं और उनके परिणाम अंतरात्मा को ज्यादा मजबूत करते हैं। 

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