नायंकर एवं आयगर |अहदी किसे कहते हैं |दाखिली किसे कहते हैं | Ahdi ka arth

नायंकर एवं आयगर |अहदी किसे कहते हैं |दाखिली किसे कहते हैं

नायंकर एवं आयगर |अहदी किसे कहते हैं |दाखिली किसे कहते हैं


नायंकर एवं आयगर

 

  • विजयनगर की सेना के सेनानायक को नायक कहा जाता था। 
  • नायक भू-सामन्त थेजिन्हें राजा वेतन के बदले उनकी अधीनस्थ सेना के रख-रखाव के लिए विशेष भू-खण्ड देता था। ऐसे भू खण्ड अमरम कहलाते थे। 
  • अमरम भूमि के उपयोग के बदले नायकों को भूमि से प्राप्त भू-राजस्व के एक हिस्से को सरकारी कोष में जमा करना पड़ता था तथा भूमि की आय से राजा की सहायता के लिए एक सेना का रख-रखाव करना पड़ता था। इसके अलावा नायकों को उस क्षेत्र में शान्तिसुरक्षा अपराधों को रोकने जैसे अनेक दायित्वों को भी पूरा करना होता था। 
  • आयगर व्यवस्था का गठन प्रशासन को भली-भांति चलाने के लिए किया जाता था । प्रत्येक गांव को एक स्वतन्त्र इकाई के रूप में संगठित किया जाता था। संगठित ग्रामीण इकाई शासन हेतु बारह सदस्यीय प्रशासकीय अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी। इन्हें सामूहिक रूप में आयगर कहा जाता था। 
  • इन्हें अपनी सेवा के बदले वेतन के रूप में कर मुक्त तथा लगान मुक्त भूमि प्राप्त होती थी। गांव की भूमि बिना आयंगर की पूर्व अनुमति के नहीं बेची जा सकती थी। 
  • कर्णिक नामक कर्मचारी के पास भूमि से जुड़े सभी दस्तावेज होते थे। राजा महानायकाचार्य नामक अपने अधिकारी के द्वारा गांव के शासन से अपना सम्बन्ध बनाये रखता था।

 

अहदी किसे कहते हैं

 

  • ये सम्राट के व्यक्तिगत सैनिक हुआ करते थे। इनकी नियुक्ति सम्राट किसी मनसबदार की सेना में भी कर सकता था। 
  • सम्राट ही इनके वेतनशिक्षावस्त्रघोड़े आदि की व्यवस्था करता था। 
  • मुगल काल में एक अहदी सैनिक को 500 रूपये तक का वेतन दिया जाता था। ये सम्राट के प्रति वफादार होते थे। इनकी संख्या अनिश्चित होती थी। 
  • अकबर के शासनकाल में इनकी संख्या लगभग 12 हजार थी। 
  • ये प्रतिष्ठा वाले सिपाही थे तथा विशेष प्रकार के अश्वारोही होते थे जो साधारणतः बादशाह के अंगरक्षक थे तथा किसी और के अधीन नहीं थे अर्थात् मुगल सेना के प्रमुख भाग थे।


दाखिली किसे कहते हैं 

 

  • इस प्रकार के सैनिकों की नियुक्ति सम्राट ही करता था। इन्हें मनसबदार की सेवा में रखा जाता था। 
  • ये सैनिक अर्द्ध-अश्वारोही और अर्द्ध-पैदल की श्रेणी में आते थे। 
  • दाखिली सैनिको की भर्ती भी सीधे राज्य द्वारा ही होती थी। इन्हें मनसबदारों के अधीन रखा जाता था। ये सिपाही होते थे जिनका खर्च राज्य से मिलता था। 

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