आर्यों का मूलनिवास स्थान |आर्य जाति से संबंधित विभिन्न विचार | Aaryon Ka Mulniwas Sthan

आर्यों का मूलनिवास स्थान |आर्य जाति से संबंधित विभिन्न विचार | Aaryon Ka Mulniwas Sthan 

आर्यों का मूलनिवास स्थान |आर्य जाति से संबंधित विभिन्न विचार | Aaryon Ka Mulniwas Sthan



आर्य जाति से संबंधित विभिन्न विचार

 

  • आर्यों के विषय में विद्वानों के अनेक मत हैं कुछ का मानना है कि वे उत्तर भारत के सप्त सैन्धव प्रान्त मेंजो सिन्धु से सरस्वती नदी की घाटी तक थारहते थे। वहीं से वे एशिया तथा यूरोप तक फैल गए। 
  • उनका आदिम निवास स्थान कोई उत्तरी ध्रुव के समीपकोई दक्षिणी रूस या हंगरी देश में तो कोई मध्य एशिया में स्वीकार करता है। 
  • अधिकांश लोगों का मानना है कि वे काकेशिया और मध्य एशिया की ओर से पशुओं के चारे एवं खाद्य पदार्थों की खोज करते हुए उधर तो यूरोप में जा पहुंचे और इधर एशियामाइनरईरानअफगानिस्तान तथा भारतवर्ष में आ निकले। 
  • दीर्घ कालीन अन्वेषणों के पश्चात आर्यों के आदि देश के विषय में जिन प्रमुख सिद्धान्तों को प्रकाश में लाया गया हैउनका विवरण इस प्रकार है.  

आर्यों के आदि देश के प्रमुख सिद्धान्त


1 आर्यों का आदि देश भारत

 

  • डॉ0 अविनाश दास एवं सम्पूर्णानन्द के अनुसार आर्यों का आदि देश सप्तसैन्धव था। इस प्रदेश में सिन्धुवितस्ताअस्किनीपरूष्णीविपाशाशत्रुद्रि और सरस्वती नामक सात नदियां बहती थीं। इन्हीं के द्वारा सींचा गया उर्वर प्रदेश प्राचीन युग में सप्तसैन्धव के नाम जाना जाता था और यही प्रदेश आर्यों का आदि देश था।
  • महामहोपाध्याय पं गंगानाथ झा के अनुसार आर्यों का आदि देश भारत का मध्यप्रदेश है। उनके अनुसार मूल आर्य मध्यप्रदेश में निवास करते थे और कालान्तर में जब उन्हें अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता हुई तो वे पश्चिमी एशिया तथा मध्य एशिया आदि स्थानों में फैल गए।
  • एल0डी0 कल्ल ने यह प्रमाणित करने का प्रयत्न किया है कि आर्य मूल रूप से कश्मीर तथा हिमालय के प्रदेषों में रहते थे। डी0एस0 त्रिवेदी मुल्तान में स्थित देविका नदी के समीपवर्ती प्रदेश को आर्यों का निवास स्थान मानते हैं। डॉ0 के0एम0 मुंशी ने आर्यों का आदि देश गुजरात माना है।

 

भारतवर्ष को आर्यों का आदि देश मानने में कठिनाइयां हैं

 

  • यदि आर्यों का आदि देश भारत होता तो वे अपने देश का पूर्णरूपेण आर्यीकरण करते तब दूसरे देशों को जाते। परन्तु ऋग्वेद से स्पष्ट सूचना मिलती है कि तत्कालीन आर्य मध्य प्रदेशपूर्वी भारत तथा दक्षिणापथ से प्रायः अपरिचित थे जबकि ईरान और अफगानिस्तान के सन्दर्भ में उनका भौगोलिक ज्ञान अपेक्षाकृत ज्यादा था। इससे प्रतीत होता है कि वे बाहर से आये थे और ऋग्वैदिक काल तक वे पंजाब के प्रदेष से आगे के भारत में प्रविष्ट नहीं हुए थे।
  • इण्डो-यूरोपियन परिवार की प्राचीनतम भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन से हमें जिन वनस्पतियों और पशु-पक्षियों का पता चलता है वे सब भारत में नहीं पायी जाती। इससे यह निष्कर्ष निकालना स्वाभाविक है कि आर्य भारत के मूल निवासी नहीं थे। 
  • बलूचिस्तान में द्रविड़ भाषा के प्रचलन से यह स्पष्ट जाता है कि भारत के अधिकांश भागों में आर्य भाषा का प्रचलन नहीं था। इस आधार पर भी भारत को आर्यों का आदि देश नहीं माना जा सकता है।

 

आर्यों का मूलनिवास स्थान में उत्तरी ध्रुव या आर्कटिक प्रदेश

 

  • श्री बालगंगाधर तिलक ने ऋग्वैदिक विवरण की व्याख्या में लम्बी अवधि प्रायः 6 माह के रात और दिन का अनुमान लगाकर उत्तरी ध्रुव प्रदेश या आर्कटिक प्रदेश को आर्यों का निवास बताया है जहाँ से हिम प्रलय के कारण वे हटकर भारत आये थे। श्री तिलक के मतानुसार ईरानी अवेस्ता में उत्तरी ध्रुव के संकेत मिलते हैं और भीषण तुषारापात का वर्णन भी मिलता है। आर्यों द्वारा वर्णित वनस्पति और उनकी औषधियां उत्तरी ध्रुव में प्राप्त होती हैं। परन्तु इस सिद्धान्त को मानने में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि -सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में कहीं भी उत्तरी ध्रुव को आर्यों की भूमि नहीं कहा गया है और यदि आर्य उत्तरी ध्रुव को अपना आदि देश मानते तो सप्तसैंधव को 'देवकृत योनिन कहते।

 

आर्यों का मूलनिवास का यूरोपीय सिद्धान्त

 

  • यूरोप को आर्यों का आदि देश स्वीकार करने वाले विद्वानों में डॉ० पी० गाइल्स प्रमुख हैं जिन्होंने भाषा विज्ञान के आधार पर हंगरी को उनका आदि देश माना है। यहाँ से वे एशिया माइनर और ईरान होकर भारत पहुंचे। परन्तु भाषा विज्ञान के आधार पर उनका यह मत उचित प्रतीत नहीं होता।
  • कुछ विद्वानों ने भूरे बालों के आधार पर भी जर्मन प्रदेश को आर्यों का आदि देश स्वीकार किया है। यह विशेषता आज भी जर्मन जाति में पायी जाती है। कुछ पूर्वेतिहासिक मृद्भाण्ड मध्य जर्मनी से मिले हैं। इस आधार पर भी मध्य जर्मनी को भी कुछ विद्वानों द्वारा आर्यों का आदि देश स्वीकार किया है। पेन्का नामक विद्वान् की धारणा है कि भूरे बालों के अतिरिक्त प्राचीनतम आर्यों की जो अन्य शारीरिक विशेषतायें थीं वे जर्मन प्रदेश के निवासियों यानि स्कैण्डिनेवियन्स में पायी जाती हैं। 
  • अतः स्कैण्डीनेविया को ही आर्यों का आदि देश स्वीकार किया जाना चाहिए। हर्ट महोदय भी इस मत को स्वीकार करने के पक्ष में हैं। इसके अलावा त्रेपोल्जे ने यूक्रेन से प्राप्त कुछ मृद्भाण्डों का अध्ययन करके इन्हें आर्यों से सम्बन्धित बताया है। पोकोर्नी का कहना है कि जिस उपजाऊ भूमि का वर्णन ऋग्वेद में है वह बेजर और विश्रुला नदियों के बीच स्थित श्वेत रूस तक फैला था। इसे स्टेप्स का मैदान कहा जाता है जो आर्यों का आदि देश माना जा सकता है। 


यूरोपीय सिद्धान्त को स्वीकार करने में निम्नलिखित कठिनाइयां हमारे सामने आती हैं

 

  1. केवल शारीरिक विशेषताओं के आधार पर किसी जाति को आर्यों का वंशज कहना उचित प्रतीत नहीं होता है। 
  2. जहाँ तक भूरे बालों का प्रश्न हैप्रसिद्ध भाष्यकार पतंजलि ने भूरे बालों को ब्राह्मणों का गुण बताया है।
  3.  इस आधार पर तो आर्यों को भारत का ही मूल निवासी क्यों नहीं कहा जा सकता। 
  4. मृद्भाण्डों को आधार मानकर आर्यों का आदि देश स्वीकार करना भी तर्कसंगत नहीं है। क्योंकि इस तरह के मृदभाण्ड अन्य स्थानों से भी प्राप्त हुए हैं।


4 आर्यों का मूलनिवास एशिया

 

  • अनेक विद्वानों ने विभिन्न तर्कों का आधार लेकर एशिया को आर्यों का आदि देश स्वीकार करने की वकालत की है। उनके अनुसार आर्यों के प्राप्त दो आदि ग्रन्थ ऋग्वेद और जैन्द-अवेस्ता यहीं से प्राप्त हुए हैं। अतः यहीं कहीं आस-पास वे निवास करते होंगे। 
  • आर्यों का प्राचीनतम लेख भी यहीं के बोगजकोई (1400 ई0पू0) नामक स्थान से प्राप्त हुआ है जिसमें एकतेरपंजसत्त आदि अंकों का उल्लेख है जो वैदिक संख्याओं के ही अनुरूप हैं। 
  • इसी तरह मिस्र में एल- अर्मना नामक स्थान पर कुछ मिट्टी के खण्ड प्राप्त हुए हैं जो बेबीलोनिया की लिपि में लिखित हैं और इन पर कुछ बेबीलोनिया के नरेशों के नाम हैं। ये नाम बहुत कुछ वैदिक प्रतीत होते हैं। 
  • प्रश्न यह उठता है कि एशिया के किस भाग में आर्यों का आदि स्थान था इस पर अलग-अलग विद्वानों की अलग-अलग धारणायें हैं।
  • मैक्समूलर ने मध्य एशिया को आर्यों का आदि देश स्वीकार करते हुए इस बात पर प्रकाश डाला है कि यहीं से ये विभिन्न शाखाओं में विभाजित होकर ईरान और भारत गये रोड एवं पॉट का मानना है कि आर्य मूल रूप से बैक्ट्रिया के निवासी थे जहाँ से वे विभिन्न दिशाओं गए थे। यह मत अवेस्ता को आधार मानकर प्रतिपादित किया गया है। 
  • इसी प्रकार प्रो0 सेअस ने कैस्पियन सागर का समीपस्थ प्रदेश आर्यों का आदि देश स्वीकार किया है। उनका तर्क है कि वे शीत जल और वनस्पति प्रधान स्थानों पर रहते थे जिसकी पुष्टि ऋग्वेद और अवेस्ता के अनेक प्रसंगों से होती है। 
  • एडवर्ड मेयर पामीर पठार और बैरण्डेस्टोन एशिया में यूराल पर्वत के दक्षिण में स्थित स्टेप्स प्रदेश को आर्यों का आदि प्रदेश स्वीकार करते हैं। 


परन्तु मध्य एशिया को आर्यों का देश स्वीकार करने में निम्नलिखित कठिनाइयां हैं

 

  • मध्य एशिया के निवासियों में आर्यों के गुण उपलब्ध नहीं होते हैं। यदि आर्यों का आदि स्थान यहाँ पर था तो यहाँ की आधुनिक जातियों में उनके वंशज आर्यों का प्रभाव क्यों नहीं पाया जाता। 
  • आर्य कृषि कर्म करते थे परन्तु मध्य एशिया में कृषि कर्म हेतु उपजाऊ तथा उर्वरक प्रदेश नहीं थे। अतः जल की कमी तथा अनुपजाऊ वाले प्रदेश को आर्यों का आदि देश स्वीकार करना कठिन है।

 

5 आर्यों का मूलनिवास का वर्तमान विचार

 

  • हिन्द-यूरोपीय भाषाआर्य संस्कृति की सर्वप्रमुख विशेषता मानी जाती है। 
  • भाषाशास्त्रीयों ने आद्य हिन्द-यूरोपीय भाषा का प्रारंभ सातवीं या छठी सहस्राब्दी ईसा पूर्व अर्थात आज से 8-9 हजार वर्ष पूर्व बतलाया है। 
  • हिन्द-यूरोपीय भाषा का की दो शाखाऐं थीं- एक पूर्वी शाखा और दूसरी पश्चिमी शाखा। भाषाशास्त्रियों के अनुसार पूर्वी हिन्द-यूरोपीय भाषा शाखा के उच्चारण संबंधी विकास में पांचवी सहस्राब्दी के मध्य में अनेक चरण देखने को मिलते हैं। ऐसी ही एक भाषा संभवतः आद्य हिन्द-ईरानी भाषा थी।
  • डॉ. आर. एस. शर्मा बतलाते हैं कि इसमें हिन्द-आर्य भाषा भी शामिल थी और इस भाषा के प्राचीनतम प्रमाण इराक के अगेड वंश के पाटिया पर लिखे मिलते हैं जिनका समय 2300 ईसा पूर्व है। डॉ शर्मा आगे बताते हैं कि इस अभिलेख में अरिसेन और सोमसेन नामक व्यक्तियों के नाम मिलते हैं। 
  • इसी प्रकार हिट्टाइट अभिलेख से जो साक्ष्य मिले हैं उसके आधार पर कहा जा सकता है कि इस स्थान पर हिन्द-यूरोपीय भाषा की पश्चिमी शाखा के बोलने वाले वहां 19वीं सदी से 17वीं सदी ईसा पूर्व में विद्यमान थे।
  •  इसी प्रकार डॉ. शर्मा बतलाते हैं कि मेसापोटामिया में कैस्साइट और मिटानी शासकों के बोगजकोई अभिलेखों से पता चलता है कि 16वीं से 14वीं सदी ईसा पूर्व में इस भाषा की पूर्वी शाखा के बोलने वाले विद्यमान थे।
  •  डॉ. शर्मा का विचार है कि हिन्द-ईरानी भाषा का विकास पश्चिम में फिनलैण्ड और पूरब में कॉकेशस क्षेत्र के बीच कहीं था। 
  • गॉर्डन चाइल्ड ने इण्डो-आर्यों के उद्गम पर प्रकाश डालते हुए अनातोलिया को इण्डो यूरोपीयों का मूल निवास स्थान बतलाया। कुछ अन्य पुराविद्-सह-भाषाशास्त्रियों ने भी इस मत का समर्थन करते हुए इण्डो-यूरोपीय भाषा का मूल स्थान कॉकेशस के दक्षिण क्षेत्र अर्थात पूर्वी अनातोलिया और उत्तरी मेसोपोटामिया क्षेत्र को माना है। रेनफ्रू नामक पुराविद् भी पूर्वी अनातोलिया को आर्यों का मूल निवास स्थान मानते हैं। 
  • इस संबंध में डॉ. आर.एस. शर्मा रोचक तथ्य रखते हुए बताते हैं कि जीवन विज्ञानियों की हाल के शोध कार्य मध्य एशिया से मानव प्रसरण पर सम्यक पेकाश डालते हैं। 
  • मानव की रक्त कोशिकाओं में जो उत्पत्ति संबंधी संकेत (डी.एन.ए.) होते हैं वे मानव पीढ़ियों में सदैव रहते हैं। जीवन-वैज्ञानिकों के अनुसार इस तरह के कुछ विशेष संकेत मध्य एशिया के एक छोर से दूसरी छोर तक 8000 इस्वी पूर्व के आसपास मिलते हैं। 
  • इन विशेष संकेतों का नाम एम 17 दिया गया है और ऐसे संकेत मध्य एशिया के 40 प्रतिशत से अधिक लोगों में मिलते हैं लेकिन ये संकेत द्रवीण भाषाभाषियों के केवल 10 प्रतिशत जनसंख्या में मिले हैंइससे पता चलता है कि इण्डो-आर्य मध्य एशिया से भारत पहुंचे थे।
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