मुहम्मद साहिब की शिक्षाएँ |Teachings of Mohammad

मुहम्मद साहिब की शिक्षाएँ |Teachings of Mohammad

मुहम्मद साहिब की शिक्षाएँ |Teachings of Mohammad


 

  • पैगम्बर मुहम्मद ने किसी गहरे दार्शनिक मत का प्रचार नहीं किया। डा . ताराचन्द का कहना है कि उनका धर्म अत्यन्त ही सरल था। इसमें सिद्धान्त तथा संस्कार की बात बहुत ही थोड़ी थी, क्योंकि कुरान के अनुसार ईश्वर चाहता है कि मैं लोगों का बोझ हल्का करूँ और उनका जीवन सुगम बनाऊँ। 
  • मुहम्मद साहिब ने केवल तीन बातों का प्रचार किया-सच्चाई, पवित्र जीवन और ईश्वर में अडिग विश्वास. 


उनकी शिक्षाओं के मुख्य नियम दो भागों में बांटे जा सकते हैं-

(क)धनात्मक नियम 

(ख) नकारात्मक नियम।


मुहम्मद साहिब की शिक्षाएँ - धनात्मक ( निश्चित) शिक्षाएँ (Positive Teachings)

 

1. अल्लाह पर विश्वास (Belief in Allah)

  • पैगम्बर साहिब का केन्द्रीय धर्म सिद्धान्त यह है कि संसार में केवल एक ही अल्लाह है। इसका अभिप्राय यह है कि देवी- देवताओं की पूजा पूर्णरूप से बन्द। अल्लाह संसार का सर्वोच्च तथा एकाकी सम्राट है। उसके अनुयायियों को उसके अन्दर अडिग विश्वास रखना चाहिए और उसकी इच्छा के उल्लंघन के भयानक परिणामों से डरना चाहिए और लोगों के अन्दर यह गहरी भावना होनी चाहिए कि हम उसकी दया और कृपा के अधीन हैं तथा उस पर पूर्णतः निर्भर हैं।

 

2. कर्म तथा स्वर्ग-नरक के सिद्धान्त में विश्वास (Belief in Theory of Karma and Heaven and Hell)

  • भगवान कृष्ण और भगवान बुद्ध की तरह पैगम्बर मुहम्मद ने कर्म के सिद्धान्त में अपना विश्वास प्रकट किया। उनका विश्वास था कि किसी व्यक्ति के कामकाज का बड़ा महत्त्व होता है। उनके कथनानुसार प्रलय और न्याय का एक दिन आयेगा जब हर कोई नष्ट हो जायेगा अथवा उसे अपने कर्मानुसार दण्ड या फल मिलेगा। एक अच्छे सदाचारी व्यक्ति को तो स्वर्ग मिलेगा परन्तु पापी को नरक में फेंका जाएगा। 


3. प्रार्थना पर विश्वास (Belief in Prayers):

  • भगवान बुद्ध और भगवान महावीर से भिन्न ढंग अपनाते हुए मुहम्मद साहिब ने प्रार्थना की क्षमता पर विश्वास रखा। उन्होंने अपने अनुयायियों को आदेश दिया कि दिन में पाँच बार प्रार्थना करो प्रातः मध्यकालीन भारत का इतिहास पहले पहर, दूसरे पहर, सायं तथा रात को क्योंकि किसी व्यक्ति के पाप प्रार्थना द्वारा ही क्षमा किया जा सकते हैं. 

 

4. विश्वव्यापी भ्रातृभाव में विश्वास (Belief in Universal Brotherhood): 

  • मुहम्मद साहिब की शिक्षाओं में एक प्रमुख नियम मुसलमानों में समानता तथा भ्रातृत्व का सिद्धान्त है। पैगम्बर साहिब के अनुयायी ऊँच-नीच के भेदभाव के बिना एक समान हैं। वे सब अल्लाह के बेटे हैं और परस्पर भाई हैं। ये सिद्धान्त मुसलमानों को एक जातीय रूप में संगठित करने में बड़ा लाभकारी सिद्ध हुआ, क्योंकि उन्होंने उनके अन्दर एकता की भावना कूट-कूटकर भर दी और उन्हें दूसरे धर्मों के अनुयायियों के विरुद्ध सदैव के लिए संगठित किए रखा।

 

5. नैतिकता में विश्वास (Belief in Morality): 

  • सभी बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों की तरह मुहम्मद साहिब ने भी लोगों को यह सिखाया कि ऊँचा, नैतिक तथा सच्चाईपूर्ण जीवन व्यतीत करो। झूठ बोलना या चोरी करना पाप है। मनुष्य को ईमानदार और सच्चा बनना चाहिए और अपनी कमाई का एक चौथाई दान (जकात) में देना चाहिए।

 

6. व्रतों, तीर्थयात्राओं इत्यादि में विश्वास (Belief in Fast, Pilgrimage etc.): 

  • पैगम्बर साहिब का कहना है कि इस्लाम का एक आवश्यक नियम कुछ रीतियों का पालन करना है। मुसलमानों का यह कर्तव्य है कि रमजान के महीने के कुछ विशेष दिनों में व्रत ( रोजा) रखें। दूसरी बात, मुहम्मद साहिब के जन्म स्थान मक्का की तीर्थयात्रा अथवा हज जीवन में कम-से-कम एक बार अवश्य करें।

 

7. कुरान में दी हुई बातों पर विश्वास (Belief in Contents of Quran): 

  • पैगम्बर साहिब ने अपनी सब शिक्षाओं को अपने एक ग्रन्थ कुरान को रचकर उसमें भर दिया और उन्होंने अपने अनुयायियों को यह आदेश दिया कि न केवल कुरान की बातों (आयतों) पर विश्वास करो अपितु अपना जीवन भी उन्हीं के अनुसार व्यतीत करो। 
  • सभी विषयों पर-क्या व्यक्तिगत, क्या धार्मिक, क्या सामाजिक और क्या राजनैतिक- कुरान सर्वप्रथम तथा अन्तिम प्रमाण समझा गया और निर्धन से निर्धन व्यक्ति से लेकर धनी से धनी व्यक्ति तक तथा भिखारी से लेकर राजा तक प्रत्येक मुसलमान को यह आदेश दिया कि कुरान को जीवन का सबसे बड़ा तथा सबसे अमूल्य मार्गदर्शक समझा जाए।

 

मुहम्मद साहिब की शिक्षाएँ नकारात्मक शिक्षा (Negative Teachings)

 

1. मूर्ति पूजा की निन्दा (Disbelief in Idol Worship): 

  • मुहम्मद साहिब की शिक्षाओं में एक महानतम नियम यह था कि उन्होंने मूर्तिपूजा की तीव्र निन्दा की। अरब देश में उनसे पहले मूर्तिपूजा एक बहुत ही लोकप्रिय रिवाज के रूप में प्रचलित थी। परन्तु पैगम्बर साहिब के सन्देश के कारण यह काफी घट गई। इसके बाद ऐसा समझा जाने लगा कि हर मुसलमान का यह धार्मिक कर्तव्य है कि वह तलवार के बल पर भी मूर्तिपूजा को मिटाए। यह बात बड़ी अर्थपूर्ण है कि भारत पर मुसलमानों के जो आक्रमण हुए उनके पीछे मूर्तिपूजकों की धरती पर मूर्तिपूजा को मिटाने का उत्साह ही तो था।

 

2. तपस्यावाद का विरोध (Disbelief in Asceticism):

  • मुहम्मद साहिब की शिक्षाओं में तपस्यावाद को कोई स्थान नहीं, जो कि जैन धर्म तथा हिन्दू का प्रमुख नियम है । वास्तव में उन्होंने इस पक्ष को ही नहीं अपनाया कि आत्मा की मुक्ति के लिए शरीर को भूखा रखा जाए। उनका तो विश्वास यह था कि मनुष्य विवाह और पारिवारिक जीवन व्यतीत करे। कुरान का आदेश है कि एक मुसलमान पुरुष चार विवाह कर सकता है।


3. अहिंसा में अविश्वास (Disbelief in Non-Violence): 

  • बुद्ध तथा जैन के अहिंसा के नियम को भी इस्लाम में कोई स्थान नहीं। मुहम्मद साहिब ने माँसाहार की निन्दा नहीं की और न ही उन्होंने ऐसा प्रचार किया कि मनुष्यों तथा जीवों को दु:ख न दो। तो भी इसका अर्थ यह नहीं कि उन्होंने युद्ध, हिंसा तथा सम्पत्ति विनाश का समर्थन किया। इसका तो केवल इतना ही अर्थ है कि वे किसी न्यायपूर्ण युद्ध के विरुद्ध नहीं थे ।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.