महमूद गजनवी के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक स्थिति India at the time of Mahmud Ghaznavi's invasion

 

महमूद गजनवी के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक स्थिति 

महमूद गजनवी के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक स्थिति  India at the time of Mahmud Ghaznavi's invasion



महमूद गजनवी के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक स्थिति विवरण 


मुल्तान और सिन्ध के अरब राज्य

 

  • करामाथी लोग मुल्तान में राज्य करते थे, फतेह दाऊद उनका शासक था। वह एक योग्य व्यक्ति था। 
  • सिन्ध में भी अरबों का ही शासन था। अरबों की राजनीतिक और धार्मिक नीति से परिचित होने पर भी पड़ोस के हिन्दू राज्य किसी प्रकार इनसे सजग नहीं हुए थे। इसके विपरीत हर जगह अरबों तथा नये भारतीय मुसलमानों के साथ सहृदयता का बरताव किया जाता था और उन्हें अपने धर्म का पालन करने तथा नये लोगों को मुसलमान बनाने की आज्ञा थी। 
  • व्यापारिक गतिविधियों में संलग्न रहने के कारण भारत के विभिन्न भागों में उनका काफी महत्व था।

 

भारत के शेष अन्य भागों में देशी राजवंश शासन करते थे। इन राज्यों में प्रमुख राज्य निम्नलिखित थे-

 

हिन्दूशाही राज्य- महमूद गजनवी के आक्रमण के समय

 

हिन्दूशाही राज्य, चिनाब नदी से हिन्दूकुश तक फैला हुआ था और काबुल उसमें सम्मिलित था।

  • इस राजवंश ने 200 वर्षों तक अकेले ही अरब आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना किया था। किन्तु अन्त में इसके शासकों को अफगानिस्तान छोड़ने पर बाध्य होना पडा काबुल भी उनके हाथ से निकल गया इसके उपरांत उन्होंने उदभण्डपुर अथवा बैहन्द को अपनी राजधानी बनाया।
  • 10वीं सदी के अंत में जयपाल इस राज्य पर शासन करता था। वह वीर सैनिक तथा योग्य शासक था। अपने राज्य की भौगोलिक स्थिति के कारण गजनी से आने वाले आक्रमण का पहला प्रहार उसी को झेलना पड़ा।

 

काश्मीर- महमूद गजनवी के आक्रमण के समय

 

उत्तर-पश्चिम में दूसरा महत्वपूर्ण राज्य काश्मीर का था। उसकी हिन्दुशाही राज्य तथा कन्नौज के साम्राज्य से इस काल में शत्रुता चल रही थी।

प्रसिद्ध राजा शंकरवर्मन ने काश्मीर राज्य की सीमाओं का अनेक देशों में विस्तार किया था परन्तु वह आधुनिक हजारा जिला के लोगों से युद्ध करता हुआ मारा गया। 

उसके उपरान्त राज्य में अराजकता फैल गयी और कुछ समय तक छोटे-छोटे राजवंशों का शासन रहा और फिर पर्वगुप्त ने एक नये वंश की नींव डाली। 

महमूद के आक्रमण के समय में राज्य की सम्पूर्ण शक्ति उसकी रानी दिद्दा के हाथ में थी। उसने 1003 ई0 तक राज्य किया।

 

कन्नौज- महमूद गजनवी के आक्रमण के समय

 

  • कन्नौज और मध्य प्रदेश पर प्रतिहारों का प्रभुत्व कायम था। अपने उत्तर तथा दक्षिण के पड़ोसी राज्यों से उनका संघर्ष चलता रहता था, जिनमें कभी उनको सफलता मिलती और कभी पराजय भोगनी पड़ती थी। 
  • दक्षिण के राष्ट्रकूट शासक इन्द्र तृतीय ने प्रतिहार राजा महिपाल को बुरी तरह हराया था और उसे अपनी राजधानी कन्नौज से भी हाथ धोना पड़ा था। किन्तु एक चन्देल शासक ने उसे पुनः गद्दी पर बैठा दिया, लेकिन प्रतिहारों की शक्ति को भारी धक्का लगा था। 
  • इस वंश के शासक गंगा के उत्तरी भाग तथा राजस्थान और मालवा के कुछ प्रदेशों पर राज्य करते रहे किन्तु उनकी सत्ता सदैव अस्थिर रही। 
  • बुन्देलखण्ड के चन्देल, गुजरात के चालुक्य और मालवा के परमार जो पहले उनके अधीनस्थ सामन्त थे, इस काल में स्वतन्त्र हो गये थे। 
  • प्रतिहार वंश का अन्तिम शासक राज्यपाल हुआ। वह दुर्बल शासक था उसकी राजधानी कन्नौज पर महमूद गजनवी ने 1018 ई0 में आक्रमण किया, महमूद के आक्रमण के सामन वह टिक न सका।

 

बंगाल का पाल वंश- महमूद गजनवी के आक्रमण के समय

 

  • 11 वीं शताब्दी के प्रथम चरण में बंगाल में महिपाल प्रथम का शासन था जो गजनवी का समकालीन था। उसने कुछ हद तक अपने वंश के वैभव की पुनः महमूद स्थापना की, किन्तु बंगाल के कुछ भाग पर शक्तिशाली सामन्तों ने पहले ही अधिकार कर लिया था और वे नाममात्र को ही राजाओं का प्रभुत्व स्वीकार करते थे। 
  • जिस समय उत्तर पश्चिमी भारत में महमूद गजनवी, हत्या और लूट का काण्ड रच रहा था उसी समय बंगाल पर चोल शासक राजेन्द्र चोल का आक्रमण हुआ। इस युद्ध में बंगाल को भीषण क्षति उठानी पड़ी थी, किन्तु दूर स्थित होने के कारण बंगाल राज्य महमूद गजनवी के आक्रमणों से मुक्त रहा।

 

उपर्युक्त राज्यों के अतिरिक्त उत्तरी भारत में अन्य कई छोटे छोटे राज्य थे जिनमें गुजरात के चालुक्य, बुन्देलखण्ड के चन्देल और मालवा के परमार अधिक महत्वपूर्ण थें पहले किसी समय वे कन्नौज के अधीन रह चुके थे।

 

दक्षिण के राज्य- महमूद गजनवी के आक्रमण के समय

 

  • दक्षिण भारत के शासकों में भी उत्तर भारतीय शासकों की भांति निरन्तर संघर्ष चलता रहा था। 
  • दक्षिण के परवर्ती चालुक्यों और राष्ट्रकूटों में प्रभुता के लिए दीर्घकाल तक संघर्ष हुआ था। 11वीं शताब्दी के प्रारम्भ में दक्षिण में दो प्रसिद्ध राज्य थे, कल्याणी का परवर्ती चालुक्य राज्य औरतंजौर का चोल राज्य। 
  • परवर्ती चालुक्य वंश का संस्थापक तैल द्वितीय था। वह वातापी के चालुक्यों के वंश का होने का दावा करता था। उसने आधुनिक हैदराबाद राज्य में स्थित कल्याणी को अपनी राजधानी बनायी थी। उसके उत्तराधिकारी तंजौर के चोल राजाओं के विरूद्ध संघर्षरत रहे थे।
  • चोल लोग आदित्य के वंशज थे। राजराजा के समय में उनका महत्व बढ गया। उसका पुत्र राजेन्द्र चोल महान योद्धा और विजेता हुआ, वह महमूद का समकालीन था। उसने बंगाल की विजय कर गंगईकोण्डचोलपुरम की उपाधि धारण की थी। उसने उत्तरी तथा दक्षिणी भारत के अनेक प्रदेश जीते । उसकी गणना उस युग के महानतम भारतीय शासकों में थी। 
  • जिस समय दक्षिण में चालुक्य और चोल निर्मम संघर्ष में रत थे, उत्तरी भारत में महमूद गजनवी बड़े-बड़े साम्राज्यों को धूल में मिला रहा था।

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